हनुमान-शाबर-मन्त्र कल्याण’ के हनुमान अङ्क’ से उद्धृत
[१] सिर – पीड़ाः— पीड़ित व्यक्ति को दक्षिणाभिमुख – मुख बैठा कर उसके सिर को अपने हाथ से पकड़े । फिर निम्न ‘शाबर मन्त्र’ का उच्चारण करते हुए झाड़े — मन्त्रः—
“लङ्का में बैठ के माथ हिलावे हनुमन्त ।
सो देखि के राक्षस-गण पाय दुरन्त ॥
बैठी सीता देवी अशोक वन में ।
देखि हनुमान को आनन्द भई मन में ।
गई उर विषाद, देवी स्थिर दरशाय ।
“अमुक” के सिर व्यथा पराय ॥
‘अमुक’ के नहीं कछु पीर, नहिं कछु भार ।
आदेश कामाख्या हरिदासी, चण्डी की दोहाई ॥”
‘अमुक’ के स्थान पर रोगी का नामोच्चारण करना चाहिए ।
[२] आधा सीसीः— निम्नलिखित दो ‘शाबर-मन्त्रों में से किसी एक का उच्चारण करते हुए भस्म से झाड़े —
मन्त्रः— (१) बन में ब्याई अञ्जनी, कच्चे बन-फल खाय । हाँक मारी हनुवन्त ने, इस पिण्ड से आधा सीसी उतर जाय ॥
मन्त्रः—(२) ॐ नमो बन में ब्याई बानरी, उछल वृक्ष पै जाय । कूद – कूद शाखा-नरी, कच्चे वन – फल खाय ॥ आधा तोड़े आधा फोड़े, आधा देय गिराय । हङ्कारत हनुमान जी, आधा सीसी जाय ॥
[३] नेत्र-रोगः— पीड़ित आँखों पर हाथ फेरते हुए निम्न मन्त्र सात बार पढ़कर फूँक मारे, तो व्यथा मिट जायगी — मन्त्रः— “ॐ नमो वने बिआई बानरी । जहाँ – जहाँ हनुवन्त आँखि पीड़ा, कषावरि गिहिया थनै लाइ, चरिउ जाइ भस्मन्तन । गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ॥”
[४] कर्ण-मूल-पीड़ाः— विभूति से निम्न मन्त्र द्वारा सात बार झाड़ने से कर्ण-रोग नष्ट होते हैं — मन्त्रः— “वनरा गाँठि वानरी, तो डाँटे हनुमान कण्ठ । बिलारी बाँधी थनैली, कर्ण – मल सम जाइ । श्रीरामचन्द्र की बानी, पानी पथ होइ जाइ ॥”
[५] बिच्छू का विषः— निम्नलिखित दो ‘शाबर मन्त्रों में से किसी एक के द्वारा झाड़ने से बिच्छू का विष शान्त होता है । मन्त्र का प्रयोग करने के पूर्व किसी मङ्गलवार को उसका एक लाख जप कर उसके दशांश या दस सहस्र आहुतियों द्वारा हवन कर उसे सिद्ध कर ले —
मन्त्रः—(१) पर्वत ऊपर सुरही गाइ । कारी गाइ की चँमरी पूँछी । तेकरे गोबरे विछी बिआइ । बिछी तौरे कर अठारह जाति । छः कारी, छः पीअरी, छः भूमाधारी, छः रत्न-पवारी, छः कुं हुं कुं हुं छारि । उतरु बिछी हाड़-हाड, पोर-पोर ते । कस मारे लील-कण्ठ गर मोर, महादेव की दुहाई, गौरा पार्वती की दुहाई, अनीत टेहरी शडार बन छाइ, उतरहि बीछी हनुमन्त की आज्ञा, दुहाई हनुमन्त की ॥
मन्त्रः—(१)(२) ॐ हरि-मर्कट मर्कटाय स्वाहा ॥
[६] अण्ड-वृद्धि एवं सर्प-निवारणः— निम्न ‘शाबर मन्त्र’ पढ़कर फूले हुए अण्ड-कोश को हलके हाथ से मले तथा अभिमन्त्रित जल को पिलाए, तो अण्ड-वृद्धि शान्त हो जाती है — मन्त्रः— “ॐ नमो आदेश गुरू को । जैसे के लेहु रामचन्द्र कबूत । ओसई करहु राध बिनि कबूत । पवन – पूत हनुमन्त धाउ । हर – हर रावन कूट मिरावन । श्रवइ अण्ड, खेतहि धवइ, अण्ड-अण्ड विहण्ड । खेतहि श्रवइ, वाजं गर्भहि श्रवइ, स्त्री पीलहि अवइ शाप । हर हर केम्बीर, हर जम्बीर, हर हर हर ॥” सर्प – निवारण हेतु मिट्टी के एक ढेले को उक्त मन्त्र से अभि-मन्त्रित कर साँप के बिल पर रखे, तो साँप निकल जाता है ।
[७] भूत-प्रेत-बाधाः— निम्न मन्त्र के प्रयोग से भूत – प्रेत की बाधा दूर होती है । मन्त्रः— “बाँधो भूत, जहाँ तू उपजो, छाड़ो गिरे, पर्वत चढ़ाइ, सर्ग दुहेली, तुजभि झिलिमिलाहि । हुँकारे हनुवन्त, पचारइ भीमा, जरि जारि-जारि भस्म करे. जौं चापें सींउ।
[८] चूहा-उपद्रवः— स्नान कर हल्दी की पाँच गाँठों और अक्षत लेकर निम्न मन्त्र को पढ़कर, जहाँ चूहे आते हों, वहाँ पर या खेत में डाल दें । इससे चूहे भाग जाते हैं — मन्त्रः— “पीत पीताम्बर मूशा गाँधी ले, जाइहु हनुवन्त तु बाँधी ॥ ए हनुवन्त ! ला के राउ ! एहि कोणे पैसेहु, एहि कोणे जाउ ॥”
[६] सुअर और चूहा-उपद्रवः— क्रमाङ्क ८ की विधि के अनुसार ही निम्न मन्त्र का भी प्रयोग करना चाहिए — मन्त्रः— “हनुवन्त धावति, उदरहि ल्यावे, बाँधि अब खेत खाय सूअर और घर माँ रहे मुस । खेत-धर छाँड़ि, बाहर भूमि जाइ । दोहाइ हनुमान की, जो अब खेत मँह सूअर, घर मँह मूस जाइ ॥”
[१०] शरीर-रक्षाः— एक हजार जप करने से निम्न मन्त्र की सिद्धि होती है । इसके बाद इस मन्त्र के तीन बार उच्चारण मात्र से कार्य-सिद्धि होती है – मन्त्रः— “ॐ नमः वज्र का कोठा, जिसमें पिण्ड हमारा पैठा । ईश्वर कुञ्जी, ब्रह्म का ताला । मेरे आठो याम का, यती हनुवन्त रखवाला ॥”
[११] अर्श-रोगः— रात्रि के रखे हुए जल को निम्न मन्त्र से अभि-मन्त्रित करके शौच-समय प्रक्षालन करे, तो बवासीर नष्ट हो जाती है । एक लाख जप करनेवाले को जीवन में कभी बवासीर होती ही नहीं — मन्त्रः— ” ॐ काका कता क्रोरी कर्ता ॐ । करता से होय यरसना, दश हंस प्रकटे । खूनी-बादी बवासीर न होय । मन्त्र जान के न बतावे, द्वादश ब्रह्म-हत्या का पाप होय । लाख जप करे, तो उसके वश में न होय । शब्द साँचा, पिण्ड काँचा, तो हनुमान का मन्त्र साँचा, फुरो मन्त्र, ईश्वर वाचा ॥”
[१२] पीलिया रोगः— निम्न मन्त्र से पाण्डु-रोगी को झाड़ने से पीलिया-रोग दूर होता है — मन्त्रः— “ॐ नमो वीर वैताल, असराल नारसिंह देव । खादी तुपार्दी पीलिया कूं भिदाती । कारै झारै पीलिया रहै न नेक निशान । जो कहीं रह जाय, तो हनुमान की आन । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॥”
[१३] दाँत का कीड़ाः— एक लाख जप से निम्न मन्त्र की सिद्धि होती है । जप का आरम्भ दीपावली की रात्रि से करना चाहिए । मन्त्र सिद्ध होने पर नीम की शाखा से झाड़ने पर पीड़ा तत्काल नष्ट हो जाती है । मन्त्रोच्चारण के साथ कागज या बाँस की नली से कीड़ेवाले दाँत को कटेरी के बीजों का धुआँ देने से कीड़े गिर जाते हैं — मन्त्रः— “ॐ नमो आदेश गुरु को । वन में ब्याई अंजनी, जिन जाया हनुमन्त । कीड़ा-मकड़ा-माकड़ा – ए तीनों भस्मन्त । गुरु की शक्ति, मेरी भक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा ॥”
[१४] नेत्र-रोगः— निम्न मन्त्र को सिद्ध कर ११ बार उच्चारण करते हुए नीम की डाली से झाड़े । लगातार तीन दिन झाड़ने से नेत्र-रोग एवं पीड़ा शान्त हो जाती है । मन्त्रः— “ॐ झलमल जहर भरी तलाई, अस्ताचल पर्बत से आई, जहाँ बैठा हनुमन्ता जाई । फूटे न पाके, करै न पीड़ा, जी हनुमन्त हरै पीड़ा । मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा, सत्य नाम आदेश गुरु को ॥”
[१५] अग्नि-काण्डः— अग्नि-काण्ड से बचने के लिए निम्न मन्त्र का प्रयोग करना चाहिए — मन्त्रः— “अज्ञान बाँधो, विज्ञान बाँधो । घोरा घाट, आठ कोटि वैसन्दर बाँधो । अस्त हमारा भाई, आनहि देंखे, झझके मोहिं, देखे बुझाइ, हनुमन्त बाँधो । पाना होइ जाय, अग्नि भवेत के जस मत्ती हाथी होइ, वैसन्दर बाँधो । नारायण-साखि मोरी । गुरु की शक्ति, फुरो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॥”
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