VIPRIT RAJ YOG विपरीत राजयोग
जैसा कि नाम
से ही विदित होता है "विपरीत राजयोग" अर्थात सामान्य रूप से देखने पर ऐसा
योग जो जातक के लिए अनिष्ट कारक सिद्ध होने
वाला था, किंतु कुछ विशेष कारणों से वह अनिष्ट कारक योग जातक के लिए अति विशिष्ट राज
योग के समान शुभ फल देने वाला सिद्ध हो जाता है। इसे ही विपरीत राजयोग की ज्योतिष शास्त्र
में संज्ञा दी गई है। तो आइए जानते हैं कि जन्म कुंडली में किस प्रकार से विपरीत राजयोग
का निर्माण होता है?
१,
जातक की जन्म कुंडली में लग्नेश बलवान हो, अर्थात
लग्नेश उच्च डिग्री के हो, जन्म कुंडली में 6 8 12 भाव का स्वामी नहीं हो, तथा 6
8, 12 में विद्यमान नहीं हो, लग्नेश स्वयं नीच राशि में स्थित नहीं हो।
२,
दूसरा यदि
6 ,8 ,12 भाव के स्वामी यो में से एक भी 6, 8 12 में स्थित हो तो उस स्थिति में विपरीत
राजयोग का निर्माण होता है।
जैसे मान लीजिए
मिथुन लग्न की जन्म कुंडली है। अतः इसमें लग्नेश हुए बुध जो लग्न वह चतुर्थ भाव के
स्वामी बनेंगे, इसलिए यहां बुध अति योगकारक होंगे, और उनकी डिग्री भी १० हो, तथा शनि
देव आठवें भाव के स्वामी होकर 6 8 12 भाव में बैठते हैं। तो उस स्थिति में शनि विपरीत राजयोग की श्रेणी में आएंगे और जो अनिष्ट
फल देने वाले थे उसकी जगह शुभफलदायक होंगे।
इसी प्रकार मंगल देव जो कि छठे भाव के स्वामी बनेंगे और शुक्र देव जो कि 12वे भाव के
स्वामी बनेंगे इन दोनों में से भी यदि कोई ग्रह से 6,8,12 भाव में आ जाता है। उस स्थिति
में भी विपरीत राजयोग बनेगा। अर्थात यदि जातक की जन्म कुंडली में 6 8 12 भाव का स्वामी
में से एक भी 6 8 12 भाव में स्थित हो तो जातक की जन्मकुंडली में विपरीत राजयोग का निर्माण होगा। किंतु इस स्थिति के लिए लग्नेश
का बलवान होना अति आवश्यक है।
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