VISH KANYA YOG विष कन्या योग
ज्योतिष शास्त्र में विष कन्या योग सर्वविदित है। अतः वर वधु की जन्म कुंडली मिलान से पहले वधू की जन्म कुंडली में विष कन्या योग का भी विचार करना अति आवश्यक होता है। क्योंकि विषकन्य योग से युक्त कन्या से विवाह करने पर ऐसा विवाह सफल नहीं होता है। तो आइए जानते हैं जन्म कुंडली में विष कन्या योग का निर्माण जातिका की जन्म कुंडली में किस प्रकार से बनता है?
१, यदि किसी
जातिका का जन्म रविवार द्वितीया तिथि और सतभिषा नक्षत्र में होता है तो वह कन्या विषकन्या
होती है।
२, यदि किसी
जातिका का जन्म मंगलवार सप्तमी तिथि व अश्लेषा नक्षत्र में जन्म हुआ हो।
३, शनिवार,
द्वादश तिथि, कृतिका या विशाखा नक्षत्र में किसी जातिका का जन्म हो तो वह कन्या विषकन्या
होती है।
४, कुंडली के
पंचम भाव में शनी और सूर्य विद्यमान हो तब भी जातिका की जन्म कुंडली में विष कन्या
योग का निर्माण होता है।
५,यदि किसी
लड़की की जन्म कुंडली के लग्न में मंगल और सूर्य विद्यमान हो तो विषकन्या योग का निर्माण
होता है।
६, विष कन्या
योग में जन्म लेने वाली लड़की भाग्यहीन संतान हीन विधवा होती है।
७, किंतु यदि
जातिका की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में अथवा चंद्रमा से सप्तम भाव में शुभ ग्रह स्थित
हो तो विष कन्या योग कुछ मंदा हो जाता है।
८, परिहार के
रूप में हमारे वैदिक शास्त्र में विष कन्या योग से युक्त कन्या के विवाह से पूर्व शांति के वैदक पूजा पाठ का विधान है।
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