Saturday, November 2, 2024

रूचि कृत पितृ स्तोत्र Ruchi Krit Pitru Stotra

 रूचि कृत पितृ स्तोत्र Ruchi Krit Pitru Stotra


पितृ स्तोत्र 


रुचिरुवाच 


अर्चितनाममूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसां | 

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम(तेजसां)|| 


इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा | 

सप्तर्षीणां तथान्येषां ताँ नमस्यामि कामदान || 


मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा | 

ताँ नमस्याम्यहं सर्वान पितृनप्सूदधावपि || 


नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा | 

द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः || 


देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोकनमस्कृतान | 

अक्षय्यस्य सदा द्दातृन नमस्येहं कृताञ्जलिः || 


प्रजापतेः कश्यपाय सोमाय वरुणाय च | 

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः || 


नमोगणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु | 

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुसे || 


सोमाधारान पितृगणान योगमूर्त्तिधरांस्तथा | 

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जागतामहम ||

 

अग्निरूपांस्तथैवान्यान नमस्यामि पितॄनहम | 

अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः || 


ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः | 

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिणः || 


तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः | 

नमो नमो नमस्ते में प्रसीदन्तु स्वधाभुजः || 


रूचि की इस स्तुति करने पर पितर दशो दिशाओ में से प्रकाशित पुंज में से बाहर निकलकर प्रसन्न हुए | रूचि ने जो चन्दन-पुष्प अर्पण किये थे उसी को धारणकर पितर प्रकट हुए | तब रुचिने फिर से पितरो को दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया | तब उसने पितरो को कहा की ब्रह्माजी ने मुझे सृष्टि के विस्तार करने को कहा है इसलिए आप मुझे उत्तम श्रेष्ठ पत्नी प्राप्त हो 

ऐसा आशीर्वाद दो | जिससे दिव्यसंतान की उत्पत्ति हो सके | 

तब पितरो ने कहा यही समय तुम्हे उत्तम पत्नी की प्राप्ति होगी | 

उसके गर्भ से तुम्हे मनु संज्ञक उत्तम पुत्र की प्राप्ति होगी | तीन्हो लोको में वे तुम्हारे ही नाम से रौच्य नाम से प्रसिद्द होगा | 


पितरो ने कहा : जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करेंगे हम उसे मनोवांछित भोग और उत्तम फल प्रदान करेंगे | जो निरोगी रहना चाहता हो-धन-पुत्रको प्राप्त करना चाहता हो वो सदैव इस स्तुति से हमें प्रसन्न करे | यह स्तोत्र हमें प्रसन्न करनेवाला है | जो श्राद्ध में भोजन करनेवाले ब्राह्मण के सामने खड़ेहोकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करेगा उसके वहा हम निश्चय ही उपस्थित हो कर हमारे लिए किये हुए श्राद्ध को हम ग्रहण करेंगे | 

जहा पर श्राद्ध में इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है वहा हम लोगो को बारह वर्षोतक बने रहनी वाली तृप्ति करने में समर्थ होता है | 

यह स्तोत्र हेमंत ऋतु में श्राद्ध के अवसर पर सुनाने से हमें बारह वर्षोतक तृप्ति प्रदान करता है,

इसी प्रकार शिशिर ऋतु में हमें चौबीस वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 

वसंत ऋतु में हमें सोलह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 

ग्रीष्मऋतु में भी सोलह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 

वर्षाऋतु में किया हुआ यह स्तोत्र का पाठ हमे अक्षय तृप्ति प्रदान करता है 

शरत्काल में किया हुआ इसका पाठ हमें पंद्रह वर्षो तक तृप्ति प्रदान करता है 

जिस घर में यह स्तोत्र लिखकर रखा जाता है वहा हम श्राद्ध के समय में उपस्थित हो जाते है | 

श्राद्ध में ब्राह्मणो को भोजन करवाते समय इस स्तोत्र को अवश्य पढ़ना चाहिए यह हमें पुष्टि प्रदान करता है |  

 || अस्तु || 

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विशेष सुचना

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