Monday, September 27, 2021

SAPTSHATI PATH 64 CHATUSHASTI YOGINI सप्तशती पाठ चतुःषष्ठि योगिनी

SAPTSHATI PATH 64 CHATUSHASTI YOGINI सप्तशती पाठ चतुःषष्ठि योगिनी

चतुःषष्ठि योगिनी के देशकाल आधार पर भिन्न-भिन्न नाम बतलाये जाते हैं । दैनिक कर्म में पूजित ६४ योगिनियाँ अलग हैं तथा प्रत्येक चरित की महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती की भिन्न-भिन्न ६४ योगिनियाँ अलग हैं ।

प्रत्येक चरित के साथ क्रमशः उनका पाठ किया जा सकता है ।

९ दुर्गा की प्रत्येक की ९-९ योगिनी के आधार पर मध्यप्रदेश के भेड़ाघाट में ८१ योगिनियों के विग्रह हैं ।

दैनिक पूजन में योगिनी मण्डल हेतु ९ कोष्ठक बनायें । मध्य कोष्ठक में प्रधान योगिनी “सर्वसिद्धिदात्री” का पूजन करें । शेष अष्ट कोष्ठकों में अष्टदल बनायें । प्रत्येक कोष्ठक में ८-८ नाम हैं जिनको 1-1 अष्टक रुप में ८ अष्टक माने गये हैं । ८-८ योगिनियों के वर्ण व आयुध समान माने गये हैं । इस तरह अष्ट अष्टक रुप में योगिनियों के वर्ण व ध्यान हैं तथा उनके आयुधों का वर्णन हैं ।

प्रथम अष्टक सुवर्ण कान्तिवर्ण का है । द्वितीय प्रज्ज्वल कान्तिवर्ण, तृतीय नीलवर्ण, चतुर्थ धूम्रवर्ण, पञ्चम श्वेतवर्ण, षष्ठम पीतवर्ण, सप्तम रक्तवर्ण, अष्टम विद्युतकान्ति का वर्ण है ।

षष्ठम, सप्तम, अष्टम वर्णों की योगिनियों के आयुध पञ्चम के समान हैं ।


।।अथ योगिनी ध्यानम्।।

अष्टाष्टकं प्रवक्ष्यामि योगिनीनां समाक्षतः ।

आद्याष्टकं सुवर्णाभं त्रिशूलं डमरुं तथा ।। १ ।।

पाशं चासिं दधानं तद्ध्यायेत् सर्वांग-सुन्दरम् ।

अथ द्वितीयकं ध्यायेद् अक्षमाला मयांकुशम् ।। २ ।।

दधानं पुस्तकं वीणां सुश्वेतमणि भूषणाम् ।

ज्वालां शक्तिं गदां कुन्तं दधातं नीलवर्णकम् ।। ३ ।।

ध्यायेतृतीय शुभदमष्टकं शुभलक्षणम् ।

खड्ग खेटं पट्टिशं च दधानं परशुं तथा ।। ४ ।।

धूम्रवर्णं चतुर्थे तद ध्यायेदष्टमादरात् ।

कुन्तं खेटं च परिघं भिन्दीपालं तथैव च ।। ५ ।।

पञ्चमाष्टक मेतद्धि श्वेतं स्यात् सुमनोहरम् ।

पीतं षष्टमृषि रक्तमेष्टमं च तडित् प्रभाम् ।। ६ ।।

कुन्तादिकं समं प्रोक्तं षडारभ्याष्टमान्तकम् ।

दिव्ययोगा महायोगा सिद्धयोगा महेश्वरी ।। ७ ।।

पिशाचिनी डाकिनी च कालरात्रि निशाचरी ।

कंकाली रौद्री वैताली हुंकारी भुवनेश्वरी ।। ८ ।।

उर्ध्वकेशी विरुपाक्षी शुष्कांगी नरभोजिनी ।

फट्कारी वीरभद्रा च धूम्राक्षी कलहप्रिया ।। ९ ।।

रक्ताक्षी राक्षसी घोरा विश्वरुपा भयंकरी ।

कामाक्षी चोग्रा चामुण्डा भीष्णा त्रिपुरान्तिका ।। १० ।।

वीर कौमारिका चण्डी वाराही मुण्डधारिणी ।

भैरवी हस्तिनी क्रोधा दुर्मुखी प्रेतवाहिनी ।। ११ ।।

खड्गवांगदीर्घलम्बोष्ठि मालतीमन्त्रयोगिनी ।

अस्थिनी चक्रिणी ग्राहाः कंकाली भुवनेश्वरी ।। १२ ।।

कंटकी कारकी शुभ्रा क्रिया दूति करालिनी ।

खड्गिनी पद्मिनी क्षीराः हयसंधा च प्रहारिणी ।। १३ ।।

लक्ष्मीश्च कामुकी लोला काकदृष्टिर्अधोमुखी ।

धुर्जटी मालिनी घोरा कपाली विषभोजिनी ।। १४ ।।

चतुष्षष्ठीः समाख्याता योगिन्यो वरसिद्धिदा ।। १५ ।।

(विशेषः- ७ दिव्ययोगा से श्लोक १४ तक के योगिनी नाम ६४ से अधिक हैं ।)


।। अथ चरितानां योगिनी भेदाः ।।

प्रथम-मध्यम तथा उत्तर चरित के आधार पर महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती की ६४-६४ योगिनियाँ निम्न प्रकार हैं –

।। १॰ सप्तशती नायिका महाकाल्याश्चतुः षष्ठि योगिन्यः ।।

जया च विजया चैव जयन्ति चापराजिता ।

दिव्यापूर्वायोगिनी च महापूर्वाथ योगिनी ।। १

सिद्धपूर्वा योगिनी च ततस्त्वथ गणेश्वरी ।

प्रेताशिनी डाकिनी चाथ कमला तु ततो मता ।। २

कारात्रि ततः प्रोक्ता ततः टंकारिणी मता ।

रौद्री चैवाऽथ वेताली हुंकारी ऊर्ध्वकेशिनी ।। ३

विरुपाक्षी च शुष्कांगी ततस्तु नरभोजिनी ।

फेत्कारी चोर चन्द्री च धूम्राक्षी कलहप्रिया ।। ४

राक्षसी घोररक्ताक्षी विश्वरुपी भयंकरी ।

चण्डयन्ता चण्डमारी वाराही मुण्डधारिणी ।। ५

भैरवी ततः ऊर्ध्वाक्षी दुर्मुखी प्रेतवाहिनी ।

खट्वांगी चैव लम्बोष्ठी मालिनीमतियोगिनी ।। ६

काली रक्ता च कंकाली ततस्तु भुवनेश्वरी ।

त्रोटाकी च माहामारी यमदूती करालिनी ।। ७

केशिनि मेदिनी चैव रोम गंगाप्रवाहिनी ।

विडाली चैव कान्तिश्च लोली चाथ जया स्मृता ।। ८

अधोमुखी ततः प्रोक्ता ततश्चण्डोग्रधारिणी ।

व्याघ्री ततः कांक्षिणी च ततस्तु प्रेतभक्षिणी ।। ९

धुर्जटी विकटा चैव घोरा चाथ कपालिनी ।

विषलम्बिनी ततः प्रोक्ता योगिन्यः सक्रमं इमाः ।।

महाकाल्याश्च चतुष्षष्ठिः पूजनीया विधान तः ।


।।२॰ सप्तशती नायिका महालक्ष्म्यातुः षष्ठि योगिन्यः।।

दक्षकर्णा राक्षसी च क्षयन्ती च तथा पुनः ।

छाया क्षया पिंगलाक्षी अक्षया नाशिनी तथा ।। १

इलाइलावती चैव लया लीना तया मता ।

लंका लंकेश्वरी चैव लरसा विमला तथा ।। २

हुताशनी विशालाक्षी हुंकारी वडवामुखी ।

महारवा महाक्रूरा क्रोधिनी च खरानना ।। ३

सर्वज्ञा तरला तारा ततः श्रृग्वेदिनी मता ।

रौद्री तथा च सरसा ततस्तु रससंग्रहा ।। ४

शर्वरी तालजंघा च रक्ताक्षी ततः परम् ।

विद्युज्जिह्वा करंकिणी मेथ नादा ततो मता ।। ५

चण्डोग्रा कालकर्णा च तथा चैव द्विपातना ।

पद्मा पद्मावती चैव प्रपञ्चा ज्वलितानना ।। ६

पिचुवक्त्रा पिशाची च पिशिताशी च लोलुपा ।

पार्चती पावनी चैव तापिनी वामिनी तथा ।। ७

विकृतपूर्वाऽऽज्ञया चैव वृहत्कुक्षिस्ततः परम् ।

दंष्ट्राली विश्वरुपी च यमज्ह्वा ततो मता ।। ८

जयन्ती च दुर्जाया च तथा चैव यमान्तिका ।

विडाला रेवती चाथ प्रेताशी विजया तथा ।। ९

महालक्ष्म्यास्तु योगिन्यश्चतुष्षष्ठि क्रमादिमाः ।

पूजनीयाः प्रयत्नेन सिद्धिकामैस्तु साधकै ।। १०


।।३॰ सप्तशती नायिकाया महासरस्वत्याः चतुष्षष्ठि योगिन्यः।।

पिंगलाक्षी विषलाभी समृद्धिर्वद्धिरेव च ।

श्रद्धा स्वाहा स्वधा भिक्षा माया संज्ञा वसुन्धरा ।। १

त्रैलोक्यधात्री सावित्री गायत्री त्रिपदेश्वरी ।

सुरुपा बहुरुपा च स्कन्दमाताऽच्युत् प्रिया ।। २

विमला कमला चैव दारुणी चारुणी तथा ।

प्ेकृतिविकृतिश्चैव सृष्टि स्थितिश्च संहृति ।। ३

सन्ऽधया माता सती हंसी तथा च मदवर्जिका ।

परा तथा देवमाता ततो भगवती किल ।। ४

देवकी चैव कमलालका च त्रिमुखी तथा ।

सप्तमुखी ततो देवी सुरासुर विमर्दिनी ।। ५

लम्बोष्ठि ऊर्ध्वकेशी च ततो बहुशिरा मता ।

वृकोदरी रथरेखा शशिरेखा ततः परम् ।। ६

गगनवेगा पवनवेगा भुवनपाला तथा मता ।

मदनातुरा अनंगा च अनंगमदना तथा ।। ७

अनंगमेखलाऽनणगकुसमा च ततो मता ।

विश्वरुपा तथा चैवाऽसुर-पूर्वाभयंकारी ।। ८

अक्षोभ्या च तथा देवी मतावै सत्यवादिनी ।

वज्ररुपा वज्ररेखा तथा सूचिव्रता मता ।। ९

वरदा चैव वागीशी चतुष्षष्ठी क्रमेण तु ।

महापूर्वासरस्वत्याः योगिन्यस्तु मता इमा ।। १०

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