Friday, September 10, 2021

SHANI KA BHAV MEIN PHAL शनि का प्रत्येक भाव में फल

 SHANI KA BHAV MEIN PHAL शनि का प्रत्येक भाव में फल

यदि शनि अपनी उच्चराशि (तुला) या स्वराशि ( मकर या कुंभ) में स्थित होकर लग्न में हो तो राजा के समान हो। यदि किसी अन्य राशि में स्थित शनि यदि लग्न में हो तो बचपन में दुःख परिपीड़ित हो और बाद में भी दरिद्री, दुःखी, मलिन और आलसी हो।

यदि शनि दूसरे घर में हो तो उसका चेहरा देखने में अच्छा होगा। ऐसा व्यक्ति अन्याय मार्ग पर चलेगा और धनहीन होगा। किन्तु बाद में (जीवन के उत्तरार्द्ध में) वह अपना निवास स्थान छोड़कर किसी दूसरे स्थान पर चला जावेगा और वहां धन, सवारी तथा भोग (सुख के साधन) प्राप्त करेगा।

यदि तृतीय में शनि हो तो जातक, बहुत बुद्धिमान् और उदार हो तथा उसे स्त्री सुख भी प्राप्त हो। किन्तु वह आलसी और दुःखी होता है।

यदि जन्म कुण्डली में शनि चौथे घर में हो तो मनुष्य गृहहीन और मानहीन होता है। ऐसा व्यक्ति बचपन में रोगी भी रहता है। चतुर्थ सुख स्थान है। शनि यहां बैठकर सुख को नष्ट कर देता है इसलिये ऐसा मनुष्य सदैव दुःखी रहता है। चौथे घर से माता, मकान, यान (सवारी) आदि का विचार किया जाता है इसलिये इनके सुख में भी कमी करे

यदि पंचम में शनि हो तो मनुष्य शठ (शैतान) और दुष्ट बुद्धि वाला होता है और ज्ञान, सूत, घन तथा हर्ष इन चारों से रहित होता है-अर्थात् इन चीज की कमी करता है। ऐसा मनुष्य भ्रमण करता है।

यदि छठे घर में शनि हो तो जातक बहुत भोजन करने वाला, धनी, अपने शत्रुओं का नाश करने वाला (अर्थात् जातक के शत्रु को जातक ही हानि पहुंचावें), घृष्ट (ढीठ) अभिमानी होता है।

यदि सप्तम में शनि हो तो कुदार निरत (कुत्सित स्त्री में रत) दरिद्री और दुःखी होता है।

यदि अष्टम भाव में शनि हो तो जातक मलिन, बवासीर के रोग से पीड़ित धनहीन, क्रूर बुद्धि , भूखा हो और उसके मित्र उसकी अवहेलना करें।

यदि नवम में शनि हो तो भाग्यहीन, धनहीन, सन्तानहीन, पितृ हीन, धर्महीन होता है। नवम भाव से जिन बातों का विचार किया जाता है उन सबके सुख में कमी करता है।

शनि नवम में हो तो धार्मिक विचारों में क्रान्ति लावेगा। बलवान् शनि यदि धर्म स्थान पर बैठे और उसपर गुरु की शुभ दृष्टि हो तो मनुष्य धार्मिक तथा तपस्वी होता है। क्योंकि नवम तपस्या का स्थान है यहां शनि वैराग्य उत्पन्न करता है।

यदि दशम में शनि हो तो उत्कृष्ट फल है। ऐसा व्यक्ति राजा हो या राजा का मन्त्री हो, अत्यन्त धनी, प्रसिद्ध और शुर हो और कृषि कार्य में तत्पर हो। पहले कृषि कार्य सबसे उत्तम व्यवसाय माना जाता था इसीलिये ऐसा लिखा है आधुनिक समय में इसका अर्थ करना चाहिये कि उत्तम व्यवसाय करे

यदि म्यारहवें घर में शनि हो तो आय सहित, शूर, निरोगी (स्वस्थ), घनी, दीर्घायु और स्थिर सम्पत्ति वाला हो।

बारहवें भाव में शनि हो तो अनिष्ट फल है ऐसा व्यक्ति निर्लज्ज, धन हीन, पुत्र से वंचित, विकलांग (शरीर के किसी भाग में विकलता) और मूर्ख होता है उसके शत्रु उसे उत्सारित ( दूर फेंकना) कर देते हैं हमारा अनुभव है कि द्वादश में शनि दाँतों को भी खराब करता और नेत्रों को भी हानि पहुंचाता है

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )