शाबर मंत्र रहस्य
मन्त्र चार प्रकार के होते हैं :-
(1) वैदिक (2) पौराणिक (3) तान्त्रिक और (4) शाबर।
शाबर मन्त्रों का कीलन नहीं हुआ था, इसलिए वे अल्प समय और अल्प प्रयास से ही सिद्ध होकर फल प्रदान करते हैं। शाबर मन्त्रों की साधना करने वाले साधक वर्ग को इनकी साधना करने से पूर्व गुरु से दीक्षा लेनी चाहिए।
शाबर मंत्र के जनक : कहते हैं कि साबर मंत्रों के जनक गुरु मत्स्येंद्र नाथ और उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ हैं। इन मंत्रों को शैवपंथ की नाथ परंपरा के अलावा आदिवासी, बंजारा, सपेरा, जादूगर और भारत की अन्य जनजातियों के मंत्र माने जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि असल में इन शाबर मंत्रों में वज्रयान की वज्रडाकिनी अथवा वज्रतारा आदि से भी निचली तामसिक देवों की प्रार्थना की जाती है, उनकी आन पर ही काम होता है।
शाबर मंत्र की भाषा : साबर मंत्र को प्राकृत मंत्र भी कहते हैं। अर्थात यह संस्कृत नहीं बल्कि प्राकृत भाषा की आम बोलचाल की भाषा के मंत्र है। हालांकि कई साबर मंत्रों में संस्कृत, हिंदी, मलयालम, कन्नड़, गुजराती या तमिल भाषाओं का मिश्रित रूप या फिर शुद्ध क्षेत्रीय भाषाओं की ग्राम्य शैली और कल्पना का समावेश भी दृष्टिगोचर होता है। सामान्यतया ‘शाबर-मंत्र’ हिंदी में ही मिलते हैं लेकिन कुछ मंत्रों में इस्लाम के प्रभाव के चलते ऊर्दू का भी समावेश देखा गया है और सुलेमान मंत्रों का भी अविष्कार किया गया है।
शाबर मंत्रों के प्रकार : शाबर मंत्रों में ‘आन और शाप’ तथा ‘श्रद्धा और धमकी’ दोनों का प्रयोग किया जाता है। आन माने सौगन्ध। दूसरा यह कि मंत्र का प्रयोगकर्ता यदि भक्त है तो वह देवी या देवताओं को धमकी देकर भी काम करवा सकता है अन्यथा श्रद्धा से तो ही हो जाएगा।
विशेष बात यह है कि उसकी यह ‘आन’ भी फलदायी होती है। आन माने सौगन्ध। अभी वह युग गए अधिक समय नहीं बीता है, जब सौगन्ध का प्रभाव आश्चर्यजनक व अमोघ हुआ करता था। ‘शाबर’ मंत्रों में जिन देवी-देवताओं की ‘शपथ’ दिलायी जाती है, वे आज भी वैसे ही हैं।
कैसे होते हैं देवता प्रसन्न : शाबर मंत्रों में जिस प्रकार एक अबोध बालक अपने माता-पिता से गुस्से में आकर चाहे जो कुछ बोल देता है, हठ कर बैठता है बस उसी प्रकार से कोई भक्त अपने देवी या देवता से हठ करता है। कहते हैं कि ये देव व्यक्ति की भक्ति और उसका निष्कपट स्वभाव देखते हैं बस इसी से वे प्रसन्न हो जाते हैं।
जिस प्रकार अल्पज्ञ, अज्ञानी, अबोध बालक की कुटिलता व अभद्रता पर उसके माता-पिता अपने वात्सल्य, प्रेम व निर्मलता के कारण कोई ध्यान नहीं देते, ठीक उसी प्रकार बाल सुलभ सरलता, आत्मीयता और विश्वास के आधार पर निष्कपट भाव से शाबर मंत्रों की साधना करने वाला परम लक्ष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
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