DIVYA PITR TARPAN PRYOG दिव्य पितृ तर्पण प्रयोग:
दिव्य पितृ तर्पण प्रयोग:
- तर्पण करने से पूर्व शुध्द घी का दीपक जलाएं, धूप जलाएं, पितरों की पुष्प, गंध आदि से पूजा करें, फिर पाठ करें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे, श्वेत वस्त्र धारण करें, कुश के आसन पर बैठें, श्वेत चंदन का तिलक करें, सामने एक चौकी पे श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर चावल की ढेरी बनाये और उसपर एक शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं। साथ में केसर और जावित्री का धुप दें। प्रारंभिक पुजा विधान संपन्न कर, पितृ प्रसन्नता हेतु संकल्प करें और उस दिपक में पितरों का आवाहन कर पंचोपचार से पुजन करें। चावल की खीर का भोग लगाएं। अब पितृ तर्पण करें। अंत में क्षमा प्रार्थना कर पितरों से अपनी इच्छा व्यक्त करें। खीर का भोग कौओं को डाल दें।
।। अथ तर्पण एवं श्राध्दादि प्रयोग विधानम् ।।
।। अथ तर्पण प्रयोगः ।।
(गोपुच्छेदक तर्पण विधान सहित)
पितर दोष होने पर पितरों के निमित्त तर्पण प्रयोग अवश्य करे। तर्पण तीर्थ व नदी के तीर पर करे तो उत्तम रहे। संक्राति, पर्व तथा पितृ तिथी पर तर्पण तीर्थ व नदी तीर पर नहीं करे सके तो घर पर करे। कुल के पितरों के निमित्त अमावस्या या श्राध्द तिथि पर तर्पण करे।
ब्रह्महत्या, गौ हत्यादि दोष निमित्त गोपुच्छोदक से तर्पण करे। गाय की पूँछ पकड़कर तर्पण करे। सव्य पूर्वाभिमुख होकर दाहिने हाथ में कुश, अक्षत्, जल, पुष्प व गोपुच्छ लेकर तर्पण करें। तर्पण के जल को इकठ्ठा करने के लिये पूंछ के निचे कोई पात्र रख लेवें। हाथ में गोपुच्छ लेने में कठिनाई होतो पुच्छ के मोली बाँधकर हाथ में रख लेवें। तर्पण समस्य में दूसरा व्यक्ति हाथ में जल डालता जाये। तर्पण का जल नीचे रखे पात्र में छोड्ते जायें। गोपुच्छ तर्पण के पहले गोदान विधि में सवत्स गोपूजन करे।
यदि तर्पण प्रयोग घर पर ही कर रहे है तो एक पात्र में श्वेतगंध, तुलसीपत्र, चन्दन, तिल, यव, अक्षत्, पुष्प, कुशा, दूध एवं तीर्थोदक या गंगाजल डाले, उसके जल से तर्पण प्रयोग करे।
पवित्र होकर आसन पर बैठे दक्षिण हाथ की अनामिका में कुष की पवित्री धारण करे।
संकल्प – संवत्, अयन, मास, तिथ्यादि का उच्चारण करे पश्चात् कहे – सर्वे पितर देवा प्रीत्यर्थे श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं देव, ऋषि, मनुष्य, पितृतर्पणं करिष्यामहे। इसके बाद विश्वेदेवा का आवाहन करे।
विनियोग –
- तर्पण करने से पूर्व शुध्द घी का दीपक जलाएं, धूप जलाएं, पितरों की पुष्प, गंध आदि से पूजा करें, फिर पाठ करें।
- दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठे, श्वेत वस्त्र धारण करें, कुश के आसन पर बैठें, श्वेत चंदन का तिलक करें, सामने एक चौकी पे श्वेत वस्त्र बिछाकर उस पर चावल की ढेरी बनाये और उसपर एक शुद्ध देसी घी का दीपक जलाएं। साथ में केसर और जावित्री का धुप दें। प्रारंभिक पुजा विधान संपन्न कर, पितृ प्रसन्नता हेतु संकल्प करें और उस दिपक में पितरों का आवाहन कर पंचोपचार से पुजन करें। चावल की खीर का भोग लगाएं। अब पितृ तर्पण करें। अंत में क्षमा प्रार्थना कर पितरों से अपनी इच्छा व्यक्त करें। खीर का भोग कौओं को डाल दें।
।। अथ तर्पण एवं श्राध्दादि प्रयोग विधानम् ।।
।। अथ तर्पण प्रयोगः ।।
(गोपुच्छेदक तर्पण विधान सहित)
पितर दोष होने पर पितरों के निमित्त तर्पण प्रयोग अवश्य करे। तर्पण तीर्थ व नदी के तीर पर करे तो उत्तम रहे। संक्राति, पर्व तथा पितृ तिथी पर तर्पण तीर्थ व नदी तीर पर नहीं करे सके तो घर पर करे। कुल के पितरों के निमित्त अमावस्या या श्राध्द तिथि पर तर्पण करे।
ब्रह्महत्या, गौ हत्यादि दोष निमित्त गोपुच्छोदक से तर्पण करे। गाय की पूँछ पकड़कर तर्पण करे। सव्य पूर्वाभिमुख होकर दाहिने हाथ में कुश, अक्षत्, जल, पुष्प व गोपुच्छ लेकर तर्पण करें। तर्पण के जल को इकठ्ठा करने के लिये पूंछ के निचे कोई पात्र रख लेवें। हाथ में गोपुच्छ लेने में कठिनाई होतो पुच्छ के मोली बाँधकर हाथ में रख लेवें। तर्पण समस्य में दूसरा व्यक्ति हाथ में जल डालता जाये। तर्पण का जल नीचे रखे पात्र में छोड्ते जायें। गोपुच्छ तर्पण के पहले गोदान विधि में सवत्स गोपूजन करे।
यदि तर्पण प्रयोग घर पर ही कर रहे है तो एक पात्र में श्वेतगंध, तुलसीपत्र, चन्दन, तिल, यव, अक्षत्, पुष्प, कुशा, दूध एवं तीर्थोदक या गंगाजल डाले, उसके जल से तर्पण प्रयोग करे।
पवित्र होकर आसन पर बैठे दक्षिण हाथ की अनामिका में कुष की पवित्री धारण करे।
संकल्प – संवत्, अयन, मास, तिथ्यादि का उच्चारण करे पश्चात् कहे – सर्वे पितर देवा प्रीत्यर्थे श्रुति स्मृति पुराणोक्त फल प्राप्त्यर्थं श्री परमेश्वर प्रीत्यर्थं देव, ऋषि, मनुष्य, पितृतर्पणं करिष्यामहे। इसके बाद विश्वेदेवा का आवाहन करे।
विनियोग –
विश्वेदेवास आगतेत्यस्य प्रजापति ऋषिः गायत्री छन्दः, विश्वेदेवा देवताः तथा विश्वदेवा श्रृणुतेममित्यस ्य स्वयंभूर्ब्रह्म ा ऋषि त्रिष्टुप् छन्दः विश्वेदेवा देवताः आवाहने विनियोगः।
ॐ विश्वेदेवा स ऽआगतश्रुणुताम् इम हवम्। एदम्बर्हिर्निषद ित । विश्वेदेवाः श्रुणुतेम हवमेये ऽअन्तरिक्षेय उपद्यविष्ट ये अग्निजिह्वा उतवा यत्रजाआसद्यास्म िन्वर्हिषि मादयद्ध्वम् ।।आगच्छन्तु महाभागा विश्वेदवा महाबलाः ।। ये तर्पणेऽत्र विहिताः सावधाना भवन्तु ते ।।
।। देवतर्पण ।।
दर्भा हाथ में लेकर अंगुलियों के अग्रभाग देवतीर्थ से एकएक अंजलि हेकर पूर्वाभिमुख सव्स होकर प्रदान कर तर्पण करें।
ॐ तीर्थानि तृप्यन्ताम् । ॐ तिर्थदेवास्तृप् यन्ताम् । ॐ विश्वेदेवास्तृप ्यन्ताम् । ॐ मोदास्तृप्यन्ता म् । ॐ प्रमोदास्मृप्यन ्ताम् । ॐ सुमुखास्तृप्यन् ताम् । ॐ दुर्मुखास्तृप्य न्ताम् । ॐ अविघ्नास्तृप्यन ्ताम् । ॐ विघ्नकर्तास्तृप ्यन्ताम् । (कहीं कहीं शुरू के इन नव तर्पणों का लेख नहीं है) ॐ ब्रह्मास्तृप्यन ्ताम् । ॐ विष्णुस्तृप्यन् ताम् । ॐ रूद्रस्तृप्यन्त ाम् । ॐ प्रजापतिस्तृप्य न्ताम् । ॐ मनवस्तृप्यन्ताम ् । ॐ देवास्तृप्यन्ता म् । ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम ् । ॐ रूद्रातिपुत्रास ्तृप्यन्ताम् । ॐ छन्दा र्ठसितृप्यन्ताम ् । ॐ वेदास्तृप्यन्ता म् । ॐ साध्यास्तृप्यन् ताम् । ॐ मरूद्गणास्तृप्य न्ताम् । ॐ ग्रहास्तृप्यन्त ाम् । ॐ नक्षत्राणिस्तृप ्यन्ताम् । ॐ योगास्तृप्यन्ता म् । ॐ राशयस्तृप्यन्ता म् । ॐ पुराणार्चस्तृप् यन्ताम् । ॐ गन्धर्वास्तृप्य न्ताम् । ॐ वसुधास्तृप्यन्त ाम् । ॐ इतराचार्यस्तृप् यन्ताम् । ॐ संवत्सरः सावयवस्तृप्यन्त ाम् । ॐ अश्विनौ तृप्यन्ताम् । ॐ देव्यस्तृप्यन्त ाम् । ॐ अस्परसस्तृप्यन् ताम् । ॐ देवानुगास्तृप्य न्ताम् । ॐ नागास्तृप्यन्ता म् । ॐ यक्षास्तृप्यन्त ाम् । ॐ रक्षांसि तृप्यन्ताम् । ॐ रूद्रास्तृप्यन् ताम् । ॐ पिशाचास्तृप्यन् ताम् । ॐ सुपर्णास्तृप्यन ्ताम् । ॐ भूतानि तृप्यन्ताम् । ॐ पशवस्तृप्यन्ताम ् । ॐ वनस्पतयस्तृप्यन ्ताम् । ॐ ओषधयस्तृप्यन्ता म् । ॐ भूतग्राम चतुर्विधस्तृप्य न्ताम् । ॐ योगिनस्तृप्यन्त ाम् । ॐ विद्याधरास्तृप् यन्ताम् । ॐ दिग्गजास्तृप्यन ्ताम् । ॐ देवगणास्तृप्यन् ताम् । ॐ देवपत्न्यस्तृप् यन्ताम् । ॐ लोकपालास्तृप्यन ्ताम् । ॐ नारदस्तृप्यन्ता म् । ॐ जन्तवस्तृप्यन्त ाम् । ॐ स्थावरास्तृप्यन ्ताम् । ॐ जङ्गमास्तृप्यन् ताम् ।
।। ऋषि तर्पण ।।
निम्नलिखित ऋषियों को भी एक अंजलि प्रदान करें ।
ॐ मरीचिस्तृप्यन्त ाम् । ॐ अत्रिस्तृप्यन्त ाम् । ॐ अंगिरास्तृप्यन् ताम् । ॐ पुलस्त्यस्तृप्य न्ताम् । ॐपुलहस्तृप्यन्त ाम् । ॐ क्रतुस्तृप्यन्त ाम् । ॐ वसिष्ठस्तृप्यन् ताम् । ॐ प्रचेतास्तृप्यन ्ताम् । ॐ भृगुस्तृप्यन्ता म् । ॐ नारदास्तृप्यन्त ाम् ।
।। दिव्य मनुष्य तर्पण ।।
उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठे। यज्ञोपवीत व अंगोछे को कण्ठी के समान गले में लपेट लेवें। सीधा बैठें घुटने जमीन पर नहीं लगायें । अर्घ पात्र में जौ छोड़े। तीन कुशाओं को उत्तराग्र रखते हुये हाथ में पकड़े तथा कायतीर्थ अर्थात् कुशों को दाहिने हाथ की कनिष्ठिका के मूलभाग में रखकर दो दो अंञ्जलि जल तर्पण करें ।
विनियोग – सप्तऋषय इति मन्त्रस्य कूर्म ऋषिः जगति छन्दः सप्तऋषयो देवता ऋष्यावाहने विनियोगः ।
मन्त्र – ॐ सप्तऋषयः प्रतिहिताः शरीरे सप्तरक्षन्ति सदमप्रमादम् । सप्तापः स्वपतोलोकमीयुस् तत्र जागृतो अस्वप्न जौसत्र सदौ च देवौ।
ॐ सनकस्तृप्यन्ताम ् । ॐ सनन्दनस्तृप्यन् ताम् । ॐ सनातनस्तृप्यन्त ाम् । ॐ कपिलस्तृप्यन्ता म् । ॐ आसुरिस्तृप्यन्त ाम् । ॐ वोढुस्तृप्यन्ता म् । ॐ पञ्चशिखस्तृप्यन ्ताम् ।
।। दिव्यपितृ तर्पण ।।
दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके अपसव्य होवे अर्थात् यज्ञोपवत को दाहिने कंधे पर रखकर बाँये हाथ के निचे ले जायें । अंगोछे को दाहिने कंधे पर रखें । बाँया घुटना जमीन पर लगाकर बैठें । अर्घपात्र में तिल छोडें । कुशाओं को बीच से मरोड़कर उनकी जड़ और अग्रभाग को दाहिने हाथ में तर्जनी और अंगुष्ठ के मध्य में रखे । पितृतीर्थ अर्थात् अंगुष्ठ और तर्जनी के मध्य से तीन तीन अञ्जलि तर्पण करें ।
(यदि गोपुच्छोदक से तर्पण कर रहे हो तो निम्न सात मन्त्रों को इस प्रकार पढें – ॐ कव्यवाडनलस्तृप् यंतामिदं सतिलं गापुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः । इस प्रकार स्वधा सहित 3-3 अञ्जलि जल देवें ।)
साधारण तर्पण में प्रत्येक मन्त्र से 3-3 अंञ्जलि दें । नाम के साथ “इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः ।” इस प्रकार अञ्जली देवें ।
ॐ कव्यवाडनलस्तृप् यन्ताम् । ॐ सोमस्तृप्यन्ताम ् । ॐ यमस्तृप्यन्ताम् । ॐ अर्यमास्तृप्यन् ताम् । ॐ अग्निस्तृप्यन्त ाम् । ॐ पितरस्तृप्यन्ता म् । ॐ सोमपाः पितरस्तृप्यन्ता म् । ॐ बर्हिषद पितरस्तृप्यन्ता म् ।
।। चतुर्दश यम तर्पण ।।
निम्नलिखित प्रत्येक नाम मन्त्र से यमराज को पितृतीर्थ से ही दक्षिणाभिमुख होकर तिलादि से 3-3 अञ्जलि देवें । क्योंकि पितृतीर्थ के तर्पण हैं अतः स्वधा युक्त तर्पण 3 बार करें ।
ॐ यमाय नमः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः ।। ॐ धर्मराजाय नमः इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः
इसी प्रकार प्रत्येक नाम के पश्चात् इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । उच्चारण करें ।
ॐ मृतवे नमः० । ॐ अन्तकाय नमः० । ॐ वैवस्वताय नमः० । ॐ कालाय नमः० । ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः० । ॐ औदुम्बराय नमः० । ॐ दघ्नाय नमः० । ॐ नीलाय नमः० । ॐ परमेष्ठिने नमः० । ॐ वृकोदराय नमः० । ॐ चित्राय नमः० । ॐ चित्रगुप्ताय नमः० ।
।। पित्र्यादि तर्पण ।।
दाहिने हाथ में तिल, जल, मोटक लेकर अपसव्य दक्षिणामुख हो बायाँ घुटना जमीन पर टिकार पित्र्यादि का 3 बार तर्पण करें ।
।। प्रथम गोत्र ।।
पिता – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मपिता वसुस्वरूपः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । (यदि गोपुच्छोदक से तर्पण करें तो कहें – इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः ।)
पितामह – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मत्पितामह रूद्ररूपः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः ।
प्रपितामह – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मत्प्रपितामह आदित्यरूपः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः ।
ॐ विश्वेदेवा स ऽआगतश्रुणुताम् इम हवम्। एदम्बर्हिर्निषद
।। देवतर्पण ।।
दर्भा हाथ में लेकर अंगुलियों के अग्रभाग देवतीर्थ से एकएक अंजलि हेकर पूर्वाभिमुख सव्स होकर प्रदान कर तर्पण करें।
ॐ तीर्थानि तृप्यन्ताम् । ॐ तिर्थदेवास्तृप्
।। ऋषि तर्पण ।।
निम्नलिखित ऋषियों को भी एक अंजलि प्रदान करें ।
ॐ मरीचिस्तृप्यन्त
।। दिव्य मनुष्य तर्पण ।।
उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठे। यज्ञोपवीत व अंगोछे को कण्ठी के समान गले में लपेट लेवें। सीधा बैठें घुटने जमीन पर नहीं लगायें । अर्घ पात्र में जौ छोड़े। तीन कुशाओं को उत्तराग्र रखते हुये हाथ में पकड़े तथा कायतीर्थ अर्थात् कुशों को दाहिने हाथ की कनिष्ठिका के मूलभाग में रखकर दो दो अंञ्जलि जल तर्पण करें ।
विनियोग – सप्तऋषय इति मन्त्रस्य कूर्म ऋषिः जगति छन्दः सप्तऋषयो देवता ऋष्यावाहने विनियोगः ।
मन्त्र – ॐ सप्तऋषयः प्रतिहिताः शरीरे सप्तरक्षन्ति सदमप्रमादम् । सप्तापः स्वपतोलोकमीयुस्
ॐ सनकस्तृप्यन्ताम
।। दिव्यपितृ तर्पण ।।
दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके अपसव्य होवे अर्थात् यज्ञोपवत को दाहिने कंधे पर रखकर बाँये हाथ के निचे ले जायें । अंगोछे को दाहिने कंधे पर रखें । बाँया घुटना जमीन पर लगाकर बैठें । अर्घपात्र में तिल छोडें । कुशाओं को बीच से मरोड़कर उनकी जड़ और अग्रभाग को दाहिने हाथ में तर्जनी और अंगुष्ठ के मध्य में रखे । पितृतीर्थ अर्थात् अंगुष्ठ और तर्जनी के मध्य से तीन तीन अञ्जलि तर्पण करें ।
(यदि गोपुच्छोदक से तर्पण कर रहे हो तो निम्न सात मन्त्रों को इस प्रकार पढें – ॐ कव्यवाडनलस्तृप्
साधारण तर्पण में प्रत्येक मन्त्र से 3-3 अंञ्जलि दें । नाम के साथ “इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः ।” इस प्रकार अञ्जली देवें ।
ॐ कव्यवाडनलस्तृप्
।। चतुर्दश यम तर्पण ।।
निम्नलिखित प्रत्येक नाम मन्त्र से यमराज को पितृतीर्थ से ही दक्षिणाभिमुख होकर तिलादि से 3-3 अञ्जलि देवें । क्योंकि पितृतीर्थ के तर्पण हैं अतः स्वधा युक्त तर्पण 3 बार करें ।
ॐ यमाय नमः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः ।। ॐ धर्मराजाय नमः इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः
इसी प्रकार प्रत्येक नाम के पश्चात् इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । उच्चारण करें ।
ॐ मृतवे नमः० । ॐ अन्तकाय नमः० । ॐ वैवस्वताय नमः० । ॐ कालाय नमः० । ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः० । ॐ औदुम्बराय नमः० । ॐ दघ्नाय नमः० । ॐ नीलाय नमः० । ॐ परमेष्ठिने नमः० । ॐ वृकोदराय नमः० । ॐ चित्राय नमः० । ॐ चित्रगुप्ताय नमः० ।
।। पित्र्यादि तर्पण ।।
दाहिने हाथ में तिल, जल, मोटक लेकर अपसव्य दक्षिणामुख हो बायाँ घुटना जमीन पर टिकार पित्र्यादि का 3 बार तर्पण करें ।
।। प्रथम गोत्र ।।
पिता – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मपिता वसुस्वरूपः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । (यदि गोपुच्छोदक से तर्पण करें तो कहें – इदं सतिलं गोपुच्छोदकं तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः । तस्मै स्वधा नमः ।)
पितामह – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मत्पितामह रूद्ररूपः इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः ।
प्रपितामह – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मत्प्रपितामह
माता – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्ममाता गङ्गा र्पिणी इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलम तस्मै स्वधा नमः ।
पितामही – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मत्पितामही यमुना रूपिणी इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं जलं तस्मै स्वधा नमः ।
प्रपितामही – ॐ अद्य अमुक गोत्रोत्पन्न अस्मत्प्रपितामह
सौतेली माता के लिये अस्मत् सापत्न्यमाता देवी रूपिणी कहें ।
।। द्वितीय गोत्र ।।
इसी प्रकार से मातामह (नाना) के लिये “वसुरूप” । प्रमातामह (परनाना) के लिये “रूद्ररूप” । वृध्दप्रमातामह (वृध्दपरनाना) के लिये “आदित्यरूप” कहें ।
इसी प्रकार से मातामही (नानी) के लिये “गङ्गास्वरूपा” । प्रमातामही (परनानी) के लिये “यमुनारूपा” । वृध्दप्रमातामही
प्रसेचन – अपनी गोत्र के तर्पण के पश्चात् या स्वयं व ननिहाल पक्ष के तर्पण के बाद निम्न ऋचायें पढ़ते हुये पितृतीर्थ से प्रसेचन करें।
विनियोग – ॐ उदीरतामिति क्रमेण नवर्चः उपांशु आम्नाय स्वरेण पठन अञ्जलिकृतं जलं पितृतीर्थेन प्रसिंचेत् ।
उदीरतामङ्गिरस आयुन्तुन इति त्रयाणां शंख ऋषिः त्रिष्टुप्छन्दः
उदीरतामवर उत्यरास उन्मद्ध्यमाः पितरः सोम्यासः ।
असुँय ईयुरवृका ऋतज्ञास्तेनोवन्
अङ्गिरसो नः पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगवः सोम्यासाः ।
तेषांद्वय सुमतो यज्ञिया नामपि भद्रसौमनसे स्याम ।।2।।
आयन्तुनः पितरः सोम्यसोग्निष्वा
अस्मिन यज्ञे स्वधया मदन्तोधिब्रवन्त
उर्जवहन्तीतरमृत
स्वधास्त्थ तर्पयत मे पितृन् ।।4।।
पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहे भ्यः स्वधायिभ्य स्वधा नमः प्रपितामहेभ्य स्वधायिभ्यः स्वधा नमः ।
अक्षन्नपितरो मीमदन्तपितरो तीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धद्ध्वम् ।।5।।
ये चेह पितरो येचनेहयांश्चविद
तं वेत्थयति ते जातवेदः स्वधाभिर्यज्ञः सकृतञ्जुषस्व ।।6।।
मधुवाता ऋतायुते मधुक्षरन्ति सिन्धवः ।
माध्वीर्नः सन्त्वोषधी ।।7।।
मधुनक्त मुतोषसो मधुमत्पार्थिव रजः ।
मधु द्यौरस्तु नः पिता ।।8।।
मधुमानो वनस्पतिर्मधुमाँ
माध्वीर्गावो भवन्तु नः ।।9।।
ॐ तृप्यध्वं तृप्यध्वं तृप्यध्वम् ।।
।। इति प्रसेचनम् ।।
जपः – नमो व इति मन्त्रस्य परमेष्ठी प्रजापतिर्ऋषीः यजुश्छन्दः पितरो देवताः जपे विनियोगः ।
मंत्र: - नमो व पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय, नमो वः पितरः स्वधायै, नमो वः पितरो घोराय, नमो वः पितरोमन्यवे नमो वः पितरः पितरो, नमो वो गृहान्नः पितरोदत्तसतो वः पितरोदेष्मैतद्व
पत्न्यादि तर्पण
पत्नि पुत्रादि के निमित्त भी तर्पण कर सकते हं । किसी ग्रन्थ में एक अञ्जलि देने हेतु कहा है तो किसी ने तीन अञ्जलि तर्पण कहा है, यही अधिक प्रचलित है। सभी के लिये गोत्र, नाम उच्चारण करके “इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः” कहें ।
पत्नि - अस्मत् पत्नि देवी इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः । “इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः” कहें ।
पुत्र हेतु – अस्मत् पुत्र । भाई हेतु – अस्मत् भ्राता । भाई की स्त्री हेतु – अस्मत् भातृपत्नि । भतीजा हेतु – अस्मत् भातृपुत्र । बुआ हेतु – अस्मत् पितृष्वसा । फूफा हेतु – अस्मत पितृष्वसृपति । बुआ के पुत्र हेतु – अस्मत् पैतृष्वस्त्रेय । मौसी हेतु – अस्मन्मातृष्वसा
इस तरह नाम व गौत्र सहित तर्पण कर सकते हैं।
जलधारा – तदनन्तर निम्न श्लोकों के उच्चारण से पितृतीर्थ से जलधारा (गोपुच्छोदक तर्पण करें तो गोपुच्छ सहित) देवें ।
येऽबान्धवा बान्धवा ये येऽन्यजन्मनि बांधवाः ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया दत्तेन वारिणा ।।
यदि गोपुच्छ से तर्पण कर रहें हो तो मया दत्तेन वारिणा की जगह गोपुच्छोदक तर्पणैः कहें ।
मातृपक्षाश्च ये के चिद् ये के चिद् पितृपक्षकाः ।
गुरूश्वशुर बन्धूनां ये कुलेषु समुभ्दवाः ।।
ये मे कुले लुप्तपिण्डाः पुत्रदारविवर्जि
क्रियालोपगता ये च जात्यन्धा पङ्गवस्तथा ।।
विरूपा आमगर्भाश्च ज्ञाताज्ञातकुले
ते र्से तृप्तिमायान्तु मया दत्तेन वारिणा (गोपु.) ।।
अतीतकुल कोटीनां सप्तद्वीप निवासिनाम् ।
आब्रह्मभुवनाल्ल
वृक्षयोनिगता ये च पर्वतत्वं गताश्च ये ।
पशुयोनिगता ये च ये च कीटकपतङ्कका ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मयादत्तेन वारिणा (गोपु.) ।।
नरके रौरवे ये च महारौरव संस्थिता ।
असिपत्रवने घोरे कुंभीपाकस्थिताश
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मयादत्तेन वारिणा (गोपु.) ।।
स्वार्थबध्दामृत
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मयादत्तेन वारिणा (गोपु.) ।।
पाशमध्येमृता ये च स्वल्पमृत्युवशं
सर्वे च मानवा नागाः पाशवाः पक्षिणस्तथा ।
ते सर्वेतृप्तिमाया
आब्रह्म स्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानव
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मयादत्तेन वारिणा (गोपु.) ।।
इसके बाद भीष्मपितामह को निम्न श्लोक से कुशों द्वारा पितृतीर्थ से जल देवें ।
वैयाघ्रपदगोत्रा
अपुत्राय ददाम्येतज्जलं भीष्माय वर्मणे ।।
इसके बाद अपने गोत्र से अपुत्रादि के हेतु अपने अघोवस्त्र से जल निचोड़ कर जमीन पर ड़ालें ।
ये के चास्मत्कु ले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृताः ।
ते गह्णन्तु मयादत्तं वस्त्रनिष्पीडनो
इसके बाद पूर्वाभिमुख होकर निम्न मन्त्र से देवतीर्थ (अञ्जलि के अग्रभाग) से जलधारा देवें ।
देवासुरस्तथा यक्षा नागा गन्धर्वराक्षसाः
पिशाचा गुह्यका सिध्दाः कूष्माण्डास्तरव
जलेचरा भूनिलया वाय्वाधाराश्च जन्तवः ।
तृप्तिमेते प्रयान्त्वाशु मद्दत्तेनाम्बुन
हाथ जोड़कर नमस्कार करें ।
ॐ ब्रह्मणे नमः । ॐ विष्णवे नमः । ॐ रुद्राय नमः ।
।। इति तर्पण प्रयोगः ।
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