JANAM KUNDLI SE ROG HEALTH VICHAR जन्म कुंडली से रोग विचार
जन्म कुंडली
के द्वारा हम जातक को होने वाले रोगों का विचार भी करते हैं। इसके लिए मुख्य रूप से
जन्म कुडली के षष्ठम भाव ,अष्टम भाव व द्वादश भाव का प्रमुखता से विचार किया जाता है।
इसमें षष्टम अष्टम और द्वादश भाव में विद्यमान ग्रहों का विचार किया जाता है तथा 6
,8 ,12 भाव के स्वामी का विचार किया जाता है। इस प्रकार 6, 8, 12 भावो का अति सूक्ष्म
विवेचन करके ही हमें जातक को होने वाले रोग का फल कहना चाहिए। इनमें भी मुख्य रूप से
षष्टम, अष्टम भाव का विशेष अध्यन करना चाहिए,। इस प्रकार 6 8 12 भाव के अध्ययन से जो
ग्रह रोग कारक होता है उसका विचार करना चाहिए।
१, सूर्य
-:यदि रोग कारक ग्रह सूर्य हो तो निम्न रोग
जातक होते हैं। जैसे-पित्त रोग, नेत्र रोग, ज्वर रोग, हड्डी रोग, नाभि से नीचे के अंगों
में रोग, चर्म रोग, स्त्रियों की कोख में रोग, शरीर में जलन का होना, इत्यादि रोगों
का विचार सूर्य से किया जाता है।
२, चन्द्र
-: चंद्रमा रोग कारक होने की स्थिति में जातक को अनिद्रा, कफ संबंधी बीमारी, सर्दी
जुखाम बना रहना, फेफड़ों संबंधी बीमारियां, अपच, जल की कमी संबंधी बीमारियां, स्त्रियों
में मासिक धर्म संबंधी अनियमितता, मानसिक बीमारी, नेत्र संबंधी बीमारी इत्यादि।
३, मंगल -:जन्म
कुंडली में मंगल यदि रोग कारक ग्रह सिद्ध होता है उस स्थिति में मंगल के कारण जातक
को रक्त संबंधी बीमारियां, उच्च रक्तचाप ,चर्म रोग कैंसर ,शरीर के जोड़ों संबंधी बीमारी
,एक्सीडेंट, अंग भंग का होना इत्यादि। बीमारियों की होने की संभावना बनती है।
४, बुद्ध-:
रोग कारक होने की स्थिति में जातक को वाणी संबंधी विकार उत्पन्न प्रमुखता से करता है
अर्थात मुंह में छालों का होना ,मुंह का कैंसर होना, गला व नाक संबंधी रोगों का होना,
वात पित्त संबंधी बीमारियों का बढ़ना, शरीर में नशे संबंधी बीमारियों का होना, मन में
सदैव भ्रम का रहना आदि।
५, गुरु -:
गुरु के कारण जातक को मधुमेह ,याददाश्त में कमी, मोटापे का बढ़ना ,गुरदेकी बीमारियां,
लिवर का खराब होना ,कान संबंधी बीमारियां, पेट संबंधी बीमारियां प्रमुखता के साथ चातक
को परेशान करती है।
६, शुक्र
-:यदि जन्म कुंडली में रोग का कारक ग्रह शुक्र बनता है तो उस स्थिति में जातक को मूत्र
संबंधी रोग, गुप्तांग संबंधी रोग, जननांग संबंधी रोग, संतान उत्पत्ति में असमर्थता,
इत्यादि रोगों की समस्या रहती है।
७, शनि -: सोने
के कारण जातक को बात कब संबंधी बीमारि , घुटने संबंधी बीमारियां शरीर में थकावट का
बना रहना ,मानसिक अशांति, मांसपेशियों में सूजन का होना, लकवा व एक्सीडेंट जैसें कष्टों
का आना।
८, राहु -:
राहु रोग का कारक होने की स्थिति में जातक को हृदय रोग हृदय में जलन, विष के कारण उत्पन्न
बीमारियां, पैर में पीड़ा, मानसिक अशांति, आदि परेशानियां जातक को होती है।
९, केतु -:
केतु भी राहु जनित बीमारियां ही मुख्य रूप से जातक को प्रदान करता है।
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