ARDHNARISHWAR TANTRA अर्द्धनारीश्वर तंत्र
॥ अर्द्धनारीश्वर ॥
(शिव तन्त्रे)
मंत्र – (षडाक्षर) ‘रक्षं मं यं औं ऊं’ (मतांतरे शारद तिलके – ऊः)
विनियोग – ॐ अर्द्धनारीश्वर मंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टप् छंदः अर्द्धनारीश्वर देवता सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः ।
ऋषिन्यासः – कश्यप ऋषये नमः शिरसि, अनुष्टप् छंदसे नमः मुखे, अर्द्धनारीश्वर देवतायै नमः हृदि, विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
अङ्गन्यासः – मंत्र षडाक्षर है एवं एक एक अक्षर से छः विभाग बनाते है उनसे अङ्गन्यास होने चाहिये परन्तु हिन्दी तन्त्रसार में न्यास इस प्रकार है ।
कराङ्गन्यासः – ‘रं’ अंगुष्ठाभ्यां नमः । ‘क’ तर्जनीभ्यां स्वाहा । ‘यं’ मध्यमाभ्यां वषट् । ‘मं’ अनामिकाभ्यां हुं । ‘रं’ कनिष्ठिकाभ्यां वौषट् । ‘यं’ करतल करपृष्ठाभ्यां नमः । इसी तरह से हृदयादि न्यास करें ।
ध्यानम्
नीलप्रवाल रुचिरं विलसत् त्रिनेत्रम् ।
पाशारुणोत्पल कपालक शूल हस्तम् ॥
अर्द्धाम्बिकेश-मनिशं प्रविभक्त – भूषम् ।
बालेन्दुबद्ध मुकुटं प्रणमामि रूपम् ॥
जिनका आधा (नीलकण्ठमय) शरीर नीला है और आधा (पार्वत्यर्ध) मूंगे के सदृश लाल है । आधे नारीमय शरीर के हाथ में पाश तथा अरुणोत्पल है और आधे महेशमय शरीर में कपाल एवं त्रिशूल है, जिनके शरीर के आधे भाग में सादि का आभूषण है और आधे भाग में रत्नजटित ताटंक का अलङ्करण है, जिनके मुकुट में बालेन्दु बँधा हुआ है, ऐसे अर्धाम्बिकेश अर्धनारीश्वर रूप को मैं प्रणाम करता हूँ ॥
यंत्र पूजा
(१) त्रिकोण के मध्य बिन्दु में अर्द्धनारीश्वर का ध्यान करें ।
(२) षट्कोण में – आग्नेयादि चारों कोणो में – रं हृदयाय नमः । कं शिरसे स्वाहा । यं शिखायै वषट् । मं कवचाय हुं । मध्येनेत्रत्रयाय वौषट् । सर्वदिक्षु-यं अस्त्रायफट् से पूजा करे ।
(३) अष्टदल में- पूर्वादि क्रम से – वृषभाय नमः, क्षेत्रपालाय नमः चण्डेश्वराय नमः, दुर्गायै नमः, कार्तिकेयाय नमः, नंदिने नमः, विघ्ननाशकाय नमः, सेनापतये नमः ।
(४) अष्टदल के अग्रभाग में – ब्राह्यन्यै नमः, माहेश्वर्यै नमः, कौमार्यै नमः, वैष्णव्यै नमः, वारायै नमः, इन्द्राण्यै नमः, चामुण्डायै नम: महालक्ष्म्यै नमः ।
(५) भूपूरे- इन्द्रादि लोकपाल व उनके वज्रादि आयुधों का पूजन करें ।
एक लाख जप कर घृत मधुशर्करा मिश्रित तिल तण्डुल से अयुत होम करें । वशीकरण हेतु घृत मधुशर्करा से आटे का पुतला बनाये, पुष्पों से साध्य नाम की प्रतिष्ठा कर होम करे तो व्यक्ति वश में होवें ।
अन्य प्रयोग कान्ती, यश, लक्ष्मी व वाणी हेतु शारदा तिलक में दिये है ।
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