Monday, September 20, 2021

PURUSH VYABHICHARI YOG पुरुष व्यभिचारी योग

PURUSH VYABHICHARI YOG पुरुष व्यभिचारी योग


जिस प्रकार प्राचीन ग्रन्थों में स्त्री के व्यभिचारी योग बताये है उसी प्रकार पुरुष के भी व्यभिचारी योग बताये है। जिस प्रकार स्त्री किसी अनजान पुरुष की तरफ ग्रह योग से आकर्षित होती है उसी तरह पुरुष भी ग्रह योग से अनजान महिला की तरफ आकर्षित हो जाते है। ऐसा नही है कि ये योग अभी ही बने है। प्राचीन काल में भी इन योगों का फल देखने को मिलता था। कहावत भी है कि बुराई तो भगवान के घर से ही चली आ रही है. पहले के समय में भी राजा महाराजा किसी सुंदर स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाते थे चाहे वो दासी हो या अन्य कोई महिला। उन योगो का संक्षिप्त विवेचन इस प्रकार है।

  • लग्न में यदि दूसरा , सातवां, छठा, भाव का मालिक के साथ शुक्र हो तो पुरुष अन्य महिलाओं की तरफ जल्दी आकर्षित होता है।
  • यदि लग्न व छठे भाव का स्वामी एक साथ पापी ग्रह के साथ हो तो व्यक्ति व्यभिचारी होता है।
  •  तीसरे , छठे , सातवें , या बारहवें भाव में से किसी भाव में शुक अथवा दूसरे भाव का स्वामी हो और उस पर पापी ग्रह की दृष्टि हो तो भी व्यक्ति व्यभिचार करता है।
  • यदि पहले भाव के स्वामी पर पाप ग्रह की दृष्टि हो अथवा किसी भी तरह से प्रभावित हो तो व्यक्ति व्यभिचार करता है।
  • यदि दूसरे सातवें व दसवे भाव के मालिक एक साथ दसवें भाव में हो तो भी व्यक्ति दुराचार करते है।
  • यदि पहले भाव , दूसरे भाव , तथा छठें भाव का स्वामी किसी पाप ग्रह के साथ सप्तम भाव में बैठा हो तो व्यक्ति निश्चित रूप से व्यभिचार करता है।
  • यदि बारहवें भाव में शुक्र हो अथवा बारहवें भाव पर शुक्र की दृष्टि हो तथा बारहवें भाव में राहु बैठा हो तो भी व्यक्ति को सम्पूर्ण शय्या सुख मिलता है . 

यदि किसी व्यक्ति के कुंडली में इस प्रकार के योग हो तो वह व्यक्ति सदैव महिलाओ की तरफ आकर्षित होता है। वह हर महिला में अपनी संतुष्टि ढूंढता है।

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )