GEMS RATAN रत्न धारण विधि
ज्योतिष शास्त्र
में सूर्यादि नव ग्रहों के माणिकादी नवरत्नों का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक ग्रह
का एक विशेष रत्न व उपरत्न होता है। जिसको धारण करके हम ग्रह के अनुसार आने वाली समस्या
का समाधान प्राप्त करके जीवन में विशेष फल प्राप्त करते हैं। तो आइए इसी क्रम में आज
हम ग्रहों के नवरत्नों के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं।
माणिक्य
-:
मानिक के सूर्य
का रत्न होता है। सूर्य से शुभ फल प्राप्त करने के निमित्त हम माणिक धारण करते हैं। माणिक कम से कम 3 रत्ती का होना
चाहिए और इसे रविवार के दिन कृतिका, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में स्वर्ण
अथवा तांबे में जडवा कर अनामिका अंगुली में धारण किया जाता है। सिंह राशि का स्वामी
भगवान सूर्यदेव होते हैं। अतः विशेषकर सिंह राशि के जातकों के लिए माणिक अति शुभ फल
प्रदान करने वाला होता है।
मोती -:
मोती चंद्रदेव
का रत्न होता है। चंद्र देव की कृपा प्राप्त करने के लिए जातक को मोती रत्न धारण करवाया
जाता है। कर्क राशि के स्वामी चंद्र देव होते है। कर्क राशि के जातकों के लिए मोती
अति शुभ फल दायक होता है। मोती कम से कम छः रति का होना चाहिए, और इसे शुक्ल पक्ष में
रोहिणी ,हस्त ,श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार के दिन चांदी में जड़वा कर तर्जनी अंगुली में
धारण किया जाता है।
मूंगा
-:
मंगल देव का
रत्न मूंगा होता है तथा मंगल देव मेष,व वृश्चिक राशि के स्वामी होते हैं। अतः मेष व
वृश्चक राशि के जातकों के लिए मूंगा विशेष होता है। मूंगा रत्न कम से कम 6 रत्ती का
होना चाहिए और इसे शुक्ल पक्ष के मंगलवार के दिन मृगशिरा, चित्रा ,धनिष्ठा नक्षत्र
में स्वर्ण या तांबा में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए।
पन्ना
-:
बुद्धदेव का
रत्न पन्ना होता है और बुद्धदेव मिथुन व कन्या राशि के स्वामी होते हैं। अतः मिथुन
व कन्या राशि के जातकों के लिए पन्ना रत्न शुभ होता है। पन्ना कम से कम 3 से 6 रत्ती
का होना चाहिए और इसे शुक्ल पक्ष के बुधवार के दिन आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती नक्षत्र
में स्वर्ण या तांबे में जड़वा कर कनिष्ठा अंगुली में धारण करना चाहिए।
पुखराज
-:
गुरुदेव बृहस्पति
का रत्न पुखराज होता है ।और बृहस्पति धनु व मीन राशि के स्वामी बनते हैं। अतः धनु और
मीन राशि के जातकों के लिए पुखराज रत्न धारण करना अति शुभ फलदायक होता है। पुखराज कम
से कम 4 रत्ती का होना चाहिए, और इसे शुक्ल पक्ष के गुरूवार के दिन पुनर्वसु ,विशाखा
,पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में स्वर्ण या तांबा में जड़वा कर तर्जनी अंगुली में धारण किया
जाना चाहिए।
हीरा -:
देव गुरु शुक्र
का रत्न हीरा होता है और शुक्र देव वृष और तुला राशि के स्वामी होते हैं। अतः वृष व
तुला राशि के जातकों के लिए हीरा शुभ होता है। हीरा कम से कम एक रत्ती का होना चाहिए।
इसे शुक्ल पक्ष में शुक्रवार के दिन भरनी ,पूर्वाफाल्गुनी ,पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में
चांदी में जड़वा कर तर्जनी अंगूली में धारण किया जाता है।
नीलम -:
शनिदेव का प्रमुख
रत्न नीलम होता है। तथा शनि देव मकर व कुंभ राशि के स्वामी होते हैं। अतः मकर व कुंभ
राशि के जातकों के लिए नीलम धारण करना अति शुभ होता है। नीलम कम से कम 4 रत्ती का होना
चाहिए। इसे शनिवार के दिन पुष्य, अनुराधा, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में पंचधातु अथवा चांदी में मध्यमा अंगुली में धारण
किया जाता है।
गोमेद
-:
गोमेद राहु
देव का रत्न होता है। राहु यदि जन्म कुंडली में योगकारक हो तब ही गोमेद धारण करना चाहिए
अन्यथा नहीं,। गोमेद कम से कम 6 रत्ती का होना चाहिए और इसे शनिवार के दिन आद्रा, स्वाति,
शतभिषा नक्षत्र में पंच धातु में जड़वा कर
मध्यमा अंगुली में धारण किया जाना चाहिए।
लहसुनियां
-:
लहसुनियां केतु देव का रत्न होता है। लहसुनिया कम से कम 3 रत्ती का होना चाहिए और इसे मंगलवार के दिन
अश्विनी, मघा, मूल नक्षत्र में पंचधातु अथवा चांदी में जड़वा कर मध्यमा अंगुली में
धारण करना चाहिए।
रत्न धारण विधि
अंगूठी बनाते
समय रत्न को इस प्रकार जुड़वाना चाहिए, कि रत्न का निचला भाग अंगूठी धारण करने वाले
व्यक्ति की त्वचा का स्पर्श करता रहे। अंगूठी सदैव शुक्ल पक्ष में ही बनवा कर धारण
करें। माणिक्य, मूंगा, पन्ना ,पुखराज और हीरा रत्न को सदैव प्रातकाल संबंधित बार का
होरा देख कर धारण करना चाहिए। तथा जब चंद्रमा
दिखाई देता हो तब मोती धारण करना चाहिए। नीलम, गोमेद ,लहसुनिया को सूर्यास्त के बाद
वार का होरा अर्थात सूर्यास्त से एक घंटे के भीतर
धारण करना चाहिए।।
रत्न धारण करने
से पहले अंगूठी को शुद्ध जल व कच्चादूध से अभिषेक करें तत्पश्चात अपने आराध्य देव के
सामने दीपक जलाकर अंगूठी को धूपबत्ती दिखावे। फिर संबंधित ग्रह के बीज मंत्र का
108 बार जाप करें। तत्पश्चात अपने आराध्य देव व संबंधित ग्रह का ध्यान करते हुए अंगूठी
धारण करें।
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