GRAHON KI YUTI ग्रहों की युति का निर्णय
सामान्य रूप
से जब हम कुंडली का विश्लेषण करते हैं तो देखते हैं कि जब कोई दो ग्रह युति बनाकर कोई
विशेष योग का निर्माण कर रहे हैं जो कि जातक के लिए बहुत शुभ होता दिखाई दे रहा है।
किंतु जब उस योग के फलीभूत का समय आता है।तो उस योग का परिणाम जातक को नहीं मिल पाता
है। जब हम ज्योतिषी झुठे साबीत होते हैं। अतः आज हम जानेंगे की ग्रहों की युति का फल
किस प्रकार जातक को प्राप्त होता है। और हमें किसी भी योग के फलों को कहने से पहले
किन-किन बातों का मुख्य रूप से ध्यान रखना चाहिए?
जन्म कुंडली
में जब दो ग्रह या दो से अधिक ग्रह एक साथ युति में विद्यमान होकर किसी विशिष्ट योग
का निर्माण करते हैं। किंतु उस योग का फल जातक को उस स्थिति में ही प्राप्त होता है।
जब योग बनाने वाले ग्रह जातक की जन्म कुंडली में योगकारक हो यदि उनमें से एक भी ग्रह
मारक हो तो वह योग निष्फल हो जाता है। साथ ही योग का निर्माण करने वाले ग्रहों का बलाबल
भी समुचित होना चाहिए। यदि उनमें से किसी भी एक ग्रह का अंश बल कम होता है तो वह योग
सही तरह से फलीभूत नहीं हो पाता है। इसी के साथ योग बनाने वाले ग्रहों की डिस्टेंस
दूरी अधिक नहीं होनी चाहिए जैसे यदि एक ग्रह 3 डिग्री पर और दूसरा 25 डिग्री पर हो
तो इनकी डिस्टेंस बहुत अधिक होने कारण यह योग जातक को परिणाम नहीं दे पाएगा।
इसी प्रकार
योग निर्माण करने वाली ग्रह सूर्य से अस्त नहीं होना चाहिए।
जैसे माना कि
किसी जातक की तुला लग्न की जन्म कुंडली है और उसमें चतुर्थ भाव में चंद्र गुरु की युति
बनी है। सामान्य रूप से जब हम इस कुंडली का विश्लेषण करते हैं तो देखते हैं कि केंद्र
भाव में गुरु चन्द्र की युति बन रही है और हम उसे गजकेसरी योग बताकर जातक को उसका फल
बता देते हैं। किंतु जब इस योग का जो फल होता है वह जातक को नहीं मिल पाता है। इसका
कारण यह है की योग बनाने वाले जैसा कि पूर्व में वर्णित है कि दोनों ग्रह योग कारक
होने चाहिए तो हमें देखना चाहिए कि यहां चंद्रमा दशम भाव का स्वामी है। इसलिए चंद्रदेव
यहां प्रबल योग कारक है। किंतु गुरुदेव बृहस्पति तीसरे व षष्टम भाव के स्वामी होने
के कारण जन्म कुंडली में प्रबल मारक होते हैं। इस कारण गुरुदेव बृहस्पति मारक होने
के कारण इस जन्म कुंडली में गजकेसरी योग नहीं बनेगा भले ही देखने में चंद्र गुरु की
युति हमें दिखाई पड़ रही है। इसी प्रकार जैसे मेष लग्न की जन्म कुंडली में दशम भाव
में चंद्र गुरु की युति बन रही है। जहां चंद्रदेव 5 अंश व गुरु 28 अंश के हैं। तब भी
यहां गजकेसरी योग का फल जातक को नहीं मिलेगा। जब तक की इसके समुचित उपाय नहीं किए जाते
हैं। इसका कारण यह है कि यद्यपि चंद्रदेव मेष लग्न की जन्म कुंडली में चतुर्थ भाव के
स्वामी होने के कारण योग कारक है और गुरु देव बृहस्पति भी नवम व द्वादश भाव के स्वामी
होकर योगकारक होंते है क्योंकि गुरु को यहां नवम भाव अर्थात त्रिकोण का भाव प्राप्त
हुआ है। अतः दोनों ही ग्रह योगकारक होकर केंद्र के दशम भाव में विद्यमान हैं अतः प्रबल
गजकेसरी योग का फल जातक को मिलना चाहिए। किंतु यहां जब हम गहराई से देखते हैं तो पाते
हैं कि चंद्रदेव पांच अंश व गुरु बृहस्पति 28 अंश पर है अर्थात दोनों ग्रहों के बीच
की डिस्टेंस में 23 डिग्री का अंतर आ रहा है अर्थात दोनों ग्रहों के मध्य दूरी बहुत
अधिक हो रही है। इस कारण यहां बृहस्पति एकादश
भाव के बहुत अधिक समीप जा रहे हैं। इसलिए इस योग का फल जातक को प्राप्त करने के लिए
चंद्रदेव के अंशों को बढ़ाने के लिए समुचित उपाय करेंगे तभी जाकर इस योग का फल जातक
को मिलेगा। इसी प्रकार यदि इसी योग में सूर्य
देव नवम भाव में 28 अंश पर हो तब भी यह योग फलीभूत नहीं होगा क्योंकि यहां सूर्य देव
चंद्र देव को अस्त कर देंगे। और यदि सूर्य देव एकादश भाव में पांच 7 डिग्री के मध्य
हो उस स्थिति में सूर्य बृहस्पति को अस्त करते हैं इस कारण इस स्थिति में भी यह योग बिगड़ जाता है।
अतः निष्कर्ष
रूप में जन्म कुंडली में किसी भी दो ग्रह के योग का फल कहने से पहले हमें उन दोनों
ग्रहों के मारक योगकारक स्थिति को देखना चाहिए। यदि दोनों ही ग्रह योग कारक होंगे उसी
स्थिति में ही वह योग शुभ होता है। दूसरा उन दोनों ग्रहों के बलाबल को देखना चाहिए।
इन दोनों ग्रहों के मध्य की डिस्टेंस का निर्णय करने के पश्चात ही योग का फल कहना चाहिए।
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