बटुक भैरव मूल मन्त्र
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।
बटुक भैरव शाबर मंत्र सिद्धि प्रयोग:-
निम्न मंत्र की 21 माला जप करें
आसन, वस्त्र :- लाल
दिशा: पूर्व, उत्तर
माला : रुद्राक्ष
ॐ ह्रीं बटुक भैरव बालक केश,भगवान वेश,सब आपदा को काल भक्त जनहट को पाल, कर धरे शिरकपाल दूजे करवाल त्रिशक्ति देवी को बाल भक्तजन मानस को भाल तेंतीस कोटि मन्त्र को जाल प्रत्यक्ष बटुक भैरव जानिए मेरी भक्ति गुरु की शक्ति । फुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा।
उपरोक्त मन्त्र सिद्ध होने पर एक माला मन्त्र का शुद्ध घी में बाजार में मिलने वाली हवन सामग्री में
जैसे
अक्षत,भीमसेनी कपूर, नाग केसर,काली तिल, कमल गट्टा इंद्र जव, जौ, शक्कर ,शहद, भोजपत्र ,पंच मेवा ,इलायची सभी वस्तु मिला कर ।हवन में आहुति देवे।
मन्त्र सिद्ध होने पर इस हवन की भभूति से नज़र दोष, बाल रोग बच्चों का रोना, डरना, चौंकना, खाना न खाना,टोना आदि क्रियाएं सरलता से झाड़ सकते हैं।
सर्वकार्य सिद्धि हेतु बटुक प्रयोग
इनकी प्रसन्नता हेतु इनके कवच, मन्त्र का जप और अष्टोत्तरशत नाम का पाठ अति फलदायी है।
सर्वप्रथम कवच पाठ करें फिर 1 माला मन्त्र और उसके बाद अष्टोत्तरशतनाम के 21 सम्पुटित पाठ फिर पुनः 1 माला मन्त्र और क्षमा प्रार्थना एवं बलि दें।
यदि ये प्रयोग 41 दिन तक कर लिया जाये तो व्यक्ति का असम्भव लगने वाला कठिन से कठिन कार्य भी श्री बटुक भैरव की कृपा से अति शीघ्र सिद्ध हो जाता है।
श्री वटुक भैरव अष्टोत्तर शतनाम का विशेष महत्व है ।इसके 21 पाठ मन्त्र सहित विधि सहित कोई नित्य करें तो ये सिद्ध हो जाता है और फिर जाग्रत रूप से कार्य करता है।रोग दोष आधी व्याधि का नाश करता है।इससे अभिमन्त्रित भस्म जल किसी रोगी पर छिड़कने से रोग दूर हो जाता है किसी पर कोई ऊपरी बाधा हो तो वो दूर हो जाती है।बहुत ही अच्छा और कृपा
करने वाला है।कलियुग में अन्य देवता तो समय आने पर फल देते है पर भगवान वटुक भैरव जिस दिन से इन्हें पूजो उसी दिन से अपना प्रभाव दिखाने लगते है।
बटुक भैरव रक्षार्थ है और देवी के पुत्र स्वरूप है।
तांत्रोक्त भैरव कवच
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||
इस आनंददायक कवच का प्रतिदिन पाठ करने से प्रत्येक विपत्ति में सुरक्षा प्राप्त होती है| यदि योग्य गुरु के निर्देशन में इस कवच का अनुष्ठान सम्पन्न किया जाए तो साधक सर्वत्र विजयी होकर यश, मान, ऐश्वर्य, धन, धान्य आदि से पूर्ण होकर सुखमय जीवन व्यतीत करता है|
*|| श्रीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् ॥
॥ श्रीभैरवाय नमः ॥
ॐ अस्य श्रीबटुकभैरवस्तोत्रमन्त्रस्य कालग्निरुद्र ऋषिः ।
अनुष्टुप् छन्दः । आपदुद्धारकबटुकभैरवो देवता । ह्रीं बीजम् ।
भैरवीवल्लभः शक्तिः । नीलवर्णो दण्डपाणिरिति कीलकम् ।
सर्वाभीष्टप्रदाने विनियोगः ॥
॥ ऋष्यादि न्यासः ॥
ॐ कालाग्निरुद्र ऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे ।
आपदुद्धारकश्रीबटुकभैरव देवतायै नमः हृदये ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये । भैरवीवल्लभ शक्तये नमः पादयोः । निलवर्णोदंड पाणिति कीलकाय नमः नाभौ
सर्वाभीष्टप्रदाने
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
॥ इति ऋष्यादि न्यासः ॥
॥ अथ ध्यानम् ॥
नीलजीमूतसङ्काशो जटिलो रक्तलोचनः ।
दंष्ट्राकरालवदनः सर्पयज्ञोपवीतवान् ॥
॥ इति ध्यानम् ॥
| अथ स्तोत्रम् ।
ॐ ह्रीं बटुको वरदः शूरो भैरवः कालभैरवः ।
भैरवीवल्लभो भव्यो दण्डपाणिर्दयानिधिः ॥ १॥
वेतालवाहनो रौद्रो रुद्रभ्रुकुटिसम्भवः ।
कपाललोचनः कान्तः कामिनीवशकृद्वशी ॥ २॥
आआपदुद्धारणो धीरो हरिणाङ्कशिरोमणिः ।
दंष्ट्राकरालो दष्टोष्ठौ धृष्टो दुष्टनिबर्हणः ॥ ३॥
सर्पहारः सर्पशिराः सर्पकुण्डलमण्डितः ।
कपाली करुणापूर्णः कपालैकशिरोमणिः ॥ ४॥
श्मशानवासी मांसाशी मधुमत्तोऽट्टहासवान् ।
वाग्मी वामव्रतो वामो वामदेवप्रियङ्करः ॥ ५॥
वनेचरो रात्रिचरो वसुदो वायुवेगवान् ।
योगी योगव्रतधरो योगिनीवल्लभो युवा ॥ ६॥
वीरभद्रो विश्वनाथो विजेता वीरवन्दितः ।
भृतध्यक्षो भूतिधरो भूतभीतिनिवारणः ॥ ७॥
कलङ्कहीनः कङ्काली क्रूरकुक्कुरवाहनः ।
गाढो गहनगम्भीरो गणनाथसहोदरः ॥ ८॥
देवीपुत्रो दिव्यमूर्तिर्दीप्तिमान् दीप्तिलोचनः ।
महासेनप्रियकरो मान्यो माधवमातुलः ॥ ९॥
भद्रकालीपतिर्भद्रो भद्रदो भद्रवाहनः ।
पशूपहाररसिकः पाशी पशुपतिः पतिः ॥ १०॥
चण्डः प्रचण्डचण्डेशश्चण्डीहृदयनन्दनः ।
दक्षो दक्षाध्वरहरो दिग्वासा दीर्घलोचनः ॥ ११॥
निरातङ्को निर्विकल्पः कल्पः कल्पान्तभैरवः ।
मदताण्डवकृन्मत्तो महादेवप्रियो महान् ॥ १२॥
खट्वाङ्गपाणिः खातीतः खरशूलः खरान्तकृत् ।
ब्रह्माण्डभेदनो ब्रह्मज्ञानी ब्राह्मणपालकः ॥ १३॥
दिग्चरो भूचरो भूष्णुः खेचरः खेलनप्रियः । दिग्चरो
सर्वदुष्टप्रहर्ता च सर्वरोगनिषूदनः ।
सर्वकामप्रदः शर्वः सर्वपापनिकृन्तनः ॥ १४॥
इत्थमष्टोत्तरशतं नाम्नां सर्वसमृद्धिदम् ।
आपदुद्धारजनकं बटुकस्य प्रकीर्तितम् ॥ १५॥
एतच्च शृणुयान्नित्यं लिखेद्वा स्थापयेद्गृहे ।
धारयेद्वा गले बाहौ तस्य सर्वा समृद्धयः ॥ १६॥
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न चोरनृपजं भयम् ।
न चापस्मृतिरोगेभ्यो डाकिनीभ्यो भयं न हि ॥ १७॥
न कूष्माण्डग्रहादिभ्यो नापमृत्योर्न च ज्वरात् ।
मासमेकं त्रिसन्ध्यं तु शुचिर्भूत्वा पठेन्नरः ॥ १८॥
सर्वदारिद्र्यनिर्मुक्तो निधिं पश्यति भूतले ।
मासद्वयमधीयानः पादुकासिद्धिमान् भवेत् ॥ १९॥
अञ्जनं गुटिका खड्गं धातुवादरसायनम् ।
सारस्वतं च वेतालवाहनं बिलसाधनम् ॥ २०॥
कार्यसिद्धिं महासिद्धिं मन्त्रं चैव समीहितम् ।
वर्षमात्रमधीयानः प्राप्नुयात्साधकोत्तमः ॥ २१॥
एतत्ते कथितं देवि गुह्याद्गुह्यतरं परम् ।
कलिकल्मषनाशनं वशीकरणं चाम्बिके ॥ २२॥
॥ इति कालसङ्कर्षणतन्त्रोक्त
श्रीबटुकभैरवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
श्री बटुक-बलि-मन्त्रः
घर के बाहर दरवाजे के बायीं ओर दो लौंग तथा गुड़ की डली रखें । निम्न तीनों में से किसी एक मन्त्र २१ का उच्चारण करें, आपके घर के विघ्न बाधा और उपद्रव शांत होंगे।
१. ॥ॐ ॐ ॐ एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारण-बटुक-भैरव-नाथ, सर्व-विघ्नान् नाशय नाशय, इमं स्तोत्र-पाठ-पूजनं सफलं कुरु कुरु सर्वोपचार-सहितं बलि मिमं गृह्ण गृह्ण स्वाहा, एष बलिर्वं बटुक-भैरवाय नमः॥
२. ॥ॐ ह्रीं वं एह्येहि देवी-पुत्र, श्री मदापद्धुद्धारक-बटुक-भैरव-नाथ कपिल-जटा-भारभासुर ज्वलत्पिंगल-नेत्र सर्व-कार्य-साधक मद्-दत्तमिमं यथोपनीतं बलिं गृह्ण् मम् कर्माणि साधय साधय सर्वमनोरथान् पूरय पूरय सर्वशत्रून् संहारय ते नमः वं ह्रीं ॐ॥
३. ॥ॐ बलि-दानेन सन्तुष्टो, बटुकः सर्व-सिद्धिदः रक्षां करोतु मे नित्यं, भूत-वेताल-सेवितः॥
पाठ से पहले एक माला वटुक मन्त्र की सभी पाठो के बाद एक माला वटुक भैरव की अनिवार्य है, ॐ के बाद ह्रीं लगाकर करें।
प्रत्येक पाठ के पहले और बाद में वटुक भैरव मन्त्र का सम्पुट लगाये।
तेल का दीपक के सामने पाठ करे।और वहीँ एक लड्डू या गुड़ रख ले पूजा होने पर पूजा समर्पण करे और उसके बाद उस लड्डू को घर से बाहर
रख आये या कोई कुत्ता मिले उसे खिला दे कोई न मिले तो चौराहे पर रख दे। ये बलिद्रव्य होता है।
आसन से उठने से पहले आसन के नीचे की भूमि मस्तक से लगाये फिर आसन से उठे ऐसा न करने पर पूजा का आधा फल इंद्र ले लेता है।
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