KETU KA BHAV MEIN PHAL केतु का प्रत्येक भाव में फल
यदि केतु लग्न में हो तो जातक कृतघ्न, सुखहीन, चुगलखोर, असज्जनों के साथ रहन बाला, विकल देह (शरीर के किसी अंग में विकलता हो), स्थानच्युत, तथा विवरण होता है। विवर्ण शब्द के दो अर्थ हो सकते हैं । वर्ण शब्द के दो अर्थ होते हैं १. जाति और २. शरोर का रंग, इसलिये विवर्ण का अर्थ हो सकता है जातिभ्रष्ट और दूसरा अर्थ हो सकता है जिसके शरीर का रंग अच्छा न हो।
यदि केतु दूसरे स्थान में हो तो विद्याहीन, धनहीन, निकृष्ट बचन बोलने वाला कुदृष्टि’ बाला, और दूसरे के यहाँ भोजन करने में निरत होता होना महान् दोष है।
तृतीय भवन में केतु हो तो दीर्घायु, बलवान्, धनी और यशस्वी हो, ऐसे व्यक्ति को स्त्री सुख और अन्न सुख भी हों किन्तु तृतीय में केतु भाई को नष्ट करता है ।
यदि चतुर्थ में केतु हो तो जातक दूसरे के घर में रहता है और उसकी अपनी भूमि, खेत, माता सुख आदि नष्ट हो जाते हैं। उसे जन्म भूमि भी छोड़नी पड़ती है ।
पंचम में केतु पुत्र क्षय करता है। उदर रोग भी होता है।
यदि षष्ठ में केतु हो तो जातक उदार, उत्तम गुण वाला, दृढ़, प्रसिद्ध, प्रभु (श्रेष्ठपद प्राप्त करने वाला) शत्रुओ को पराजित करने वाला होता हैं ऐसे व्यक्ति को प्रायः इष्ट सिद्धि होती है ।
यदि सप्तम में केतु हो तो जातक का अपमान होता है। ऐसा जातक व्यभिचारिणी स्त्रियों में रति करता है, स्वयं अपनी पत्नी से वियोग हो। अंतड़ियों का रोग हो और धातु (वीर्य) रोग भी हो। हमारा अनुभव है कि जिसके सप्तम में केतु हो उसकी पत्नी रोगिणी रहती है ।
यदि अष्टम में केतु हो तो इष्ट (प्रियजनों) का विरह हो, कलह करे और जातक स्वल्पायु हो। अष्टम में केतु वाले को प्रायः शस्त्र से चोट लगती है और उसके सब उद्योगों में विरोध होता है।
यदि केतु नवम भाव में हो तो पाप प्रवृत्ति वाला, भाग्यहीन, दरिद्री, और सज्जनों की निन्दा करने वाला होता है।
यदि दशम में केतु हो तो सत्कर्म करने में अनेक विध्न या जातक स्वयं सत्कर्म में विघ्न उपस्थित करे, ऐसा व्यक्ति अत्यन्त तेजस्वी और अपनी शूर वीरता के लिए प्रसिद्ध है। किन्तु ऐसा व्यक्ति दुष्ट कर्मा और अशुद्ध होता है।
यदि लाभ स्थान में केतु हो तो उत्तम द्रव्य वाला, द्रव्य संग्रह करने वाला, अनेक गुणान्वित, उत्तम भोगों से युक्त होता है। ऐसे व्यक्ति के पास बहुत से भोग्य पदार्थ रहते हैं और सब कार्यों में उसे सिद्धि प्राप्त होती है।
द्वादश भावस्थ केतु का अनिष्ट फल है ऐसा व्यक्ति गुप्त रूप से पाप करता है और दुष्ट कार्यों में घन व्यय करता है। ऐसे व्यक्ति प्रायः अपना धन नष्ट कर देते हैं ऐसे लोगों को नेत्र रोग भी होता है ।
नोट:-
मात्र ग्रह की भाव
में स्थिति देखकर किसी निष्कर्ष पर
नहीं पहुंच जाना चाहिए। ग्रह
कितने अंश का है,
किस राशि में है,
उस भाव का स्वामी
कहा है। ग्रह पर
किन-किन ग्रहों का
की दृष्टि है। कतरी योग
तो नही है। आदि
कई बातें विचारणीय होती है। जिनका
सामंजस्य बिठाकर ही फल कथन
किया जाता है।
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