Monday, November 4, 2024

52 भैरव रक्षा शाबर मंत्र 52 bhairav raksha mantar

 52 भैरव रक्षा शाबर मंत्र 52 bhairav raksha mantar


ॐ कालभैरवाय नम:।

ॐ भयहरणं च भैरव:।

ॐ ह्रीं बं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरूकुरू बटुकाय ह्रीं।

ॐ भ्रं कालभैरवाय फट्।


52 भैरव के नाम का परिचय:

भारतीय संस्कृति में, ‘भैरव’ एक प्रमुख देवता है जो शिव के रूप में विज्ञान, शक्ति और साहस के प्रतीक हैं। भैरव को अनेक रूपों में पूजा जाता है, और इनके विभिन्न नामों का जाप करने से आत्मिक और मानसिक शक्ति में वृद्धि होती है। यहां, ’52 भैरव के नाम’ का संग्रह दिया गया है, जो उनके विभिन्न स्वरूपों और गुणों को प्रकट करता है। इन नामों का उच्चारण और उनकी साधना साधकों को आध्यात्मिक उन्नति और संतुलन की प्राप्ति में मदद करता है।


बावन भैरव के नाम:


अजर भैरव

व्यापक भैरव

इंद्राचौर भैरव

इंद्रा मूर्ति भैरव

उक्चया भैरव

कुष्माण्ड भैरव

वरुण भैरव

बटुक भैरव

विमुक्ता भैरव

लिप्टक भैरव

लिलाक भैरव

एकदंष्ट्रा भैरव

ऐरावत भैरव

औषधिगणा भैरव

भन्धक भैरव

दियाक भैरव

काम्बल भैरव

भीषण भैरव

गवान्या भैरव

घण्ट भैरव

व्याल भैरव

अणु भैरव

चंद्रवरुण भैरव

घटाटोप भैरव

जटल भैरव

क्रतु भैरव

घंटेस्वर भैरव

वितंक भैरव

मणिमन भैरव

गणबंधु भैरव

डमर भैरव

डंडीकर्ण भैरव

स्थविर भैरव

दन्तुर भैरव

धनद भैरव

नागकर्ण भैरव

महाबल भैरव

फेत्कार भैरव

चिंकार भैरव

सिंह भैरव

मार्ग भैरव

यक्छ भैरव

मेघवाह भैरव

तीख्छनवस्थ भैरव

अनल भैरव

शक्लतुण्ड भैरव

शुद्धलाप भैरव

वर्वराक भैरव

पवन भैरव

पावन भैरव

शुदर्शनं चक्र भैरव

स्वर्णकर्षण भैरव

52 भैरव मंत्र | 52 Bhairav Mantra

आप अपनी मनोकामना को पूरा कर सकते हैं, इसके लिए 52 भैरव मंत्र का जाप करना होगा। यह करने के लिए आपको इन मंत्रों का विधि-विधान से जाप करना होगा।


ह्रां वां अंगुष्ठाभ्यां नमः

ह्रीं वीं तर्जनीभ्याम नमः

ह्रूं वूं मध्यमाभ्याम नमः

ह्रैं वैं अनामिकाभ्याम नमः

करन्यासवत हृद्यादी न्यास

ऎह्ये हि देवी पुत्र बटुकनाथ कपिलजटाभारभास्वर त्रिनेत्र ज्वालामुख सर्व विघ्नान नाशय नाशय सर्वोपचार सहित बलिं गृहण गृहण स्वाहा

ॐ भैरवो भूतनाथश्च भूतात्मा भूतभावन।

क्षेत्रज्ञः क्षेत्रपालश्च क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्॥

श्मशान वासी मांसाशी खर्पराशी स्मरांतकः।

रक्तपः पानपः सिद्धः सिद्धिदः सिद्धिसेवित॥

कंकालः कालशमनः कलाकाष्टातनु कविः।

त्रिनेत्रो बहुनेत्रश्च तथा पिंगल-लोचनः॥

शुद्धनीलांजन प्रख्यो दैत्यहा मुण्डभूषितः।

बलिभुग् बलिभंगः वैद्यवीर नाथी पराक्रमः ॥

सर्वापित्तारणो दुर्गे दुष्टभूत-निषेवितः।

कामी कलानिधि कान्तः कामिनी वशकृद्वशी॥

सर्व सिद्धि परदों वैद्यः प्रभुर्विष्णुरितीव हि

अष्टोतर शतं नाम्नां भैरवस्य महात्मनः ॥

मयाते कथितं देवी रहस्य सर्व कामिकं

यः इदं पठत स्तोत्रं नामाष्टशतमुत्तमम् ॥

कालः कपालमाली च कमनीयः कलानिधिः।

त्रिलोचनो ज्वलन्नेत्रः त्रिशिखा च त्रिलोकपः ॥

त्रिनेत्र तनयो डिम्भशान्तः शान्तजनप्रियः।

बटुको बहुवेषश्च खट्वांग वरधारकः॥

भूताध्यक्षः पशुपतिः भिक्षुकः परिचारकः।

धूर्तो दिगम्बरः शूरो हरिणः पांडुलोचनः॥

प्रशांतः शांतिदः शुद्धः शंकर-प्रियबांधवः।

अष्टमूर्तिः निधीशश्च ज्ञान-चक्षुः तपोमयः॥

अष्टाधारः षडाधारः सर्पयुक्तः शिखिसखः।

भूधरो भुधराधीशो भूपतिर भूधरात्मजः॥

कंकालधारी मुण्डी च नागयज्ञोपवीतिकः ।

जृम्भणो मोहनः स्तम्भो मारणः क्षोभणस्तथा ॥

शूलपाणिः खङ्गपाणिः कंकाली धूम्रलोचनः।

अभीरूर भैरवीनाथो भूतपो योगिनीपतिः॥

धनदो अधनहारी च धनवान् प्रतिभानवान्।

नागहारो नागपाशो व्योमकेशः कपालभृत्॥

ॐ कर कलित कपाल कुण्डली दण्ड पाणी तरुण तिमिर व्याल

यज्ञोपवीती कर्त्तु समया सपर्या विघ्न्नविच्छेद हेतवे

जयती बटुक नाथ सिद्धि साधकानाम

ॐ श्री बम् बटुक भैरवाय नमः

ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं

ॐ क्रीं क्रीं कालभैरवाय फट

ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम:

ॐ काल भैरवाय नमः

ॐ श्री भैरवाय नमः

ॐ भ्रां कालभैरवाय फट्

ॐ ह्रीं श्मशानवासिने नम:

ॐ ह्रीं मांसाशिने नम:

ॐ ह्रीं खर्पराशिने नम:

ॐ ह्रीं स्मारान्तकृते नम:

ॐ ह्रीं रक्तपाय नम:

ॐ ह्रीं पानपाय नम:

ॐ ह्रीं सिद्धाय नम:

ॐ ह्रीं सिद्धिदाय नम:

ॐ ह्रीं सिद्धिसेविताय नम:

ॐ ह्रीं कंकालाय नम:

ॐ ह्रीं कालशमनाय नम:

ॐ ह्रीं कला-काष्ठा-तनवे नम:

ॐ ह्रीं कवये नम:

ॐ ह्रीं त्रिनेत्राय नम:

ॐ ह्रीं बहुनेत्राय नम:

ॐ ह्रीं पिंगललोचनाय नम:

ॐ ह्रीं शूलपाणाये नम:

ॐ ह्रीं खड्गपाणाये नम:

ॐ ह्रीं धूम्रलोचनाय नम:

ॐ ह्रीं अभीरवे नम:

ॐ ह्रीं भैरवीनाथाय नम:

ॐ ह्रीं भूतपाय नम:

ॐ ह्रीं योगिनीपतये नम:

ॐ ह्रीं धनदाय नम:

ॐ ह्रीं अधनहारिणे नम:

ॐ ह्रीं धनवते नम:

52 भैरव मंत्र विधि

आपके लिए 52 भैरव मंत्र का पाठ करने की विधि बहुत ही सरल है। हर मंगलवार को, आपको बटुक भैरव यंत्र को अपने सामने रखना होगा और उनकी साधना एवं मंत्रों का पाठ करना होगा। साथ ही, बटुक भैरव यंत्र का पंचोपचार पूजन भी करें, और रोज इस विधि से मंत्रों का पाठ करें।

64 yogini 52 bhairav shabar mantar

64 yogini 52 bhairav shabar mantar

घर और शरीर की रक्षा का शक्तिशाली शाबर मंत्र

प्रिय दोस्तों कभी-कभी हम विकट संकट से गिर जाते हैं कभी कोई भूत - प्रेत अथवा जिन का साया दिखाई दे या परेशान करें या किसी शत्रु ने आप पर कुछ कराया है | जैसे कि मारण मंत्र प्रयोग मूँठ, चौकी आदि का प्रयोग कर दिया है | ऐसे में जिस व्यक्ति पर प्रयोग किया गया है उस का बचपना असंभव होता है | अतः उस मंत्र की काट ही उस व्यक्ति को बचा सकती है यह मंत्र एक बहुत ही शक्तिशाली शाबर मंत्र है |


मंत्र

ॐ सत्यनाम आदेश गुरु को, आदेश पावन पानी का

नाँद अनाहद दुन्दुभी बाजे, जहाँ बैठी जोगमाया साजे

चौंसठ योगिनी बावन वीर, बालक की हरे सब पीर

आगे जात शीतला जानिये, बंध बंध वारे जाये मसान

भूत बंध - प्रेत बंध, छल बंध - छिद्र बंध

सबको मारकर भस्मन्त, सत्यनाम आदेश गुरु को


इस मंत्र की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी ही कम है इस मंत्र में अपारशक्ति है | सामान्य जीवन में व्यक्ति को रोग, दोष, भूत, प्रेत, नजर, टोना -टोटका, दुष्प्रभाव, ग्रह दोष अथवा किसी संबंधी, शत्रु या पड़ोसी द्वारा मारण - कृत्य या रोजगार - बंदी का टोटका करा देना हाथी जैसी बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है| यह शाबर मंत्र का प्रयोग ऐसी समस्याओं के निवारण के लिए किया जाता है | यह साबर मंत्र शत्रु द्वारा द्वारा कराए गए मारण - कृत्य के प्रभाव को भी नष्ट कर देता है और साधक की पूर्णतया सुरक्षा करता है|


साधन विधि

जिस समय सूर्य या चंद्र ग्रहण पढ़ रहा हो, इस मंत्र को 108 बार जप और लोबान की 21 आहुतियां देकर, हवन प्रक्रिया कर, मंत्र को सिद्ध कर ले| केवल इतना करने से यह मंत्र सिद्ध हो जाता है | और आवश्यकता पड़ने पर, मंत्र जप करते हुए 11 बार झाड़ा दें | व्यक्ति समस्त प्रकार की बल्ला बल्ला और व्याधियों से सुरक्षित हो जाता है| 

भैरव के 64 नाम कौन-कौन से हैं? 64 name of bhairva

भैरव के 64 नाम कौन-कौन से हैं? 64 name of bhairva

क्या आप जानते हैं कि भैरव के 64 नाम कौन-कौन से हैं?

भैरव – ये नाम सुनते ही हमारे मन में डर और शक्ति का मिश्रण उत्पन्न होता है। भैरव, जिन्हें काल भैरव भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भैरव के 64 नाम होते हैं? क्या आपको इनके पीछे छिपे रहस्यों के बारे में पता है? आइए, एक-एक करके इन नामों के पीछे की कहानी और उनका महत्व समझते हैं।


1. भैरव कौन हैं?


प्रश्न: भैरव कौन हैं और उनका क्या महत्व है?


उत्तर: भैरव, भगवान शिव का एक उग्र और शक्तिशाली रूप हैं। उन्हें विशेष रूप से काल भैरव के रूप में पूजा जाता है। भैरव का अर्थ है ‘भय का नाश करने वाला’, और यह नाम इस बात का प्रतीक है कि वे सभी बुराइयों और दुष्ट शक्तियों का विनाश करते हैं। भैरव को रक्षक और न्याय करने वाला भी माना जाता है, जो सच्चाई के पथ पर चलने वालों की रक्षा करते हैं।


2. भैरव के 64 नामों का रहस्य

प्रश्न: भैरव के 64 नामों का क्या महत्व है?


उत्तर: भैरव के 64 नाम, उनके 64 विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हर नाम भैरव की एक विशेष शक्ति या गुण को दर्शाता है। ये नाम भक्तों के लिए मंत्र के रूप में कार्य करते हैं और उनका जाप करने से विभिन्न प्रकार की परेशानियों और बाधाओं से मुक्ति मिलती है। उदाहरण के लिए, “महाकाल” नाम काल के स्वामी होने का प्रतीक है, जबकि “रुद्र भैरव” उनका उग्र रूप दर्शाता है।


3. भैरव की पूजा का महत्व

प्रश्न: भैरव की पूजा क्यों महत्वपूर्ण है?


उत्तर: भैरव की पूजा न केवल शत्रुओं से बचाव के लिए की जाती है, बल्कि यह भी माना जाता है कि भैरव की कृपा से जीवन में सफलता और समृद्धि प्राप्त होती है। खासकर काल भैरव की पूजा से जीवन में समय के साथ आने वाली समस्याओं का समाधान होता है। जो लोग भय, अनिश्चितता या कोई भी प्रकार की मानसिक परेशानी से गुजर रहे होते हैं, उनके लिए भैरव की पूजा अत्यंत लाभकारी होती है।


4. भैरव के कुछ प्रमुख नाम और उनका महत्व

प्रश्न: क्या आप कुछ प्रमुख नाम और उनके महत्व के बारे में बता सकते हैं?


उत्तर: जरूर! आइए कुछ प्रमुख नामों पर नज़र डालते हैं:


अनंत भैरव: जो अनंत काल तक शाश्वत हैं।

भूतनाथ: जो सभी प्राणियों के स्वामी हैं।

चंड भैरव: जो उग्र और विध्वंसकारी रूप धारण करते हैं।

त्रिपुर भैरव: जो तीनों लोकों के स्वामी हैं।

ये नाम उनके विभिन्न रूपों और उनके महत्व को दर्शाते हैं। हर नाम एक विशेष ऊर्जा और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है, जिससे जुड़ाव से भक्तों को विभिन्न प्रकार की शक्ति और सुरक्षा मिलती है।


5. भैरव की उपासना का तरीका

प्रश्न: भैरव की उपासना कैसे करनी चाहिए?


उत्तर: भैरव की उपासना के लिए सबसे पहले साफ मन और शुद्ध विचारों का होना जरूरी है। आमतौर पर काल भैरव की पूजा में काले रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है। साथ ही, उनके मंत्रों का जाप करना और उनकी मूर्ति के सामने दीपक जलाना अत्यंत फलदायक होता है। विशेष रूप से शनिवार के दिन भैरव की पूजा करने से विशेष लाभ होता है।


प्रश्न: क्या आप भैरव के 64 नामों की पूरी सूची दे सकते हैं?


उत्तर: हां, यहां भैरव के 64 नामों की सूची दी जा रही है:


भैरव के 64 नाम

असितांग विशालाक्ष मार्तंड मोदकप्रिय

स्वछन्द विघ्नसंतोषुष्ट खेचर सचराचर

रुद्र, कोडदंस्त्र जटाधर विश्वरूप विरुपाक्ष

नानरूपधर पर वज्रहस्त महाकाय

चंद प्रलयान्तक लैंडकंप नीलकंठ

विष्णु कुलपालक मुंडपाल कामपाल

पिंगलेक्शन अभ्ररूप धरपाल कुटिल

मंत्रनायक रुद्र पितामह उन्मत्त

बटुनायक शंकर भूतवेताल त्रिनेत्र

त्रिपुरान्तक त्रिपुरान्तक वरद पर्वतवास

कपाल शशिभूषण हस्तीचर्माम्बरधर योगी

ब्रह्मराक्षस सर्वज्ञ सर्वदेवेश सर्वभूतहृदिष्टिता

भीषण भयहर सर्वज्ञ कालाग्नि

महारौद्र दक्षिण मेरे आख़िर

संहार अतिरिक्त कालाग्नि प्रियंकर

घोरनाद विशालाक्ष दक्ष संस्थित योगी

भैरव के 64 नाम

ब्रह्मवैवर्तपुराण से अष्टभैरव

महाभैरव

संहार भैरव

असितांग भैरव

रुद्र भैरव

कालभैरव

क्रोधित

ताम्रचूड़ भैरव

चन्द्रचूड़ भैरव

तंत्रभैरव के अष्टभैरव

असितांग भैरव

चांदभैरव

रुरू भैरव

क्रोधित

उन्मत्त भैरव

कपाल भैरव

भयंकर भैरव

संहार भैरव

प्रपंचसारतंत्र में शंकराचार्य द्वारा अष्टभैरव

भूतनाथ भैरव

चंदकपाल भैरव

रुरू भैरव

क्रोधित

उन्मत्त भैरव

कालराज भैरव

भयंकर भैरव

संहार भैरव

3 बटुकभैरव के नाम

स्कन्द-बटुक

चित्र-बटुक

विंचि-बटुक

10 वीर भैरव के नाम

सृष्टिवीर भैरव

स्थितिवीर भैरव

संहारवीर भैरव

रक्तवीर भैरव

यमवीर भैरव

मृत्युवीर भैरव

भद्रवीर भैरव

परमार्कवीर भैरव

मार्तण्डवीर भैरव

कालाग्निरुद्रवीर भैरव

सप्तविशन्ति रहस्यम में भैरव नाम

श्रीमंथन भैरव

भैरो

षट्चक्र भैरव

एकात्म भैरव

हविर्भक्ष्य भैरव

चंद भैरव

भ्रमर भास्कर भैरव


64 योगिनी नाम मंत्र: योगिनी नाम लिस्ट 64 Yogini mantra and name list

64 योगिनी नाम मंत्र:  योगिनी नाम लिस्ट 64 Yogini mantra and name list


मुख्यतः आठ योगिनियाँ हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं:–


1.सुर-सुंदरी योगिनी,

2.मनोहरा योगिनी,

3. कनकवती योगिनी,

4.कामेश्वरी योगिनी,

5. रति सुंदरी योगिनी,

6. पद्मिनी योगिनी,

7. नतिनी योगिनी और

8. मधुमती योगिनी।

 


64 योगिनी नाम मंत्र:

64 योगिनियों के मंत्रों में से एक प्रमुख मंत्र है, जो चामुण्डा देवी को समर्पित है:

“ॐ ह्रीं ह्रूं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रां चामुण्डायै विच्चे॥“


इस मंत्र का उच्चारण करने से भक्त को देवी चामुण्डा की कृपा प्राप्त होती है और उनकी सन्तान को सुख-शांति की प्राप्ति होती है।

64 योगिनियों के मंत्र के लिये मंत्र सिद्ध माला यंत्र लेकर कोई भी मंत्र साधना अपने गुरु के मार्गदर्शन में करें मंत्र इस प्रकार हैं।


1- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।

2- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।

3- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।

4- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।

5- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।

6- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।

7- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।

8- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।

9- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।

10- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।

11- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।

12- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।

13- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।

14- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।

15- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।

16- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।

17- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।

18- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।

19- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।

20- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।

21- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।

22- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।

23- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।

24- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।

25- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।

26- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।

27- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।

28- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।

29- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।

30- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।

31- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।

32- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।

33- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।

34- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।

35- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।

36- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।

37- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।

38- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।

39- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।

40- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।

41- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।

42- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।

43- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।

44- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।

45- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।

46- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।

47- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।

48- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।

49- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।

50- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।

51- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।

52- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।

53- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।

54- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।

55- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।

56- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।

57- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।

58- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।

59- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।

60- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।

61- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।

62- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।

63- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।

64- ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।


1.बहुरूप,

2.तारा,

3.नर्मदा,

4.यमुना,

5.शांति,

6.वारुणी

7.क्षेमंकरी,

8.ऐन्द्री,

9.वाराही,

10.रणवीरा,

11.वानर-मुखी,

12.वैष्णवी,

13.कालरात्रि,

14.वैद्यरूपा,

15.चर्चिका,

16.बेतली,

17.छिन्नमस्तिका,

18.वृषवाहन,

19.ज्वाला कामिनी,

20.घटवार,

21.कराकाली,

22.सरस्वती,

23.बिरूपा,

24.कौवेरी,

25.भलुका,

26.नारसिंही,

27.बिरजा,

28.विकतांना,

29.महालक्ष्मी,

30.कौमारी,

31.महामाया,

32.रति,

33.करकरी,

34.सर्पश्या,

35.यक्षिणी,

36.विनायकी,

37.विंध्यवासिनी,

38. वीर कुमारी,

39. माहेश्वरी,

40.अम्बिका,

41.कामिनी,

42.घटाबरी,

43.स्तुती,

44.काली,

45.उमा,

46.नारायणी,

47.समुद्र,

48.ब्रह्मिनी,

49.ज्वाला मुखी,

50.आग्नेयी,

51.अदिति,

51.चन्द्रकान्ति,

53.वायुवेगा,

54.चामुण्डा,

55.मूरति,

56.गंगा,

57.धूमावती,

58.गांधार,

59.सर्व मंगला,

60.अजिता,

61.सूर्यपुत्री

62.वायु वीणा,

63.अघोर और

64. भद्रकाली।


1. 64 योगिनियां कौन हैं?


64 योगिनियां देवी दुर्गा की शक्तिशाली सहायिकाएं हैं, जो विभिन्न पहलुओं और शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनकी उत्पत्ति देवी काली से मानी जाती है और इनकी साधना अनेक प्रकार की सिद्धियों और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है।


2. 64 योगिनी मंत्र क्या होते हैं?


64 योगिनी मंत्र इन देवीय शक्तियों को प्रसन्न करने के विशेष ध्वनि कम्पन हैं। इन मंत्रों का जाप करने से साधक को इन शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।


3. 64 योगिनी मंत्रों के क्या लाभ हैं?


इन मंत्रों के अनेक लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:


भौतिक और आध्यात्मिक समृद्धि: 64 योगिनी मंत्र धन, वैभव, सफलता और समृद्धि प्राप्त करने में सहायक होते हैं।

मनोकामना पूर्ति: इन मंत्रों से मनोवांछित इच्छाओं की पूर्ति हो सकती है, चाहे वे भौतिक हों या आध्यात्मिक।

शत्रुओं पर विजय: 64 योगिनी मंत्र शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और बाधाओं को दूर करने में सहायक होते हैं।

रोगों से मुक्ति: इन मंत्रों से रोगों का नाश होता है और स्वास्थ्य लाभ होता है।

अभिभूत शक्तियां: 64 योगिनी मंत्र जादू-टोना, भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति दिलाते हैं।

मोक्ष प्राप्ति: इन मंत्रों की साधना से मोक्ष की प्राप्ति भी संभव है।

4. 64 योगिनी मंत्रों का जाप कैसे करें?


64 योगिनी मंत्रों का जाप करने के लिए कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक होता है, जैसे:


शुद्ध स्थान: मंत्रों का जाप स्वच्छ और शांत स्थान पर बैठकर करना चाहिए।

स्नान: जाप से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।

दीप प्रज्वलित करना: देवी की मूर्ति या चित्र के सामने दीप प्रज्वलित करना चाहिए।

ध्यान: मंत्र जाप करते समय मन को एकाग्र रखना और देवी पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

मंत्र का उच्चारण: मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट और शुद्ध रूप से करना चाहिए।

माला का प्रयोग: मंत्र जाप के लिए माला का प्रयोग करना शुभ माना जाता है।

नियमित अभ्यास: प्रतिदिन नियमित रूप से मंत्र जाप करना चाहिए।

5. 64 योगिनी मंत्रों के कुछ उदाहरण क्या हैं?


कुछ प्रसिद्ध 64 योगिनी मंत्रों में शामिल हैं:


ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ऋद्धि सिद्धि स्वाहा

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्रिपुरा भैरवी स्वाहा

6. क्या कोई भी 64 योगिनी मंत्र का जाप कर सकता है?


64 योगिनी मंत्र शक्तिशाली मंत्र हैं और इनका जाप करने से पहले किसी गुरु या अनुभवी व्यक्ति से मार्गदर्शन लेना उचित होता है।


7. 64 योगिनी मंत्रों का जाप करने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?


64 योगिनी मंत्रों का जाप किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सूर्योदय, सूर्यास्त और मध्यरात्रि का समय विशेष रूप से शुभ माना जाता है।


8. 64 योगिनी मंत्र जाप करते समय क्या नहीं करना चाहिए?


कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए जो 64 योगिनी मंत्र जाप के प्रभाव को कम कर सकती हैं:


अहंकार: जाप के दौरान अहंकार का त्याग जरूरी है। विनम्र भाव से ही देवी प्रसन्न होती हैं।

लालच: सिर्फ स्वार्थपूर्ति के लिए या किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए मंत्र जाप नहीं करना चाहिए।

अशुद्ध उच्चारण: गलत तरीके से मंत्र बोलने से लाभ कम मिलता है।

अनियमित अभ्यास: कभी-कभार जाप करने से कम फायदा होता है। नियमित अभ्यास जरूरी है।

अविश्वास: मंत्र की शक्ति पर विश्वास होना चाहिए। तभी सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।

9. क्या 64 योगिनी साधना खतरनाक है?


हर साधना की तरह 64 योगिनी साधना में भी सावधानी जरूरी है। बिना गुरु के मार्गदर्शन के जटिल साधनाएं न करें। अनुभवी गुरु सही मंत्र का चयन और उचित साधना विधि बता सकते हैं।


10. क्या मैं किसी खास योगिनी देवी का ही मंत्र जप कर सकता/सकती हूँ?


जी हाँ। आप अपनी इच्छानुसार किसी खास योगिनी देवी का मंत्र चुनकर जप कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, धन-समृद्धि के लिए आप ‘कुल देवी स्वर्णदेहा’ मंत्र का जाप कर सकते हैं।


11. 64 योगिनी मंत्र जपने से क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं?


अनुचित तरीके से या गलत उद्देश्य से साधना करने पर परेशानी आ सकती है। इसलिए गुरु की सलाह जरूरी है। वहीं, मंत्र जप के दौरान मन को भटकने न दें और सकारात्मक भाव रखें।


12. क्या 64 योगिनी मंत्र जपने के लिए कोई विशेष पूजा सामग्री चाहिए?


आप सरल पूजा सामग्री से ही शुरुआत कर सकते हैं। जैसे, चौकी, आसन, देवी की तस्वीर, दीप, अगरबत्ती, फल और फूल। बाद में आप अपनी श्रद्धा अनुसार सामग्री बढ़ा सकते हैं।


13. क्या जप के लिए जप माला का होना जरूरी है?


जप माला का उपयोग मंत्रों की गिनती रखने में सहायक होता है, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है। आप गिनती अपने मन में भी रख सकते हैं।


14. क्या 64 योगिनी मंत्र का जाप करते समय कोई विशेष मंत्र का उच्चारण करना चाहिए?


कुछ साधनाओं में गणेश मंत्र और गुरु मंत्र का जाप मुख्य मंत्र से पहले किया जाता है। गुरु से सलाह लें कि आपकी साधना में कौन से मंत्रों का उच्चारण करना उचित रहेगा।


15. क्या जप करते समय कोई विशेष आसन जरूरी है?


64 योगिनी मंत्र जाप के लिए आप सुखासन या पद्मासन जैसा कोई भी आरामदायक आसन लगा सकते हैं। रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और आंखें बंद कर लें।


16. 64 योगिनी मंत्र जपने का कोई वैज्ञानिक आधार है?


मंत्र जप के वैज्ञानिक लाभों पर शोध अभी भी जारी है। माना जाता है कि मंत्र जप से विशेष ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती हैं जो शरीर और मन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।


17. क्या मैं 64 योगिनी मंत्रों को सुनकर भी लाभ प्राप्त कर सकता/सकती हूँ?


जी हां। आप मंत्रों को श्रद्धापूर्वक सुनकर भी उनसे ऊर्जा ग्रहण कर सकते हैं। हालांकि, स्वयं जाप करने का लाभ अधिक होता है।


18. 64 योगिनी साधना में दीक्षा लेना कितना जरूरी है?


गुरु आपको सही मंत्र का चयन करने, उच्चारण में शुद्धता लाने और साधना की प्रक्रिया को सुगम बनाने में मदद कर सकता है। जटिल साधनाओं में दीक्षा जरूरी मानी जाती है। वहीं, सरल मंत्रों का जाप आप गुरु के मार्गदर्शन में सीखकर स्वयं भी कर सकते हैं।


19. क्या मैं किसी भी मंदिर में जाकर 64 योगिनी साधना कर सकता/सकती हूँ?


सभी मंदिरों में 64 योगिनी देवियों की प्रतिमा या पूजा स्थल नहीं होते। आप किसी ऐसे मंदिर या स्थान की तलाश कर सकते हैं जो विशेष रूप से 64 योगिनियों को समर्पित हो।


20. 64 योगिनी मंत्र जपने के फल तुरंत मिलते हैं क्या?


फल की प्राप्ति व्यक्ति के संकल्प, श्रद्धा और साधना की शुद्धता पर निर्भर करती है। कभी-कभार जप करने से कम फायदा होता है। धैर्य और नियमित अभ्यास जरूरी है।


योगिनियों की विशेषताएं:

प्रत्येक योगिनी एक विशेष शक्ति या तत्व का प्रतिनिधित्व करती है। ये योगिनियां तंत्र साधना में साधकों को अनेक प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। इनकी पूजा से साधक को आत्मज्ञान और असीम शक्तियों की प्राप्ति होती है।


64 योगिनियों के नाम और उनके कार्य:

1. कामाख्या – प्रेम की देवी

2. कामेश्वरी – कामना को पूर्ण करने वाली

3. वज्रेश्वरी – शक्ति की प्रतीक

4. भगमालिनी – आकर्षण की देवी

5. भैरवी – आतंक का नाश करने वाली

6. छिन्नमस्तिका – आत्मबल की देवी

7. धूमावती – रहस्यों की देवी

8. बगलामुखी – शत्रुओं का नाश करने वाली

9. मातंगी – विद्या की देवी

10. कमला – समृद्धि की देवी

11. महालक्ष्मी – धन की देवी

12. कौमार्य – कौमार्य की रक्षक

13. वैष्णवी – विष्णु की शक्ति

14. वाराही – युद्ध की देवी

15. नारसिंही – नृसिंह की शक्ति

16. महेश्वरी – शिव की शक्ति

17. आनंदेश्वरी – आनंद प्रदान करने वाली

18. कालिका – समय की देवी

19. तारा – रक्षा करने वाली

20. त्रिपुर सुंदरी – सौंदर्य की देवी

21. सर्वमंगला – मंगल की देवी

22. ज्वालामुखी – अग्नि की देवी

23. नृसिंहप्रिया – नृसिंह की प्रिय

24. शाकिनी – शक्ति की देवी

25. डाकिनी – रहस्यमयी शक्ति

26. कौशिकी – रक्षा करने वाली

27. इन्द्राणी – इंद्र की शक्ति

28. वारुणी – जल की देवी

29. नागिनी – सर्प की देवी

30. अश्वारूढ़ा – अश्व की देवी

31. यामिनी – रात्रि की देवी

32. वज्रिनी – कठोर शक्ति

33. सूर्यप्रिया – सूर्य की प्रिय

34. शूलिनी – शूलधारिणी

35. चंद्रिका – चंद्रमा की देवी

36. पार्वती – पर्वतों की देवी

37. अम्बिका – मातृत्व की देवी

38. रत्नेश्वरी – रत्नों की देवी

39. कालरात्रि – रात्रि की शक्ति

40. गायत्री – मंत्रों की देवी

41. काली – काल की शक्ति

42. भद्रकाली – भद्र रूप की देवी

43. भुवनेश्वरी – भू की देवी

44. सोमेश्वरी – सोम की देवी

45. सर्वेश्वरी – सभी की देवी

46. सिद्धिदात्री – सिद्धि प्रदान करने वाली

47. अन्नपूर्णा – अन्न की देवी

48. विश्वेश्वरी – विश्व की देवी

49. तारिणी – उद्धार करने वाली

50. चामुंडा – चंड और मुंड का नाश करने वाली

51. हरसिद्धि – सभी सिद्धियों की देवी

52. अग्निशिखा – अग्नि का प्रतीक

53. गौरी – उज्ज्वलता की देवी

54. सती – पवित्रता की देवी

55. प्रतिभा – प्रकाश की देवी

56. स्वाहा – अग्नि की पत्नी

57. कुब्जिका – रहस्य की देवी

58. शिवदूती – शिव की दूत

59. महाकाली – महान शक्ति की देवी

60. योगिनी – योग की देवी

61. ध्यानेश्वरी – ध्यान की देवी

62. आर्या – श्रेष्ठता की देवी

63. अन्याप्रिया – सभी की प्रिय

64. परमेश्वरी – परम शक्ति की देवी


ये योगिनियां विभिन्न कार्यों और शक्तियों की प्रतीक हैं, जो जीवन के विविध पहलुओं में साधकों की सहायता करती हैं। इनकी पूजा तांत्रिक साधनाओं में महत्वपूर्ण मानी जाती है।

अपामार्जन विधान Apaamarjan Vidhan

 अपामार्जन विधान Apaamarjan Vidhan


अपामार्जन विधान

श्री अग्निनारायणरुवाच 

ॐ नमःपरमार्थाय पुरुषाय महात्मने | 

अरूपबहुरूपाय व्यापिने परमात्मने || 


निष्कल्मषाय शुद्धाय ध्यानयोगरताय च |

नमस्कृत्य प्रवक्ष्यामि यत् तत् सिध्यतु में वचः || 


वराहाय नृसिंहाय वामनाय महात्मने | 

नमस्कृत्य प्रवक्ष्यामि यत् तत् सिध्यतु में वचः ||


त्रिविक्रमाय रामाय वैकुण्ठाय नराय च | 

नमस्कृत्य प्रवक्ष्यामि यत् तत् सिध्यतु में वचः ||

 

वराह नरसिंहेश वामनेश त्रिविक्रम |

हयग्रीवेश सर्वेश हृ हृषीकेश हराशुभम्


अपराजित चक्राद्यैश्चतुर्भिः परमायुधैः |

अखण्डितानुभावैस्त्वं सर्वदुष्टहरो भव ||


हरामुकस्य दुरितं सर्वं च कुशलं कुरु |

मृत्युबन्धार्तिभयदं दुरिष्टस्य च यत्फलम् ||


पराभिध्यानसहितैः प्रयुक्तं चाभिचारिकम् |

गरस्पर्शमहारोगप्रयोगं जरया जर ||


ॐ नमो वासुदेवाय नमः कृष्णाय खड्गिने |

नमः पुष्करनेत्राय केशवायादिचक्रिणे ||


नमः कमलकिञ्जल्कपीतनिर्मलवाससे |

महाहयरिपुस्कन्धधृष्टचक्राय चक्रिणे ||


दंष्ट्रोद्धृतक्षितिभृते त्रयीमूर्तिमते नमः |

महायज्ञवराहाय शेषभागाङ्कशायिने ||


तप्तहाटककेशान्तज्वलत्पावकलोचन |

वज्राधिकनखस्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते ||


काश्यपायातिह्रस्वाय ऋग्यजुः सामभूषिणे |

तुभ्यं वामनरुपायाक्रमते गां नमो नमः ||


वराहाशेषदुष्टानि सर्वपापफलानि वै |

मर्द मर्द महादंष्ट्र मर्द मर्द च तत्फलम् ||


नारसिंह करालास्य दन्तप्रान्तानलाज्ज्वल |

भञ्ज भञ्ज निनादेन दुष्टान् पश्यार्तिनाशन ||


ऋग्यजुःसामगर्भाभिर्वाग्भिर्वामनरुपधृक् |

प्रशमं सर्वदुःखानि नयत्वस्य जनार्दन ||


ऐकाहिकं द्व्याहिकं च तथा त्रिदिवसं ज्वरम् |

चातुर्थिकं तथात्युग्रं तथैव सततं ज्वरम् || 


दोषोत्थं संनिपातात्थं तथैवागन्तुकं ज्वरम् |

शमं नयाशु गोविन्द च्छिन्धि च्छिन्ध्यस्य वेदनाम् ||


नेत्रदुःखं शिरोदुःखं दुःखं चोदरसम्भवम् |

अनिश्वासमतिश्वासं परितापं सवेपथुम् ||


गुदघ्राणाङ्घ्रिरोगांश्च कुष्ठरोगांस्तथा क्षयम् |

कामलादींस्तथा रोगान् प्रमेहांश्चातिदारुणान् ||


भगन्दरातिसारांश्च मुखरोगांश्च वल्गुलिम् |

अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रांश्च रोगानन्यांश्च दारुणान् ||


ये वातप्रभवा रोगा ये च पित्तसमुद्भवाः |

कफोद्भवाश्च ये केचिद् ये चान्ये सांनिपातिकाः ||


आगन्तुकाश्च ये रोगा लूताविस्फोटकादयः |

ते सर्वे प्रशमं यान्तु वासुदेवस्य कीर्तनत् ||


विलयं यान्तु ते सर्वे विष्णोरुच्चारणेन च |

क्षयं गच्छन्तु चाशेषास्ते चक्राभिहता हरेः ||


अच्युतानन्तगोविन्दनामोच्चारणभेषजात् |

नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ||


स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् |

दन्तोद्भवं नखभवमाकाशप्रभवं विषम् || २७ ||


लूतादिप्रभवं यच्च विषमन्यत्तु  दुःखदम् |

शमं नयतु तत्सर्वं वासुदेवस्य कीर्तनम् ||


ग्रहान् प्रेतग्रहांश्चापि तथा वै डाकिनीग्रहान् |

वेतालांश्च पिशाचांश्च गन्धर्वान् यक्षराक्षसान् ||


शकुनीपूतनाद्यांश्च तथा वैनायकान् ग्रहान् |

मुखमण्डीं तथा क्रूरां रेवतीं वृद्धरेवतीम् ||


वृद्धिकाख्यान्ग्रहाश्चोग्रांस्तथा मातृग्रहानपि |

बालस्य विष्णोश्चरितं हन्तु बालग्रहानिमान् ||


वृद्धाश्च ये ग्रहाः केचिद् ये च बालग्रहाः क्वचित् |

नरसिंहस्य ते दृष्ट्या दग्धा ये चापि यौवने ||


सटाकरालवदनो नारसिंहो महाबलः |

ग्रहानशेषान्निःशेषान् करोतु जगतो हितः ||


नरसिंह महासिंह ज्वालामालोज्ज्वलानन |

ग्रहानशेषान् सर्वेश खाद खादाग्निलोचन ||


ये रोगा ये महोत्पाता यद्विषं ये महाग्रहाः |

यानि च क्रूरभूतानि ग्रहपीडाश्च दारुणाः ||


शस्त्रक्षतेषु ये दोषा ज्वालागर्दभकादयः |

तानि सर्वाणि सर्वात्मा परमात्मा जनार्दनः ||


किंचिद्रूपं समास्थाय वासुदेवास्य नाशय |

क्षिप्त्वा सुदर्शनं चक्रं ज्वालामालातिभीषणम् ||


सर्वदुष्टोपशमनं कुरु देववराच्युत |

सुदर्शन महाज्वाला च्छिन्धि च्छिन्धि महारव ||


सर्वदुष्टानि रक्षांसि क्षयं यान्तु विभीषण |

प्राच्यां प्रतीच्यां च दिशि दक्षिणोत्तरतस्तथा ||


रक्षां करोतु सर्वात्मा नरसिंहः स्वगर्जितैः |

दिवि भुव्यन्तरिक्षे च पृष्ठतः पार्श्वतोऽग्रतः ||


रक्षां करोतु भगवान् बहुरुपी जनार्दनः |

यथा विष्णुर्जगत्सर्वं सदेवासुरमानुषम् ||


तेन सत्येन दुष्टानि शममस्य व्रजन्तु वै |

यथा विष्णौ स्मृते सद्यः संक्षयं यान्ति पातकाः ||


सत्येन तेन सकलं दुष्टमस्य प्रशाम्यतु |

यथा यज्ञेश्वरो विष्णुर्देवेष्वपि हि गीयते ||


सत्येन तेन सकलं यन्मयोक्तं तथास्तु तत् |

शान्तिरस्तु शिवं चास्तु दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ||


वासुदेवशरीरोत्थैः कुशैर्निर्णाशितं मया |

अपमार्जति गोविन्दो नरो नारायणस्तथा ||


तथास्तु सर्वदुःखानां प्रशमो वचनाद्धरेः |

अपामार्जनकं शस्तं सर्वरोगादिवारणम् ||


अहं हरिः कुशा विष्णुर्हता रागा मया तव ||


|| अस्तु ||

आदित्य स्तोत्रम् Aaditya Stotram

 आदित्य स्तोत्रम्  Aaditya Stotram


आदित्य स्तोत्रम्

नवग्रहाणां सर्वेषां सूर्यादीनां पृथक्पृथक् |

पीडा च दुःसहा राजन् जायते सततं नृणाम् || १ ||


पीडानाशाय राजेन्द्र नामानि शृणु भास्वतः |

सूर्यादीनां च सर्वेषां पीडा नश्यति शृण्वतः || २ ||


आदित्यः सविता सूर्यः पुषाऽर्कः शीघ्रगो रविः |

भगः त्वष्टाऽर्यमा हंसो हेलिस्तेजो निधिर्हरिः || ३ ||


दिननाथो दिनकरः सप्तसप्तिः प्रभाकरः |

विभावसुर्वेदकर्ता वेदांगो वेदवाहनः || ४ ||


हरिदश्वः कालवक्त्रः कर्मसाक्षी जगत्पतिः |

पद्मिनीबोधको भानुर्भास्करः करुणाकरः || ५ ||


द्वादशात्मा विश्वकर्मा लोहितांगः तमोनुदः |

जगन्नाथोऽरविन्दाक्षः कालात्मा कश्यपात्मजः || ६ || 


भूताश्रयो ग्रहपतिः सर्वलोकनमस्कृतः |

जपाकुसुमसंकाशो भास्वानदितिनन्दनः || ७ ||


ध्वान्तेभासिंहः सर्वात्मा लोकनेत्रो विकर्तनः |

मार्तण्डो मिहिरः सूरस्तपनो लोकतापनः || ८ ||


जगत्कर्ता जगत्साक्षी शनैश्चरपिता जयः |

सहस्त्र रश्मिस्तरणिर्भगवान्भक्त वत्सलः || ९ ||


विवस्वानादिदेवश्च देवदेवो दिवाकरः |

धन्वन्तरिर्व्याधिहर्ता दद्रुकुष्ठविनाशकः || १० ||


चराचरात्मा मैत्रेयोऽमितो विष्णु विकर्तनः |

कोकशोकापहर्ता च कमलाकर आत्मभूः || ११ ||


नारायणो महादेवो रुद्रः पुरुष ईश्वरः |

जीवात्मा परमात्मा च सूक्ष्मात्मा सर्वतोमुखः || १२ || 


इन्द्रोऽनलो यमश्चै नैरृतो वरुणोऽनिलः |

श्रीद ईशान इन्दुश्च भौमः सौम्यो गुरुः कविः || १३ ||


शौरिर्विंधुतुदः केतुः कालः कालात्मको विभुः |

सर्वदेवमयो देवः कृष्णः कामप्रदायकः || १४ ||


य एतैर्नामभिर्मर्त्यो भक्त्या स्तौति दिवाकरम् |

सर्वपापविनिर्मुक्तः सर्वरोगविवर्जितः || १५ ||


पुत्रवान् धन्वान् श्रीमाञ्जायते स न संशयः |

रविवारे पठेद्यस्तु नामान्येतानि भास्वतः || १६ ||


पीडाशान्तिर्भवेत्तस्य ग्रहाणां च विशेषतः |

सद्यः सुखमवाप्नोति चायुर्दीर्धं च नीरुजम् || १७ ||


|| इति श्रीभविष्यपुराणे आदित्यस्तोत्रं || 

दशरथ कृत शनैश्चर स्तोत्रम् Dashrath krit Shanishchar Stotra

 दशरथ कृत शनैश्चर स्तोत्रम्  Dashrath krit Shanishchar Stotra


दशरथ कृत शनैश्चर स्तोत्रम्

|| श्री गणेशाय नमः ||


अस्य श्री शनैश्चर स्तोत्रस्य दशरथ ऋषिः श्री शनैश्चरो देवता

 त्रिष्टुप्छन्दः शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः |


|| दशरथ उवाच ||

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ||

नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्री रविनन्दनाय || १ ||


सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ||

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्री रविनन्दनाय || २ ||


नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतङ्गमृङ्ग ||

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्री रविनन्दनाय || ३ ||


देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ||

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्री रविनन्दनाय || ४ ||


तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ||

प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्री रविनन्दनाय || ५ ||


प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ||

यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै  नमः श्री रविनन्दनाय || ६ ||


अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ||

गृहाद्गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै  नमः श्री रविनन्दनाय || ७ ||


स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरिशो हरते पिनाकी ||

एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै  नमः श्री रविनन्दनाय || ८ ||


शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ||

पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते || ९ ||


कोणस्थः पिंगलो बभ्रुः कृष्णो रौद्राऽन्तको यमः ||

सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः || १० ||


एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ||

शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति || ११ ||


|| इति श्री शनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ||

नवग्रह ध्यान मंत्र Navgrah Dhyan

 नवग्रह ध्यान मंत्र  Navgrah Dhyan


नवग्रह ध्यान मंत्र 

ॐ सूर्याय नमः 

प्रत्यक्ष देवं विशदं सहस्त्र मरीचिभिः शोभितभूमिदेशम् |

सप्ताश्वगं सद्ध्वजहस्तमाद्यं देवं भजेऽहं मिहिरं हृदब्जे || 


ॐ सोमाय नमः 

ॐ शङ्खप्रभमेणप्रियं शशांक मीशानमौलिस्थित मीडयवृत्तम् |

तमीपतिं नीरजयुग्महस्तं ध्याये हृदब्जे शशिनं ग्रहेशम् || 


ॐ भौमाय नमः 

प्रतप्तगांगेयनिभिं  ग्रहेशं सिंहासनस्थं कमलासिहस्तम् |

सुरासुरैः पूजितपादपद्मं भौमं दयालुं हृदये स्मरामि || 


ॐ बुधाय नमः 

सोमात्मजं हंसगतं द्विबाहुं शंखेन्दुरूपं ह्यासिपाशहस्तम् |

दयानिधिं भूषणभूषिताङ्गं बुधं स्मरे मानसपङ्कजेऽहम् || 


ॐ गुरवे नमः 

ॐ तेजोमयं शक्ति त्रिशूलहस्तं सुरेन्द्रज्येष्ठैः स्तुतपादपद्मम् |

मेधानिधिं हस्तिगतं द्विबाहुं गुरुं स्मरे  मानसपङ्कजेऽहम् || 


ॐ शुक्राय नमः 

संतप्तकाञ्चननिभं द्विभुजं दयालुं पीताम्बरं धृतसरोरुहद्वन्दशूलम् |

कौंचासनं ह्यसुरसेवितपादपद्मं शुक्रं स्मरे द्विनयनं ह्रदि पङ्कजेहम् || 


ॐ शनैश्चराय नमः 

ॐ नीलांजनाभं मिहिरेष्टपुत्रं ग्रहेश्वरं पाशभुजङ्गपाणिम् |

सुरासुराणां भयदं द्विबाहुं शनिं स्मरे मानसपङ्कजेऽहम् || 


ॐ राहवे नमः 

ॐ शीतांशुमीत्रान्तक मीडयरूपं घोरं च वैडूर्यनिभं विबाहुम् |

त्रैलोक्यरक्षापरमिष्टदं च राहुं ग्रहेन्द्रं हृदये स्मरामि || 


ॐ केतवे नमः 

ॐ लाङ्गलयुक्तं भयदं जनानां कृष्णाम्बुभृत्सन्निभमेकवीरम् | 

कृष्णाम्बरं शक्ति त्रिशूलहस्तं केतुं भजे मानसपङ्कजेऽहम् || 

|| ॐ नवग्रहाय नमः || 

भैरव भयनाशक दशनाम स्तोत्र Bhairva ji ke 10 naam stotra

भैरव भयनाशक दशनाम स्तोत्र Bhairva ji ke 10 naam stotra

भैरव भयनाशक दशनाम स्तोत्र 

नित्य अपनी पूजा से पहले और बाद में बोले यह नाम स्तोत्र | 


कपाली कुण्डली भीमो भैरवो भीमविक्रमः | 

व्यालोपवीती कवची शूली शूरः शिवप्रियः || 

एतानि दशनामानि प्रातरूत्थाय यः पठेत | 

भैरवी यातना न स्याद भयं क्वापि न जायते || 


|| अस्तु || 

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र Savarnaakarshan Bhairav Stotra

 श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र Savarnaakarshan Bhairav Stotra


श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र

( भगवान् नन्दिकेश्वर और दत्तात्रेय जी का संवाद )

भगवान् प्रमथाधीश शिवतुल्य पराक्रम |

पूर्वमुक्तस्त्वया मंत्रो भैरवस्य महात्मनः ||


इदानीं श्रोतुमिच्छामि तस्य स्तोत्रमनुत्तमम् |

तत्केनोक्तं पुरा स्तोत्रं पठनात् तस्य किं फलम् ||


तत्सर्वं श्रोतुमिच्छामि ब्रूहि में नन्दिकेश्वर |


|| नन्दिकेश्वर उवाच ||

अयं प्रश्नो महाभाग लोकानामुपकारकः ||


स्तोत्रं बटुकनाथस्य दुर्लभं भुवनत्रये |

सर्वपाप प्रशमनं सर्वसम्पत् प्रदायकम् ||


दारिद्र्यनाशनं पुंसामापदामपहारकम् |

अष्टैश्वर्यप्रदं नृणां पराजय विनाशनम् ||


महाकिर्त्तिप्रदं पुंसामसौन्दर्य विनाशनम् |

स्वर्णाद्यष्ट महासिद्धि प्रदायकमनुत्तमम् ||


भुक्तिमुक्तिप्रदं स्तोत्रं भैरवस्य महात्मनः |

महाभैरवभक्ताय सेविने निर्धनाय च ||


निजभक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् |

स्तोत्रमेतद् भैरवस्य ब्रह्म विष्णु शिवात्मकम् ||


शृणुष्व रुचितो ब्रह्मन् सर्वकाम प्रदायकम् |


|| विनियोगः ||

ॐ अस्य श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषिः अनुष्टुप् छन्दः

स्वर्णाकर्षण भैरव परमात्मा देवता ह्रीं बीजं क्लीं शक्तिः सः कीलकं मम सर्वकामसिद्ध्यर्थे पाठे विनियोगः |


|| ऋष्यादिन्यासः ||

ब्रह्मर्षये नमः ( शिरसि ),

 अनुष्टुप् छन्दसे नमः ( मुखे ),

स्वर्णाकर्षण भैरवपरमात्मने नमः ( हृदये ),

ह्रीं बीजाय नमः ( गुह्ये ),

 क्लीं शक्तये नमः ( पादयोः ),

 सः कीलकाय नमः ( नाभौ ),

विनियोगाय नमः ( सर्वाङ्गे ) |


|| करन्यासः ||

ह्रां अंगुष्ठाभ्यां नमः |

ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः |

ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः |

ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः |

ह्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः |

ह्रः करतल कर पृष्ठाभ्यां नमः |


|| ह्रदयादिन्यासः ||

ह्रां हृदयाय नमः |

ह्रीं शिरसे स्वाहा |

ह्रूं शिखायै वषट् |

ह्रैं कवचाय हुम् |

ह्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् |

ह्रः अस्त्राय फट् |


|| ध्यानः ||

पारिजातद्रुमान्तारे, स्थिते माणिक्य मण्डपे |

सिंहासनगतं वन्दे, भैरवं स्वर्णदायकम् |

गाङ्गेयपात्रं डमरुं त्रिशूलं, वरं करैः सन्दधतं त्रिनेत्रम् |

देव्यां युतं तप्तसुवर्णवर्ण, स्वर्णाकृषं भैरवमाश्रयामि ||

मुद्राः कमण्डलु डमरु त्रिशूल वर मुद्रा दर्शयेत् |


|| मूल स्तोत्र पाठः ||

ॐ नमस्ते भैरवाय ब्रह्माविष्णु शिवात्मने |

नमस्त्रैलोक्यवन्द्याय वरदाय वरात्मने ||


रत्नसिंहासनस्थाय दिव्याभरणशोभिने |

    दिव्यमाल्य विभूषाय नमस्ते दिव्यमूर्तये ||


नमस्तेऽनेकहस्ताय अनेकशिरसे नमः |

नमस्तेऽनेकनेत्राय अनेकविभवे नमः ||


नमस्तेऽनेक कण्ठाय अनेकांसाय ते नमः |

नमस्तेऽनेकपार्श्वाय ननमस्ते दिव्यतेजसे ||


अनेकायुधयुक्ताय अनेक सुरसेविने |

अनेक गुणयुक्ताय महादेवाय ते नमः ||


नमो दारिद्र्यकालाय महासम्पत्प्रदायिने |

श्रीभैरवी संयुक्ताय त्रिलोकेशाय ते नमः ||


दिगम्बर नमस्तुभ्यं दिव्याङ्गाय नमो नमः |

नमोऽस्तु दैत्यकालाय पापकालाय ते नमः ||


सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं नमस्ते दिव्यचक्षुषे |

अजिताय नमस्तुभ्यं जितामित्राय ते नमः ||


नमस्ते रुद्ररुपाय महावीराय ते नमः |

नमोऽस्त्वनन्तवीर्याय महाघोराय ते नमः ||


नमस्ते घोरघोराय विश्वघोराय ते नमः |

नमः उग्राय शान्ताय भक्तानां शान्तिदायिने ||


गुरवे सर्वलोकानां नमः प्रणवरुपिणे |

नमस्ते वाग्भवाख्याय दीर्घकामाय ते नमः ||


नमस्ते कामराजाय योषित्कामाय ते नमः |

दीर्घमायास्वरुपाय महामायाय ते नमः ||


सृष्टिमाया स्वरुपाय विसर्गसमयाय ते |

सुरलोक सुपूज्याय आपदुद्धारणाय च ||


नमो नमो भैरवाय महादारिद्र्यनाशिने |

उन्मूलने कर्मठाय अलक्ष्म्याः सर्वदा नमः ||


नमोऽजामलबद्धाय नमो लोकेश्वराय ते |

स्वर्णाकर्षणशीलाय भैरवाय नमो नमः ||


मम दारिद्र्यविद्वेषणाय लक्ष्याय ते नमः |

नमो लोकत्रयेशाय स्वानन्द निहिताय ते ||


नमः श्रीबीजरुपाय सर्वकामप्रदायिने |

नमो महाभैरवाय श्रीभैरव नमो नमः ||


धनाध्यक्ष नमस्तुभ्यं शरण्याय नमो नमः |

नमः प्रसन्नरुपाय आदिदेवाय ते नमः ||


नमस्ते मंत्ररुपाय नमस्ते रत्नरुपिणे |

नमस्ते सर्वरुपाय सुवर्णाय नमो नमः ||


नमः सुवर्णवर्णाय महापुण्याय ते नमः |

नमो शुद्धाय बुद्धाय नमः संसारतारिणे ||


नमो देवाय गुह्याय प्रचलाय नमो नमः |

नमस्ते बालरुपाय परेषां बलनाशिने ||


नमस्ते स्वर्णसंस्थाय नमो भूतलवासिने |

नमः पातालवासाय अनाधाराय ते नमः ||


नमो नमस्ते शान्ताय अनन्ताय नमो नमः |

द्विभुजाय नमस्तुभ्यं भुजत्रयसुशोभिने ||


नमोऽणिमादि सिद्धाय स्वर्णहस्ताय ते नमः |

पूर्णचन्द्रप्रतिकाशवदनाम्भोज शोभिने ||


नमस्तेऽस्तु स्वरुपाय स्वर्णालङ्कारशोभिने |

नमः स्वर्णाकर्षणाय स्वर्णभाय नमो नमः ||


नमस्ते स्वर्णकण्ठाय स्वर्णाभम्बरधारिणे |

स्वर्णसिंहासनस्थाय स्वर्णपादाय ते नमः ||


नमः स्वर्णाभपादाय स्वर्णकाञ्चीसुशोभिने |

नमस्ते स्वर्णजङ्घाय भक्तकामदुघात्मने ||


नमस्ते सवर्णभक्ताय कल्पवृक्षस्वरुपिणे |

चिन्तामणिस्वरुपाय नमो ब्रह्मादि सेविने ||


कल्पद्रुमाधःसंस्थाय बहुस्वर्ण प्रदायिने |

नमो हेमाकर्षणाय भैरवाय नमो नमः ||


स्तवेनानेन सन्तुष्टो भव लोकेश भैरव |

पश्य मां करुणादृष्ट्या शरणागतवत्सल ||


|| फलश्रुतिः ||

श्री महाभैरवस्येदं स्तोत्रमुक्तं सुदुर्लभम् |

मन्त्रात्मकं महापुण्यं सर्वैंश्वर्य प्रदायकम् ||


यः पठेन्नित्यमेकाग्रं पातकैः स प्रमुच्यते |

लभते महतीं लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ||


चिन्तामणिमवाप्नोति धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् |

स्वर्णराशिमवाप्नीति शीघ्रमेव स मानवः ||


त्रिसन्ध्यं यः पठेत् स्तोत्रं दशावृत्त्या नरोत्तमः |

स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य साक्षाद् भूत्वा जगद्गुरुः ||


स्वर्णराशिं ददात्स्यस्मै तत्क्षणं नास्ति संशयः |

अष्टावृत्त्या पठेद् यस्तु सन्ध्यायां वा नरोत्तमः ||


लभते सकलान् कामान् सप्ताहान्नात्र संशयः |

सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं भैरवस्य महात्त्मनः ||


लोकत्रयं वशीकुर्यादचलां श्रियमाप्नुयात् |

न भयं विद्यते क्वापि विषभूतादि सम्भवम् ||


म्रियन्ते शत्रवस्तस्य ह्यलक्ष्मी नाशमाप्नुयात् |

अक्षयं लभते सौख्यं सर्वदा मानवोत्तमः ||


अष्टपञ्चाशद् वर्णाढ्यो मंत्रराजः प्रकीर्तितः |

दारिद्र्यदुःखशमनः स्वर्णाकर्षण कारकः ||


य एनं सन्जपेद् धीमान् स्तोत्रं वा प्रपठेत् सदा |

महाभैरव सायुज्यं सोंऽतकाले लभेद् ध्रुवम् ||


|| इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे ईश्वरदत्तात्रेय संवादे स्वरानकर्षण भैरवस्तोत्रं सम्पूर्णं ||

श्री कामाख्या कवच Kamakhya kavacham

श्री कामाख्या कवच  Kamakhya kavacham

 श्री कामाख्या कवच 

 || नारद उवाच ||

कवचं कीदृशं देव्या महाभयनिवर्तकम् ||

कामाख्यायास्तु तद्ब्रूहि साम्प्रतं मे महेश्वर ||

|| श्रीमहादेव उवाच ||

शृणुष्य परमं गुह्यं महाभयनिवर्तकम् | 

कामाख्याया: सुरश्रेष्ठ कवचं सर्वमंगलम् ||

यस्य स्मरणमात्रेण योगिनीडाकिनीगणा: |

राक्षस्यो विघ्नकारिण्यो याच्छान्या विघ्नकारिका: ||

क्षुप्तिपासा तथा निद्रा तथान्ये ये च विघ्नदा :|

दूरादपि पलायन्ते कवचस्य प्रसादतः ||

निर्भयो जायते मर्त्यस्तेजस्वी भैरवोपमः |

समासक्तमनाश्चापि जपहोमादिकर्मसु |

भवेच्च मन्त्रतन्त्राणां निर्विघ्नेन सुसिद्धये ||

ओं प्राच्यां रक्षतु मे तारा कामरुपनिवासिनी |

आग्नेय्यां षोडशी पातु याम्यां धूमावती स्वयम् ||

नैरृत्यां भैरवी पातु वारुण्यां भुवनेश्वरी |

वायव्यां सततं पातु छिन्नमस्ता महेश्वरी ||

कौबेर्यां पातु मे देवी श्रीविद्या बगलामुखी |

ऐशान्यां पातु मे नित्यं महात्रिपुरसुन्दरी ||

उर्ध्वं रक्षतु मे विद्या मातंगी पीठवासिनी |

सर्वतः पातु मे नित्यं कामाख्या कालिका स्वयम् ||

ब्रह्मरुपा महाविद्या सर्वविद्यामयी स्वयम् |

शीर्षे रक्षतु मे दुर्गा भालं श्रीभवगेहिनी ||

त्रिपुरा भ्रूयूगे पातु शर्वांणी पातु नासिकाम् |

चक्षुषीचण्डिका पातु श्रोत्रे नीलसरस्वती ||

मुखं सौम्यमुखी पातु ग्रीवां रक्षतु पार्वती |

जिह्वां रक्षतु मे देवी जिह्वाललनभीषणा ||

वाग्देवी वदनं पातु वक्ष: पातु महेश्वरी |

बाहू महाभूजा पातु करांगुलीः सुरेश्वरी ||

पृष्ठतः पातु भीमास्या कट्यां देवी दिगम्बरी |

उदरं पातु मे नित्यं महाविद्या महोदरी ||

उग्रतारा महादेवी जंघोरू परिरक्षतु |

गुदं मुष्कं च मेढ्रं च नाभिं च सुरसुन्दरी ||

पादांगुलिः सदा पातु भवानी त्रिदशेश्वरी |

रक्तमांसास्थिमज्जादीन्पातु देवी शवासना ||

महाभयेषु घोरेषु महाभयनिवारिणी |

पातु देवी महामाया कामाख्यापीठवासिनी ||

भस्माचलगता दिव्यसिंहासनकृताश्रया |

पातु श्रीकालिकादेवी सर्वोत्पातेषु सर्वदा ||

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं कवचेनापि वर्जितम् |

तत्सर्वं सर्वदा पातु सर्वरक्षणकारिणी ||

इदं तु परमं गुह्यं कवचं मुनिसत्तम |

कामाख्याया मयोक्तं ते सर्वरक्षाकरं परम् ||

अनेन कृत्वा रक्षां तु निर्भयः साधको भवेत् |

न तं स्पृशेद्धयं घोरं मन्त्रसिद्धिविरोधकम् ||

जायते च मनःसिद्धिर्निर्विघ्नेन महामते |

इदं यो धारयेत्कण्ठे बाहौ वा कवचं महत् ||

अव्याहताज्ञ:स भवेत्सर्वविद्याविशारद :|

सर्वत्र लभते सौख्यं मंगलं तु दीने दीने ||

यः पठेत्प्रयतो भूत्वा कवचं चेदमद्धुतम् |

स देव्याः पदवीं याति सत्यं सत्यं न संशयः || 

कामाख्या कवचम् Kamakhya Kavacham

कामाख्या कवचम्  Kamakhya Kavacham

कामाख्या कवचम्
ॐ कामाख्याकवचस्य मुनिर्बृहस्पतिः स्मृतः |
देवी कामेश्वरी तस्य अनुष्टुप्छन्द इष्यते ||

|| विनियोगः ||
सर्व्वसिद्धौ तंच शृण्वन्तु देवताः |
शिरः कामेश्वरि देवी कामाख्या चाक्षुषी मम ||

शारदा कर्णयुगलं त्रिपुरा वदनं तथा |
कण्ठे पातु महामाया हृदि कामेश्वरि पुनः ||

कामाख्या जठरे पातु शारदा पातु नाभितः |
त्रिपुरा पाश्वर्योः पातु महामाया तू मेहने ||

गुदे कामेश्वरी पातु कामाख्योरुद्वये तु माम् |
जनुनीः शारदा पातु त्रिपुरा पातु जंघयोः ||

महामाया पादयुगे नित्यं रक्षतु कामदा |
केशे कोटेश्वरी पातु नासायां पातु दीर्घिका ||

( शुभगा ) दन्तसंघाते मातंग्यवतु चांगयोः |
बाह्वोर्म्मां ललिता पातु पाण्योस्तु वनवासिनी ||

विन्धयवासिन्यंगुलीषु श्रीकामा नखकोटिषु |
रोमकूपेषु सर्व्वेषु गुप्तकामा सदावतु ||

पादांगुलिपार्ष्णिभागे पातु मां भुवनेश्वरी |
जिह्वायां पातु मां सेतुः कः कण्ठाभ्यन्तरेऽवतु ||

पातु नश्चान्तरे वक्षः ईः पातु जठरान्तरे |
सामिन्दुः पातु मां वस्तौ विन्दुर्व्विद्वन्तरेऽवतु ||

ककारस्त्वचि मां पातु रकारोऽस्थिषु सर्व्वदा |
लकारः सर्व्वनडिषु ईकारः सर्व्वसन्धिषु ||

चन्द्रः स्नायुषु मां पातु विन्दुर्मज्जासु सन्ततम् |
पूर्व्वस्यां दिशि चाग्नेय्यां दक्षिणे नैरृते तथा ||

वारुणे चैव वायव्यां कौवरे हरमन्दिरे |
अकाराद्यास्तु वैष्णवा अष्टौ वर्णास्तु मंत्रगाः ||

पान्तु तिष्ठन्तु सततं समुद्भवविवृद्धये |
ऊर्ध्वाधः पातु सततं मान्तु सेतुद्वयं सदा ||

नवाक्षराणि मन्त्रेषु शारदा मंत्रगोचरे |
नवस्वरास्तु मां नित्यं नासादिषु समन्ततः ||

वातपित्तकफेभ्यस्तु त्रिपुरायास्तु त्र्यक्षरम् |
नित्यं रक्षतु भूतेभ्यः पिशाचेभ्यस्तथैव च ||

तत् सेतु सततं पाता क्रव्याद्भ्यो मान्निवारकौ |
नमः कामेश्वरी देवीं महामायां जगन्मयीम् ||

या भूत्वा प्रकृतिर्नित्यं तनोति जगदायतम् |
कामाख्यामक्षमाला भयवरदकरां सिद्धसूत्रैकहस्तां ||

श्वेतप्रेतोपरिस्थां मणिकनकयुतां कुंकुमापीतवर्णाम् |
ज्ञानध्यानप्रतिष्ठा मतिशयविनयां ब्रह्मशक्रादिवन्द्या ||

मग्नौ विन्द्वन्तमन्त्रप्रियतमविषयां नौमि विद्ध्यैरतिस्थाम् |
मध्ये मध्यस्थ भागे सततविनमिता 
भावहारावली या लीला लोकस्य 
कोष्ठे सकलगुणयुता व्यक्तरुपैकनम्रा ||

विद्या विद्यैकशान्ता शमनशमकरी क्षेमकर्त्री वरास्या |
नित्यं पायात् पवित्रप्रणववरकरा कामपूर्व्वेश्वरी नः ||

इति हरः कवचं तनुकेस्थितं शमयति व्यतिक्रम्य शिवे यदि |
इह गृहाण यतस्व विमोक्षणे सहित एष विधिः सह चामरैः ||

इतीदं कवचं यस्तु कमाख्यायाः पठेद् बुधः |
सुकृत् तं तु महादेवी तनु व्रजति नित्यदा ||

नाधिव्याधिभयं तस्य न क्रव्याद्भ्यो भयं तथा |
नाग्नितो नापि तोयेभ्यो न रिपुभ्यो न राजतः ||

दीर्घायुर्बहुभोगी च पुत्रपौत्रसमन्वितः |
आवर्त्तयन् शतं देवी मन्दिरे मोदते परे ||

यथा तथा भवेद् बद्धः संग्रामेऽन्यत्र वा बुधः |
तत्क्षाणदेव मुक्तः स्यात् स्मरणात् कवचस्य तु ||

|| अस्तु ||

कामेश्वरी स्तुतिः Kameshvari Stuti

कामेश्वरी स्तुतिः  Kameshvari Stuti

कामेश्वरी स्तुतिः

युधिष्ठिर उवाच

नमस्ते परमेशानि ब्रह्मरुपे सनातनि |

सुरासुरजगद्वन्द्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || १ ||


न ते प्रभावं जानन्ति ब्रह्माद्यास्त्रिदशेश्वराः |

प्रसीद जगतामाद्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || २ ||


अनादिपरमा विद्या देहिनां देहधारिणी |

त्वमेवासि जगद्वन्द्ये कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ३ ||


त्वं बीजं सर्वभूतानां त्वं बुद्धिश्चेतना धृतिः |

त्वं प्रबोधश्च निद्रा च कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ४ ||


युधिष्ठिर बोले

ब्रह्मरूपा सनातनी परमेश्वरी आपको नमस्कार है |

देवताओं, असुरों और सम्पूर्ण विश्वद्वारा वन्दित कामेश्वरी |

आपको नमस्कार है |

 जगत्की आदिकारणभूता कामेश्वरी |

आपके प्रभावको ब्रह्मा आदि देवेश्वर भी नहीं जानते हैं, 

आप प्रसन्नहों,आपको नमस्कार है |

जगद्वन्द्ये,आप अनादि, परमा, विद्या और देहधारियोंकि देहको धारण करनेवाली हैं,

कामेश्वरी, आपको नमस्कार है |

आप सभी प्राणियोंकी बीजस्वरुपा हैं, आप ही बुद्धि, चेतना और धृति हैं, आप ही जागृति और निद्रा हैं, कामेश्वरी आपको नमस्कार है || १-४ || 


त्वामाराध्य महेशोऽपि कृत कृत्यं हि मन्यते |

आत्मानं परमात्माऽपि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ५ ||


दुर्वृत्तवृत्तसंहर्त्रि पापपुण्यफलप्रदे |

लोकानां तापसंहर्त्रि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ६ ||


त्वमेका सर्वलोकानां सृष्टिस्थित्यन्तकारिणी |

करालवदने कालि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ७ ||

आपको आराधना करके परमात्मा शिव भी अपने आपको कृतकृत्य मानते हैं, कामेश्वरी आपको नमस्कार है |

दुराचारियोंके दुराचरणका संहार करनेवाली, पाप पुण्यके फलको देनेवाली तथा सम्पूर्ण लोकोंके तापकानाश करनेवाली कामेश्वरी, आपको नमस्कार है |

आप ही एकमात्र समस्त लोकोंकी सृष्टि, स्थिति और विनाश करनेवाली हैं |

विकराल मुखवाली काली कामेश्वरी, आपको नमस्कार है || ५-७ || 


प्रपन्नार्तिहरे मातः सुप्रसन्नमुखाम्बुजे |

प्रसीद परमे पूर्णे कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ८ ||

त्वामाश्रयन्ति ये भक्त्या यान्ति चाश्रयतां तु ते |

जगतां त्त्रिजगद्धात्रि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || ९ ||

शुद्धज्ञानमये पूर्णे प्रकृतिः सृष्टिभाविनी |

त्वमेव मातर्विश्वेशि कामेश्वरि नमोऽस्तु ते || १० ||


शरणागतोंकी पीड़ाका नाश करनेवाली, 

कमलके समान सुन्दर और प्रसन्न मुखवाली माता,

 आप मुझपर प्रसन्न हों | परमे पूर्णे कामेश्वरी, आपको नमस्कार है |

जो भक्तिपूर्वक आपके शरणागत हैं, वे संसारको शरण देनेयोग्य हो जाते हैं |

तीनों लोकोंका पालन करनेवाली देवी कामेश्वरी, आपको नमस्कार है |

आप शुद्धज्ञानमयी, सृष्टिको उत्पन्न करनेवाली पूर्ण प्रकृति हैं,

आप ही विश्वकी माता हैं, कामेश्वरी आपको नमस्कार है || ८-१० ||


|| इति श्री महाभागवते महापुराणे युधिष्ठिरकृता कामेश्वरीस्तुतिः सम्पूर्णम् ||  

काली कवच Kali Kavach

 काली कवच Kali Kavach


काली कवच


भैरव्यु उवाच 

कालीपूजा श्रुता नाथ भावाश्च विविधः प्रभो |

इदानीं श्रोतुमिच्छामि कवचं पूर्व सुचितम् ||

त्वमेव शरणं नाथ त्राहि मां दुःखसङ्कटात् |

त्वमेव स्रष्टा पाता च संहर्ता च त्वमेव हि ||


भैरव उवाच

रहस्यं शृणु वक्ष्यामि भैरवि प्राणवल्लभे | 

श्रीजगन्मंगलं नाम कवचं मंत्रविग्रहम् |

पठित्वा धारयित्वा च त्रैलोक्यं मोहयेत् क्षणात् ||


नारायणोपि यद्धृत्वा नारी भूत्वा महेश्वरम् |

योगेशं क्षोभनमनयद्यद्धृत्वा च रधूद्धहः |

वरदृत्पान् जघानैव रावणादिनिशाचरान् ||


यस्य प्रसादादीशोऽहं त्रैलोक्यविजयी प्रभुः |

धनाधिपः कुबेरोऽपि सुरेशोऽभूच्छचीपतिः |

एवं हि कला देवाः सर्व्वसिद्धीश्वराः प्रिये ||


श्रीजगन्मङ्गलस्यास्य कवचस्य ऋषिश्शिवः |

छन्दोऽनुष्टुब्देवता च कालिका दक्षिणेरिता ||

जगतां मोहने दुष्टानिग्रहे भुक्तिमुक्तिषु |

योषिदाकर्षणे चैव विनियोगः प्रकीर्त्तितः ||


शिरो में कालिका पातु क्रीङ्कारैकाक्षरी परा |

क्रीं क्रीं क्रीं ललटञ्च कालिका खङ्ग धारिणी ||

हुँ हुँ पातु नेत्रयुग्मं ह्रीं ह्रीं पातु श्रुती मम |

दक्षिणा कालिका पातु घ्राणयुग्मं महेश्वरी ||

क्रीं क्रीं क्रीं रसनां पातु हुं हुं पातु कपोलकम् |

वदनं सकलं पातु ह्रीं ह्रीं स्वाहा स्वरुपिणी ||


द्वाविशत्यक्षरी स्कन्धौ महाविद्या सुखप्रदा |

खङ्गमुण्डधरा काली सर्वाङ्गमभितोऽवतु ||

क्रीं हुँ ह्रीं त्र्यक्षरी पातु चामुण्डा हृदयं मम |

ऐं हुं ओं ऐं स्तनद्वन्द्वं ह्रीं फट् स्वाहा ककुत्स्थलम् ||

अष्टक्षरी महाविद्या भुजौ पातु सकर्त्तृका |

क्रीं क्रीं हुं हुं ह्रीं ह्रीं करौ पातु षडक्षरी मम ||


क्रीं नाभिं मध्येदेशञ्च दक्षिणा कालिकाऽवतु |

क्रीं स्वाहा पातु पृष्ठन्तु कालिका सा दशाक्षरी ||

ह्रीं क्रीं दक्षिणे कालिके ह्रुँ ह्रीं पातु कटीद्वयम् |

काली दशाक्षरी विद्या स्वाहा पातूरुयुग्मकम् |

ॐ ह्राँ क्रीं मे स्वाहा पातु कालिका जानुनी मम ||

कालीह्रन्नाम विद्येयं चतुर्वर्गफलप्रदा |


क्रीं ह्रीं ह्रीं पातु गुल्फं दक्षिणे कालिकेऽवतु |

क्रीं ह्रूँ ह्रीं स्वाहा पदं पातु चतुर्द्दशाक्षरी मम ||

खङ्गमुन्डधरा काली वरदा भयहारिणी |

विद्याभिः सकलाभिः सा सर्वाङ्गमभितोऽवतु ||

काली कपालिनी कुल्वा कुरुकुल्ला विराधिनी |

विप्रचित्ता तथोग्रोग्रप्रभा दिप्ता घनत्विषः ||


नीलाघना बालिका च माता मुद्रामिता च माम् |

एताः सर्वाः खङ्गधरा मुण्डमालाविभूषिताः ||

रक्षन्तु मां दिक्षु देवी ब्राह्मी नारायणी तथा |

माहेश्वरी च चामुण्डा कौमारी चापराजिता ||

वाराही नारसिंही च सर्वाश्चामितभूषणाः |

रक्षन्तु स्वायुधैर्दिक्षु मां विदिक्षु यथा तथा ||


इत्येवं कथितं दिव्यं कवचं परमाद्भुतम् |

श्री जगन्मंगलं नाम महामन्त्रौघविग्रहम् ||

त्रैलोक्याकर्षणं ब्रह्मकवचं मन्मुखोदितम् |

गुरुपूजां विधायाथ गृह्णीयात् कवचं ततः |

कवचं त्रिःसकृद्वापि यावज्जीवञ्च वा पुनः ||


एतच्छातार्द्धभावृत्य त्रैलोक्यविजयी भवेत् |

त्रैलोक्यं क्षोभयत्येव कवचस्य प्रसादतः ||

महाकविर्भवेन्मासात्सर्व सिद्धीश्वरो भवेत् ||


पुष्पाञ्जलीन् कालिकायै मुलेनैव पठेत् सकृत् |

शतवर्षसहस्त्राणां पूजायाः फलमाप्नुयात् ||


भूर्ज्जेर्विलिखितञ्जैव स्वर्णस्थं धारयेयदि |

शिखायां दक्षिणे बाहौ कण्ठे वा धारयेद्यदि ||

त्रैलोक्यं मोहयेत् क्रोधात्त्रैलोक्यं चूर्णयेत्क्षणात् |

बह्वपत्या जीववत्सा भवत्येव न संशयः ||


न देयं परशिष्येभ्यो ह्यभक्तेभ्यो विशेषतः |

शिष्येभ्यो भक्तियुक्तेभ्यश्चान्यथा मृत्युमाप्नुयात् ||

स्पर्द्धामुद्धूय कमला वाग्देवी मन्दिरे मुखे |

पौत्रान्तस्थैर्य्यमास्थाय निवसत्येव निश्चितम् ||


इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेत्कालिदक्षिणाम् |

शतलक्षं प्रजप्यापि तस्य विद्या न सिध्यति |

स शस्त्रघातमाप्नोति सोऽचिरान्मृत्युमाप्नुयात् ||


|| अस्तु |

काली स्तोत्र Kali Stotra

 काली स्तोत्र Kali Stotra


काली स्तोत्र 

कर्पूरं मध्यमान्त्यस्वरपररहितं सेन्दुवामाक्षियुक्तं |

बीजन्तें मातरेतत्रिपुरहरवधु त्रिःकृतं ये जपन्ति ||

तेषा गद्यानि च मुखकुहरा दुल्लसन्त्येव वाचः |

स्वच्छन्दं ध्वान्तधाराधररुचिरुचिरे सर्व्वसिद्धि गतानाम् ||


ईशानः सेन्दुवामश्रवणपरिगतं बीजमन्यन्महेशि

द्वन्द्वं ते मन्दचेता यदि जपति जनो वारमेकं कदाचित् |

जित्वा वा वाचामधीशं धनदमपि चिरं मोहयन्नम्बुजाक्षी

वृन्दं चन्द्रार्द्धचूडे प्रभवति स महाघोरबाणावतंसे ||


इशौ वैश्वानरस्थः शशधर विलसद्वामनेत्रेण युक्तो बीजं

तेद्वन्द्वमन्य द्विगलितचिकुरे कालिके ये जपन्ति |

द्वेष्टारं घ्नन्ति ते च त्रिभुवनमपि ते वश्यभावं नयन्ति

सृक्कद्वन्द्वास्त्रधाराद्वयधरवदने दक्षिणे कालिकेति ||


ऊर्द्ध वामे कृपाणं करतलकमले छिन्नमुण्डं तथाधः

सव्ये चाभिर्वरञ्च त्रिजगदघहरे दक्षिणे कालिकेति |

जप्त्वैतन्नामवर्ण तव मनुविभवं भावयन्त्येतदम्ब

तेषामष्टौ करस्थाः प्रकटितवदने सिद्धयस्त्र्यम्बकस्य ||


वर्गाद्यं वह्रिसंस्थं विधुरति ललितं तत्रयं कूर्च्चयुग्मं

लज्जाद्वन्द्वञ्च पश्चाव्स्मितमुखि तदधष्टद्वयं योजयित्वा |

मातर्ये ये जपन्ति स्मरहरमहिले भावयन्ते स्वरुपं

ते लक्ष्मीलास्यलीलाकमलदलदृशःकमामरुपा भवन्ति ||


प्रत्येकं वा त्रयंवा द्वयमपि च परं बीजमत्यन्तगुह्यं

त्वन्नाम्ना योजयित्वा सकलमपि सदा भाववन्तो जपन्ति |

तेषां नेत्रारविन्दे विहरति कमला वक्रशुभ्राशुबिम्बे 

वाग्देवी दिव्यमुण्डस्त्रगतिशयलसत्कण्ठपीनस्तनढ्ये ||


गतासूनां बाहुप्रकरकृतक्ञ्चीपरिसन्नितम्बां 

दिग्वस्त्रां त्रिभुवनविधात्रीं त्रिनयनाम् श्मशानस्थे |

तल्पे शवहृदि महाकालसुरत प्रसक्तां त्वां 

ध्यायञ्जजननि जडचेता अपि कविः ||


शिवरभिर्घोराभिः शवनिवसमुण्डास्थिनिकरैः परं 

संकीर्णायां प्रकटितचितायां हरवधूम् ||

प्रविष्टां संतुष्टामुपरि सुरतेनातियुवतीं सदा त्वां

ध्यायन्ति क्वचिदपि न तेषां परिभवः ||


वदामस्ते किं वा जननि वयमुच्चैर्जडधियो ने धाता

नापीशो हरिपरि न ते वेत्ति परमम् ||

तथापि त्वद्भक्तिर्मुखरयति चास्माकमसिते

तदेतत्क्षन्तव्यं न खलु शिशुरोषः समुचितः ||


समन्तादापीनस्तनजघनधृग्यौवनवती

रतासक्तो नक्तं यदि जपति भक्तस्तवममुम् ||

विवासास्त्वां ध्यायन् गलितचिकुरस्तस्य वशगाः

समस्ताः सिद्धोघा भुवि चिरतरं जीवति कविः ||


समः सुस्थीभूतो जपति विपरीतो यदि यदा

विचिन्त्य त्वां ध्यायन्नतिशयमहाकालसुरताम् ||

तदा सत्य क्षोणीतलविहरमाणस्य विदुषः

कराम्भोजे वश्याःस्मरहरवधु सिद्धि निवहाः ||


प्रसूते संसारं जननि जगतीं पालयति च

समस्तं क्षित्यादि प्रलयसमये संहरति च ||

अतस्त्वां धातापि त्रिभुवनपतिः श्रीपतिरति

महेशोऽपि प्रायः सकलमपि किं स्तौमि भवतिम् ||


अनेके सेवन्ते भवदधिकगीर्व्वाणनिवहान्

विमूढास्ते मातः किमपि न हि जानन्ति परमम् ||

समाराध्यामाद्यां हरिहरविरिञ्चादिविबुधैः

प्रसक्तऽस्मि स्वैरं रतिरसमहानन्दनिरताम् ||


धरित्री कीलालं शुचिरपि समीरोऽपि गगनं

त्वमेका कल्याणी गिरिशरमणी कालि सकलम् ||

स्तुतिः का ते मातस्तव करुणया मामगतिकं

प्रसन्ना त्वं भूया भावमनु न भूयान्मम जनुः ||


श्मशानस्थस्स्वस्थो गलितचिकुरो दिक्पटधरः

सहस्त्रन्त्वर्काणां निजगलितवीर्य्येण कुसुमम् ||

जपंस्त्वत्प्रत्येकममुमपि तव ध्याननिरतो

महाकालि स्वैरं स भवति धरित्रीपरिवृढः ||


गृहे सम्माज्जर्यन्या परिगलितवीर्य्य हि चिकुरं

समूलं मध्याह्ने वितरति चितायां कुजदिने || 

समुच्चायर्य्य प्रेम्या जपमनु सकृत कालि सततं

गजारुढो याति क्षितपरिवृढः सत्कविवरः ||


सुपुष्पैराकीर्ण कुसुमधनुषो मन्दिर महो

पुरो ध्यायन् यदि जपति भक्तस्स्तवममुम् ||

स गन्धर्व्वश्रेणीपतिरिव कवित्वामृत नदी

नदीनः पर्य्यन्ते परमपदलीनः प्रभवति ||


त्रिपञ्जारे पीठे शवशिववहृदि स्मेरवदनां

महाकालेनोच्चैर्मदनरसलावण्यनिरताम् ||

महासक्तो नक्तं स्वयमपि रतानन्दनिरतो

जनो यो ध्यायेत्त्वामयि जननि स स्यात्स्मरहरः ||


सलोमास्थि स्वैरं पललमपि मार्ज्जारमसिते

परञ्चौष्ट्रं मेषं नरमहिषयोश्छा गमपि वा ||

बलिन्ते पूजायामपि वितरतां मर्त्यवसतां

सतां सिद्धिः सर्व्वा प्रतिपदमपूर्व्वा प्रभवति ||


वशा लक्षं मन्त्रं प्रजापति हविष्याशनरतो

दिवा मातर्यष्मच्चरणयुगलध्याननिपुणः ||

परं नक्तं नग्नो निधुवनविनोदने च मनुं

जनो लक्षं स स्यात्स्मरहरसमानः क्षितितले ||


इदं स्तोत्रं मातस्तवमनुसमुद्धारणजपः

स्वरुपाख्य पादाम्बुजयुगलपूजाविधियुतम्

निशार्द्धं वा पूजासमयमधि वा यस्तु पठति

प्रलापे तस्यापि प्रसरति कावित्वामृतरसः ||


कुरंगाक्षीवृन्दं तमनुसरति प्रेमतरलं

वशस्तस्य क्षोणीपतिरति कुबेरप्रतिनिधिः ||

रिपुः कारागारं कलयति च तत्केलिकलया 

चिरं जीवन्मुक्तः स भवति च भक्तः प्रतिजनुः ||


|| अस्तु || 

Saturday, November 2, 2024

64 योगिनी जन्म कुंडली के ग्रह नक्षत्र ठीक करने का शाबर मंत्र

६४ योगिनी जन्म कुंडली के ग्रह नक्षत्र ठीक करने का शाबर मंत्र


यह मंत्र विशेष से जन्मकुंडली के ग्रह ठीक किये जाते हैं |

नित्य १०८ बार मंत्र जप कर लेने से ग्रह ठीक हो जाते है,

बाकि सारा विधान 64 योगिनी साधना वाला कर लें |

मंत्र 

चौसट जोगन नाचे गावे,

माई की करे सेवा,

माई प्रसन मुदित जोगिनी,

बदल दे तोरी टेवा |



अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र Ardhnarinatesvar Stotra

 अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र | Ardhnarinatesvar Stotra |


अर्धनारीनटेश्वर स्तोत्र


चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय | 

धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय || १ || 


कस्तूरिकाकुङ्कुमचर्चितायै चितारजः पुञ्चविचर्चिताय | 

कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय || २ || 


चलत्कणत्कङ्कणनूपुरायै पदाब्जराजत्फणिनूपुराय | 

हेमाङ्गदायै भुजगाङ्गदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय || ३ || 


विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपङ्केरुहलोचनाय | 

समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय || ४ || 


मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालाङ्कितकन्धराय | 

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय || ५ || 


अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय | 

निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय || ६ || 


प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्डवाय | 

जगज्जनन्यैजगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय || ७ || 


प्रदीप्तरत्नोज्ज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय | 

शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय || ८ || 


एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी | 

प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धिः || ९ || 


|| इति अर्धनारिनटेश्वर स्तोत्र सम्पूर्णः ||

पितृ गीता Pitru Gita

 पितृ गीता | Pitru Gita |


पितृ गीता

चित्तं च वित्तं च नृणां विशुद्धं शस्तश्च कालः कथितो विधिश्च | 

पात्रं यथोक्तं परमा च भक्तिः नृणां प्रयच्छन्ति अभिवाञ्छितानि || 


पितृगीताः तथैवात्र श्लोका तान् श्रृणु सत्तम | 

श्रुत्वा तथैव भविता भाव्यं तत्र विधात्मना || 


अपि धन्यः कुले जायात् अस्माकं मतिमान् नरः | 

अकुर्वन् वित्तशाठयं यः पिण्डान् यो निर्वपिष्यति || 


रत्नवस्त्र महायानं सर्वं भोगादिकं वसु | 

विभवे सति विप्रेभ्यो अस्मान् उद्दिश्य दास्यति || 


अन्नेन वा यथाशक्त्या कालेऽस्मिन् भक्तिनम्रधीः | 

भोजयिष्यति विप्राग्य्रान् तन्मात्रविभवो नरः || 


असमर्थः अन्नदानस्य वन्यशाकं स्वशक्तितः | 

प्रदास्यति द्विजाग्रेभ्यः स्वल्पां यो वापि दक्षिणाम् || 


तत्रापि असामर्थ्ययुतः कराग्राग्र स्थितान् तिलान् | 

प्रणम्य द्विजमुख्याय कस्मैचिद् द्विज दास्यति || 


तिलैः सप्ताष्टभिर्वापि समवेतां जलाञ्जलिम् | 

भक्तिनम्रः समुद्दिश्य अप्यस्माकं संप्रदास्यति || 


यतः कुतश्चित् संप्राप्य गोभ्यो वापि गवाह्निकम् | 

अभावे प्रिणयत्यस्मान् भक्त्या युक्तः प्रदास्यति || 


सर्वाभावे वनं गत्वा कक्षामूलप्रदर्शकः | 

सूर्यादि लोकपालानां इदं उच्चैः पठिष्यति || 


न मेऽस्ति वित्तं न धनं न चान्यत् श्राद्धस्य योग्यं स्वपितृन् नतोऽस्मि | 

तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ भुजौ ततौ वर्त्मनि मारुतस्य || 


इत्येतत् पितृभिर्गीतं भावाभाव प्रयोजनम् | 

कृतं तेन भवेत् श्राद्धं य एवं कुरुते द्विज || 


|| पितृ गीता || 

पितृ गाथा | पितृ स्तोत्र Pitru gatha

 पितृ गाथा | पितृ स्तोत्र | Pitru gatha |


पितृ गाथा


इमाश्च पितरो देवा गाथा गायन्ति योगिनः | 

पुरतो यदुसिंहस्य ह्यमोघस्य तपस्विनः || 


अपि नः स्वकुले कश्चिद् विष्णुभक्तो भविष्यति | 

हरिमन्दिरकर्ता यो भविष्यति शुचिव्रतः || 


अपि नः संततौ जायेद् विष्णवालय विलेपनः | 

संमार्जनं व धर्मात्मा करिष्यति च भक्तितः || 


अपि नः संततौ जातो ध्वजं केशवमंदिरे | 

दास्यते देवदेवाय दिपं पुष्पानुलेपनम् || 


अपि नः स्वकुले भूयाद् एकादश्यां हि यो नरः | 

करिष्यति उपवासं च सर्वपातकहानीदम् || 


महापातक युक्तो वा पातकी चोपपातकी | 

विमुक्तपापो भवति विष्ण्वावसथ चित्रकृत् || 


|| इति श्री वामनपुराणे श्री पितृ गाथा सम्पूर्णा || 

स्वधा स्तोत्र Swadha stotram

 स्वधा स्तोत्र | Swadha stotram |


स्वधा स्तोत्र 


नारद उवाच 


स्वाधापूजा विधानं च ध्यानं स्तोत्रं महामुने |


श्रोतुमिच्छामि यत्नेन वद वेदविदां वर || १ ||




नारायण उवाच -


ध्यानं च स्तवनं ब्रह्मन् वेदोक्तं सर्वमंगलम् |


सर्वं जानासि च कथं ज्ञातुमिच्छसि वृद्धये || २ || 


शरत्कृष्ण त्रयोदश्यां मघायां श्राद्धवासरे |


स्वधां संपूज्य यत्नेन ततः श्राद्धं समाचरेत् || ३ ||


स्वधां नाभ्यर्च्य यो विप्रः श्राद्धं कुर्यात् अहं मतिः |


न भवेत् फलपाक् सत्यं श्राद्धस्य तर्पणस्य च || ४ ||


ब्रह्मणो मानसीं कन्यां शश्वत् सुस्थिर यौवनाम् |


पूज्या वै पितृदेवानां श्राद्धानां फलदां भजे || ५ ||


इति ध्यात्वा शिलायां वा ह्यथवा मंगले घटे |


दद्यात् पाद्यादिकं तस्मै मूलेनेति श्रुतौ श्रुतम् || ६ ||


ॐ ह्रीं श्रीं क्लिं स्वधादेव्यै स्वाहेति च महामुने |


समुच्चार्य च संपूज्य स्तुत्वा तां प्रणमेद् द्विजः || ७ ||


स्तोत्रं श्रुणु मुनिश्रेष्ठ ब्रह्मपुत्र विशारद |


सर्ववांछाप्रदं नृणां ब्रह्मणा यत्कृतं पुरा || ८ ||




श्री नारायण उवाच


स्वधोच्चारण मात्रेण तीर्थस्नायी भवेन्नरः |


मुच्यते सर्वपापेभ्यो वाजपेयफलं लभेत् || ९ ||


स्वधा स्वधा स्वधेत्येवं यदि वारत्रयं स्मरेत् |


श्राद्धस्य फलमाप्नोति बलेश्च तर्पणस्य च || १० ||


श्राद्धकाले स्वधास्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः |


स लभेत् श्राद्धसंभूतं फलमेव न संशयः || ११ ||


स्वधा स्वधा स्वधे त्येवं त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः |


प्रियां विनीतां स लभेत् साध्वीं पुत्र गुणान्विताम्  || १२ ||


पितृणां प्राणतुल्या त्वं द्विजजीवनरूपिणी |


श्राद्धाधिष्ठातृदेवी च श्राद्धादीनां फलप्रदां || १३ ||


नित्यां त्वं सत्यरुपासि पुण्यरूपासि सुव्रते |


आविर्भाव तिरोभावौ सृष्टो च प्रलये तव || १४ || 


ॐ स्वस्ति च नमः स्वाहा स्वधा त्वं दक्षिणा तथा |


निरुपिताः चतुर्वेदैः प्रशस्ताः कर्मिणां पुनः || १५ ||


कर्मपूर्त्यर्थमेवैता ईश्वरेण विनिर्मिताः |


ईत्येवमुक्त्वा स ब्रह्मा ब्रह्मलोके स्वसंसदि || १६ ||


तस्थौ च सहसा सद्यः स्वधा साऽविर्बभूव ह |


तदा पितृभ्यः प्रददौ तामेव कमलाननाम् || १७ ||


तां संप्राप्य ययुस्ते च पितरश्च प्रहर्षिताः |


स्वधास्तोत्रमिदं पुण्यं यः श्रृणोति समाहितः | 


स स्नातः सर्वतीर्थेषु वांछितं फलमाप्नुयात् || 




|| स्वधा स्तोत्रम सम्पूर्णं || 

मातृका स्तोत्र Matrika stotram

 मातृका स्तोत्र | Matrika stotram |

मातृका स्तोत्र

गणेश ग्रहनक्षत्र  योगिनीं राशिरुपिणीम् |

देवीं मन्त्रमयीं नौमि मातृकां पीठरूपिणीम् || १ ||


प्रणमामि महादेवीं मातृकां परमेश्वरीम् |

कालहल्लोहलोल्लोलकतना नाशन् करिणीम् || २ ||


यद्क्षरैक मात्रेऽपि संसिद्धे स्पद्धते नरः |

रवितातार्क्ष्येन्द्र कन्दर्पशङ्करानलविष्णुभिः || ३ ||


यदक्षर शशि ज्योत्स्त्रा मण्डितं भुवनत्रयम् |

वन्दे सर्वेश्वरी देवीं महाश्रीसिद्ध मातृकाम् || ४ ||


यदक्षर महासूत्र प्रोतमेतज्जगत् त्रयम् |

ब्रह्मोण्डादि कटाहान्तं तां वन्दे सिद्धमातृकाम् || ५ ||


यदेकादशमाधारं बीजं कोणत्रयोद्भवम् |

ब्रह्माण्डादि कटाहान्तं जगदद्यापि दृश्यते || ६ ||


अकचादि तटोन्नद्ध पयसासर वर्गिणीम् |

ज्येष्ठाङ्गवाहुहृत् पृष्ठकटिपाद निवासिनीम् || ७ ||


तमिकाक्षरोद्धारां सारात्सारा परात्परम् |

प्रणयामि महादेवीं परमानन्दरुपिणीम् || ८ ||


अद्यापि यस्या जानन्ति न मनागपि वेवताः |

केयं कस्मात् क्केनेतिसरूपारूप भावनाम् || ९ ||


वन्दे तामहमक्षय्य मातृकाक्षररुपिणीम् |

देवीं कुल कलोल्लोल प्रोल् लसन्तीं परांशिवाम् || १० ||


वर्गानुक्रम योगेन यस्या मात्राष्टकं स्थितम् |

वन्दे तामष्टवर्गोत्थ महासिद्धाष्टकेश्वरीम् || ११ ||


कामपूर्णज काराद्य श्रीपीठान्तर्निवासिनीम् |

चतुराज्ञा कोशभूतां नौमि श्रीत्रिपुरामहम् || १२ ||

 

|| फलश्रुति ||

इति द्वादशभिश्लोकेः  स्तवनं सर्वसिद्धिकृत् |

देव्यास्त्व खण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः || १३ ||


तोय तत्त्वमयी व्याप्ति रितिसम्यक् प्रदर्शिता |

अस्यानिः फालनाञ्चिते तत्तत्वं स्वात्मसात्कृता || १४ ||


|| अस्तु ||

पुराणोक्त पुरुषसूक्त Puranokt Purush Suktam

पुराणोक्त पुरुषसूक्त | Puranokt Purush Suktam |

पुराणोक्त पुरुषसूक्त

भगवान् नारायण का पुराणोक्त पुरुषसूक्त जैसे

 वैदिक पुरुषसूक्त है वैसे ही पुराणोक्त पुरुषसूक्त है |

इस सूक्त के नित्य पाठ करने से नारायण की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है |

नित्य इस सूक्त से भगवान् विष्णु के ऊपर अभिषेक भी कर सकते है |

शालिग्राम भगवान् के ऊपर इससे अभिषेक करने से पूर्ण कृपा प्राप्त होती है |


ह्रीं जितं ते पुण्डरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन |

नमस्तेस्तु हृषिकेश महापुरुषपूर्वज || १ ||


नमो हिरण्यगर्भाय प्रधानाव्यक्तरूपिणे |

ह्रीं नमो वासुदेवाय शुद्धज्ञानस्वरूपिणे || २ ||


देवानां दानवानां च सामान्यमसि दैवतम् |

सर्वदा चरणद्वन्द्वं व्रजामि शरणं तव || ३ ||


एकस्त्वमसि लोकस्य स्त्रष्टा संहारकस्तथा |

अव्यक्तश्चानुमन्ता च गुणमायासमावृतः || ४ ||


संसारसागरं घोरमनन्तं क्लेशभाजनम् |

त्वामेव शरणं प्राप्य निस्तरन्ति मनीषिणः || ५ ||


न ते रूपं न चाकारो नायुधानि चास्पदम् |

तथापि पुरुषाकारो भक्तानां त्वं प्रकाशसे || ६ ||

 

नैव किञ्चित्परोक्षं ते प्रत्यक्षोऽसि न कस्यचित् |

नैव किञ्चिदसिद्धं ते न च सिद्धोऽसि कस्यचित् |  || ७ ||

 

कार्याणां कारणं पूर्वं वचसां वाच्यमुत्तमम् |

योगिनां परमासिद्धिः परमं ते पदं विदुः || ८ ||

 

अहं भीतोऽस्मि देवेश संसारेऽस्मिन्भयावहे |

त्राहि मां पुण्डरीकाक्ष न जाने शरणं परम् || ९ ||

 

कालेश्वपि च सर्वेषु दिक्षु सर्वासु चाच्युत |

शरीरे च गृहे चापि वर्तते में महद्भयम् || १० ||

 

त्वत्पादकमलादन्यन्न में जन्मान्तरेष्वपि |

निमित्तं कुशलस्यास्ति येन गच्छामि सद्गतिम् || ११ ||

 

विज्ञानं यदिदं प्राप्तं यदिदं ज्ञानमर्जितम् |

जन्मान्तरेऽपि में देव माभूदस्य परिक्षयः || १२ ||


दुर्गतावपि जातायां त्वं गतिस्त्वं मतिर्मम |

यदि नाथं च(न) विन्देयं तावताऽस्मि कृती सदा || १३ ||

 

अकामकलुषं चित्तं मम ते पादयोः स्थितम् |

कामये विष्णुपादौ तु सर्वजन्मसु केवलम् || १४ ||

 

पुरुषस्य हरेः सूक्तं स्वर्ग्यं धन्यं यज्ञस्करम् |

आत्मज्ञानमिदं पुण्यं योगज्ञानमिदं परम् || १५ ||


इत्येवमनया स्तुत्या स्तुत्वा देवं दिने दिने |

किंकरोऽस्मीति चात्मानं देवायैव निवेदयेत् || १६ ||


फलाहारो जपेन्मासं पश्यन्नात्मानमात्मनि |

फलानि भुक्त्वोपवसेन्मासमद्भिश्च वर्तयेत् || १७ ||


अरण्ये निवसेन्नित्यं जपन्निदमृषिः सदा |

ऋग्भिस्त्रिवषणं काले यजेदप्सु समाहितः || १८ ||


आदित्यमुपतिष्ठेत सूक्तेनानेन नित्यशः |

आज्याहुतेनैव हुत्वा चिन्तयेद्ऋषिभिस्तथा || १९ ||


ऊर्ध्वं मासात्फलाहारस्त्रिभिर्वषैर्जपेदिदम् |

तद्भत्त्कस्तन्मना युक्तो दशवर्षाण्यनन्यभाक् || २० ||


साक्षात्पश्यति तं देवं नारायणमनामयम् |

ग्राह्यमत्यन्तयत्नेन स्त्रष्टारं जगतोऽव्ययम् || २१ ||


अथवा साधमानोऽपि भक्तिं न परिहापयेत् |

भक्तानुकम्पी भगवाञ्जायते पुरुषोत्तमः || २२ ||


येन येन च कामेन जपेत् प्रयतः सदा |

स स कामः समृद्धः स्याच्छ्र६धानस्य कुर्वतः || २३ ||

 

होमं वाऽप्यथवा जाप्यमुपहारमनुत्तमम् |

कुर्वीत येन कामेन तत्सिद्धिमवधारयेत् || २४ ||


|| इति श्रीपुराणोक्त पुरुषसूक्तम् ||


बगलामुखी शतनाम स्तोत्र Baglamukhi Shatnam Stotra

 बगलामुखी शतनाम स्तोत्र | Baglamukhi Shatnam Stotra |


बगलामुखी शतनाम स्तोत्र


नारद उवाच 


भगवन् ! देवदेवेश ! सृष्टि - स्थिति - लयात्मक ! | 


शतमष्टोत्तरं नाम्नां बगलाया वदाऽधुना || १ ||   


नारदजी बोले - हे देवदेवेश भगवान् | 


सृष्टि - स्थिति तथा प्रलय के कारणभूत आप मुझे अष्टोतर शतनाम बगलामुखी स्तोत्रपाठ का ज्ञान प्रदान करें || १ || 




श्रीभगवानुवाच


शृणु - वत्स ! प्रवक्ष्यामि नाम्नामष्टोत्तरं शतभ् |


पीताम्बर्या महादेव्याः स्तोत्रं पापप्रणाशनम् || २ ||




यस्य प्रपठनात् सद्यो वादी मूको भवेत् क्षणात् |


रिपूणां स्तम्भनं याति सत्यं सत्यं वदाम्यहम् || ३ ||




श्री भगवान् ने कहा - हे वत्स ! सुनो |


मैं तुम्हें पीताम्बरा महादेवी का पापविनाशक अष्टोतर शतनाम स्तोत्र बतलाता हूँ |


उस स्तोत्र के पाठ करने से मूक प्राणी ( गूँगा मनुष्य ) की अवरुद्ध वाणी शीघ्र ही खुल जाती है तथा उसके शत्रुओं की गति भी रुक जाती है |


यह बात मैं तुम से नितान्त सत्य कहता हूँ || २ - ३ ||




विनियोगः -


ॐ अस्य श्रीपीताम्बर्यष्टोत्तरशतनामस्तोत्रस्य  सदाशिव ऋषिरनुष्टुप्छन्दः,


श्रीपाताम्बरी देवता श्रीपीताम्बरीप्रीतये जपे विनियोगः |


इस पीताम्बरा शतनाम स्तोत्र के सदाशिव ऋषि, अनुष्टुप्छन्द तथा 


देवता पीताम्बरा है |


 पीताम्बरा के प्रीत्यर्थ इसका विनियोग किया जा रहा है |


 उक्त विनियोग मन्त्र को पढ़कर हाथ में लिये हुए जल को


भूमि पर छोड़ देना चाहिए |




ॐ बगला विष्णु - वनिताविष्णु - शङ्कर - भामिनि |


बहुला वेदमाता च महाविष्णुप्रसूरपि || १ ||




महामत्स्या महाकूर्मा महावाराहरुपिणी | 


नरसिंहप्रिया रम्या वामना वटुरूपिणी || २ ||




जामदग्न्यस्वरूपा च रामा रामप्रपूजिता |


कृष्णा कपर्दिनि कृत्या कलहा कलहकारिणी || ३ ||




बुद्धिरूपा बुद्धभार्या बौद्ध - पाखण्ड - खण्डिनी |


कल्किरूपा कलिहरा कलिदुर्गतिनाशिनी || ४ ||


बगला,विष्णुवनिता,विष्णुशंकरभामिनी, बहुला, वेदमाता, महाविष्णु-प्रसू, महामत्स्या, महाकर्मा,महावाराहरुपिणी,नारसिहप्रिया, रम्या, वामना, वटरुपिणी, जागदग्न्यस्वरूपा, रामा, रामप्रपूजिता, कृष्णा, कपर्दिनि, कृत्या, कलहा, कलहकारिणी, बुद्धिरुपा, बुद्धिभार्या, बौद्धपाखण्डखण्डिनी, कल्किरुपा, कलिहरा तथा कलिदुर्गतिनाशिनी || १ - ४ ||




कोटिसूर्यप्रतीकाशा कोटि - कन्दर्प - मोहिनी |


केवला कठिना काली कलाकैवल्यदायिनी || ५ ||




केशवी केशवाराध्या किशोरी केशवस्तुता |


रुद्ररूपा रुद्रमूर्ती रुद्राणी रुद्रदेवता || ६ ||




नक्षत्ररूपा नक्षत्रा नक्षत्रेश - प्रपूजिता |


नक्षत्रेश - प्रिया नित्या नक्षत्रपति -   वन्दिता || ७ ||




नागिनी नागजननी नागराज - प्रवन्दिता |


नागेश्वरी नागकन्या नागरी च नगात्मजा || ८ ||


कोटिसूर्यप्रतिकाशा, कोटिकन्दर्पमोहिनी, केवला, कठिना, काली, कला, कैवल्यदायिनी, केशवी, केशवाराध्वा, किशोरी, केशवास्तुता, रुद्ररुपा, रुद्रमूर्ति, रुद्राणी,रुद्रदेवता, नक्षत्ररुपा, नक्षत्रा, नक्षत्रेशप्रपूजिता ( चंद्रमा द्वारा पूजित ), नक्षत्रेशप्रिया, नित्या, नक्षत्रपतिवंदिता, नागिनी, नागजननी, नागराजप्रवन्दिता, नागेश्वरी, नागकन्या, नागरी तथा नगात्मजा || ५ - ८ ||




नगाधिराज - तनया नगराज - प्रपूजिता |


नवीना नीरदा पिता श्यामा सौन्दर्यकारिणी || ९ ||




रक्ता नीला घना शुभ्रा श्वेता सौभाग्यदायिनी |


सुन्दरी सौभगा सौम्या स्वर्णाभा स्वगतिप्रदा || १० ||




रिपुत्रासकरी रेखा शत्रुसंहारकारिणी 


भामिनी च तथा माया स्तम्भिनी मोहिनीशुभा || ११ ||




राग - द्वेषकरी  रात्री  रौरव - ध्वंसकारिणी  |


यक्षिणी सिद्धनिवहा सिद्धेशा सिद्धिरूपिणी || १२ ||


नगाधिराजतनया, नगराजप्रपूजिता, नवीना, निरदा, पीता, श्यामा, सौन्दर्यकारिणी, रक्ता, नीला,धना, शुभ्रा, श्वेता,सौभाग्यदायिनी, सुन्दरी, सौभगा, सौम्या,स्वर्णाभा, स्वगतिप्रदा, रिपुत्रासकरी, रेखा, शत्रुसंहारकारिणी, भामिनी, माया, स्तंभिनी, मोहिनी, शुभा, राग-द्वेषकरी, रात्री, रौरवध्वंसकारिणी, याक्षिणी, सिद्धनिवहा, सिद्धेशा तथा सिद्धिरुपिणी || ९ - १२ || 




लङ्कापति - ध्वंसकरी लङ्केशरिपु - वन्दिता |


लङ्कानाथ - कुलहरा महारावणहारिणी || १३ ||




देव - दानव - सिद्धौघ - पूजिता मरमेश्वरी |


पराणुरूपा परमा परतन्त्रविनाशिनी || १४ ||




वरदा वरदाराध्या वरदान परायणा |


वरदेशप्रिया वीरा वीरभूषण भूषिता || १५ ||




वसुदा बहुदा वाणी ब्रह्मरूपा वरानना |


बलदा पीतवसना पीतभूषण - भूषिता || १६ ||


लंकापतिध्वंसकरी, लंकेशरिपुवन्दिता, लंकनाथा, कुलहरा, महारावणहरिणी, देव-दानव-सिद्धौधपूजिता, परमेश्वरी, पराणुरुपा, परमा, परतन्त्रविनाशिनी, वरदा, वरदाराध्या, वरदानपरायणा, वरदेशप्रिया, वीरा, वीरभूषण-भूषिता, वसुदा, बहुदा, वाणी, ब्रह्मरुपा, वरानना, बलदा, पीतवसना तथा पीत-भूषण-भूषिता || १३ - १६ ||


पीतपुष्प - प्रिया पितहारा पीतस्वरूपिणी |


इति ते कथितं विप्र ! नाम्नामष्टोत्तरं शतम् || १७ ||


यः पठेद्   पाठयेद् वाऽपि शृणुयाद् वासमाहितः |


तस्य शत्रुः क्षयं सद्यो याति नैवात्र संशयः || १८ ||




पितपुष्पप्रिया,पीतहारा तथा पीतस्वरुपिणी |


 हे विप्र ! मैंने तुम्हें पीताम्बरा का अष्टोत्तरशतनाम बता दिया |


 जो मनुष्य स्थिरचित्त से इसका पठन-पाठन करते या सुनते हैं उनके शत्रु शीघ्र ही विनष्ट हो जाते हैं |


इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं करना चाहिए || १७ - १८ ||


प्रभातकाले प्रयतो मनुष्यः पठेत् सुभक्तया परिचिन्त्य पीताम् | 


द्रुतं भवेत् तस्य समस्त - वृद्धि - र्विनाशमायाति च तस्य शत्रुः || १९ || 


जो व्यक्ति प्रातःकाल संयतचित्त होकर पीताम्बरा बगलामुखी का ध्यान करके भक्तिभाव से इस स्तोत्र का पाठ करता है 


उसकी बुद्धि तत्क्षण ही संयमित हो जाती है तथा उसके सम्पूर्ण शत्रुओं का विनाश हो जाता है || १९ ||




|| अस्तु ||

स्वाहा स्तोत्रम Swaha Stotram

स्वाहा स्तोत्रम | Swaha Stotram |

स्वाहा स्तोत्रम

स्वाहा देवी के यह सोलह नाम बहुत चमत्कारिक है 

जिनके स्मरण से सरवकुछ समर्थ हो जाता है | 

संतान प्राप्ति के लिए यह रामबाण है | 

इसका पाठ किसी भी दिन किया जा सकता है | 

अग्निनारायण की दो पत्निया है स्वाहा और स्वधा देवी | 


वह्निरुवाच 

स्वाहाद्याः प्रकृतेरंशा मन्त्रान्तरशरीरिणी | 

मंत्राणां फलदात्री च धात्री च जगतां सती || 

सिद्धिस्वरूपा सिद्धा च सिद्धिदा सर्वदा नृणाम् |

हुताशदाहिकाशक्तिस्तत्प्राणाधिकरूपिणी || 

संसारसारूपा च घोरसंसारतारिणी | 

देवजीवनरूपा च देवपाषाणकारिणी || 

षोडशैतानि नामानि यः पठेद्भक्तिसंयुतः | 

सर्वसिद्धिर्भवेत्तस्य सर्वकर्मसु शोभनम् |

अपुत्रो लभते पुत्रंऽभार्यो लभते प्रियाम् ||


|| इति श्री ब्रह्मवैवर्तमहापुराणे नारायणनारदसंवादे प्रकृतिखण्डे स्वाहा स्तोत्रं सम्पूर्णं || 

योनि कवचम् Yoni Kavacham

 योनि कवचम् Yoni Kavacham


योनि कवचम्


यह कवच वीर साधना के अंतर्गत शय्या साधना


 व सौभाग्यार्चन के समय अवश्य पढ़ना चाहिये | 


विनियोगः 


अस्य श्री योनीकवचस्य गुप्त ऋषिः, 


कुलटा छन्दोराज, विघ्नोत्पादविनाशे पाठे विनियोगः | 


ह्रीं योनिर्मे सदापातु स्वाहा विघ्ननाशिनी | 


शत्रुनाशत्मिका योनि ! सदा मां रक्ष सागरे || 


ब्रह्मात्मिका महायोनिः सर्वान् कामान् प्ररक्षतु | 


राजद्वारे महाघोरे क्लीं योनि सर्वदाऽवतु || 


हूमात्मिका सदा देवी योनिरुपा जगन्मयी |


 सर्वाङ्गे रक्ष नित्यं सभायां राजवेश्मनि || 


वेदात्मिका सदा योनिर्वेदरुपा सरस्वती |


 कीर्ति श्री कान्तिमारोग्यं पुत्रपौत्रादिकं तथा || 


रक्ष रक्ष महाघोरे सर्वसिद्धि प्रदायिनी |


 रजोयोगात्मिका योनि सर्वत्र मां सदाऽवतू || 




|| फलश्रुति || 


इति ते कथितं देवि कवचं सर्वसिद्धिदम् |


 त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं रजोपद्रवनाशकृत् || 


सभायां वाक्पतिश्चैव राजवेश्मनि राजवत् | 


सर्वत्र जयामाप्नोति कवचस्य जपेंन हि || 


श्रीयोन्यासङ्गमे देवि पठेदेनमनन्य धीः | 


स एव सर्वसिद्धिशो नात्र कार्या विचारणा || 


मातृकाक्षर सम्पुटैः कृत्वा यदि पठेन्नरः | 


भुञ्जते विपुलान् भोगान् दुर्गया सह मोदते || 


अतिगुह्यतमं देवि सर्व धर्म उत्तमं | 


भूर्जे वा तालपत्रे वा लिखित्वा धारयेद् यदि || 


हरिचन्दन मिश्रेण रोचयेत् कुंकुमेन च |


 शिखायामथवा कण्ठे सोऽपीश्वरो न संशयः || 




|| इति शक्तिकागल सर्वस्वे हरगौरी संवादे योनि कवचम् || 

तंत्रोक्त भैरव कवच Tantrokt Bhairav Kavacham

 तंत्रोक्त भैरव कवच | Tantrokt Bhairav Kavacham |

तंत्रोक्त भैरव कवच 


सभी प्रकार के तंत्र-मंत्र-भूत-प्रेत-डाकिनी-शाकिनी आदि बाधाओं से मुक्ति देता है यह तंत्रोक्त भैरव कवच |

इसके नित्य काम से काम 3 पाठ करने चाहिए | 



ॐ सहस्रारे महाचक्र कर्पूर धवले गुरुः | 

पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु || 


पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा | 

आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्डभैरवः || 


नैऋत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे | 

वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः || 


भीषणो भैरवः पातु उत्तरस्यां तु सर्वदा | 

संहारभैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः || 


ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः | 

सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः || 


रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु | 

जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च || 


डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभु |  

हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||


पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः | 

मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गजस्तथा ||


महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं में सर्वतो गिरा |

वाद्यं वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा || 


|| इति श्रीभैरव कवचं सम्पूर्णं || 

रघुपति राघव राजाराम पतितपावन सीताराम Raghupati Raghav Rajaram

 रघुपति राघव राजाराम पतितपावन सीताराम | Raghupati Raghav Rajaram |

रघुपति राघव राजाराम

शुद्ध स्मरण कीर्तन शुद्ध भजन

रघुपति राघव राजाराम |

पतितपावन सीताराम ||


सुन्दर विग्रह मेघश्याम |

गँगातुलसी शालिग्राम ||


भद्रगिरीश्वर सीताराम |

भगत जनप्रिय सीताराम ||


जानकीरमणा सीताराम |

जयजय राघव सीताराम ||


रघुपति राघव राजाराम

पतितपावन सीताराम ||


|| अस्तु ||

गरुड़स्तवः Garuda Stava

 गरुड़स्तवः | Garuda Stava |

गरुड़स्तवः


निम्नलिखित मन्त्र जपने से भक्षित स्थावर विष अमृत के समान हो जाता है | 

अन्य विषाक्त अन्नपानादि भी इसके जप से अमृततुल्य हो जाते हैं 


ॐ नमो भगवते गरुड़ाय, महेन्द्ररूपाय पर्वतशिखराकाररुपाय, संहर संहर मोचय मोचय चालय चालय पातय पातय निर्विष विषमप्यमृतं चाहारसदृशं रुपमिदं  प्रज्ञापयामि स्वाहा नमः | नल नल वर वर दुन दुन क्षिप क्षिप हर हर स्वाहा | 

इसके बाद गरुड़स्तोत्र का पाठ करे | 


गरुड़स्तवः 

सुपर्ण  वैनतेयंच नागारिं नागभीषणम् | 

जितान्तकं विषारिंच  अजितं विश्वरुपिणम् || 


गरुत्मन्तं खगश्रेष्ठं तार्क्ष्य कश्यपनन्दनम् | 

द्वादशैतानि नामानि गरुडस्य महात्मनः | 


यः पठेत्प्रातरुत्थाय स्नाने वा शयनेऽपि  वा | 

विषं नाक्रामते तस्य न च हिंसन्ति हिंसकाः || 


संग्रामे व्यवहारे च विजयस्तस्य जायते | 

बन्धनान्मुक्ति माप्नोति यात्रायां सिद्धिरेव च || 

इति गरुड़स्तोत्रम् 



गरुड़ जी के 12 नाम 

ॐ गरुडाय नमः 

१. सुपर्ण, 

२. वैनतेय,

 ३. नागारि,

 ४. नागभीषण,

 ५. जितान्तक, 

६. विषारि,

 ७. अजेय, 

८. विश्वरुपी, 

९. गरुत्मान्, 

१०. खगश्रेष्ठ,

 ११. तार्क्ष्य 

 १२. कश्यपनन्दन 


|| गरुड़ भगवान् की जय || 

इन बारह नामों का जो प्रातःकाल उठ कर पाठ करता है, 

उस पर किसी विष का कुप्रभाव नहीं पड़ता | 

किसी प्रकार का हिंसक जन्तु उसे काटने में समर्थ नहीं होता | 

संग्राम और व्यवहार में उसे विजय प्राप्त होती है | 

इस स्तोत्र के पाठ से बन्धन छूट जाता है, यात्रा में कार्यसिद्धि होती है | 


|| अस्तु || 

सरस्वती स्तोत्र Sarswati Stotram

सरस्वती स्तोत्र | Sarswati Stotram |

सरस्वती स्तोत्र 

साक्षात् बृहस्पति रचित 

विद्या ज्ञान बुद्धि प्रदान करनेवाला 

परीक्षा से पहले 11 पाठ करके घर से निकले 



सरस्वति नमस्यामि चेतना हृदि संस्थिताम् | 

कण्ठस्थां पद्मयोनिं त्वां ह्रींकारां सुप्रियां सदा || 


मतिदां वरदां चैव सर्वकामफलप्रदाम् | 

केशवस्य प्रियां देवीं वीणाहस्तां वरप्रदाम् || 


मंत्रप्रियां सदा हृद्यां कुमतिध्वंसकारिणीम् |

स्वप्रकाशां निरालम्बामज्ञानतिमिरापहाम् ||


सोक्षप्रियां शुभां नित्यां सुभगां शोभनप्रियाम् | 

पद्मोपविष्टां कुण्डलिनीं शुक्लवस्त्रां मनोहराम् || 


आदित्यमण्डले लीनां प्रणमामि जनप्रियाम् |

ज्ञानाकारां जगद्वीपां भक्तविघ्नविनाशिनीम् ||


इति सत्यं स्तुता देवी वागीशेन महात्मना | 

आत्मानं दर्शयामास शरदिन्दुसमप्रभाम् ||


|| श्रीसरस्वती उवाच || 

वरं वृणीष्व भद्रं त्वं यत्ते मनसि वर्तते | 


|| बृहस्पतिरुवाच || 

प्रसन्ना यदि में देवि परं ज्ञानं प्रयच्छ में | 


|| श्री सरस्वत्युवाच || 

दत्तं ते निर्मलं ज्ञानं कुमतिद्वंसकारकम् |

स्तोत्रेणाणेण मां भक्त्या ये स्तुवन्ति सदा नराः || 


लभन्ते परमं ज्ञानं मम तुल्यपराक्रमाः | 

कवित्वं मत्प्रसादेन प्राप्लुवन्ति मनोगतं || 


त्रिसन्ध्यं प्रयतो भूत्वा यस्त्विंमं पठते नरः | 

तस्य कण्ठे सदा वासं करिष्यामि न संशयः || 


|| श्री रुद्रयामले श्रीबृहस्पति विरचितं सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णं || 

सरस्वती स्तोत्र | Sarswati Stotram |


साक्षात् बृहस्पति रचित 

विद्या ज्ञान बुद्धि प्रदान करनेवाला 

परीक्षा से पहले 11 पाठ करके घर से निकले 



सरस्वति नमस्यामि चेतना हृदि संस्थिताम् | 

कण्ठस्थां पद्मयोनिं त्वां ह्रींकारां सुप्रियां सदा || 


मतिदां वरदां चैव सर्वकामफलप्रदाम् | 

केशवस्य प्रियां देवीं वीणाहस्तां वरप्रदाम् || 


मंत्रप्रियां सदा हृद्यां कुमतिध्वंसकारिणीम् |

स्वप्रकाशां निरालम्बामज्ञानतिमिरापहाम् ||


सोक्षप्रियां शुभां नित्यां सुभगां शोभनप्रियाम् | 

पद्मोपविष्टां कुण्डलिनीं शुक्लवस्त्रां मनोहराम् || 


आदित्यमण्डले लीनां प्रणमामि जनप्रियाम् |

ज्ञानाकारां जगद्वीपां भक्तविघ्नविनाशिनीम् ||


इति सत्यं स्तुता देवी वागीशेन महात्मना | 

आत्मानं दर्शयामास शरदिन्दुसमप्रभाम् ||




|| श्रीसरस्वती उवाच || 

वरं वृणीष्व भद्रं त्वं यत्ते मनसि वर्तते | 


|| बृहस्पतिरुवाच || 

प्रसन्ना यदि में देवि परं ज्ञानं प्रयच्छ में | 


|| श्री सरस्वत्युवाच || 

दत्तं ते निर्मलं ज्ञानं कुमतिद्वंसकारकम् |

स्तोत्रेणाणेण मां भक्त्या ये स्तुवन्ति सदा नराः || 


लभन्ते परमं ज्ञानं मम तुल्यपराक्रमाः | 

कवित्वं मत्प्रसादेन प्राप्लुवन्ति मनोगतं || 


त्रिसन्ध्यं प्रयतो भूत्वा यस्त्विंमं पठते नरः | 

तस्य कण्ठे सदा वासं करिष्यामि न संशयः || 


|| श्री रुद्रयामले श्रीबृहस्पति विरचितं सरस्वती स्तोत्रं सम्पूर्णं || 

सर्व यंत्र मन्त्र उत्कीलन स्तोत्र Sarv Yantra Mantra Utkilan Stotram

 सर्व यंत्र मन्त्र उत्कीलन स्तोत्र Sarv Yantra Mantra Utkilan Stotram 


सर्व यंत्र मन्त्र उत्कीलन स्तोत्र 


माँ पार्वती ने एक समय जब शिवजी से पूछा की अगर किसी की यन्त्र या मंत्र उत्कीलित विधी पता ना हो तो क्या करे | 

तब उत्तर में शिवजीने यह उत्तम स्तोत्र माँ पार्वती जी को बताया था | 

इस के माहात्म्य में भगवान् ने कहा है 

" यस्य स्मरण मात्रेण पाठेन जपतोऽपि वा | 

अकीला अखिला मन्त्राः सत्यं सत्यं न संशयः ||"

इस स्तोत्र के स्मरण मात्र से कीलित स्तोत्र दोषमुक्त हो जाते है | 



सभी मन्त्र-यन्त्र-कवचको जागृत करने का उत्तम स्तोत्र 


|| श्री पार्वती उवाच || 

देवेश परमानन्द भक्तनामभयं प्रद | 

आगमाः निगमाश्चैव वीजं वीजोदयस्तथा || 

समुदायेन वीजानां मन्त्रो मंत्रस्य संहिता | 

ऋषिच्छन्दादिकं भेदो वैदिकं यामलादिकं || 

धर्मोऽधर्मस्तथा ज्ञानं विज्ञानं च विकल्पन |

निर्विकल्प विभागेन तथा षट्कर्म सिद्धये ||  

भुक्ति मुक्ति प्रकारश्च सर्वं प्राप्तं प्रसादतः |  

कीलनं सर्वमंत्राणां शंसयद हृदये वचः ||  

इति श्रुत्वा शिवानाथः पार्वत्या वचनं शुभं | 

उवाच परया प्रीत्या मन्त्रोंत्कीलनकं शिवां ||  


|| श्री शिवउवाच || 

वरानने हि सर्वस्य व्यक्ताव्यक्तस्य वस्तुनः | 

साक्षी भूय त्वमेवासि जगतस्तु मनोस्तथा || 

त्वया पृष्टं वरारोहे तद वक्ष्याम्युतकीलनं | 

उद्दीपनं हि मंत्रस्य सर्वस्योंत्कीलनं भवेत् || 

पुरा तव मया भद्रे समाकर्षण वश्यजा | 

मंत्राणां कीलिता सिद्धिः सर्वे ते सप्तकोटयः || 

तवानुग्रह प्रीतस्त्वात सिद्धिस्तेषां फलप्रदा | 

येनोपायेन भवति तं स्तोत्रं कथयाम्यहं || 

श्रुणु भद्रेऽत्र सततमावाभ्यामखिल जगत | 

तस्य सिद्धिभवेत तिष्ठे माया येषां प्रभावकं || 

अन्नं पानं हि सौभाग्यं दत्तं तुभ्यं मया शिवे | 

सञ्जीवनं च मंत्राणां तथा दत्तुम पुनर्ध्रुवं || 

 यस्य स्मरण मात्रेण पाठेन जपतोऽपि वा | 

अकीला अखिला मन्त्राः सत्यं सत्यं न संशयः ||"

  


|| सर्वयन्त्र मंत्र तन्त्रोंत्कीलन स्तोत्रम || 


|| विनियोगः || 

ॐ अस्य सर्वयन्त्र मन्त्र तंत्राणामुत्कीलन मन्त्र स्तोत्रस्य मूल प्रकृतिः ऋषिः जगतीच्छन्दः निरञ्जनो देवता क्लीं बीजं ह्रीं शक्तिः ह्रः सौं कीलकं सप्तकोटि मन्त्र यन्त्र तन्त्र कीलकानां सञ्जीवन सिद्धयर्थे जपे विनियोगः | 


ऋष्यादिन्यासः 

ॐ मूलप्रकृति ऋषये नमः शिरसि | 

ॐ जगतीच्छन्दसे नमः मुखे | 

ॐ निरञ्जन देवतायै नमः हृदि | 

ॐ क्लीं बीजाय नमः गुह्ये | 

ॐ ह्रीं शक्तये नमः पादयोः | 

ॐ ह्रः सौं कीलकाय नमः सर्वाङ्गे | 

मंत्राणां सञ्जीवन सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगाय नमः अंजलौ | 


करन्यास 

ॐ ह्रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः | 

ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः | 

ॐ ह्रूं मध्यमाभ्यां नमः | 

ॐ ह्रैं अनामिकाभ्यां नमः | 

ॐ ह्रां कनिष्ठिकाभ्यां नमः | 

ॐ ह्रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः | 


हृदयादि न्यास 

ॐ ह्रां हृदयाय नमः | 

ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा | 

ॐ ह्रूं शिखायै वौषट | 

ॐ ह्रैं कवचाय हुम् | 

ॐ ह्रां नेत्रत्रयाय वौषट | 

ॐ ह्रः अस्त्राय फट | 


अथ ध्यानम 

ॐ ब्रह्मस्वरूपममलं च निरंजनं तँ ज्योतिः प्रकाशमनीषं महतो महान्तं | 

कारुण्यरुपमति बोधकरं प्रसन्नं दिव्यं स्मरामि सततं मनु जीवनाय || 

एवं ध्यात्वा स्मरेन्नित्यं तस्य सिद्धिस्तु सर्वदा | 

वाञ्छितं फलमाप्नोति मन्त्र सञ्जीवनं ध्रुवम || 


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सर्व मन्त्र यन्त्र तंत्रादीनामुत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा || 

( १०८ वारं जपित्वा )


ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं षट्पञ्चाक्षराणामुत्कीलय उत्कीलय स्वाहा | 

ॐ जूँ सर्वमन्त्र यन्त्र तन्त्राणां सञ्जीवनं कुरु कुरु स्वाहा | 


ॐ ह्रीं जूं अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠ लृं लृं एम् ऐं ओं औं अं अः 

कं खं गं घं ङ्गं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं 

तँ थं दं धं नं पं फं बं भं यं रं लं वं शं षं सं हं लं क्षं | 

मात्राऽक्षराणां सर्व उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा | 

ॐ सोऽहं हंसोऽहं ( 11 ) 

ॐ जूं सोऽहं हंसः  ( 11 ) 

ॐ ॐ ( 11 ) 

ॐ हं जूं हं सं गं ( 11 ) 

सोऽहं हंसो यं ( 11 ) 

लं ( 11 ) 

ॐ ( 11 )

यं ( 11 )

ॐ ह्रीं जूं सर्वमन्त्र यन्त्र तन्त्र स्तोत्र कवचादिनां सञ्जीवय सञ्जीवय कुरु कुरु स्वाहा | 

ॐ सोऽहं हंसः ॐ सञ्जीवनं स्वाहा | 

ॐ ह्रीं मन्त्राक्षराणामुत्कीलय उत्कीलनं कुरु कुरु स्वाहा | 


ॐ ॐ प्रणवरूपाय अं आं परम रूपिणे | इं ईं शक्तिस्वरूपाय |

उं ऊं तेजोमयाय च | ऋं ऋं रञ्जितदीप्ताय स्वाहा | 

लृं लृ स्थूलस्वरूपिणे | एम् ऐं वाचां विलासाय | 

ओं औं अं अः शिवाय च | कं खं कमलनेत्राय | 

गं घं गरुड़गामिने | ङ्गं चं श्रीचन्द्रभालाय | 

छं जं जयकराय च | झं ञं टं ठं जयकर्त्रे,डं ढं णं तं पराय च | 



थं दं धं नं नमस्तस्मै पं फं यन्त्रमयाय च | 

बं भं मं बलवीर्याय यं रं लं यशसे नमः | 

वं शं षं बहुवादाय सं हं ळं क्षं स्वरूपिणे | 

दिशामादित्य रूपाय तेजसे रुपधारिणे | 

अनन्ताय अनन्ताय नमस्तस्मै नमो नमः || 

मातृकायाः प्रकाशायै तुभ्यं तस्मै नमो नमः | 

प्राणेशायै क्षीणदायै सं सञ्जीव नमो नमः || 

निरञ्जनस्य देवस्य नामकर्म विधानतः | 

त्वया ध्यानं च शक्त्या च तेन सञ्जायते जगत || 

स्तुता महमचिरं ध्यात्वा मायायाँ ध्वंस हेतवे | 

संतुष्टा भार्गवायाहं यशस्वी जायते हि सः || 


ब्रह्माणं चेतयन्ती विविधसुर नरास्तर्पयन्ती प्रमोदाद | 

ध्यानेनोद्दीपयन्ती निगम जप मनुं षट्पदं प्रेरयन्ती || 

सर्वान्देवाँ जयन्ती दितिसुत दमनी साप्यहँकारमूर्ति | 

स्तुभ्यं तस्मै च जाप्यं स्मर रचित मनुं मोचये शाप जाळात || 

इदं श्रीत्रिपुरा स्तोत्रं पठेद भक्त्या तु यो नरः | 

सर्वांकामानवाप्नोति सर्वशापाद विमुच्यते ||  


|| अस्तु || 

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )