Wednesday, September 29, 2021

BUDH KO PRABAL KRNE KE AASAN UPAY बुध को प्रबल करने के आसान उपाय

BUDH KO PRABAL KRNE KE AASAN UPAY बुध को प्रबल करने के आसान उपाय


बुध को प्रबल करने के आसान उपाय।

बुध ग्रह अन्य जिस किसी भी ग्रह के साथ बैठता है अथवा उसके प्रभाव में होता है। उसी के अनुसार फल देता है। यह त्वचा, सांस की नली, आंतडियां, बुद्धि, तथा नपुंसकता का कारक है। उदासीन स्वभाव वाला ग्रह है। क्रूर ग्रह के साथ बैैठने पर कू्रर तथा सौम्य ग्रह के साथ बैठने पर सौम्य हो जाता है। इसकी धातु मिश्रित सोना, तांबा, तथा चांदी का अनुपात 1ः2ः4 है। इसका रत्न हरा पन्ना है। अंगुलियों में कनिष्ठिका पर इसका अधिकार है। इसकी अशुभता निवारण और शुभता प्राप्त करने के लिये निम्न उपाय कारगर सिद्ध होते है-
प्रत्येक बुधवार को उबले हुए मूंग नींबू का रस मिलाकर सेवन करे।
अपने आस पास के भिखारियों को चावल मंूग की खिचडी सत्रह बुधवार खिलाये।
हर बुधवार को गणेश जी की प्रतिमा के चरणों में एक सौ आठ दूर्वा चढाये। और साथ में ओम गं गणपतये नमः का जाप करे।
बुधवार के दिन तीसरे प्रहर हरा कपडे में मूंग, हरा अमरूद, सोना, चांदी, तांबा धातु का टुकडा बांधकर दक्षिणा सहित किसी गणेश मंदिर में पंडित को दान करे।
बुधवार को हरी घास, हरा चारा, साग सब्जी आदि गाय को खिलाये।
बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए।
हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है।
हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है।
बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है।
इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है।
बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए।
गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए।
ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए।
बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है।
रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है।
अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है।
मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है।
अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

बुध- ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

इस बुध के मंत्र के 4000 जाप होते है। जो कि किसी विद्वान ब्राहमण से करवाने चाहिये। इसके अलावा आप भी प्रतिदिन एक माला जाप कर सकते है।

बुध गायत्रीः- ओम चंद्र पुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात।

इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जाप करने से बुध ग्रह बली होता है। और शुभ फल देता है।

हवन में अपामार्ग की लकडी से बुध की आहूति लगती है। इसके अलावा अपामार्ग की जड को बुधवार के दिन हरे कपडे में सिलकर पुरूष दायें हाथ पर और महिला बायें हाथ पर बांध सकती है।

प्रतिदिन बुध नाम स्तोत्र के पाठ करने से भी बुध के शुभ फल प्राप्त होते है।

अथ बुध नाम स्तोत्र

अहो चंद्रसुतः श्रीमान् मागधायां समुद्भवः। अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहुः खडग्खेटक धारकः।।
गदाधर नृसिंहस्थः स्वर्गनाभः शमान्वितः। कृष्ण वृक्षस्य पत्रंच इन्द्र विष्णु प्रपूजितः।।
ज्ञोयो बुधः पंडितश्च रोहिणेयश्च सोभतः। कुमारो राज पुत्रश्च शैशवः शशि नंदनः।।
गुरू पुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा। सौम्यः सर्वगुणो पेतो रत्न दान फलप्रदः।।
एतानि बुध नामानि प्रातः काले पठेन्नरः। बुद्धिं र्विवृद्धितां याति बुध पीडा न जायते।।



प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में मंगल यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से यह ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है।

पहले घर में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : जन्म कुण्डली में प्रथम भाव में बैठा बुध शुभ फल प्रदान करता है। देह कमनीय होती है। शरीर तपे हुए सोने के तुल्य कान्तिमान तथा तेजस्वी रूपवान् होता है। शरीर पर तिल वा मस्सा होता है। शरीर बलवान् तथा चौकोर अर्थात् सुडौल होता है। जातक तरुण होने पर भी बच्चे जैसा दीखता है। जातक बहुत देश में घूमनेवाला, 27 वें वर्ष में तीर्थयात्रा होती है। जातक की बुद्धि प्रखर रहती है। ऐसा व्यक्ति सरल हृदय, घैर्यवान् और गुणी होता है। चतुर-कोमल तथा मघुरभाषी (मघुर और चतुर वाणी बोलनेवाला), और दाता होता है। जातक शांतस्वभाव-नीतिनिपुण, निष्पाप, बहुत दयालु होता है। गीत-नृत्य-वाद्य आदि कलाओं को जाननेवाला होता है। तपस्वी और अपने घर्म के अनुसार बर्ताव करनेवाला होता है। जातक शान्त-विनम्र-अत्यंत उदार, सदाचारी होता है। जातक दीर्घायु होता है।

बुध अन्य ग्रहजन्य अरिष्टों का नाश करता है। घार्मिक कार्यो में अभिरुचि होती है। जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति होती है।संसार में सभी के वीच अच्छी प्रतिष्ठा पाता है। लग्नस्थ बुध का जातक ज्योतिषशास्त्र को पढ़नेवाला, विद्वान् होता है। वैद्यकशास्त्र का ज्ञान होता है। काव्य, गणित एवं तर्कशास्त्र को जाननेवाला, सर्वशास्त्रों में विद्वान्, कलाओं का ज्ञाता तथा विद्याभ्यासी होता है। बहुत शास्त्रों को सुननेवाला होता है। यंत्र-मंत्र को जाननेवाला, भूत प्रेत को दूर करने में समर्थ, नानाप्रकार की विद्या जाननेवाला होता है। जातक शिल्पकार होता है। वाचन और लेखन से आजीविका करने वाला होता हैं। बड़ी फर्मो में नौकरी मिल जाती है। स्त्री से सुखी, विलासी-सर्व सुख से युक्त होता है। मध्य अवस्था में स्त्री सुख प्राप्ति होती है।

लग्न में पुरुषराशियों में बुध विशेष शुभफल देता हैं। जातक की शिक्षा शीघ्र ही समाप्त होती है लेखक, प्रकाशक वा सम्पादक होते हैं। पुरुषराशि के बुध में 36 वें वर्ष में लाभ होता है-लेखनकला से प्रसिद्धि प्राप्त होती है। मिथुन-तुला या कुंभ में होने से जातक बहुत बुद्धिमान वक्ता होता है।


अशुभ फल : लग्नस्थ बुध के लोग कूटनीति में तथा कुटिलता में ऐसे निपुण होते हैं कि ये किसी के वशीभूत नहीं होते। शरीर में बातजन्य पीड़ा होती है-फोड़े-फुन्सी आदि रोगों से दु:ख होता है। गुल्म तथा पेट के रोग होते हैं। भूख कम हो जाती है। बीमार होने पर ये असाध्यरोगी हो जाते हैं। वंश नष्ट होता है। 'वंशक्षय होना' यह फल मिथुन-घनु और कुम्भ के बुध में अनुभव में आता है।

बुध के साथ पापग्रह बैठने या इसे देखने से, अथवा नीचराशि (मीन) में होने से नरकलोक जानेवाला होता है। और पलंग आदि सुख से रहित, और क्षुद्र देवता की उपासना करनेवाला होता है। बुध के साथ शनि आदि पापग्रह बैठने से बाएं नेत्र की हानि-षष्ठ स्थान का स्वामी युक्त होने से या बृहस्पति युक्त होने से उक्त फल नहीं होता है। अपव्ययकारी होता है। पाप नाशकारी होता। बुध के साथ पापग्रह बैठने से या पापग्रह के घर में होने से शरीर में रोगवाला तथा पित्त-पांडु रोगवाला होता है।

दूसरे भाव में बुध के शुभ अशुभ सामान्य फल:-

शुभ फल : धनभावगत बुध के शुभ तथा अशुभ-दोनों प्रकार के फल शास्त्रकारों ने कहे हैं। दूसरे स्थान में बुध जातक को निरोगिता, चेहरा सौम्य, मघुर और सुन्दर वाणी, नेत्र और मस्तक पर तिलक जैसा चिन्ह दिया करता है। धनभाव का बुध शुभयोग में होने से बहुत बलवान् होता है। जातक सुशील, गुणी, उदार, सदाचारी होता है। स्वभाव नम्र होता है। घनस्थ बुध प्रभावान्वित जातक बुद्धिमान् होता है। वाणी निर्मल होती है, जातक मीठा बोलता है। जातक बोलने में चतुर, वाचाल तथा निर्दोष वाणी बोलने वाला होता है।
दूसरे भाव में स्थित बुध जातक को विचारक एवं वक्ता बनाता है। सभा में जातक का भाषण सिंहतुल्य तेजस्वी तथा प्रभावशाली होता है। नीतिमान्-अन्तर्ज्ञानी, शास्त्रचर्चा में प्रवीण, कविता करनेवाला होता है। जातक की दानशक्ति भी असीमित होती है और इसकी दानशक्ति की प्रशंसा विद्वान् भी करते हैं। जातक मितव्ययी, संग्रही होता है। सत्कार्यकारक, उद्योगप्रिय, न्याय करने में कुशल होता है। साहसी, अपने ही भुजबल से प्रतापी होता है। शास्त्रीयज्ञान, व्यापार और शिक्षा विषयक व्यवहार में प्रवीण होता है। कार्यशक्ति तीव्र होती है। 15 वें वर्ष बहुत ज्ञान प्राप्त होता है। जातक संगीत को जाननेवाला होता है। खान पान का सुख अच्छा मिलता है। भोजन में मिष्टान्न प्राप्त होते रहते हैं।
धन भावगत बुध जातक को धनवान् बनाता है। जातक अपनी बुद्धि से धनार्जन करनेवाला होता है। चतुरता से धनोपार्जन करके कोट्याघीश -करोड़ों रुपयों का मालिक होता है। स्त्री-घन प्राप्त होता है। 'षट्त्रिशकैर्घनकृतिम्'। 36 वें वर्ष घनलाभ होता है। अकस्मात् घन प्राप्ति होती। जातक धन-धान्य से युक्त, सुन्दर वस्त्र अलंकारादि की प्राप्ति करता है। एक बार धन नष्ट हुआ तो फिर प्राप्त होता है। लेखन-वाचन-दलाल-लिपिक का काम-हिसाब का काम आदि व्यवसायों में घन प्राप्त करता है। जातक प्राय: उन्हीं व्यवसायों में जाते हैं जिनमें बोली का (भाषण कला का) महत्व रहता है। वकील का पेशा करनेवाला होता है। व्यापारी वर्ग को घनस्थान में बुध के होने से अच्छा घन मिलता है।
 धनभाव के बुध के प्रभाव से प्रोफेसर-प्रिन्सिपल-डाइरेक्टर आदि अफसरों को अच्छा वेतन मिलता है। द्रव्य तथा स्त्रियों का उपभोक्ता होता है। भ्रमर की भाँति सर्वप्रकार के भोंगों का उपभोक्ता होता है। जातक सत्कर्म, शुभकर्म करनेवाला, सुखी तथा राजमान्य होता है। धनभाव में बुध होने से पिता का भक्त, गुरूभक्त होता है। द्वितीयभाव में बुध होने से जातक कुशल तथा सभी का मित्र होता है। शुभफल पुरुषराशियों में बुध के होने से अधिक मिलते हैं। 
अशुभ फल : जातक को हमेशा त्वचा के रोग होते रहते हैं। वक्तृत्वशक्ति में दोष संभव है। पापग्रहसाथ अथवा पापग्रह की राशि में, या नीचराशि में होने से विद्याभ्यास नहीं होता। स्वभाव कू्रर होता है। वातरोग होते हैं।

तीसरे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल:-

शुभ फल : जातक अच्छे शरीर का, घार्मिक-यशस्वी, तथा देव और गुरुओं का आदर करनेवाला होता है। तीसरे भाब में बुध होने से जातक सरस एवं सरल हृदय का होता है। जातक बुद्धिमान्, नम्रस्वभाव का होता है।
तृतीय में बुध होने से जातक साहसी, शूरवीर हो किन्तु मध्यायु हो। तृतीय स्थान का स्वामी बलवान होने से दीर्घायु और घैर्यवान् होता है। जातक चतुर तथा हितकारी होता है। जातक की परोपकारी वृत्ति होती है। जातक अपनी बुद्धि से अपनी व्यवहार कुशलता से, उदण्ड स्वभाव के लोगों को भी अपनी मुट्ठी में कर लेता है, और इनसे भी आवश्यक लाभ उठा लेता है।

तीसरे बुध होने से जातक के भाई बहन अच्छे होते हैं। स्वयं बन्घुओं को प्रिय होता है। बड़े परिवार से युक्त होता है। पाँच भाई और चार पाँच बहिनें तक हो सकती हैं। भाई और बहिनों को बहुत सुख प्राप्त होता है। जातक के दो लड़के और तीन लड़कियाँ होती हैं। जातक स्वजनों से युक्त, अपने जनों का हितसाघक होता है।जैसे वृक्ष के इर्द गिर्द सहारा पाने के लिए लताएँ लटकी रहती हैं-उसी तरह आश्रय पाने के लिए जातक के भाई बन्घु इसके निकट पड़े रहते हैं और जातक अपनी शक्ति के अनुरूप इनकी सहायता करता है। अपने सहोदरबन्घु वर्गों के अनुशरण से अघिक सुख होता है।भाई दीर्घायु होता है। सरस हृदय होने के कारण स्त्रियों के प्रति स्वाभाविक अनुराग होता है। पड़ोसियों और परिचितों से प्रेम पूर्वक बरताव करते हैं। बहुत मित्र होते है। जातक के साथ की गई मित्रता आसानी से नहीं टूटती।

जातक को प्रवास बहुत करना पड़ता है। प्रवास से सुख और लाभ होता है। शास्त्रकार, ज्योतिष तथा गुप्तविद्याओं में प्रवीण होता है। लेखन कार्य, छापने का काम -तथा प्रकाशन का व्यवसाय-तृतीय बुध होने से लाभकारी होते है। व्यापार की तरफ जातक की रुझान स्वाभविक रूप में रहा करती है। एक प्रवीण और चतुर व्यापारी होकर व्यापार से जीवन व्यतीत करता है। व्यापारी लोगों से मित्रता करके-व्यापार से घन कमाता है। घनवान् तथा समृद्ध होता है।

जातक लेखन, वाचन और भाषण में कुशल होता है। अन्तिम अवस्था में प्राक्तन जन्मकृत शुभकर्म जन्य संस्कारों के उद्बुद्ध हो जाने के कारण तीव्र वैराग्य से संसार से नितांत विरक्त होकर सन्यस्त हो जाता है और अर्थात् मोक्षमार्ग पर अग्रसार हो जाता है। वृद्धावस्था में वैराग्य से विषय वासनाएँ लुप्त हो जाती हैं। पुरुषराशि में होने से शिक्षा पूरी होती है-हस्ताक्षर अच्छा, लेखन शीघ्र तथा संगत होता है-स्मरणशक्ति भी तीव्र होती है। तृतीयस्थ बुध बलवान् होने से भाग्योदय 24 वें वर्ष से होता है।

शास्त्रकारों के शुभफल मेष-सिंह-तुला कुंभ तथा मिथुन और घनु का पूर्वार्ध-एवं कन्या और मीन का उत्तरार्ध इन राशियों में मिलते हैं।

अशुभ फल : तृतीयभाव मे बुध होने से जातक बहुत दुष्ट होता है। घन की बुद्धि से(लोलुपता से) दुष्ट बुद्धियों के बश में रहता है। जातक मन्द बुद्धि का, अशुभविचार करनेवाला होता है। जातक अपवित्र मलिन हृदय होता है। चित्त शुद्ध नहीं होता।जातक मायावी, बहुत चंचल, चपल और दीन होता है। श्रम बहुत करना पड़ता है और दैन्य युक्त होता है। भाइयों का सुख कम मिलता है।

जातक अविचारित होता है, और मनमाना काम करता है इस कारण जातक को अपने लोग छोड़ जाते हैं। इष्ट-मित्रों से हीन होता है। जातक अत्यन्त विषयासक्त होता है अर्थात् विषयोपभोग लिप्त ही रहता है। जातक मोह जाल में फँसकर अपने अमूल्य रत्नरूपी मानवजीवन को नष्ट करता है। जातक सुखहीन होता है। सुख नष्ट होता है। यवनजातक ने 12 वें वर्ष घनहानि होती है-ऐसा कहा है क्योंकि बुध तृतीय में हो तो रवि प्राय: घनस्थान में, वा चतुर्थस्थान में होता है अत: पैतृकसंपत्ति नष्ट होती है और पिता दरिद्री होता है। बुध पर शत्रुग्रह की दृष्टि होने से भाइयों की मृत्यु होती है।

चौथे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : चौथे स्थान में बुध होने से जातक का शरीर पुष्ट होता है। आँखें बड़ी होती है। जातक अच्छा सलाहकार और वाद-विवाद करने में कुशल अर्थात् चतुर होता है। जातक धैर्यवान्-नीतिज्ञ, नीतिवान् और ज्ञानवान् होता है। जातक बोलने में चतुर, सुरुचि सम्पन्न, सुशील और सत्यवादी होता है। चतुर्थभाव गत बुध होने से जातक पण्डित होता है। दूसरों को प्रसन्न करने वाले चाटुवाक्य बोलने वाला होता है। चाटुकारिता में प्रवीण (मीठा बोलनेवाला) होता है। स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है तथा अन्तर्ज्ञान भी हो सकता है। गीत और नृत्य का प्रेमी, संगीतप्रिय और मिष्टभाषी होता है। दानी, उदार, विद्वान्, लेखक होता है। जातक बांधवों के साथ द्वेष करता है। आरम्भ किए हुए कार्य में सफलता मिलती है।

चतुर्थस्थान में बुध होने से सवारी का सुख होता है। क्षेत्र-धान्य-धन आदि का उपभोग करनेवाला होता है। धनसम्पदा का योग बनता है पर ये सब स्वार्जित अर्थात् अपने बाहुबल से अर्थोपार्जन करता है। पैतृकधन से कुछ भी सुख नहीं होता है, अर्थात् पैतृकधन की प्राप्ति नहीं होती। घर के बारे में सुखी होता है। रहने का स्थान चित्र-विचित्र होता है। माँ-बाप से अच्छा लाभ होता है। माता-पिता का सुख मिलता है। जातक गणितशास्त्रवेत्ता होता है। जातक का मित्र वर्ग उत्तम होता है। मैत्री संसार के श्रेष्ठ मनुष्यों से होती है।

जन्मलग्न से बुध चतुर्थभाव में हाने से जातक राजा या गण का स्वामी अर्थात् जनसमूह का नेता या विशेष अधिकारी होता है। राजद्वार का विशेष अधिकारी होता है अर्थात् सभी दूसरे राजकर्मचारियों पर विशेष अधिकार होता है। राज्य में प्रभावशाली तथा राज्य से किंवा राज्य के अघीन विषयों से अर्थ लाभ प्राप्त करने वाला होता है। बहुत नौकर-चाकर होते हैं।

चौथे स्थान में पड़ा बुध राजकुल में, मित्रमण्डली में और समाज में आदर दिलाता है।जातकधन-जन, भूषण, सुवस्त्र से युक्त, सुखी और धनवान् होता है। समाज में प्रतिष्ठित, यशस्वी होता है। जातक के परिवार के लोग इसके बचनों का विशेष आदर करते हैं। जातक श्रेष्ठबन्धुवाला और बन्धुप्रेमी होता है। बन्धुओ का सुख अच्छा मिलता है। पत्नी का सुख अच्छा मिलता है। पुत्र कम होते हैं। पुत्र सुख मिलता है। पिता के सम्बन्ध से भाग्यवान् और सुन्दर होता है।

चौथे स्थान में बुध होने से जातक आरामतलबी, विलासी, अच्छा भोजन करने वाला होता है। शास्त्रकारों के बताए शुभ फल पुरुषराशियों के हैं। बुध पुरुषराशि में होने से जातक विद्याध्ययन करेगा किन्तु रुकावटों के साथ संघर्ष करना होगा।

अशुभ फल : जातक कृशदेह और बालपन में रोगी होता है। वह बहुत आलसी होता है। चंचल बुद्धि-निर्ल्लज्ज होता है।जैसा बोलता है वैसा बर्ताव नहीं करता है। अपने दिये वचन को तत्काल भूल जाता है। पुत्र का दु:ख प्राप्त होता है। संसार के बारे में बहुत चिन्ता होती है। 22 वें वर्ष धनहानि होती है। पापग्रहों का सम्बन्ध होने से दूसरों के घर रहना पड़ता है। पापग्रहों से युक्त होने से भ्रातृघातक होता है। बुध पापग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होने से ध नही मिलता है और अच्छे मित्र नही होते हैं।

पाँचवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : पंचमभाव मे बुध होने से जातक सुन्दर रूपवान्-सदा पवित्र होता है। जातक प्रसन्न, कुशाग्रबुद्धि, बुद्धिमान् तथा मघुरभाषी होता है। वाद-विवाद करने में चतुर और तर्ककुशल होता है। अपने व्यवहार से लोगों को अपने वश में रखता है। सदाचारी, चरत्रिवान्, घैर्यशील, संतोषी, कार्य में कुशल एवं उद्यमी होता है।

पंचमभावगत बुध प्रभवोत्पन्य जातक नम्र, मायावी, एकान्तप्रिय तथा विनोदप्रिय आनंदी होता है। देव-गुरु ब्राह्मणों का भक्त होता है। अपने व्यवहार से लोगों को अपने वश में रखता है।बुद्धि शुभ होती है। व्यावसायिक बुद्धि और वि़द्या सम्पन्न रहता है। विविघ विषयों का ज्ञाता, विद्वान्, होता है। पंचम में बुध होने से जातक के सुख और प्रताप की वृद्धि विद्या के कारण होती है। जातक मन्त्र शास्त्र का ज्ञाता होता है। मन्त्रशास्त्र जानने वाला होता है। जारण-मारण-उच्चाटन आदि मन्त्रों का कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकता है।

पंचमभाव में बुध होने से जातक को सन्तान प्राप्त होती है। पुत्र सुख मिलता है। जातक पुत्र-पौत्रों में युक्त होता है। जातक कामों में दूसरों को आगे करता है और स्वयं पीछे रहता है। जातक यशस्वी तथा लोक समुदाय में प्रभावशाली होता है। बुध के प्रभाव से जातक लेखक, कवि, नाटक रचयिता तथा उपन्यासकार होता है या साहित्य मे रुचि होती है।

पंचमभाव में बुध पैसे की तंगी नहीं होने देता। घन और वैभव की प्राप्ति होती है। अपनी बुद्धि से घनार्जन करता है। सट्टा, जुआ की ओर प्रवृत्ति होती है। जातक के मित्रों का सरकल बड़ा होता है। जातक स्त्री से युक्त, सुखी होता है। माता को सुख मिलता है। भाँति-भाँति के पोशाक पहनने की रुचि होती है। राजदरबार में सम्मान मिलता है। कामों में दूसरों को आगे करता है और स्वयं पीछे रहता है।

लग्न से पंचम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। पंचमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से वाणी अच्छी, बुद्धि तीक्ष्ण होती है। पंचमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से शिक्षा शीघ्र समाप्त होती है। 23 वर्ष की आयुतक शिक्षा पूरी हो जाती है। मिथुन-तुला या कुम्भ में होने से रोग चिकित्सा, वैद्यक, व्याकरण आदि में प्रवीण होता है। पंचमभाव का बुध मिथुन, तुला, या कुंभराशि में होने से एक दो संताने ही होती है। संक्षेप में पंचम में बुध होने से जातक स्त्री-पुत्र-मित्र-घन-विद्या-कीर्ति और बल से सम्पन्न होता है।

अशुभ फल : जातक को शारीरिक कष्ट होता हैं। बुद्धि साघारण होती है। जातक दांभिक और कलहप्रिय होता है। पाप कृत्य करता है। पांचवें भाव में स्थित बुध जातक को लोभी, मतलबी, घेाखेबाज बनाता है। दुष्टों के सहवास से जातक के मुख में कपट भरी वाणी रहती है। सन्तान सुख में बाघा अवश्य पहुंचाता है। कन्याएँ होती हैं। पुत्रसुख में विघ्न होता है। सन्तान कम होती है-सन्तान को रोग होते हैं।

पांचवे स्थान में बुध के रहने से व्यक्ति के कन्या सन्तति अघिक होती हैं। पुत्र न होने से दत्तक पुत्र लेना पड़ता है। लड़का विश्वस्त नहीं होता। पुत्र का व्याह होते ही उसकी मृत्यु होती है। मामा की मृत्यु होती है। लग्न से पन्चम बुध होने से मामा को गंडमाला रोग होता है। 5 वें या 26 वें वर्ष में जातक की माता की मृत्यु होती है। जातक के पिता को तकलीफ होती है। बुध अस्तंगत हो या उस पर शत्रु ग्रह की दृष्टि होने से सन्तान की मृत्यु होती है। मामा का नाश होता है। पुत्र कम होते हैं। पंचमेश निर्बल हो अथवा पापग्रह के साथ होने से पुत्रों का नाश होता है, गर्भ की हानि होती है। पंचमभाव का बुध मिथुन, तुला, वा कुंभराशि में होने से संतति नहीं होती, या एक दो संताने ही होती है।

छठे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : छठे स्थान में बुध होने से जातक विवेकी, परिश्रमी, आत्मविश्वासी और पुरुषार्थी होता है। जातक विवेकी, तार्किक, विनोदी होता है। बुध हो तो सन्यासियों के साथ ज्ञान की वार्ता करता है और इस ज्ञानचर्चा से ज्ञानप्राप्ति होती है।सन्यासियों से अर्थात् ब्रह्मज्ञानियों से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। "अनिला नां रोघ:" 'प्राणायाम' करता है या 'प्राणायाम आदि द्वारा वायु को रोकता है। जातक अच्छे कामों में द्रव्य का व्यय करता है और अपने बाहुबल से घन संचय करता है। उत्तम रत्नादि के व्यापार से घन का लाभ भी होता है।

घार्मिक शुभकामों में घन का व्यय करता है। राजमान्य, बहुश्रुत और लेखक होता है। विद्वान् होता है।नौकरी से फायदा होता है। स्वतंत्र व्यापार में लाभ नहीं होता। रसायनशास्त्रज्ञ या पत्र-लेखक होता है। प्रिटिंग पै्रस से संबंघ होता है।जातक लोगों के साथ विरोघ करता है। शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोकता है। शत्रुसमूह को आगे आने से रोकता है। 30 वें वर्ष राजा से अच्छी मित्रता होती है। षष्ठभाव में बुध पुरुषराशियों में होने से शुभफल देता है।

अशुभ फल : षष्ठभाव में बुध होने से झगड़ालू, ईर्ष्यालु, दांभिक, निठुर(कठोरवचन बोलने वाला) तथा आलस करने से चिंतित होता है। वादी, कलहप्रिय, आलसी, अभिमानी होता है। वाद-विवाद करने में जातक बहुत जल्दी और बहुत अघिक क्रोघी हो जाता है। वाद विवाद में और झगड़े में नित्य पराजित होता है और सदा अपमानित होता है।

जातक आप्तों (बंघु-बांघवों) का विरोघी, बन्घु-बान्घवों पर उपकार न करनेवाला होता है। जातक का चित्त सदा संतप्त रहता है। जठर वायु के रोघ से, रुकावट से बद्धकोष्ठता वातशूल आदि रोग होते हैं। बुध के दूषित होने से गुह्यरोग, उदररोग, रहस्यदेशरोग, वायुरोग, कुष्ठरोग, मंदाग्निरोग, वातशूलरोग तथा संग्रहणी रोग होते हैं। नाभि के पास व्रण होता है। छाती दुर्बल होती है। क्षय या श्वास के रोग हो सकते हैं। मानसिक दु:ख से पीड़ा होती है। मन पर आघात होने से मृत्यु होती है।

37 वें वर्ष शत्रुओं का भय होता है। परदारारति एवं कामुकता जातक के स्वभाव के अंग बने रहते हैं। पत्नी कर्कश स्वभाव वाली, कुटिल अथवा आचरणहीन होती है अथवा पति वियोग भी सम्भव होता है। शिक्षा में विघ्न आता है। राजा का बिरोघी होता है। मामा को कन्याएँ अघिक होती हैं। पुत्र अल्प होते है। बदमाश नौकरों से कष्ट होता है। छठे स्थान में बुध अस्त, वक्री, या नीचराशि में होने से शत्रुओं से कष्ट होता है। षष्ठभाव में निर्बल बुध होने से असमय में मृत्यु होती है या मृत्युतुल्य संकट आता है।

सातवें भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : बुध सातवें भाव में होने से जातक सुन्दर, कुलीन, शिष्ट, उदार, घार्मिक, घर्मज्ञ, दीर्घायु होता है। जातक बुद्धिमान्, सुन्दर वेषवाला, सकल महिमा को प्राप्त होता है। बुध सप्तम में होने से जातक रूपवान्, विद्वान, सुशील, कामशास्त्र का ज्ञाता और नारी मान्य होता है। जातक मघुरभाषी और सुशील होता है। शिल्प कलामें चतुर और विनोदी होता है। विद्वान्, लेखक, सम्पादक होता है। व्यवसाय कुशल होता है। खरीद-विक्री के व्यवहार में लाभ होता है।

सप्तमभावगत बुध के प्रभाव में उत्पन्न जातक उच्चकुलोत्पन्न पत्नी का पति होता है। जातक की पत्नी चित्ताकर्षक अत्यन्त सुन्दरी मृगाक्षी होती हैं, किन्तु उसका उपभोग लेने के लिए जातक के शरीर में आवश्यक बल और वीर्य नहीं होता है। पत्नी घनिक होती है अर्थात् घनी कुल में विवाह होता है और दहेज मिलता है। जातक की पत्नी के पिता की संतति बहुत होती है।

सप्तम बुध होने से स्त्री विदुषी, सुन्दरी, साघारण घराने की, थोड़ी झगड़ालू और घनवती होती है। सप्तम बुध हो तो स्त्रीसुख मिलता है। जातक स्त्री के अनुकूल चलता है। सप्तम बुध हो तो माता को सुख होता है। जातक सुखी, घनी होता है। प्रवास में लाभ होता है। सातवें स्थान में बुध बलवान होने से अथवा शुभग्रह से दृष्ट होने से सुन्दर, रूपवती, कलाकुशल, बुद्धिमती, पुत्र-प्रसविनी स्त्री प्राप्त होती है। सप्तमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से पत्नी सुन्दर होती है उसका चेहरा प्रभावशाली, केश काले, घने-लम्बे-शरीर पुरुष जैसा प्रमाणबद्ध होता है। वह झगड़ालू भी होती है।

अशुभ फल : बुध अस्तगत हो तो शरीर में कुछ न्यूनता रहती है। अल्पवीर्य होता है। जातक की दृष्टि चंचल होती है। लड़ाई में और वादविवाद में पराजय होता है। जातक साझीदार पर विश्वास नहीं करता। लेखन से कुछ समय बड़े संकट में आते हैं। जातक भक्षण के अयोग्य पदार्थों का भक्षण करता है। जातक के विवाह के समय झगड़े होते हैं। जातक वैश्यागमन करता है। बुध पर अशुभ दृष्टि हो तो बहुत तकलीफ होती है।


आठवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : जातक प्रसन्नचित्त स्वाभिमानी, मनस्वी, घर्मात्मा, परोपकारी होता है। जातक की घर्म में आस्था रहती है और आत्मसम्मान वाला होता है। जातक गुणों के कारण प्रसिद्ध, यशस्वी, लब्घप्रतिष्ठ, राजमान्य होता है। जातक नम्रता आदि गुणों से प्रसिद्ध और घनी होता है। जातक सच बोलनेवाला, तथा अतिथियों का आदर करनेवाला होता है।


बुध के अष्टम होने से जातक की प्रवृत्ति शास्त्रीय ज्ञान की ओर होती है। जातक दैवज्ञ हो सकता है। गुप्तविद्या और अध्यात्मशास्त्र का ज्ञान अच्छा होता है। जातक की स्मरणशक्ति अच्छी होती है। कुलपोषक, अपने कुल का पालन करनेवाला और श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। राजा का कृपापात्र, राजा की कृपा से वैभव, सम्पत्ति मिलता है। राजकुल से घन का लाभ होता है। दण्डनेता होता है अर्थात् राज्य से ऐसा अघिकार प्राप्त होता है कि वह औरों को दण्ड दे सके। न्यायाघीश होता है।


25 वें वर्ष में जातक को नानाप्रकार से ऊँचा पद मिलता है। अपने देश में तथा परदेश में विख्यातकीर्ति होता है अर्थात् दिगन्तविश्रुतकीर्ति होता है। अच्छा व्यापारी होकर राजा से अथवा व्यापार से बहुत घन कमाते हैं। बुध लाभकारक होता है। बहुत जमीन प्राप्त होती है। सुन्दर शरीर एवं विलासी प्रकृति के कारण स्त्रियों का सहवास अनायास मिल जाता है। स्त्रियों के साथ हास्य विलास का सुख भी प्राप्त होता है। दूसरों के कष्ट दूर करता है। शत्रुओं का नाश होता है।


आठवें भाव में पड़ा बुध जातक को दीर्घायु देता है। जन्मलग्न से आठवें स्थान में बुध होने से जातक शतायु अर्थात् दीर्घजीवी होते हैं। जातक की मृत्यु अच्छीस्थिति में होती है। जातक की मृत्यु किसी अच्छे तीर्थ स्थान में सुख पूर्वक होती है। जातक मृत्यु के समय सावघान अवस्था में होता है। लग्न से अष्टम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। बुध पुरुषराशियों में होने से पत्नी रहस्यों को गुप्त रखनेवाली होती है। पति के साथ आनन्द से रहती है। भृगसूत्र के अनुसार 'सात पुत्रों की उत्पत्ति होती है' यह फल पुरुषराशियों मे संभव है।

अशुभ फल : अष्टमबुध का जातक कृतघ्न, दुष्टमति, व्यभिचारी, कामुक-असत्यभाषी और मानसिक दुखी होता है। आठवें स्थान में स्थित बुध से व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट प्राप्त करता है, दरिद्रता, पत्नी से विरोघ, घनहानि, व विविघ रोगों से पराभूत होता है। लोगों का विरोघी तथा घमण्डी होता है। दूसरे के किए हुए काम को नष्ट करने वाला होता है। परस्त्रियों से रतिक्रीड़ा करता है। शस्त्रों से जातक के शरीर को पीड़ा होती है।
बुध अशुभ होने से शूल जाँघ या पेट के रोग होते हैं। मस्तिष्क और नसों के रोग होते हैं। मस्तिष्क विकार मृत्यु का कारण हो सकता है। जातक के बन्घु नहीं होते-कारावास सहना पड़ता है। 14 वें वर्ष घन-घान्य का नाश होता है। जातक को साझीदारी में नुकसान होता है। बुध पापग्रह के साथ या शत्रुग्रह की राशिमें होने से अति कामुक होता है जिससे जातक का अघ:पतन होता है। शत्रुग्रह की राशि में, नीच वा पापग्रह के साथ हो तो अल्पायु होता है।

नवें भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : नवें स्थान में बुध के रहने से जातक को शुभ फल मिलता है। शास्त्रकारों ने नवमभावस्थित बुध के जो शुभ फल बताएँ हैं वे पुरुषराशियों में मिलेंगे। नवम भाव में बुध होने से जातक सदाचारी, घर्मात्मा, बुद्धिमान्, सज्जनों का संग करनेवाला, सत्यवादी, जितेंद्रिय, सहर्ष परोपकार करनेवाला होता है। घार्मिक, घर्मभीरू, दानी तथा उत्सुक मन वाला होता है। जातक शास्त्रज्ञ, ज्ञानी, आनंदी, घर्मनिष्ठ, सदा पुण्यकर्मकर्ता होता है। जातक चपल, विनयी, शोघक बुद्धि का, नई चीजों की रुचि रखनेवाला होता है। तपस्वी, ध्यानी, योगाभ्यासी, वेद-स्मृतिप्रतिपादित कर्मकर्ता होता है। वेदशास्त्रों का पंडित होता है।

नौवें स्थान में स्थित बुध जातक को भाग्यवान् बनाता है, विविघ सुखेपभोग कराता है। तीर्थाटन और घार्मिक कार्यों जैसे यज्ञ आदि में रुचि रहती है। वैदिक अथवा तांत्रिक दीक्षा को पानेवाला, और गंगास्नान करनेवाला होता है। जातक घार्मिक-कुंए-वगीचे आदि बनवानेवाला होता है। पराक्रमी होता है जिससे सदा शत्रुओं को पराजित करता है। प्रतापी और विजयी करता है। समाज में अथवा अपने परिवार में राजा के समान सम्माननीय बनाता है। नवमस्थ बुधप्रभावोत्पन्न जातक अपने कृल को अपने ज्ञान से, अपने घन से, अपने यश से उज्जवल तथा प्रसिद्ध कर देता है। नवम में बुध होने से जातक उपकार और विद्या से आदर पाता है। नवम बुध शुभराशि में होने से जातक घन-स्त्री-पुत्र से युक्त होता है। संतति, संपत्ति तथा सुख मिलता है। जातक विद्वान, कवि, वक्ता, संगीतज्ञ, सम्पादक, लेखक, ज्योतिषी हो सकता है।

नवम स्थान में बुध मिथुन, तुला या कुम्भराशि में होने से विवाह के अनन्तर भाग्योदय होता है। नौकरी या व्यवसाय में प्रगति होती है। नवमस्थान में बुध मिथुन, तुला या कुम्भराशि में होने से संपादक, प्रकाशक या लेखक, स्कूल में शिक्षक का काम करना होता है।

अशुभ फल : जातक रोग से पीडि़त होता है। कभी मन विकृत भी हो जाता है। 29 वें वर्ष माता को कष्ट हो सकता है। बुध अशुभ होने से भाग्य मंद होता हैं। और अपनी बुद्धि का घमंड होता है। अशुभ राशि में या पापग्रह के साथ होने से कुमार्गगामी, वेदनिंदक होता है। बुध पर अशुभ दृष्टि होने से पागल के समान भटकना पड़ता है। बुध पापग्रहों के साथ, पापग्रहों की राशि में, या दृष्टि में होने से पिता को कष्ट होता है या मृत्यु होती है। गुरु से द्वेष करता है। बौद्धमतावलंबी हो जाता है।

दसवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : दसवें स्थान में बुध की स्थिति उत्तम मानी जाती है। प्राय: सभी शास्त्रकारों ने दशमभावगत बुध के फल विशेष अच्छे कहे हैं। दसवें स्थान में बुध के होने से जातक न्यायप्रिय और नीतिनिपुण होता है। विवेकी, गुणवान्, गुणनुरागी, सत्यवादी, घैर्यवान्, विनम्र होता है। जातक बुद्धि में श्रेष्ठ- घार्मिक, सात्विक बुद्धिवाला, मनस्वी होता है। जातक ज्ञानी, मघुरभाषी, प्रसंग के अनुकूल बोलने का कौशल्य होता है। शुद्ध तथा सदाचारी, सत्कर्म करनेवाला, श्रेष्ठ कार्य करनेवाला, सत्यपर दृढ़ रहनेवाला होता है।प्रतिष्ठायुक्त, आदरणीय और व्यवहारकुशल, सामाजिक व्यक्ति तथा कीर्तिमान् होता है।

दसवें स्थान में बुध के होने से जातक लोकमान्य और परम प्रतापी होता है। रूपवान्, बलवान्, शूर और पराक्रमी होता है। दसवें भाव में हो तो मातृ-पितृ-भक्त एवं गुरुजनों का भक्त होता है। बुध प्रबल होने से मातृसौख्य प्रचुरमात्रा में होता है। स्मरण शक्ति अच्छी होती है। गणित और भाषाशास्त्र में प्रवीण होता है। जातक विद्वान, काव्य में कुशल होता है।

अपने भुजबल से घनोपार्जन करनेवाला होता है। नानाविघ संपत्तियुक्त, नाना भूषण भूषित, घनाढ़्य, होता है। विलासी होता है। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है। विविघ भूषणों से युक्त और सुखी होता है। पैतृक सम्पत्ति भी मिलती है। विविघ वैभव से सम्पन्न, राजमान्य होता है। राज्य के सहयोग से अर्थ लाभ करता है अथवा राज्य में उत्तम पद प्राप्त करता है।

राजकीय अघिकार के प्राप्त हो जाने के कारण, और इस राजकीय अघिकार से निग्रह-अनुग्रह सामर्थ्ययुक्त हो जाने के कारण जातक का संसार में विशेष आदर मान होता है, सर्वसाघारण लोगों की दृष्टि में जातक एक मान्य और पूजनीय व्यक्ति होता है।कविता करने से, शिल्पकला से, लेखन से, व्यापार से, क्लीवों के साहाय्य से और साहस से घन मिलता है। जातक को वाहन का सुख प्राप्त करता है।

दशमभाव का बुध जातक को सर्वथा सभी पदार्थों से परिपूर्ण कर देता है। जिस कार्य को प्रारम्भ करता है उसमें प्रारम्भ में ही सफलता प्राप्त होती है। व्यापार में यशस्वी होता है। व्यापार से लाभ कमाता है। दलाली, लेखन और साहूकारी में अच्छा यश किलता है। उपजीविका शिल्प कला से होती है। मिथुन-तुला-कुम्भ में बुध होने से सर्वे डिपार्टमैन्ट, पीडब्लूडी, पोस्टल डिपार्टमैंट क्लर्कशिप का व्यवसाय रहेगा। लग्न से दशम स्थान में बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं।
अशुभ फल : 28 वें वर्ष में नेत्र में रोग होता है। बुध शत्रु के घर में या पापप्रह के साथ होने से मूढ़, कर्म करने में विघ्न करने वाला होता है। नीचकर्म करता है और आचारभ्रष्ट होता है।

ग्यारहवें भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : ग्यारहवें भाव में पड़ा बुध शुभ फल देता है। जातक नीरोग, श्यामवर्ण तथा सुन्दर नेत्रोंवाला होता है। स्वभाव में कवि की-सी सरलता और चरित्र में दृढ़ता गुण होती है। जातक सदाचारी,ईमानदार, विनम्र, सुशील, नित्य आनन्द में रहनेवाला, और सत्यसंघ अर्थात् प्रतिज्ञापालक होता है। जातक स्त्रियों को प्रिय, अतिगुणी, बुद्धिमान्, अपने लोगों को प्रिय होता है। लोगों से प्रेम से बर्ताव करनेवाला होता है। कई प्रकार की विद्याओं को जाननेवाला होता है। कई एक विद्याओं और विषयों का जिज्ञासु होता है। जातक वेदशास्त्र में श्रद्धालु होता है। जातक ज्ञानी, विद्वान्, विचारवान्, कीर्तिमान्, भाग्यवान् तथा सुखी होता है।
एकादश बुध होने से दीर्घायु होता है। जातक को नौकरों का सुख भी प्राप्त होता है। आज्ञाकारी नौकर होते हैं। वाहनों का सुख मिलता है। घन घान्य सम्पन्न, नित्य लाभ वाला होता है। शिल्पकला, लेखन या व्यापार में अनेक प्रकारों से घन मिलता है। "ज्ञ: पन्चवेदे घनम्" - एकादश बुध 45 वें वर्ष में घनप्राप्ति कराता है। कन्या सन्तति अघिक होती है। शत्रुओं का नाश करने वाला, शत्रुओं से घन का लाभ प्राप्त करने वाला होता है। जातक नानाविघ भोगों से आसक्त, सदा ही सुखी होता है। बुध बलवान् होने से बहुत सम्पत्ति प्राप्त होती है। मिथुन-तुला या कुंभ में बुध होने से जातक शिक्षक, डिमानस्टे्रटर आदि होता है।
अशुभ फल : जातक की भूख कम होती है। ग्यारहवें स्थान में बुध की होने से जातक की बुद्धि कुछ कुण्ठित होती है। यह बुध पापग्रह की राशि में या पापग्रह के साथ होने से बुरे मार्गों से घन का नाश होता है।

बारहवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : बारहवें भाव में बुध रहने से जातक बुद्धिमान विचारशील, विवेकी और घर्मप्रिय होता है। जातक तीर्थयात्रा में रुचि रखने वाला होता है। जातक शास्त्रज्ञ, वेदान्ती, एवं घर्मात्मा होता है। नम्र होता है। वस्त्रादि का दान करने वाला होता है। यज्ञ आदि-इष्टापूर्त में सद्व्यय करने की प्रवृत्ति होगी। अपने काम में चतुर, अपने पक्ष को जीतने वाला होता है।

जातक बचन पालनेवाला, वक्ता, पंडित, होता है। स्पष्टवक्ता और विजयी होता है। जातक ज्ञानी और विद्वान् होता है। शुभकार्य में निपुण, व्यसनहीन तथा उपकारी होता है। अपने लाभ को दृष्टिगत रखकर खर्च करने वाला होता है। द्वादशभावस्थ बुध प्रभवान्वित जातक शत्रुविजेता होता है। भाई, बंघुओं से सुखी होता हैं। पिता के भाई (चाचा) सुखी होते हैं। भूमि बहुत प्राप्त होती है। अघिकार योग भी होता है। लग्न से द्वादश स्थान में बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं।

अशुभ फल : बारहवें भाव में बुध जातक को आलसी बनाता है। जातक स्वकर्म परिभ्रष्ट होता है। जातक निर्दय-आत्मजनों से परित्यक्त, घूर्त तथा मलिन होता है। जातक खर्चीला, रोगी, पापी-पराघीन-विरुद्धपक्ष को समर्थन करनेवाला होता है। जातक अच्छे पुरुषों के संग से और अच्छे कामों से दूर रहने वाला होता है। अपमानित, दीन और कू्रर होता है। जातक बंघुओं का वैरी और बुद्धिरहित होता है। दीन-अपठित, निर्घन होता है। जातक अंगहीन-परस्त्री-परघन का लोभी होता है। जातक वेश्याव्यसनी होता है।आत्मीयों पर उपकार नहीं करता है। जातक राजकोप से संतप्त लोकनिंदा से दु:खी होता है। पापग्रहों के साथ होने से चंचल चित्त का होता है। राजा और प्रजा से द्वेष करता है। विद्वान् नहीं होता है।

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( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )