श्री सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र
माँ दुर्गा का एक ऐसा स्तोत्र जसके पाठ मात्र से पुरे दुर्गासप्तशती का फल प्राप्त होता है यह स्वयं शिव-पार्वती संवाद में भगवान् शिव ने कहा है | यह स्तोत्र का प्रमाण श्री रुद्रयामल के डामर तंत्र में दिया हुआ है |
माँ दुर्गा का प्रिय स्तोत्र जिसके पाठ सर मिलता है सम्पूर्ण दुर्गासप्तशती का फल | Shri Siddha Kunjika Stotra |
श्री सिद्धकुंजिका स्तोत्र
इस स्तोत्र को सिद्धकुंजिका स्तोत्र क्यों कहते है ?
श्री - जो सर्वस्व प्रदान करे वो |
सिद्धकुंजिका - मतलब सिद्ध यानी सिद्धि प्रदान करनेवाला जिसे सिद्ध किया है और
कुंजिका मतलब- चाबी जिसके स्मरण से जीवन में जो दुखदायी ताले है उन सभी तालों को खोले वो सिद्ध चाबी |
संक्षिप्त अर्थ जो जोवन के सभी दुखोंके टालो को खोलकर सुख प्रदान करे ऐसी सिद्धचाबी ||
यह स्तोत्र शक्तिशाली क्यों है ?
इस स्तोत्र में उत्तम कुंजिका मंत्र दिया हुआ है साथ ही बीजमंत्रों का वर्णन किया है, और बीज मंत्र बहुत ही शक्तिशाली होते है | हर एक बीजमंत्रों का बहुत ही चमत्कारिक परिणाम प्राप्त होता है तो इसलिए यह बहुत ही शक्तिशाली स्तोत्र है |
|| इस स्तोत्र का उद्देश्य ||
क्युकी हर एक व्यक्ति दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकता इसलिए भगवान् शिव ने इस स्त्रोत्र की उत्पत्ति जी है | ताकि कोई भी दुर्गा भक्त इस स्तोत्र के पाठ मात्र से दुर्गासप्तशती के पाठ का फल प्राप्त कर सके |
इस स्तोत्र का पाठ कैसे करना है ?
इस स्तोत्र के आरम्भ में सर्वप्रथम संकल्प करना है की आप यह पाठ किस उद्देश्य से या किस कामनापूर्ति के लिए कर रहे हो ?
उसके बाद माँ दुर्गा का ध्यान करे माँ को नमस्कार करे, फिर इस स्तोत्र का विनियोग करे जो बहुत ही कम लोगो पता है |
में यहाँ आपके ज्ञान और मनोकामना पूर्ति के लिए वो विनियोग दे रहा हु |
इस स्तोत्र के कितने पाठ करे ?
अगर किसी कामना के लिये यह पाठ करते हो तो इसका १२०० बार पाठ करे या अनुष्ठान करे |
इसके अलावा नवरात्री में प्रतिदिन नौ पाठ करे |
|| विनियोगः ||
( विनियोग के लिए अपने दाए हाथ में जल पकडे विनियोग पढ़ने के बाद वो जल किसी पात्र में छोड़ दे )
ॐ अस्य श्री कुंजिकास्तोत्र मंत्रस्य सदाशिव ऋषिः अनुष्टुप छन्दः श्री त्रिगुणात्मिका देवता ॐ ऐं बीजं ॐ ह्रीं शक्तिः ॐ क्लीं कीलकं मम सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः |
|| विनियोगः ||
अर्थ : इस कुंजिका स्तोत्र मंत्र के ऋषि भगवान् सदाशिव है | अनुष्टुप छंद है | त्रिगुणात्मिका (महाकाली-महालक्ष्मी-महासरस्वती) देवता है |
ऐं बीजा है,ह्रीं शक्ति है, क्लीं किलक है | हमारी मनोकामना के लिये यह पाठ करने का उद्देश्य है |
श्री सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र
|| श्री शिव उवाच ||
ॐ श्रुणु देवी प्रवक्ष्यामि कुंजिका स्तोत्रमुत्तमं |
येन मंत्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत् || १ ||
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकं |
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासों न च वार्चनं || २ ||
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत |
अति गुह्यतरं देवि देवनामपि दुर्लभं || ३ ||
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति |
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकं |
पाठ मात्रेण संसिद्ध्यैत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तम् || ४ ||
|| अर्थ ||
शिवजी बोले -
देवी सुनो में उत्तम कुंजिकास्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मंत्र स्तोत्र के प्रभाव से देवी के पाठ का फल प्राप्त होता है |
कवच,अर्गला,किलक,रहस्य,सकता,ध्यान,न्यास, यहाँ तक की अर्चन की भी आवश्यकता नहीं है |
केवल कुंजिका के पाठ से ही दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाएगा |
यह अत्यंत ही गोपनीय रहस्य है | जो देवो के लिए भी दुर्लभ है |
हे पार्वती इसे स्वयोनि की भाँति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए |
यह उत्तम स्तोत्र के द्वारा मारन,मोहन,वशीकरण,स्तम्भन,उच्चाटन आदि अभिचारिक कर्मो से सिद्ध करता है |
|| अथ मंत्र ||
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे || ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा ||
|| इति मंत्रः ||
( उपरोक्त मंत्र का अर्थ एक जैसा ही है इसलिए यहाँ लग से अर्थ नहीं दे रहा हु )
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि |
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि || १ ||
नमस्ते शुभहंंत्र्यै च निशुम्भासुरघातिनी |
जाग्रतं ही महादेवी जपं सिद्धं कुरुष्व में || २ ||
ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका |
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोस्तुते || ३ ||
चामुंडा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी |
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि || ४ ||
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी |
क्रां क्रीं क्रूँ कालिका देवि शां शीं शूं में शुभं कुरु || ५ ||
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी |
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः || ६ ||
|| अर्थ ||
हे रुद्रस्वरूपिणी तुम्हे नमस्कार | हे मधुदैत्यो को मारनेवाली तुम्हे नमस्कार | कैटभविनिशिनी तुम्हे नमस्कार |
महिषासुर को मारनेवाली तुम्हे नमस्कार |
शुम्भ का हनन करनेवाली निशुम्भ को मारनेवाली तुम्हे नमस्कार | हे महादेवी मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो |
"ऐंकार" के रूप में सृष्टिस्वरूप, "ह्रींकार" के रूप में सृष्टिपालन करनेवाली | "क्लीं" के रूप में कामरुपिणि की बीजरूपिणी देवी | तुम्हे नमस्कार हो |
चामुंडा के रूप में चण्डविनाशिनी और "यैकार"के रूप में तुम वर देनेवाली हो | "विच्चे" रूपमे तुम नित्य अभय देती हो | (इस प्रकार से ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चे ) तुम इस मंत्र क स्वरुप हो |
"धां धीं धूं" के रूप में धूर्जटी की पत्नी तुम हो | "वां वीं वूं" के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो |
"क्रां क्रीं क्रूं" के रूप में कालिकादेवि, "शां शीं शूं" के रूप में मेरा कल्याण करो |
"हुं हुं हुंकार" स्वरूपिणी, "जं जं जं" जम्भनादिनी, "भ्रां भ्रीं भ्रूं" के रूप में हे कल्याणकारिणी भैरवी भवानी |
तुम्हे बारम्बार प्रणाम ||
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं |
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा || ७ ||
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा |
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व में || ८ ||
इदं तू कुञ्जिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे |
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती ||
यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत |
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा (तथा)||
|| इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतिसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं संपूर्णं ||
|| अर्थ ||
"अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं" इन सबको तोड़कर इसे दीप्त करो, स्वाहा करो |
"पां पीं पूं" के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो, "खां खीं खूं" के रूप में तुम खेचरी मुद्रा तुम हो |
"सां सीं सूं " स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्रको मेरे लिये सिद्ध करो |
यह कुंजिकास्तोत्र मंत्रो को जागृत करने के लिये है | इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिये | हे पार्वती इसे गुप्त रखो |
हे देवी | जो बिना कुंजिका के ही सप्तशतीका पाठ करता है उसे उसी प्रकार से सिद्धि नहीं मिलती
जैसे वन में रोना निरर्थक होता है ||
|| इस तरह से श्रीरुद्रयामलके गौरीतंत्र में शिव-पार्वती संवाद में सिद्धकुंजिकास्तोत्र सम्पूर्ण हुआ ||
No comments:
Post a Comment