Thursday, September 30, 2021

SHANI RAHU KETU DOSH KA UPAY शनि-राहु-केतु दोषों का उपाय

SHANI RAHU KETU DOSH KA UPAY शनि-राहु-केतु दोषों का उपाय

दक्षिणा 1111 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

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ज्योतिष के अनुसार शनि, राहु और केतु गृह जातक को अलग-अलग प्रकार से समयनुसार पीड़ित करते है | जब इन तीनों ग्रहों की दशा और महादशा होती है तो जातक बुरी तरह से समस्याओं से घिरने लगता है | रोगों से पीड़ित होने लगता है | व्यवसाय में हानि होने लगती है | शुत्र बनने लगते है | समाज से मान-सम्मान घटने लगता है  और बहुत सी परेशानियाँ जातक के जीवन में इन ग्रहों के प्रभाव से दस्तक दे सकती है |

शनि-राहु और केतु इनमें से किसी भी एक गृह या फिर दो गृह या तीनों ग्रहों के दोषों से आप एक ही समय में पीड़ित हो सकते है | इनके दोषों को दूर करने हेतु भिन्न-भिन्न प्रकार के उपाय सुझावित किये जाते है | इन सभी उपायों को करने के अतिरिक्त आज हम आपको एक ऐसे उपाय के विषय में जानकारी देने वाले है जिसके प्रयोग से तीनों ग्रहों के दोष एक साथ शांत होने लगते है | तो आइये जानते है इस उपाय के विषय में : –

शनि-राहु-केतु दोषों को दूर करने का उपाय : –

अपने आस-पास एक ऐसी जगह देखे जहाँ पानी में मछलियाँ हो | अब आप मंगलवार की रात को एक काले कपड़ें में 150ग्राम काले तिल और 150 ग्राम काले उड़द की साबुत दाल को मिलाकर बांधकर रख ले | अब इस काले कपड़ें को रात को सोते समय अपने सिरहाने रख कर सोये | सुबह उठकर उस स्थान पर जाएँ जहाँ आपने मछलियों को देखा है | अब इस कपड़ें में से काले तिल और उड़द की दाल को थोड़ा-थोड़ा करके पानी में डाल दे | जैसे ही मछलियों इस सामग्री को खाने लगेगी समझो आपके दोष निवारण होने लग गया है | इस प्रयोग को आप तीन मंगलवार को करें |

शनि-राहु और केतु तीनों दोषों को एक साथ शांत करने का यह बहुत ही प्राचीन और परीक्षित उपाय (टोटका) है | अगर आप भी इन ग्रहों से पीड़ित है तो इस उपाय को करें और लाभ उठाये |

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 1

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 1 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 1


निम्न मन्त्र की सिद्धि के लिए किसी भैरव मन्दिर या शिव मन्दिर में मंगलवार या शनिवार के दिन 11 बजे रात्रि के बाद पूरब या उत्तर दिशा में मुंह करके लाल या काला आसन लगाकर पहले भैरव देव की षोडशोपचार पूजा करें । इसके बाद गुड़ से बनी खीर, शक्कर नैवेद्य अर्पण करें फिर रुद्राक्ष माला से 1008 बार निम्न मन्त्र का जप करके भैरव देव को दाहिने हाथ में जप-समर्पण करें । यह प्रयोग 21 दिन लगातार करना है । 21वें दिन जप पूर्ण होते ही भैरव देव प्रत्यक्ष हो जाते हैं, तुरंत लाल कनेर के फूल की माला भैरव देव को पहनाकर आशीर्वाद मांग लें ।

मन्त्रः


 “ॐ रिं रिक्तिमा भैरो दर्शय स्वाहा । ॐ क्रं क्रं-काल प्रकटय प्रकटय स्वाहा । रिं रिक्तिमा भैरऊ रक्त जहां दर्शे । वर्षे रक्त घटा आदि शक्ति । सत मन्त्र-मन्त्र-तंत्र सिद्धि परायणा रह-रह । रूद्र, रह-रह, विष्णु रह-रह, ब्रह्म रह-रह । बेताल रह-रह, कंकाल रह-रह, रं रण-रण रिक्तिमा सब भक्षण हुँ, फुरो मन्त्र । महेश वाचा की आज्ञा फट कंकाल माई को आज्ञा । ॐ हुं चौहरिया वीर-पाह्ये, शत्रु ताह्ये भक्ष्य मैदि आतू चुरि फारि तो क्रोधाश भैरव फारि तोरि डारे । फुरो मन्त्र, कंकाल चण्डी का आज्ञा । रिं रिक्तिमा संहार कर्म कर्ता महा संहार पुत्र । ‘अमुंक’ गृहण-गृहण, मक्ष-भक्ष हूं । मोहिनी-मोहिनी बोलसि, माई मोहिनी । मेरे चउआन के डारनु माई । मोहुँ सगरों गाउ । राजा मोहु, प्रजा मोहु, मोहु मन्द गहिरा । मोहिनी चाहिनी चाहि, माथ नवइ । पाहि सिद्ध गुरु के वन्द पाइ जस दे कालि का माई ॥” 

इसकी सिद्धि से साधक की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा श्री भैरवजी की कृपा बनी रहती है । इस मन्त्र से झाड़ने पर सभी व्याधियों का नाश होता है ।

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 2 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 2

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 2 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 2


41 दिनों तक किसी शिव मंदिर या भैरव मंदिर में भैरव की पंचोपचार पूजा करने के बाद उड़द के बड़े और मद्य का भोग लगाएं । भैरव देव प्रसन्न होकर भक्त की सब मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं । 

मन्त्रः


“आद भैरों, जुगाद भैरों, भैरों हैं सब भाई । भैरों ब्रह्मा, भैरों विष्णु भैरों ही भोला साईं । भैरों देवी, भैरों सब देवता, भैरों सिद्ध भैरों नाथ, गुरु, भैरों पीर, भैरों ज्ञान, भैरों ध्यान । भैरों योग-वैराग । भैरों बिन होय ना रक्षा । भैरों बिन बजे ना नाद । काल भैरों, विकराल भैरों । घोर भैरों, अघोर भैरों । भैरों की कोई ना जाने सार । भैरों की महिमा अपरम्पार । श्वेत वस्त्र, श्वेत जटाधारी । हत्थ में मुदगर, श्वान की सवारी । सार की जंजीर, लोहे का कड़ा । जहां सिमरुं, भैरों बाबा हाजिर खड़ा । चले मन्त्र, फुरे वाचा । देखा आद भैरों । तेरे इल्म चोट का तमाशा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 3 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 3

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 3 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 3


भैरव जी के चित्र या मूर्ति के सम्मुख दीप, धूप, गुग्गल देकर भैरवदेव की पंचोपचार पूजा करें । पूजा के उपरांत 108 बार नित्य निम्न मन्त्र का जप करें । फिर मद्य अर्पित करें । यह प्रयोग 8 दिन करना है, 8वें दिन नारियल, बाकला सवा पाव, रोट सवा सेर, लाल कनेर के फूल से भैरव देव को बलि दें । भैरव देव प्रसन्न होकर सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं । 

मन्त्रः 


“ॐ काला भैरुं, कबरा केश । काना कुण्डल, भगवा वेष । तिर पतर लिए हाथ, चौंसठ योगनियां खेले पास । आस माई, पास माई । पास माई, सीस माई । सामने गादी बैठे राजा, पीड़ो बैठे प्रजा मोहि । राजा को बनाऊ कुकड़ा, प्रजा का बनाऊं गुलाम । शब्द साचा, पिण्ड काचा, गुरु का वचन जुग जुग सांचा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 4 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 4

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 4 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 4



निम्न मन्त्र का अनुष्ठान रविवार से प्रारम्भ करें । एक पत्थर का तीन कोने वाला काला टुकड़ा लेकर उसे अपने सामने स्थापित करें । उसके ऊपर तेल और सिंदूर का लेप करें । पान और नारियल भेंट में चढ़ावें । नित्य सरसों के तेल का दीपक जलावें । अच्छा होगा कि दीपक अखण्ड हो । मन्त्र को नित्य 21 बार 41 दिनों तक जपें । जप के बाद नित्य छार, छरीला, कपूर, केशर और लौंग से हवन 21 बार करें । भोग में बाकला रखें । जब श्री भैरव देव दर्शन दें, तो डरें नहीं । भक्तिपूर्वक प्रणाम करें और मांस मदिरा की बलि दें । जो मांस-मदिरा का प्रयोग न कर सकें, वे उड़द के पकौड़े, बेसन के लड्डू और गुड़ मिली खीर की बलि दें । सिद्ध होने के बाद सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । इसे भैरव दर्शन विधान भी कहते हैं ।

मन्त्रः

“ॐ गुरूजी ! काला भैरू, कपला केश । काना मदरा, भगवाँ भेष । मार-मार काली-पुत्र, बारह कोस की मार । भूतां हात कलेजी, खूं हाँ गेडिया । जाँ जाऊँ, भैरू साथ । बारह कोस की रिद्धि ल्यावो, चौबीस कोस की सिद्धि ल्यावो । सुत्यो होय, तो जगाय ल्यावो । बैठ्या होय, तो उठाव ल्यावो । अनन्त केसर को थारी ल्यावो, गौराँ पार्वती की बिछिया ल्यावो । गेले की रस्तान मोय, कुवें की पणियारी मोय । हटा बैठया बणियाँ मोय, घर बैठी बणियाणी मोय । राजा की रजवाड़ मोय, महल बैठी राणी मोय । डकणी को, सकणी को, भूतणी को, पलीतणी को, ओपरी को, पराई को, लाग कूँ, लपट कूँ, धूम कूँ, धकमा कूँ, अलीया को, पलीया को, चौड़ को, चौगट को, काचा को, कलवा को, भूत को, पलीत को, जिन को, राक्षस को, बैरियाँ से बरी कर दे । नजराँ जड़ दे ताला । इता भैरव नहीं करे, तो पिता महादेव की जटा तोड़ तागड़ी करे । माता पार्वती का चीर फाड़ लँगोट करे । चल डकणी-सकणी, चौड़ूँ मैला बाकरा । देस्यूं मद की धार, भरी सभा में । छूं ओलमो कहाँ लगाई थी बार । खप्पर में खा, मुसाण में लोटे । ऐसे कुण काला भैरूँ की पूजा मेटे । राजा मेटे राज से जाय । प्रजा मेटे दूध-पूत से जाय । जोगी मेटे ध्यान से जाय । शब्द साँचा, ब्रह्म वाचा, चलो मन्त्र, ईश्वरो वाचा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 5 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 5

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 5 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 5



निम्न भैरव मन्त्र शत्रु पीड़ा, वशीकरण, मोहन, आकर्षण में अचुक प्रयोग है । इस मन्त्र का अनुष्ठान शनि या रविवार से प्रारम्भ करना चाहिए । एक तिकोना पत्थर लेकर उसे एकांत कमरे में स्थापित करके उसके ऊपर तेल-सिंदूर का लेप करें । नारियल और पान भेंट में चढ़ाएं । नित्य सरसों के तेल का दीपक अखंड जलाएं । नित्य 27 बार 40 दिन तक मन्त्र का जप करके कपूर, केसर छबीला, लौंग, छार की आहुति देनी चाहिए । भोग में बाकला, बाटी रखनी होती है । जब भैरव दर्शन दें तो डरे नहीं, भक्तिपूर्वक प्रणाम करके उड़द के पकौड़े, बेसन के लड्डू, गुड़ से बनी खीर बलि में अर्पित करें । मन्त्र में वर्णित सभी कार्य सिद्ध होते हैं । 

मन्त्रः

“ॐ गुरु, ॐ गुरु, ॐ गुरु, ॐकार, ॐ गुरु भूमसान, ॐ गुरु सत्य गुरु । सत्य नाम काल भैरव । कामरू जटा चार पहर खोले चौपटा । बैठे नगर में । सुमरों तोय । दृष्टि बांध दे सबकी । मोय हनुमान बसे हथेली । भैरव बसे कपाल । नरसिंह जी को मोहिनी, मोहे सकल संसार । भूत मोहूं, प्रेत मोहूं, जिन्द मोहूं, मसान मोहूं । घर का मोहूं, बाहर का मोहूं । बम रक्कस मोहूं, कोढ़ा मोहूं, अघोरी मोहूं, दूती मोहूं, दुमनी मोहूं, नगर मोहूं, घेरा मोहूं, जादू-टोना मोहूं, डंकनी मोहूं, संकनी मोहूं, रात का बटोही मोहूं, बाट का बटोही मोहूं, पनघट की पनिहारी मोहूं, इंद्र का इंद्रासन मोहूं, गद्दी बैठा राजा मोहूं, गद्दी बैठा बणिया मोहूं, आसन बैठा योगी मोहूं । और को देख जले भुने । मोय देख के पायन परे । जो कोई काटे मेरा वाचा, अंधा कर, लूला कर, सिड़ी वोरा कर, अग्नि में जलाय दे । धरी को बताए दे, गढ़ी को बताय दे, हाथ को बताए दे, गांव को बताए दे, खोए को मिलाए दे, रूठे को मनाए दे, दुष्ट को सताए दे, मित्रों को बढ़ाए दे । वाचा छोड़ कुवाचा चले, तो माता क चौखा दूध हराम करे । हनुमान आण । गुरुन को प्रणाम । ब्रह्मा, विष्णु साख भरे, उनको भी सलाम । लोना चामरी की आण, माता गौरा पार्वती महादेव जी की आण । गुरु गोरखनाथ की आण, सीता रामचंद्र की आण मेरी भक्ति, गुरु की शक्ति। गुरु के वचन से चले, तो मन्त्र ईश्वरो वाचा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 6 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 6

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 6 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 6

यह भैरव प्रयोग किसी अटके हुए कार्य में सफलता प्राप्ति हेतु है । प्रयोग रविवार से प्रारम्भ करके 21 दिन तक मृत्तिका की मणियों की माला से नित्य 28 बार जप करें । जप करने से पहले भैरव देव की पंचोपचार पूजा करें । जप के बाद गुड़ व तेल, उड़द का दही-बडा चढ़ाएं और पूजा से उठने के बाद उसे काले कुत्ते को खिला दें । 

मन्त्रः

“ॐ नमो भैरूनाथ, काली का पुत्र हाजिर होके, तुम मेरा कारज करो तुरत । कमर विराज मस्तंग लंगोट, घूघर माल । हाथ बिराज डमरू खप्पर त्रिशूल । मस्तक विराज तिलक सिंदूर । शीश विराज जटाजूट, गल विराज नादे जनेऊ । ॐ नमो भैरूनाथ काली का पुत्र ! हाजिर होके तुम मेरा कारज करो तुरत । नित उठ करो आदेश-आदेश ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 7 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 7

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 7 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 7



निम्न मन्त्र नवरात्री, दीपावली या सूर्यग्रहण की रात्रि में सिद्ध करें । त्रिखुटा चौका देकर, दक्षिण की ओर मुंह करके, मन्त्र का जप 1008 बार करें । तब लाल कनेर के फूल, लड्डू, सिंदूर, लौंग, भैरव देव को चढ़ावें । जप से पहले भैरव देव की पंचोपचार पूजा करें । अखंड दीपक निरंतर जलता रहना चाहिए । जप के दशांश का हवन छार, लौंग छबीला, कपूर, केसर से करें । जब भैरव जी भयंकर रूप में दर्शन दें तो डरें नहीं । तत्काल फूल की माला उनके गले में डालकर बेसन का लड्डू उनके आगे रखकर वर मांग लेना चाहिए । श्री भैरव दर्शन न दें तो भी कार्य सिद्धि अवश्य होगी । दर्शन न मिले तो उनकी मूर्ति को माला पहनाकर लड्डू वहीं रख दें । अभीष्ट कार्य कुछ ही दिनों में हो जाएगा । 

मन्त्रः

“ॐ काली कंकाली महाकाली के पुत्र, कंकाल भैरव ! हुकम हाजिर रहे, मेरा भेजा काल करे । मेरा भेजा रक्षा करे । आन बाँधू, बान बाँधू । चलते फिरते के औंसान बाँधू । दसों स्वर बाँधू । नौ नाड़ी बहत्तर कोठा बाँधू । फूल में भेजूँ, फूल में जाए । कोठे जीव पड़े, थर-थर काँपे । हल-हल हलै, गिर-गिर पड़ै । उठ-उठ भगे, बक-बक बकै । मेरा भेजा सवा घड़ी, सवा पहर, सवा दिन सवा माह, सवा बरस को बावला न करे तो माता काली की शैया पर पग धरै । वाचा चुके तो ऊमा सुखे । वाचा छोड़ कुवाच करे तो धोबी की नांद में, चमार के कूड़े में पड़े । मेरा भेजा बावला न करे, तो रूद्र के नेत्र से अग्नि की ज्वाला कढ़ै । सिर की लटा टूट भू में गिरै । माता पार्वती के चीर पर चोट पड़ै । बिना हुक्म नहीं मारता हो । काली के पुत्र, कंकाल भैरव ! फुरो मन्त्र ईश्वरो वाचा । सत्य नाम, आदेश गुरु को ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 8 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 8

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 8 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 8



निम्न मन्त्र होली, दीपावली, शिवरात्री, नवरात्रा या ग्रहण के समय लाल मिट्टी से चौका देकर अरंडी (एरंड) की सूखी लकड़ी पर तेल का हवन करें । जब लौ प्रज्वलित हो तो उसी प्रज्वलित लौ को चमेली के फूलों की माला पहना के सिंदूर, मदिरा, मगौड़ी, इत्र, पान चढ़ाकर फिर गुग्गुल से हवन करें । उपरोक्त क्रिया करने से पहले 1008 बार निम्न मन्त्र का पहले जप कर लें । मन्त्र सिद्ध हो जाएगा । प्रारम्भ में भैरव देव का पंचोपचार पूजन कर दें । प्रत्येक वर्ष नवरात्र या दीपावली में शक्ति बढ़ाने के लिए 108 बार मन्त्र का जप कर दिया करें । जब कोई कार्य सिद्ध करना हो तो जहां ‘मेरा’ कहना लिखा है, वहां कार्य का नाम कहें । 

मन्त्रः

“भैरों उचके, भैरों कूदे । भैरों सोर मचावे । मेरा कहना ना करे, तो कालिका को पूत न कहावै । शब्द सांचा, फूरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 9 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 9

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 9 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 9



निम्न मन्त्र का अनुष्ठान 21 दिन का है, साधक श्मशान में भैरव देव का पंचोपचार पूजन करने के उपरांत 10 माला का जप नित्य 7 दिनों तक करें, फिर 7वें दिन मद्य, मांस की आहुति दें, फिर चौराहे में बैठकर 10 माला जप नित्य 7 दिन करें, 7वें दिन दही-बाड़ा, मद्य, मांस की आहुति दें, उसके बाद घर के एकांत कमरे में 7 दिन तक नित्य 10 माला का जप करें और 7वें दिन दही-बाड़ा, बाकला-बाटी और मद्य, मांस की आहुतियां दें, इससे भैरव जी प्रसन्न होकर साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं ।

मन्त्रः

“ॐ भैरों ऐंडी भैरों मैंडी । भैरों सबका दूता देवी का दूत, देवता का दूत, गुरु का दूत, पीर का दूत, नाथों का दूत, पीरों का दूत, भैरों छड़िया कहाए । जहां सिमरुं तहां आए । जहां भेजूं, तहां जाए । चले मन्त्र फूरे वाचा । देखूं छड़िया भैरों, तेरे इल्म का तमाशा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 10 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 10

BHAIRAV SHABAR MANTRA PRYOG 10 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 10


होली, दिवाली अथवा ग्रहण के समय  मन्त्र का एक हजार जप करे । किसी को ओपरी (तान्त्रिक आभिचारिक) बाधा हो, तो लौंग, इलायची और विभूति बनाकर दे । लाभ होगा । 

मन्त्रः

“काला भैरों कपली जटा । हत्थ वराड़ा, कुन्द वडा । काला भैरों हाजिर खड़ा । चाम की गुत्थी, लौंग की विभूत । लगे लगाए की करे भस्मा भूत । काली बिल्ली, लोहे की पाखर, गुर सिखाए अढ़ाई अखर । अढ़ाई अखर गए गुराँ के पास, गुराँ बुलाई काली । काली का लगा चक्कर । भैरों का लगा थप्पड़ । लगा – लगाया, भेजा-भेजाया, सब गया सत समुद्र-पार ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 11 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 11

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 11 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 11


निम्न मन्त्र की साधना 40 दिन की है । यह साधना शुद्ध जल से स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण करके शनिवार से प्रारम्भ करें । पहले भैरव देव की पंचोपचार पूजा करके एक मिट्टी के घड़े के ऊपरी हिस्से को तोड़कर नीचे का जो आधा और ज्यादा भाग रहे, उस हिस्से में आग जलाएं, उसके पास एक बाजू में सरसों के तेल का दीपक जलाकर रखें और दूसरे बाजू में गुग्गुल की धूप जलाएं और उसके सामने मद्य, मांस का भोग रखकर निम्न मन्त्र की एक माला का जप करें । जप के बाद भोग को अग्नि में डाल दें, प्रतिदिन भोग आदि देकर जप करते रहें । प्रत्येक आठवें दिन भोग सामग्री का विशेष हवन 10 बार अलग से किया कीया करें तो मन्त्र सिद्ध होता है और साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है । 

मन्त्रः

“ॐ काला भैरव काला बान । हाथ खप्पर लिए फिर मसान । मद्य मछली का भोजन करें सांचा भैरव हांकता चले । काली का लाड़ला । भूतों का व्यापारी । डाकिनी शाकिनी सौदागरी । झाड़-झटक, पटक-पछाड़ । सर खुला मुख बला । नहीं तो माता कालिका का दूध हराम । शब्द सांचा, पिंड कांचा । चलो भैरव । ईश्वरो वाचा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 12 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 12

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 12 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 12



भैरव शत्रु-संहारक शाबर मन्त्र

रात्रि को दस बजे के बाद कडुए तेल का दीपक जला कर बैठे । सामने भैरव की प्रतिमा या चित्र हो । मन्त्र पढ़कर एक नींबू खड़ा काटे । १०८ बार । ऐसा ही ग्यारह दिनों तक करे । १२वें दिन १२ ‘बटुक’ — छोटे-छोटे ब्राह्मण बालकों को भोजन कराए और उन्हें दक्षिणा दे । रात्रि को हवन करे । सम्भव हो, तो यह हवन श्मशान में सन्ध्या के बाद करे । १३वें दिन सुबह जल्दी श्मशान जाए और उक्त हवन की भस्मी, जो भी चिता वहाँ अधजली या जली हो, उसमें डाल दे । उस चिता पर कुंकुम, अक्षत, पुष्प एवं कुछ मीठा प्रसाद छोड़कर नमस्कार करके चला आए । 

मन्त्रः

“ॐ नमो, आदेश गुरू को । काला भेरू-कपिल जटा । भेरू खेले चौराह-चौहट्टा । मद्य-मांस को भोजन करे । जाग जाग से काला भेरू ! मात कालिका के पूत ! साथे जोगी जङ्गम और अवधूत । मेरा वैरी ………. (अमुक) तेरा भक । काट कलेजा, हिया चक्ख । भेजी का भजकड़ा कर । पाँसला का दाँतन कर । लोहू का तू कुल्ला कर । मेरे वैरी ………… (अमुक) को मार । मार-मार तू भसम कर डार । वाह वाह रे काला भेरू ! काम करो बेधड़क-भरपूर । जो तू मेरे वैरी दुश्मन (अमुक) को नहीं मारे, तो मात कालिका का पिया दूध हराम करे । गाँगली तेलन, लूनी चमारन का-कुण्ड में पड़े । वाचा, वाचा, ब्रह्मा की वाचा, विष्णु की वाचा, शिव-शङ्कर की वाचा, शब्द है साँचा, पिण्ड है काचा । गुरू की शक्ति, मेरी भक्ति । चलो मन्त्र ! इसी वक्त । ॐ हूं फट् ।”

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 13 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 13

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 13 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 13



श्री भैरव-सिद्धि मन्त्र

निम्न मन्त्र का एक लाख जप तथा दशांश होम करने से मन्त्र सिद्ध होता है । प्रति-दिन प्रातः-काल पवित्रावस्था में यथा-विधि पूजन इत्यादि कर यथा-शक्ति जप करना चाहिए ।

मन्त्र

“ॐ नमो काला-गोरा क्षेत्र-पाल ! वामं हाथं कान्ति, जीवन हाथ कृपाल । ॐ गन्ती सूरज थम्भ प्रातः-सायं रथभं जलतो विसार शर थम्भ । कुसी चाल, पाषान चाल, शिला चाल हो चाली, न चले तो पृथ्वी मारे को पाप चलिए । चोखा मन्त्र, ऐसा कुनी अब नार हसही ॥” 

जप के बाद निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए भैरव जी को नमस्कार करना चाहिए । यथा — “ह्रीं ह्रों नमः ।’ इस प्रकार साधना करने से भैरव जी सिद्ध होते हैं और साधक की सभी अभिलाषाएँ पूर्ण होती हैं ।

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 14 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 14

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 14 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 14



श्रीभैरव-चेटक मन्त्र 

निम्न नवाक्षर मन्त्र का कुल ४० हजार जप कर गो-धूल से दशांश हवन करे । १८ दिनों तक इस तरह हवन करने से भैरव जी प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । 

मन्त्रः

“ॐ नमो भैरवाय स्वाहा ॥”


BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 15 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 15

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 15 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 15



भैरव जी की चौकी मूकने का मन्त्र 

उक्त चौकी मन्त्र को पढ़कर अपने चारों ओर एक घेरा खींचे तो किसी भी प्रकार का डर नहीं रहता । स्व-रक्षा और दूसरों द्वारा किए गए अभिचार कर्म के लिए यह उपयोगी मन्त्र है ।

मन्त्रः

“चेत सूना ज्ञान, औधी खोपडी मरघटियां मसान, बाँध दे बाबा भैरों की आन ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 16 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 16

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 16 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 16


अरिष्ट-निवारक-भैरव मन्त्र

उक्त मन्त्र का दस हजार जप करने से अरिष्टों की शान्ति होती है । शान्ति-करन सम्बन्धी यह उत्तम मन्त्र है । 

मन्त्रः

“ॐ क्ष्रौं क्ष्रौं स्वाहा ।”



BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 17 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 17

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 17 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 17


भय-निवारक भैरव मन्त्र 

5 हजार जप से उक्त मन्त्र की सिद्धि होती है । बाद में जब किसी भी प्रकार का भय हो, तब उक्त मन्त्र का जप करे । इससे भय दूर होता है । 

मन्त्रः

“ॐ ह्रीं भैरव – भैरव भयकर-हर मां, रक्ष-रक्ष हुँ फट् स्वाहा ॥”

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 18 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 18

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 18 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 18


शिशु-बाधा-निवारक भैरव मन्त्र ५ वर्ष से कम उम्रवाले बच्चों की सुरक्षा के लिए उक्त मन्त्र अमोघ है । रोग, बाधा, टोना या टोटका आदि से पीडित बच्चों को बलाओं से बचाने के लिए बच्चे की माँ के बाँएँ पैर के अँगूठे को एक छोटे ताम्र-पत्र में रखवाकर धोए । धोए हुए जल के ऊपर ११० बार निम्न मन्त्र का जप कर उसे अभिमन्त्रित करे । इस अभिमन्त्रित जल से उक्त मन्त्र का जप करते हुए बच्चे को कुश या पान के पत्ते से छींटे मारे । इससे बच्चा स्वस्थ हो जाता है । यदि एक बार में लाभ न हो, तो ऐसा ३ या ७ या ६ दिनों तक नित्य करे । बच्चे को आराम अवश्य होगा । 

मन्त्रः

“श्रीभैरवाय वं वं वं ह्रां क्षरौं नमः ॥”


BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 19 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 19

BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 19 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 19


सर्व-विघ्न-निवारक मन्त्र मन्त्र  पहले श्री काल-भैरव जी के पास धूप-दीप-फल-फूल-नैवेद्य आदि यथा-शक्ति चढ़ाए । फिर मन्त्र का एक माला जप करे । ऐसा तब तक करे, जब तक ध्येय-सिद्धि न हो । मन्त्र को एक कागज के ऊपर लिख कर पूजा – स्थान में रख लेना चाहिए । जिससे मन्त्र-जप में भूल न हो । 

मन्त्रः

“ॐ हूँ ख्रों जं रं लं बं क़ों ऐं ह्रीं महा-काल भैरव सर्व-विघ्न-नाशय नाशय ह्रीं फट स्वाहा ॥”



BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 20 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 20

 BHAIRAV SHABAR MANTAR PRYOG 20 भैरव शाबर मन्त्र प्रयोग 20


सिद्धि-प्रदायक महा-काल भैरव जी का मन्त्र शुभ मुहूर्त में अथवा जब आपकी राशि का चन्द्र बली हो, तब उक्त मन्त्र का २१ हजार जप करे । इससे मन्त्र-सिद्धि होगी । बाद में नित्य १ माला जप करता रहे, तो श्री महा – काल भैरव जी प्रसन्न होकर अभीष्ट-सिद्धि प्रदान करते हैं । जप के साथ कामनानुसार ध्यान भी करना चाहिए । 

मन्त्रः

“ॐ हं ष नं ग फ सं ख महा-काल भैरवाय नमः ॥”

MAHA KALI SHABAR MANTAR महाकाली शाबर मंत्र

MAHA KALI SHABAR MANTAR महाकाली शाबर मंत्र


मंत्र

एक ऊँ कार तेरा आधार तीन लोक में जय जय कार
नाद बाजे गाल बाजे गले रूण्डमुण्डो की माला
रक्षा करे शंम्भु जती गोखनाथ बाला


साधक इस मंत्र के द्वारा किसी भी बाधाग्रस्त व्यक्ति जैसे भूत प्रेतबाधा, आर्थिक बाधा, नजर दोष, शारीरिक मानसिक बाधा इत्यादि को आसानी से मिटा सकता है। यही नही बल्कि सम्मोहन, वशीकरण, स्तम्भन, उच्चाटन, विद्वेषण इत्यादि प्रयोग भी सफलता पूर्वक सम्पन्न कर सकता है।

प्रयोग विधी:- 

किसी भी होली, दीपावली, नवरात्रि, अथवा ग्रहण काल में इस प्रयोग को सिद्ध करना चाहिए। सर्वप्रथम निम्न सामग्रीयाँ जुटा लें।

महाकाली यंत्र, महाकाली चित्र, कनेर का पीला फूल, भटकटैया का फूल, लौंग, इलायची, 3 निंबू, सिन्दूर, काले केवाच के 108 बीज धूप, दीप, नारियल, अगरबत्ती इत्यादी।

माता काली के मंदिर में या किसी एकान्त स्थान में इस साधना को सिद्ध किये जा सकते हैं।
सर्वप्रथम स्नान आदि से निवृत होकर एक लकड़ी के तख्ते पर लाल वस्त्र बिछाकर महाकाली चित्र तथा यंत्र को स्थापित करें तत्पश्चात घी का चौमुखी दिया जलाकर गुरू गणेश का ध्यान कर गुरू स्थापन मंत्र तथा आत्मरक्षा मंत्र का प्रयोग करें। फिर भोजपत्र पर निम्न चौतिसा यंत्र का निर्माण करें तथा महाकाली यंत्र, महाकाली चित्र सहित चैंतीसा यंत्र का पंचोपचार या षोड़शोपचार से पूजन करे।

पूजन के समय कनेर, भटकटैया के फूल को यंत्र चित्र पर चढ़ायें, नारियल इलायची, पंचमेवा का भोग लगायें, फिर तीनों निम्बूओं को काटकर सिन्दूर का टीका लगाकर अर्पित करें तत्पश्चात हाथ में एक-एक केवाच के बीजों को लेकर उक्त मंत्र को पढ़ते हुए काली के चित्र के सामने चढ़ाते जायें इस तरह 108 बार मंत्र जपते हुए केवाच के बीजों को चढ़ायें। मंत्र जप पुर्ण होने पर उसी मंत्र से 11 बार हवन करें। एक ब्राम्हण को भोजन करायें तथा यथाशक्ति दान दक्षिणा दें। फिर इस मंत्र का प्रयोग किसी भी इछित कार्य के लिये कर सकते हैं।

भूत-प्रेत बाधा निवारण:- हवन के राख से किसी भी भूत-प्रेत ग्रस्त रोगी को सात बार मंत्र पढ़ते हुए झाड़ दें तथा हवन के राख का टीका लगा दें फिर भोजपत्र पर चौतिसा यंत्र को अष्टगंध से लिख कर तांबे के ताबीज में भर कर पहना दें तो भूत प्रेत बाधा सदा के लिए दूर हो जाता है।



आर्थिक बाधा निवारण:- 
महाकाली यंत्र के सामने घी का दीपक जलाकर महाकाली शाबर मंत्र का 21 बार जाप 21 दिनों तक करने से आर्थिक बाधा समाप्त हो जाता है।

वशीकरण प्रयोग:- 
पंचमेवा को 21 बार मंत्रों द्वारा अभिमंत्रित कर जिसे खिला दें वह वशीभूत हो जाता है।

विद्वेषण प्रयोग:- 
3 केवाच के बीज कलिहारी का फूल तथा श्मशान की राख को मिलाकर 21 बार मंत्र द्वारा अभिमंत्रित कर जिसके घर के आने जाने वाले मार्ग में गाड़ दें उसका विद्वेषण हो जायेगा।

उच्चाटन प्रयोग:- 
एक केवाच के बीज भटकटैया के फूल और सिंदुर तीनों को मिलाकर मंत्र द्वारा 11 बार अभिमंत्रित कर जिसके घर में फेंक दे उसका उच्चाटन हो जायेगा।

स्तम्भन प्रयोग:-
तीन लांैग, हवन की राख, तथा श्मशान की राख तीनों को मिलाकर मंत्र से अभिमंत्रित कर जिसके घर में गाड़ दे उसका स्तम्भन हो जायेगा।


समंत्र –

सात पुनम कालका, बारह बरस क्वांर।
एको देवि जानिए, चैदह भुवन द्वार।।
द्वि-पक्षे निर्मलिए, तेरह देवन देव।
अष्टभुजी परमेश्वरी, ग्यारह रूद्र सेव।।
सोलह कला सम्पुर्णी, तीन नयन भरपुर।
दशों द्वारी तू ही माँ, पांचों बाजे नूर।।
नव-निधि षट्-दर्शनी, पंद्रह तिथि जान।
चारों युग मे काल का कर काली कल्याण।।

Wednesday, September 29, 2021

BUDH KO PRABAL KARNE KE AASAN UPAY बुध को प्रबल करने के आसान उपाय

BUDH KO PRABAL KARNE KE AASAN UPAY बुध को प्रबल करने के आसान उपाय



 बुध को प्रबल करने के आसान उपाय।

बुध ग्रह अन्य जिस किसी भी ग्रह के साथ बैठता है अथवा उसके प्रभाव में होता है। उसी के अनुसार फल देता है। यह त्वचा, सांस की नली, आंतडियां, बुद्धि, तथा नपुंसकता का कारक है। उदासीन स्वभाव वाला ग्रह है। क्रूर ग्रह के साथ बैैठने पर कू्रर तथा सौम्य ग्रह के साथ बैठने पर सौम्य हो जाता है। इसकी धातु मिश्रित सोना, तांबा, तथा चांदी का अनुपात 1ः2ः4 है। इसका रत्न हरा पन्ना है। अंगुलियों में कनिष्ठिका पर इसका अधिकार है। इसकी अशुभता निवारण और शुभता प्राप्त करने के लिये निम्न उपाय कारगर सिद्ध होते है
 
प्रत्येक बुधवार को उबले हुए मूंग नींबू का रस मिलाकर सेवन करे।

अपने आस पास के भिखारियों को चावल मंूग की खिचडी सत्रह बुधवार खिलाये।

हर बुधवार को गणेश जी की प्रतिमा के चरणों में एक सौ आठ दूर्वा चढाये। और साथ में ओम गं गणपतये नमः का जाप करे।

बुधवार के दिन तीसरे प्रहर हरा कपडे में मूंग, हरा अमरूद, सोना, चांदी, तांबा धातु का टुकडा बांधकर दक्षिणा सहित किसी गणेश मंदिर में पंडित को दान करे।

बुधवार को हरी घास, हरा चारा, साग सब्जी आदि गाय को खिलाये।

बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए।

हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है।

हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है।

बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है।

इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है।

बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए।

गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए।

ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए।

बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है।

रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है।

अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है।

मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है।

 अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।

    बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।

    घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।

    अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।

    तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।

    बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

बुध- ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

इस बुध के मंत्र के 4000 जाप होते है। जो कि किसी विद्वान ब्राहमण से करवाने चाहिये। इसके अलावा आप भी प्रतिदिन एक माला जाप कर सकते है।

बुध गायत्रीः- ओम चंद्र पुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात।

इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जाप करने से बुध ग्रह बली होता है। और शुभ फल देता है।

हवन में अपामार्ग की लकडी से बुध की आहूति लगती है। इसके अलावा अपामार्ग की जड को बुधवार के दिन हरे कपडे में सिलकर पुरूष दायें हाथ पर और महिला बायें हाथ पर बांध सकती है।

प्रतिदिन बुध नाम स्तोत्र के पाठ करने से भी बुध के शुभ फल प्राप्त होते है।

                    अथ बुध नाम स्तोत्र

अहो चंद्रसुतः श्रीमान् मागधायां समुद्भवः। अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहुः खडग्खेटक धारकः।।
गदाधर नृसिंहस्थः स्वर्गनाभः शमान्वितः। कृष्ण वृक्षस्य पत्रंच इन्द्र विष्णु प्रपूजितः।।
ज्ञोयो बुधः पंडितश्च रोहिणेयश्च सोभतः। कुमारो राज पुत्रश्च शैशवः शशि नंदनः।।
गुरू पुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा। सौम्यः सर्वगुणो पेतो रत्न दान फलप्रदः।।
एतानि बुध नामानि प्रातः काले पठेन्नरः। बुद्धिं र्विवृद्धितां याति बुध पीडा न जायते।।


प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है।  ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि।  इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में मंगल यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से यह ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है।

CHANDRMA KO SHUBH BALI KARNE KE UPAY चन्द्रमा को शुभ बलि करने के उपाय

CHANDRMA KO SHUBH BALI KARNE KE UPAY चन्द्रमा को शुभ बलि करने के उपाय


अशुभ फल दूर करने के उपाय
चन्द्रमा का शुभ फल प्राप्त करने और अशुभ फल दूर करने के उपाय

चन्द्रमा को ग्रहों में मन का, बायीं आँख , रक्त , छाती , फेफड़े , तथा स्मरण शक्ति का नियंत्रक माना गया है, । इसके अलावा वह ग्रहों की रानी है सौम्य स्वभाव है। इसकी धातु चांदी है। इसका रत्न छेद रहित मोती है। जो की अनामिका में पहनी जाती है। और निर्बल होता है तो अशुभ फल देता है। अस्थिरता, मन की दुर्बलता , तनाव , आदि निर्बल चंद्र के कारण होते है। इसके अशुभ प्रभाव को दूर करने के लिए कुछ आसान उपाय दिए जा रहे है

यदि चन्द्रमा निर्बल या नीच या शत्रु राशि में है या राहु या केतु के साथ ग्रहण योग बना रहा हो अथवा शनि के साथ विष योग बना रहा हो तो ऐसे व्यक्ति को पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। चंदमा उदय के बाद भोजन करना चाहिए।
चांदी के सिक्के से अंगूठी बनवाकर शुक्ल पक्ष के सोमवार की रात को कच्चे दूध में धोकर दाएं हाथ की अनामिका अंगुली में पहननी चाहिए। 
सोमवार की पूर्णिमा को सफ़ेद गाय और बछिया का दान करे , यदि दान न हो सके तो उनकी सेवा ही करे।
हर सोमवार को चांदी के बर्तन में दूध डालकर फिर उसमे पानी भर लें। उसमे सफ़ेद पुष्प डलकर शिव पार्वती को स्नान कराये। 
प्रतिदिन लक्ष्मी सूक्त , श्री सूक्त , देवी सूक्त का पाठ करना चाहिए। 
 
चंद्र ग्रहण पर सफ़ेद कपड़े में चावल, चीनी , चांदी का टुकड़ा , या चंद्र की मूर्ति बांध कर दक्षिणा के साथ किसी डाकोत को दान करें। 
पलाश के पत्ते से बने दोने में दही, भरकर चीनी डालें। उसमें चांदी का चन्द्रमा रख के दस सोमवार को दान करें।
चन्द्रमा के नीच अथवा मंद होने पर शंख का दान करना उत्तम होता है। इसके अलावा सफेद वस्त्र, चांदी, चावल, भात एवं दूध का दान भी पीड़ित चन्द्रमा वाले व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है।
जल दान अर्थात प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाना से भी चन्द्रमा की विपरीत दशा में सुधार होता है।
अगर आपका चन्द्रमा पीड़ित है तो आपको चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न दान करना चाहिए।
चन्दमा से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करते समय ध्यान रखें कि दिन सोमवार हो और संध्या काल हो।
 ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा से सम्बन्धित वस्तुओं के दान के लिए महिलाओं को सुपात्र बताया गया है अतः दान किसी महिला को दें।
 आपका चन्द्रमा कमजोर है तो आपको सोमवार के दिन व्रत करना चाहिए। 
गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा कौए को भात और चीनी मिलाकर देना चाहिए।
किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को दूध में बना हुआ खीर खिलाना चाहिए। सेवा धर्म से भी चन्द्रमा की दशा में सुधार संभव है।
 सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार करना चाहते है तो इसके लिए आपको माता और माता समान महिला एवं वृद्ध महिलाओं की सेवा करनी चाहिए। 
कुछ मुख्य बिन्दु निम्न है-
व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए। रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।
वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।
वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।
सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पीना चाहिए।
सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
चन्द्रमा का मंत्र - ॐ श्रां श्रीं श्रों सः चन्द्राय नमः।
 
इस मंत्र का ७००० जाप होते है। इसके आलावा प्रतिदिन कम से कम एक माला जप करना चाहिये। इससे मानसिक शांति मिलती है। 
 
यज्ञ में इसकी समिधा पलाश की लकड़ी होती है। इसके आलावा इस जड़ को सफ़ेद कपडे में हाथ पर भी बांध सकते है। 
 
 चंद्र गायत्री मंत्र - ॐ अत्रि पुत्राय विद्महे सागरोद्भवाय धीमहि तन्नः चंद्र प्रचोदयात।
इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला तो जपनी ही चाहिए। 
प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में चंद्र यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे चंद्र ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है। जो लोग किसी सफ़ेद वस्तु का व्यापार करते है। उनके लिए यह यंत्र बहुत लाभदायक है।


चंद्र यन्त्र



चंद्र नाम स्तोत्रम

चन्द्रस्य शृण नामानि शुभदानि महीपते। यानि श्रुत्वा नरो दुख़ानमुच्यते नात्र संशयः।
सुधाकरश्च लोमश्च ग्लौरब्जः कुमुद प्रियः। लोकप्रियः शुभ्र भानुश्चंद्रमा रोहिणी पति।।
शशी हिमकरो राजा द्विजराजो निशाकरः। आत्रेय इन्दुः शीतांशुरोषधीशः कलानिधिः।।
जैवातृको रमाभ्राता क्षीरोदार्णव संभवः। नक्षत्रनायकः शंभु शिरः चूडामणिर्विभुः।।
तापहर्ता नभो दीपो नामान्येतिनि यः पठेत्। प्रत्यहं भक्ति संयुक्त स्तस्य पीडा विनश्यति।। 

तद्दिने च पठेयस्तु लभेत्सर्वं समीहितम्। ग्रहादीनां च सर्वेषां भवे चंद्र बलं सदा।।

PANCHVE BHAV MEIN BUDH KE PHAL पाँचवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

PANCHVE BHAV MEIN BUDH KE PHAL पाँचवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

बुध ग्रह अन्य जिस किसी भी ग्रह के साथ बैठता है अथवा उसके प्रभाव में होता है। उसी के अनुसार फल देता है। यह त्वचा, सांस की नली, आंतडियां, बुद्धि, तथा नपुंसकता का कारक है। उदासीन स्वभाव वाला ग्रह है। क्रूर ग्रह के साथ बैैठने पर कू्रर तथा सौम्य ग्रह के साथ बैठने पर सौम्य हो जाता है। इसकी धातु मिश्रित सोना, तांबा, तथा चांदी का अनुपात 1ः2ः4 है। इसका रत्न हरा पन्ना है। अंगुलियों में कनिष्ठिका पर इसका अधिकार है। इसकी अशुभता निवारण और शुभता प्राप्त करने के लिये निम्न उपाय कारगर सिद्ध होते है-
प्रत्येक बुधवार को उबले हुए मूंग नींबू का रस मिलाकर सेवन करे।

अपने आस पास के भिखारियों को चावल मंूग की खिचडी सत्रह बुधवार खिलाये।

हर बुधवार को गणेश जी की प्रतिमा के चरणों में एक सौ आठ दूर्वा चढाये। और साथ में ओम गं गणपतये नमः का जाप करे।

बुधवार के दिन तीसरे प्रहर हरा कपडे में मूंग, हरा अमरूद, सोना, चांदी, तांबा धातु का टुकडा बांधकर दक्षिणा सहित किसी गणेश मंदिर में पंडित को दान करे।

बुधवार को हरी घास, हरा चारा, साग सब्जी आदि गाय को खिलाये।

बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए।

हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है।

हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है।

बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है।

इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है।

बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए।

गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए।

ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए।

बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है।

रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है।

अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है।

मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है।

 अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।

बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।

घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।

अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।

तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।

बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

बुध- ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

इस बुध के मंत्र के 4000 जाप होते है। जो कि किसी विद्वान ब्राहमण से करवाने चाहिये। इसके अलावा आप भी प्रतिदिन एक माला जाप कर सकते है।

बुध गायत्रीः- ओम चंद्र पुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात।

इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जाप करने से बुध ग्रह बली होता है। और शुभ फल देता है।

हवन में अपामार्ग की लकडी से बुध की आहूति लगती है। इसके अलावा अपामार्ग की जड को बुधवार के दिन हरे कपडे में सिलकर पुरूष दायें हाथ पर और महिला बायें हाथ पर बांध सकती है।

प्रतिदिन बुध नाम स्तोत्र के पाठ करने से भी बुध के शुभ फल प्राप्त होते है।

अथ बुध नाम स्तोत्र
अहो चंद्रसुतः श्रीमान् मागधायां समुद्भवः। अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहुः खडग्खेटक धारकः।।
गदाधर नृसिंहस्थः स्वर्गनाभः शमान्वितः। कृष्ण वृक्षस्य पत्रंच इन्द्र विष्णु प्रपूजितः।।
ज्ञोयो बुधः पंडितश्च रोहिणेयश्च सोभतः। कुमारो राज पुत्रश्च शैशवः शशि नंदनः।।
गुरू पुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा। सौम्यः सर्वगुणो पेतो रत्न दान फलप्रदः।।
एतानि बुध नामानि प्रातः काले पठेन्नरः। बुद्धिं र्विवृद्धितां याति बुध पीडा न जायते।।


प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में मंगल यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से यह ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है।

पाँचवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : पंचमभाव मे बुध होने से जातक सुन्दर रूपवान्-सदा पवित्र होता है। जातक प्रसन्न, कुशाग्रबुद्धि, बुद्धिमान् तथा मघुरभाषी होता है। वाद-विवाद करने में चतुर और तर्ककुशल होता है। अपने व्यवहार से लोगों को अपने वश में रखता है। सदाचारी, चरत्रिवान्, घैर्यशील, संतोषी, कार्य में कुशल एवं उद्यमी होता है।

पंचमभावगत बुध प्रभवोत्पन्य जातक नम्र, मायावी, एकान्तप्रिय तथा विनोदप्रिय आनंदी होता है। देव-गुरु ब्राह्मणों का भक्त होता है। अपने व्यवहार से लोगों को अपने वश में रखता है।बुद्धि शुभ होती है। व्यावसायिक बुद्धि और वि़द्या सम्पन्न रहता है। विविघ विषयों का ज्ञाता, विद्वान्, होता है। पंचम में बुध होने से जातक के सुख और प्रताप की वृद्धि विद्या के कारण होती है। जातक मन्त्र शास्त्र का ज्ञाता होता है। मन्त्रशास्त्र जानने वाला होता है। जारण-मारण-उच्चाटन आदि मन्त्रों का कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकता है।

पंचमभाव में बुध होने से जातक को सन्तान प्राप्त होती है। पुत्र सुख मिलता है। जातक पुत्र-पौत्रों में युक्त होता है। जातक कामों में दूसरों को आगे करता है और स्वयं पीछे रहता है। जातक यशस्वी तथा लोक समुदाय में प्रभावशाली होता है। बुध के प्रभाव से जातक लेखक, कवि, नाटक रचयिता तथा उपन्यासकार होता है या साहित्य मे रुचि होती है।

पंचमभाव में बुध पैसे की तंगी नहीं होने देता। घन और वैभव की प्राप्ति होती है। अपनी बुद्धि से घनार्जन करता है। सट्टा, जुआ की ओर प्रवृत्ति होती है। जातक के मित्रों का सरकल बड़ा होता है। जातक स्त्री से युक्त, सुखी होता है। माता को सुख मिलता है। भाँति-भाँति के पोशाक पहनने की रुचि होती है। राजदरबार में सम्मान मिलता है। कामों में दूसरों को आगे करता है और स्वयं पीछे रहता है।

लग्न से पंचम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। पंचमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से वाणी अच्छी, बुद्धि तीक्ष्ण होती है। पंचमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से शिक्षा शीघ्र समाप्त होती है। 23 वर्ष की आयुतक शिक्षा पूरी हो जाती है। मिथुन-तुला या कुम्भ में होने से रोग चिकित्सा, वैद्यक, व्याकरण आदि में प्रवीण होता है। पंचमभाव का बुध मिथुन, तुला, या कुंभराशि में होने से एक दो संताने ही होती है। संक्षेप में पंचम में बुध होने से जातक स्त्री-पुत्र-मित्र-घन-विद्या-कीर्ति और बल से सम्पन्न होता है। जातक को शारीरिक कष्ट होता हैं। बुद्धि साघारण होती है। जातक दांभिक और कलहप्रिय होता है। पाप कृत्य करता है। पांचवें भाव में स्थित बुध जातक को लोभी, मतलबी, घेाखेबाज बनाता है। दुष्टों के सहवास से जातक के मुख में कपट भरी वाणी रहती है। सन्तान सुख में बाघा अवश्य पहुंचाता है। कन्याएँ होती हैं। पुत्रसुख में विघ्न होता है। सन्तान कम होती है-सन्तान को रोग होते हैं।

पांचवे स्थान में बुध के रहने से व्यक्ति के कन्या सन्तति अघिक होती हैं। पुत्र न होने से दत्तक पुत्र लेना पड़ता है। लड़का विश्वस्त नहीं होता। पुत्र का व्याह होते ही उसकी मृत्यु होती है। मामा की मृत्यु होती है। लग्न से पन्चम बुध होने से मामा को गंडमाला रोग होता है। 5 वें या 26 वें वर्ष में जातक की माता की मृत्यु होती है। जातक के पिता को तकलीफ होती है। बुध अस्तंगत हो या उस पर शत्रु ग्रह की दृष्टि होने से सन्तान की मृत्यु होती है। मामा का नाश होता है। पुत्र कम होते हैं। पंचमेश निर्बल हो अथवा पापग्रह के साथ होने से पुत्रों का नाश होता है, गर्भ की हानि होती है। पंचमभाव का बुध मिथुन, तुला, वा कुंभराशि में होने से संतति नहीं होती, या एक दो संताने ही होती है।

SURYA KO BALI KARNE KE UPAY सूर्य को बलि करने के उपाय

SURYA KO BALI KARNE KE UPAY सूर्य को बलि करने के उपाय



सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। कुंडली में इसके निर्बल होने से व्यक्ति आर्थिक समस्या से ग्रस्त हो जाता है शरीर में दाद खाज कुष्ठ चर्म रोग हो जाता है। किसी न किसी कारण से सरकार से दंड मिलता है। आँखे कमजोर कर देता है। इसके अशुभ फलों को शुभ फलों में बदलने के लिए प्रस्तुत है तंत्र मंत्र यंत्र व दान सहित उपाय -
दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए।
दानः- बछड़े समेत गाय का दान, गुड़, सोना, तांबा और गेहूं सूर्य रत्न माणक का दान
लाल कपड़े में गेहूँ , गुड़ , लाल पुष्प , ताम्बे का टुकड़ा , और दक्षिणा रखकर रविवार को प्रातः काल हनुमान जी के मंदिर में ब्राह्मण को दान करें। 
 
 सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए। 
गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए। किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ की खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है।
अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमजोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं। प्रात उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहत मिल सकती है।
प्रतिदिन ताम्बे के लोटे में पानी , कुंकुम , चावल , लाल पुष्प आदि डाल कर प्रातः काल जल चढ़ाये।
सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।
रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
प्रातः काल की धूप में बैठकर आदित्य ह्रदय स्त्रोत के ११ पाठ करें।
हस्त नक्षत्र युक्त रविवार को आकड़े की लकड़ी से ॐ घृणी सूर्याय नमः मंत्र से १०८ आहुति का हवन कर  

रविवार को बिजली से चलने वाली इस्त्री , स्टोव , हीटर , आदि का दान करें।
प्रतिदिन सूर्य पुराण का पाठ करे।
रविवार को सब्जी में हरी सब्जी का उपयोग करें और सेंधा नमक का उपयोग करें।
सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
सूर्यः- मानव शरीर में नेत्र, हड्डी, हृदय, तथा पेट का कारक है। स्वभाव से उग्र है। इसकी धातु तांबा और रत्न माणक है। अंगुलियों में अनामिका पर इसका अधिकार है।
सूर्य गायत्री मंत्र- ओम आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्न सूर्यो प्रचोदयात।
सूर्य मंत्र- ओम ह्नां ह्नीं ह्नौं सः सूर्याय नमः
सूर्य मंत्र के 7000 जाप होते है। जो कि किसी योग्य ब्राहमण से करवाने चाहिये। इसके अलावा आप भी प्रतिदिन कम से कम एक माला अवश्य जपें।
सूर्य की हवन समिधा आकडे की जड है। जिसे रविवार को सूर्य की होरा में लाल कपडे में सिलकर पुरूष दाहिनी बांह पर और स्त्री बायीं बांह पर बांधे। 
शरीर में सूर्य नेत्र , हड्डी , ह्रदय , और पेट का कारक है। यह उग्र स्वभाव का है। इसकी धातु ताम्बा है। और रत्न माणक है। पोटा माणक भी अपना प्रभाव दिखाता है। इसे ताम्बे की अंगूठी में अनामिका अंगुली में पहना जाता है।
 
प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में सूर्य यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है।
 इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है।
 इससे सूर्य ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है। जो लोग राजयोग या सरकारी नौकरी में जाना चाहते है। उनके लिए सूर्य का बली होना आवश्यक है। 
 इन उपायों से वे अपनी कुंडली में सूर्य जो प्रबल करके राजयोग प्राप्ति की सम्भावना को प्रबल कर सकते है।
इसके अलावा ताम्बे का सूर्य यंत्र लेकर प्रतिदिन पूजा करके सूर्य के मंत्र का जाप करने से भी सूर्य के शुभ फल मिलने लग जाते है। 


प्रतिदिन सूर्य स्तोत्र का पाठ करने से भी सूर्य देव जल्दी प्रसन्न होते है।
 
 सूर्य स्तोत्र

आदित्य प्रथमं नाम द्वितीयं तु दिवाकरः।
तृतीयं भास्करः प्रोक्तं चतुर्थं तु प्रभाकरं।।१।।
पंचमं तु सहस्त्रांशु षष्ठं त्रैलोक्य लोचनः।
सप्तमं हरिदशवश्व अष्टमं च विभावसुः।।२।।
नवमं दिनकरः प्रोक्तो दशमं द्वादशात्मकः।
एकाशं त्रयोमूर्तिः द्वादशं सूर्य एव च।.३।
द्वादशादित्य नामानि प्रातः काले पठेन्नरः।
दुः स्वप्न नाशनं चौव सर्वं दुखश्च नश्यति।।४।

क्या न करें
आपका सूर्य कमजोर अथवा नीच का होकर आपको परेशान कर रहा है अथवा किसी कारण सूर्य की दशा सही नहीं चल रही है तो आपको इधर उधर थूकना नहीं चाहिये। अपने सिर पर जूठे हाथ नहीं लगाने चाहिये। गेहूं और गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा आपको इस समय तांबा धारण नहीं करना चाहिए अन्यथा इससे सम्बन्धित क्षेत्र में आपको और भी परेशानी महसूस हो सकती है।

BUDH KO PRABAL KRNE KE AASAN UPAY बुध को प्रबल करने के आसान उपाय

BUDH KO PRABAL KRNE KE AASAN UPAY बुध को प्रबल करने के आसान उपाय


बुध को प्रबल करने के आसान उपाय।

बुध ग्रह अन्य जिस किसी भी ग्रह के साथ बैठता है अथवा उसके प्रभाव में होता है। उसी के अनुसार फल देता है। यह त्वचा, सांस की नली, आंतडियां, बुद्धि, तथा नपुंसकता का कारक है। उदासीन स्वभाव वाला ग्रह है। क्रूर ग्रह के साथ बैैठने पर कू्रर तथा सौम्य ग्रह के साथ बैठने पर सौम्य हो जाता है। इसकी धातु मिश्रित सोना, तांबा, तथा चांदी का अनुपात 1ः2ः4 है। इसका रत्न हरा पन्ना है। अंगुलियों में कनिष्ठिका पर इसका अधिकार है। इसकी अशुभता निवारण और शुभता प्राप्त करने के लिये निम्न उपाय कारगर सिद्ध होते है-
प्रत्येक बुधवार को उबले हुए मूंग नींबू का रस मिलाकर सेवन करे।
अपने आस पास के भिखारियों को चावल मंूग की खिचडी सत्रह बुधवार खिलाये।
हर बुधवार को गणेश जी की प्रतिमा के चरणों में एक सौ आठ दूर्वा चढाये। और साथ में ओम गं गणपतये नमः का जाप करे।
बुधवार के दिन तीसरे प्रहर हरा कपडे में मूंग, हरा अमरूद, सोना, चांदी, तांबा धातु का टुकडा बांधकर दक्षिणा सहित किसी गणेश मंदिर में पंडित को दान करे।
बुधवार को हरी घास, हरा चारा, साग सब्जी आदि गाय को खिलाये।
बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए।
हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है।
हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है।
बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है।
इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है।
बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए।
गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए।
ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए।
बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है।
रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है।
अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है।
मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है।
अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

बुध- ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

इस बुध के मंत्र के 4000 जाप होते है। जो कि किसी विद्वान ब्राहमण से करवाने चाहिये। इसके अलावा आप भी प्रतिदिन एक माला जाप कर सकते है।

बुध गायत्रीः- ओम चंद्र पुत्राय विद्महे रोहिणीप्रियाय धीमहि तन्नो बुधः प्रचोदयात।

इस मंत्र की प्रतिदिन एक माला जाप करने से बुध ग्रह बली होता है। और शुभ फल देता है।

हवन में अपामार्ग की लकडी से बुध की आहूति लगती है। इसके अलावा अपामार्ग की जड को बुधवार के दिन हरे कपडे में सिलकर पुरूष दायें हाथ पर और महिला बायें हाथ पर बांध सकती है।

प्रतिदिन बुध नाम स्तोत्र के पाठ करने से भी बुध के शुभ फल प्राप्त होते है।

अथ बुध नाम स्तोत्र

अहो चंद्रसुतः श्रीमान् मागधायां समुद्भवः। अत्रिगोत्रश्चतुर्बाहुः खडग्खेटक धारकः।।
गदाधर नृसिंहस्थः स्वर्गनाभः शमान्वितः। कृष्ण वृक्षस्य पत्रंच इन्द्र विष्णु प्रपूजितः।।
ज्ञोयो बुधः पंडितश्च रोहिणेयश्च सोभतः। कुमारो राज पुत्रश्च शैशवः शशि नंदनः।।
गुरू पुत्रश्च तारेयो विबुधो बोधनस्तथा। सौम्यः सर्वगुणो पेतो रत्न दान फलप्रदः।।
एतानि बुध नामानि प्रातः काले पठेन्नरः। बुद्धिं र्विवृद्धितां याति बुध पीडा न जायते।।



प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में मंगल यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से यह ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है।

पहले घर में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : जन्म कुण्डली में प्रथम भाव में बैठा बुध शुभ फल प्रदान करता है। देह कमनीय होती है। शरीर तपे हुए सोने के तुल्य कान्तिमान तथा तेजस्वी रूपवान् होता है। शरीर पर तिल वा मस्सा होता है। शरीर बलवान् तथा चौकोर अर्थात् सुडौल होता है। जातक तरुण होने पर भी बच्चे जैसा दीखता है। जातक बहुत देश में घूमनेवाला, 27 वें वर्ष में तीर्थयात्रा होती है। जातक की बुद्धि प्रखर रहती है। ऐसा व्यक्ति सरल हृदय, घैर्यवान् और गुणी होता है। चतुर-कोमल तथा मघुरभाषी (मघुर और चतुर वाणी बोलनेवाला), और दाता होता है। जातक शांतस्वभाव-नीतिनिपुण, निष्पाप, बहुत दयालु होता है। गीत-नृत्य-वाद्य आदि कलाओं को जाननेवाला होता है। तपस्वी और अपने घर्म के अनुसार बर्ताव करनेवाला होता है। जातक शान्त-विनम्र-अत्यंत उदार, सदाचारी होता है। जातक दीर्घायु होता है।

बुध अन्य ग्रहजन्य अरिष्टों का नाश करता है। घार्मिक कार्यो में अभिरुचि होती है। जीवन में उत्तरोत्तर उन्नति होती है।संसार में सभी के वीच अच्छी प्रतिष्ठा पाता है। लग्नस्थ बुध का जातक ज्योतिषशास्त्र को पढ़नेवाला, विद्वान् होता है। वैद्यकशास्त्र का ज्ञान होता है। काव्य, गणित एवं तर्कशास्त्र को जाननेवाला, सर्वशास्त्रों में विद्वान्, कलाओं का ज्ञाता तथा विद्याभ्यासी होता है। बहुत शास्त्रों को सुननेवाला होता है। यंत्र-मंत्र को जाननेवाला, भूत प्रेत को दूर करने में समर्थ, नानाप्रकार की विद्या जाननेवाला होता है। जातक शिल्पकार होता है। वाचन और लेखन से आजीविका करने वाला होता हैं। बड़ी फर्मो में नौकरी मिल जाती है। स्त्री से सुखी, विलासी-सर्व सुख से युक्त होता है। मध्य अवस्था में स्त्री सुख प्राप्ति होती है।

लग्न में पुरुषराशियों में बुध विशेष शुभफल देता हैं। जातक की शिक्षा शीघ्र ही समाप्त होती है लेखक, प्रकाशक वा सम्पादक होते हैं। पुरुषराशि के बुध में 36 वें वर्ष में लाभ होता है-लेखनकला से प्रसिद्धि प्राप्त होती है। मिथुन-तुला या कुंभ में होने से जातक बहुत बुद्धिमान वक्ता होता है।


अशुभ फल : लग्नस्थ बुध के लोग कूटनीति में तथा कुटिलता में ऐसे निपुण होते हैं कि ये किसी के वशीभूत नहीं होते। शरीर में बातजन्य पीड़ा होती है-फोड़े-फुन्सी आदि रोगों से दु:ख होता है। गुल्म तथा पेट के रोग होते हैं। भूख कम हो जाती है। बीमार होने पर ये असाध्यरोगी हो जाते हैं। वंश नष्ट होता है। 'वंशक्षय होना' यह फल मिथुन-घनु और कुम्भ के बुध में अनुभव में आता है।

बुध के साथ पापग्रह बैठने या इसे देखने से, अथवा नीचराशि (मीन) में होने से नरकलोक जानेवाला होता है। और पलंग आदि सुख से रहित, और क्षुद्र देवता की उपासना करनेवाला होता है। बुध के साथ शनि आदि पापग्रह बैठने से बाएं नेत्र की हानि-षष्ठ स्थान का स्वामी युक्त होने से या बृहस्पति युक्त होने से उक्त फल नहीं होता है। अपव्ययकारी होता है। पाप नाशकारी होता। बुध के साथ पापग्रह बैठने से या पापग्रह के घर में होने से शरीर में रोगवाला तथा पित्त-पांडु रोगवाला होता है।

दूसरे भाव में बुध के शुभ अशुभ सामान्य फल:-

शुभ फल : धनभावगत बुध के शुभ तथा अशुभ-दोनों प्रकार के फल शास्त्रकारों ने कहे हैं। दूसरे स्थान में बुध जातक को निरोगिता, चेहरा सौम्य, मघुर और सुन्दर वाणी, नेत्र और मस्तक पर तिलक जैसा चिन्ह दिया करता है। धनभाव का बुध शुभयोग में होने से बहुत बलवान् होता है। जातक सुशील, गुणी, उदार, सदाचारी होता है। स्वभाव नम्र होता है। घनस्थ बुध प्रभावान्वित जातक बुद्धिमान् होता है। वाणी निर्मल होती है, जातक मीठा बोलता है। जातक बोलने में चतुर, वाचाल तथा निर्दोष वाणी बोलने वाला होता है।
दूसरे भाव में स्थित बुध जातक को विचारक एवं वक्ता बनाता है। सभा में जातक का भाषण सिंहतुल्य तेजस्वी तथा प्रभावशाली होता है। नीतिमान्-अन्तर्ज्ञानी, शास्त्रचर्चा में प्रवीण, कविता करनेवाला होता है। जातक की दानशक्ति भी असीमित होती है और इसकी दानशक्ति की प्रशंसा विद्वान् भी करते हैं। जातक मितव्ययी, संग्रही होता है। सत्कार्यकारक, उद्योगप्रिय, न्याय करने में कुशल होता है। साहसी, अपने ही भुजबल से प्रतापी होता है। शास्त्रीयज्ञान, व्यापार और शिक्षा विषयक व्यवहार में प्रवीण होता है। कार्यशक्ति तीव्र होती है। 15 वें वर्ष बहुत ज्ञान प्राप्त होता है। जातक संगीत को जाननेवाला होता है। खान पान का सुख अच्छा मिलता है। भोजन में मिष्टान्न प्राप्त होते रहते हैं।
धन भावगत बुध जातक को धनवान् बनाता है। जातक अपनी बुद्धि से धनार्जन करनेवाला होता है। चतुरता से धनोपार्जन करके कोट्याघीश -करोड़ों रुपयों का मालिक होता है। स्त्री-घन प्राप्त होता है। 'षट्त्रिशकैर्घनकृतिम्'। 36 वें वर्ष घनलाभ होता है। अकस्मात् घन प्राप्ति होती। जातक धन-धान्य से युक्त, सुन्दर वस्त्र अलंकारादि की प्राप्ति करता है। एक बार धन नष्ट हुआ तो फिर प्राप्त होता है। लेखन-वाचन-दलाल-लिपिक का काम-हिसाब का काम आदि व्यवसायों में घन प्राप्त करता है। जातक प्राय: उन्हीं व्यवसायों में जाते हैं जिनमें बोली का (भाषण कला का) महत्व रहता है। वकील का पेशा करनेवाला होता है। व्यापारी वर्ग को घनस्थान में बुध के होने से अच्छा घन मिलता है।
 धनभाव के बुध के प्रभाव से प्रोफेसर-प्रिन्सिपल-डाइरेक्टर आदि अफसरों को अच्छा वेतन मिलता है। द्रव्य तथा स्त्रियों का उपभोक्ता होता है। भ्रमर की भाँति सर्वप्रकार के भोंगों का उपभोक्ता होता है। जातक सत्कर्म, शुभकर्म करनेवाला, सुखी तथा राजमान्य होता है। धनभाव में बुध होने से पिता का भक्त, गुरूभक्त होता है। द्वितीयभाव में बुध होने से जातक कुशल तथा सभी का मित्र होता है। शुभफल पुरुषराशियों में बुध के होने से अधिक मिलते हैं। 
अशुभ फल : जातक को हमेशा त्वचा के रोग होते रहते हैं। वक्तृत्वशक्ति में दोष संभव है। पापग्रहसाथ अथवा पापग्रह की राशि में, या नीचराशि में होने से विद्याभ्यास नहीं होता। स्वभाव कू्रर होता है। वातरोग होते हैं।

तीसरे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल:-

शुभ फल : जातक अच्छे शरीर का, घार्मिक-यशस्वी, तथा देव और गुरुओं का आदर करनेवाला होता है। तीसरे भाब में बुध होने से जातक सरस एवं सरल हृदय का होता है। जातक बुद्धिमान्, नम्रस्वभाव का होता है।
तृतीय में बुध होने से जातक साहसी, शूरवीर हो किन्तु मध्यायु हो। तृतीय स्थान का स्वामी बलवान होने से दीर्घायु और घैर्यवान् होता है। जातक चतुर तथा हितकारी होता है। जातक की परोपकारी वृत्ति होती है। जातक अपनी बुद्धि से अपनी व्यवहार कुशलता से, उदण्ड स्वभाव के लोगों को भी अपनी मुट्ठी में कर लेता है, और इनसे भी आवश्यक लाभ उठा लेता है।

तीसरे बुध होने से जातक के भाई बहन अच्छे होते हैं। स्वयं बन्घुओं को प्रिय होता है। बड़े परिवार से युक्त होता है। पाँच भाई और चार पाँच बहिनें तक हो सकती हैं। भाई और बहिनों को बहुत सुख प्राप्त होता है। जातक के दो लड़के और तीन लड़कियाँ होती हैं। जातक स्वजनों से युक्त, अपने जनों का हितसाघक होता है।जैसे वृक्ष के इर्द गिर्द सहारा पाने के लिए लताएँ लटकी रहती हैं-उसी तरह आश्रय पाने के लिए जातक के भाई बन्घु इसके निकट पड़े रहते हैं और जातक अपनी शक्ति के अनुरूप इनकी सहायता करता है। अपने सहोदरबन्घु वर्गों के अनुशरण से अघिक सुख होता है।भाई दीर्घायु होता है। सरस हृदय होने के कारण स्त्रियों के प्रति स्वाभाविक अनुराग होता है। पड़ोसियों और परिचितों से प्रेम पूर्वक बरताव करते हैं। बहुत मित्र होते है। जातक के साथ की गई मित्रता आसानी से नहीं टूटती।

जातक को प्रवास बहुत करना पड़ता है। प्रवास से सुख और लाभ होता है। शास्त्रकार, ज्योतिष तथा गुप्तविद्याओं में प्रवीण होता है। लेखन कार्य, छापने का काम -तथा प्रकाशन का व्यवसाय-तृतीय बुध होने से लाभकारी होते है। व्यापार की तरफ जातक की रुझान स्वाभविक रूप में रहा करती है। एक प्रवीण और चतुर व्यापारी होकर व्यापार से जीवन व्यतीत करता है। व्यापारी लोगों से मित्रता करके-व्यापार से घन कमाता है। घनवान् तथा समृद्ध होता है।

जातक लेखन, वाचन और भाषण में कुशल होता है। अन्तिम अवस्था में प्राक्तन जन्मकृत शुभकर्म जन्य संस्कारों के उद्बुद्ध हो जाने के कारण तीव्र वैराग्य से संसार से नितांत विरक्त होकर सन्यस्त हो जाता है और अर्थात् मोक्षमार्ग पर अग्रसार हो जाता है। वृद्धावस्था में वैराग्य से विषय वासनाएँ लुप्त हो जाती हैं। पुरुषराशि में होने से शिक्षा पूरी होती है-हस्ताक्षर अच्छा, लेखन शीघ्र तथा संगत होता है-स्मरणशक्ति भी तीव्र होती है। तृतीयस्थ बुध बलवान् होने से भाग्योदय 24 वें वर्ष से होता है।

शास्त्रकारों के शुभफल मेष-सिंह-तुला कुंभ तथा मिथुन और घनु का पूर्वार्ध-एवं कन्या और मीन का उत्तरार्ध इन राशियों में मिलते हैं।

अशुभ फल : तृतीयभाव मे बुध होने से जातक बहुत दुष्ट होता है। घन की बुद्धि से(लोलुपता से) दुष्ट बुद्धियों के बश में रहता है। जातक मन्द बुद्धि का, अशुभविचार करनेवाला होता है। जातक अपवित्र मलिन हृदय होता है। चित्त शुद्ध नहीं होता।जातक मायावी, बहुत चंचल, चपल और दीन होता है। श्रम बहुत करना पड़ता है और दैन्य युक्त होता है। भाइयों का सुख कम मिलता है।

जातक अविचारित होता है, और मनमाना काम करता है इस कारण जातक को अपने लोग छोड़ जाते हैं। इष्ट-मित्रों से हीन होता है। जातक अत्यन्त विषयासक्त होता है अर्थात् विषयोपभोग लिप्त ही रहता है। जातक मोह जाल में फँसकर अपने अमूल्य रत्नरूपी मानवजीवन को नष्ट करता है। जातक सुखहीन होता है। सुख नष्ट होता है। यवनजातक ने 12 वें वर्ष घनहानि होती है-ऐसा कहा है क्योंकि बुध तृतीय में हो तो रवि प्राय: घनस्थान में, वा चतुर्थस्थान में होता है अत: पैतृकसंपत्ति नष्ट होती है और पिता दरिद्री होता है। बुध पर शत्रुग्रह की दृष्टि होने से भाइयों की मृत्यु होती है।

चौथे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : चौथे स्थान में बुध होने से जातक का शरीर पुष्ट होता है। आँखें बड़ी होती है। जातक अच्छा सलाहकार और वाद-विवाद करने में कुशल अर्थात् चतुर होता है। जातक धैर्यवान्-नीतिज्ञ, नीतिवान् और ज्ञानवान् होता है। जातक बोलने में चतुर, सुरुचि सम्पन्न, सुशील और सत्यवादी होता है। चतुर्थभाव गत बुध होने से जातक पण्डित होता है। दूसरों को प्रसन्न करने वाले चाटुवाक्य बोलने वाला होता है। चाटुकारिता में प्रवीण (मीठा बोलनेवाला) होता है। स्मरण शक्ति बहुत तीव्र होती है तथा अन्तर्ज्ञान भी हो सकता है। गीत और नृत्य का प्रेमी, संगीतप्रिय और मिष्टभाषी होता है। दानी, उदार, विद्वान्, लेखक होता है। जातक बांधवों के साथ द्वेष करता है। आरम्भ किए हुए कार्य में सफलता मिलती है।

चतुर्थस्थान में बुध होने से सवारी का सुख होता है। क्षेत्र-धान्य-धन आदि का उपभोग करनेवाला होता है। धनसम्पदा का योग बनता है पर ये सब स्वार्जित अर्थात् अपने बाहुबल से अर्थोपार्जन करता है। पैतृकधन से कुछ भी सुख नहीं होता है, अर्थात् पैतृकधन की प्राप्ति नहीं होती। घर के बारे में सुखी होता है। रहने का स्थान चित्र-विचित्र होता है। माँ-बाप से अच्छा लाभ होता है। माता-पिता का सुख मिलता है। जातक गणितशास्त्रवेत्ता होता है। जातक का मित्र वर्ग उत्तम होता है। मैत्री संसार के श्रेष्ठ मनुष्यों से होती है।

जन्मलग्न से बुध चतुर्थभाव में हाने से जातक राजा या गण का स्वामी अर्थात् जनसमूह का नेता या विशेष अधिकारी होता है। राजद्वार का विशेष अधिकारी होता है अर्थात् सभी दूसरे राजकर्मचारियों पर विशेष अधिकार होता है। राज्य में प्रभावशाली तथा राज्य से किंवा राज्य के अघीन विषयों से अर्थ लाभ प्राप्त करने वाला होता है। बहुत नौकर-चाकर होते हैं।

चौथे स्थान में पड़ा बुध राजकुल में, मित्रमण्डली में और समाज में आदर दिलाता है।जातकधन-जन, भूषण, सुवस्त्र से युक्त, सुखी और धनवान् होता है। समाज में प्रतिष्ठित, यशस्वी होता है। जातक के परिवार के लोग इसके बचनों का विशेष आदर करते हैं। जातक श्रेष्ठबन्धुवाला और बन्धुप्रेमी होता है। बन्धुओ का सुख अच्छा मिलता है। पत्नी का सुख अच्छा मिलता है। पुत्र कम होते हैं। पुत्र सुख मिलता है। पिता के सम्बन्ध से भाग्यवान् और सुन्दर होता है।

चौथे स्थान में बुध होने से जातक आरामतलबी, विलासी, अच्छा भोजन करने वाला होता है। शास्त्रकारों के बताए शुभ फल पुरुषराशियों के हैं। बुध पुरुषराशि में होने से जातक विद्याध्ययन करेगा किन्तु रुकावटों के साथ संघर्ष करना होगा।

अशुभ फल : जातक कृशदेह और बालपन में रोगी होता है। वह बहुत आलसी होता है। चंचल बुद्धि-निर्ल्लज्ज होता है।जैसा बोलता है वैसा बर्ताव नहीं करता है। अपने दिये वचन को तत्काल भूल जाता है। पुत्र का दु:ख प्राप्त होता है। संसार के बारे में बहुत चिन्ता होती है। 22 वें वर्ष धनहानि होती है। पापग्रहों का सम्बन्ध होने से दूसरों के घर रहना पड़ता है। पापग्रहों से युक्त होने से भ्रातृघातक होता है। बुध पापग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होने से ध नही मिलता है और अच्छे मित्र नही होते हैं।

पाँचवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : पंचमभाव मे बुध होने से जातक सुन्दर रूपवान्-सदा पवित्र होता है। जातक प्रसन्न, कुशाग्रबुद्धि, बुद्धिमान् तथा मघुरभाषी होता है। वाद-विवाद करने में चतुर और तर्ककुशल होता है। अपने व्यवहार से लोगों को अपने वश में रखता है। सदाचारी, चरत्रिवान्, घैर्यशील, संतोषी, कार्य में कुशल एवं उद्यमी होता है।

पंचमभावगत बुध प्रभवोत्पन्य जातक नम्र, मायावी, एकान्तप्रिय तथा विनोदप्रिय आनंदी होता है। देव-गुरु ब्राह्मणों का भक्त होता है। अपने व्यवहार से लोगों को अपने वश में रखता है।बुद्धि शुभ होती है। व्यावसायिक बुद्धि और वि़द्या सम्पन्न रहता है। विविघ विषयों का ज्ञाता, विद्वान्, होता है। पंचम में बुध होने से जातक के सुख और प्रताप की वृद्धि विद्या के कारण होती है। जातक मन्त्र शास्त्र का ज्ञाता होता है। मन्त्रशास्त्र जानने वाला होता है। जारण-मारण-उच्चाटन आदि मन्त्रों का कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकता है।

पंचमभाव में बुध होने से जातक को सन्तान प्राप्त होती है। पुत्र सुख मिलता है। जातक पुत्र-पौत्रों में युक्त होता है। जातक कामों में दूसरों को आगे करता है और स्वयं पीछे रहता है। जातक यशस्वी तथा लोक समुदाय में प्रभावशाली होता है। बुध के प्रभाव से जातक लेखक, कवि, नाटक रचयिता तथा उपन्यासकार होता है या साहित्य मे रुचि होती है।

पंचमभाव में बुध पैसे की तंगी नहीं होने देता। घन और वैभव की प्राप्ति होती है। अपनी बुद्धि से घनार्जन करता है। सट्टा, जुआ की ओर प्रवृत्ति होती है। जातक के मित्रों का सरकल बड़ा होता है। जातक स्त्री से युक्त, सुखी होता है। माता को सुख मिलता है। भाँति-भाँति के पोशाक पहनने की रुचि होती है। राजदरबार में सम्मान मिलता है। कामों में दूसरों को आगे करता है और स्वयं पीछे रहता है।

लग्न से पंचम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। पंचमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से वाणी अच्छी, बुद्धि तीक्ष्ण होती है। पंचमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से शिक्षा शीघ्र समाप्त होती है। 23 वर्ष की आयुतक शिक्षा पूरी हो जाती है। मिथुन-तुला या कुम्भ में होने से रोग चिकित्सा, वैद्यक, व्याकरण आदि में प्रवीण होता है। पंचमभाव का बुध मिथुन, तुला, या कुंभराशि में होने से एक दो संताने ही होती है। संक्षेप में पंचम में बुध होने से जातक स्त्री-पुत्र-मित्र-घन-विद्या-कीर्ति और बल से सम्पन्न होता है।

अशुभ फल : जातक को शारीरिक कष्ट होता हैं। बुद्धि साघारण होती है। जातक दांभिक और कलहप्रिय होता है। पाप कृत्य करता है। पांचवें भाव में स्थित बुध जातक को लोभी, मतलबी, घेाखेबाज बनाता है। दुष्टों के सहवास से जातक के मुख में कपट भरी वाणी रहती है। सन्तान सुख में बाघा अवश्य पहुंचाता है। कन्याएँ होती हैं। पुत्रसुख में विघ्न होता है। सन्तान कम होती है-सन्तान को रोग होते हैं।

पांचवे स्थान में बुध के रहने से व्यक्ति के कन्या सन्तति अघिक होती हैं। पुत्र न होने से दत्तक पुत्र लेना पड़ता है। लड़का विश्वस्त नहीं होता। पुत्र का व्याह होते ही उसकी मृत्यु होती है। मामा की मृत्यु होती है। लग्न से पन्चम बुध होने से मामा को गंडमाला रोग होता है। 5 वें या 26 वें वर्ष में जातक की माता की मृत्यु होती है। जातक के पिता को तकलीफ होती है। बुध अस्तंगत हो या उस पर शत्रु ग्रह की दृष्टि होने से सन्तान की मृत्यु होती है। मामा का नाश होता है। पुत्र कम होते हैं। पंचमेश निर्बल हो अथवा पापग्रह के साथ होने से पुत्रों का नाश होता है, गर्भ की हानि होती है। पंचमभाव का बुध मिथुन, तुला, वा कुंभराशि में होने से संतति नहीं होती, या एक दो संताने ही होती है।

छठे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : छठे स्थान में बुध होने से जातक विवेकी, परिश्रमी, आत्मविश्वासी और पुरुषार्थी होता है। जातक विवेकी, तार्किक, विनोदी होता है। बुध हो तो सन्यासियों के साथ ज्ञान की वार्ता करता है और इस ज्ञानचर्चा से ज्ञानप्राप्ति होती है।सन्यासियों से अर्थात् ब्रह्मज्ञानियों से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है। "अनिला नां रोघ:" 'प्राणायाम' करता है या 'प्राणायाम आदि द्वारा वायु को रोकता है। जातक अच्छे कामों में द्रव्य का व्यय करता है और अपने बाहुबल से घन संचय करता है। उत्तम रत्नादि के व्यापार से घन का लाभ भी होता है।

घार्मिक शुभकामों में घन का व्यय करता है। राजमान्य, बहुश्रुत और लेखक होता है। विद्वान् होता है।नौकरी से फायदा होता है। स्वतंत्र व्यापार में लाभ नहीं होता। रसायनशास्त्रज्ञ या पत्र-लेखक होता है। प्रिटिंग पै्रस से संबंघ होता है।जातक लोगों के साथ विरोघ करता है। शत्रुओं को आगे बढ़ने से रोकता है। शत्रुसमूह को आगे आने से रोकता है। 30 वें वर्ष राजा से अच्छी मित्रता होती है। षष्ठभाव में बुध पुरुषराशियों में होने से शुभफल देता है।

अशुभ फल : षष्ठभाव में बुध होने से झगड़ालू, ईर्ष्यालु, दांभिक, निठुर(कठोरवचन बोलने वाला) तथा आलस करने से चिंतित होता है। वादी, कलहप्रिय, आलसी, अभिमानी होता है। वाद-विवाद करने में जातक बहुत जल्दी और बहुत अघिक क्रोघी हो जाता है। वाद विवाद में और झगड़े में नित्य पराजित होता है और सदा अपमानित होता है।

जातक आप्तों (बंघु-बांघवों) का विरोघी, बन्घु-बान्घवों पर उपकार न करनेवाला होता है। जातक का चित्त सदा संतप्त रहता है। जठर वायु के रोघ से, रुकावट से बद्धकोष्ठता वातशूल आदि रोग होते हैं। बुध के दूषित होने से गुह्यरोग, उदररोग, रहस्यदेशरोग, वायुरोग, कुष्ठरोग, मंदाग्निरोग, वातशूलरोग तथा संग्रहणी रोग होते हैं। नाभि के पास व्रण होता है। छाती दुर्बल होती है। क्षय या श्वास के रोग हो सकते हैं। मानसिक दु:ख से पीड़ा होती है। मन पर आघात होने से मृत्यु होती है।

37 वें वर्ष शत्रुओं का भय होता है। परदारारति एवं कामुकता जातक के स्वभाव के अंग बने रहते हैं। पत्नी कर्कश स्वभाव वाली, कुटिल अथवा आचरणहीन होती है अथवा पति वियोग भी सम्भव होता है। शिक्षा में विघ्न आता है। राजा का बिरोघी होता है। मामा को कन्याएँ अघिक होती हैं। पुत्र अल्प होते है। बदमाश नौकरों से कष्ट होता है। छठे स्थान में बुध अस्त, वक्री, या नीचराशि में होने से शत्रुओं से कष्ट होता है। षष्ठभाव में निर्बल बुध होने से असमय में मृत्यु होती है या मृत्युतुल्य संकट आता है।

सातवें भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : बुध सातवें भाव में होने से जातक सुन्दर, कुलीन, शिष्ट, उदार, घार्मिक, घर्मज्ञ, दीर्घायु होता है। जातक बुद्धिमान्, सुन्दर वेषवाला, सकल महिमा को प्राप्त होता है। बुध सप्तम में होने से जातक रूपवान्, विद्वान, सुशील, कामशास्त्र का ज्ञाता और नारी मान्य होता है। जातक मघुरभाषी और सुशील होता है। शिल्प कलामें चतुर और विनोदी होता है। विद्वान्, लेखक, सम्पादक होता है। व्यवसाय कुशल होता है। खरीद-विक्री के व्यवहार में लाभ होता है।

सप्तमभावगत बुध के प्रभाव में उत्पन्न जातक उच्चकुलोत्पन्न पत्नी का पति होता है। जातक की पत्नी चित्ताकर्षक अत्यन्त सुन्दरी मृगाक्षी होती हैं, किन्तु उसका उपभोग लेने के लिए जातक के शरीर में आवश्यक बल और वीर्य नहीं होता है। पत्नी घनिक होती है अर्थात् घनी कुल में विवाह होता है और दहेज मिलता है। जातक की पत्नी के पिता की संतति बहुत होती है।

सप्तम बुध होने से स्त्री विदुषी, सुन्दरी, साघारण घराने की, थोड़ी झगड़ालू और घनवती होती है। सप्तम बुध हो तो स्त्रीसुख मिलता है। जातक स्त्री के अनुकूल चलता है। सप्तम बुध हो तो माता को सुख होता है। जातक सुखी, घनी होता है। प्रवास में लाभ होता है। सातवें स्थान में बुध बलवान होने से अथवा शुभग्रह से दृष्ट होने से सुन्दर, रूपवती, कलाकुशल, बुद्धिमती, पुत्र-प्रसविनी स्त्री प्राप्त होती है। सप्तमभाव का बुध पुरुषराशि में होने से पत्नी सुन्दर होती है उसका चेहरा प्रभावशाली, केश काले, घने-लम्बे-शरीर पुरुष जैसा प्रमाणबद्ध होता है। वह झगड़ालू भी होती है।

अशुभ फल : बुध अस्तगत हो तो शरीर में कुछ न्यूनता रहती है। अल्पवीर्य होता है। जातक की दृष्टि चंचल होती है। लड़ाई में और वादविवाद में पराजय होता है। जातक साझीदार पर विश्वास नहीं करता। लेखन से कुछ समय बड़े संकट में आते हैं। जातक भक्षण के अयोग्य पदार्थों का भक्षण करता है। जातक के विवाह के समय झगड़े होते हैं। जातक वैश्यागमन करता है। बुध पर अशुभ दृष्टि हो तो बहुत तकलीफ होती है।


आठवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : जातक प्रसन्नचित्त स्वाभिमानी, मनस्वी, घर्मात्मा, परोपकारी होता है। जातक की घर्म में आस्था रहती है और आत्मसम्मान वाला होता है। जातक गुणों के कारण प्रसिद्ध, यशस्वी, लब्घप्रतिष्ठ, राजमान्य होता है। जातक नम्रता आदि गुणों से प्रसिद्ध और घनी होता है। जातक सच बोलनेवाला, तथा अतिथियों का आदर करनेवाला होता है।


बुध के अष्टम होने से जातक की प्रवृत्ति शास्त्रीय ज्ञान की ओर होती है। जातक दैवज्ञ हो सकता है। गुप्तविद्या और अध्यात्मशास्त्र का ज्ञान अच्छा होता है। जातक की स्मरणशक्ति अच्छी होती है। कुलपोषक, अपने कुल का पालन करनेवाला और श्रेष्ठ व्यक्ति होता है। राजा का कृपापात्र, राजा की कृपा से वैभव, सम्पत्ति मिलता है। राजकुल से घन का लाभ होता है। दण्डनेता होता है अर्थात् राज्य से ऐसा अघिकार प्राप्त होता है कि वह औरों को दण्ड दे सके। न्यायाघीश होता है।


25 वें वर्ष में जातक को नानाप्रकार से ऊँचा पद मिलता है। अपने देश में तथा परदेश में विख्यातकीर्ति होता है अर्थात् दिगन्तविश्रुतकीर्ति होता है। अच्छा व्यापारी होकर राजा से अथवा व्यापार से बहुत घन कमाते हैं। बुध लाभकारक होता है। बहुत जमीन प्राप्त होती है। सुन्दर शरीर एवं विलासी प्रकृति के कारण स्त्रियों का सहवास अनायास मिल जाता है। स्त्रियों के साथ हास्य विलास का सुख भी प्राप्त होता है। दूसरों के कष्ट दूर करता है। शत्रुओं का नाश होता है।


आठवें भाव में पड़ा बुध जातक को दीर्घायु देता है। जन्मलग्न से आठवें स्थान में बुध होने से जातक शतायु अर्थात् दीर्घजीवी होते हैं। जातक की मृत्यु अच्छीस्थिति में होती है। जातक की मृत्यु किसी अच्छे तीर्थ स्थान में सुख पूर्वक होती है। जातक मृत्यु के समय सावघान अवस्था में होता है। लग्न से अष्टम बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं। बुध पुरुषराशियों में होने से पत्नी रहस्यों को गुप्त रखनेवाली होती है। पति के साथ आनन्द से रहती है। भृगसूत्र के अनुसार 'सात पुत्रों की उत्पत्ति होती है' यह फल पुरुषराशियों मे संभव है।

अशुभ फल : अष्टमबुध का जातक कृतघ्न, दुष्टमति, व्यभिचारी, कामुक-असत्यभाषी और मानसिक दुखी होता है। आठवें स्थान में स्थित बुध से व्यक्ति अनेक प्रकार के कष्ट प्राप्त करता है, दरिद्रता, पत्नी से विरोघ, घनहानि, व विविघ रोगों से पराभूत होता है। लोगों का विरोघी तथा घमण्डी होता है। दूसरे के किए हुए काम को नष्ट करने वाला होता है। परस्त्रियों से रतिक्रीड़ा करता है। शस्त्रों से जातक के शरीर को पीड़ा होती है।
बुध अशुभ होने से शूल जाँघ या पेट के रोग होते हैं। मस्तिष्क और नसों के रोग होते हैं। मस्तिष्क विकार मृत्यु का कारण हो सकता है। जातक के बन्घु नहीं होते-कारावास सहना पड़ता है। 14 वें वर्ष घन-घान्य का नाश होता है। जातक को साझीदारी में नुकसान होता है। बुध पापग्रह के साथ या शत्रुग्रह की राशिमें होने से अति कामुक होता है जिससे जातक का अघ:पतन होता है। शत्रुग्रह की राशि में, नीच वा पापग्रह के साथ हो तो अल्पायु होता है।

नवें भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : नवें स्थान में बुध के रहने से जातक को शुभ फल मिलता है। शास्त्रकारों ने नवमभावस्थित बुध के जो शुभ फल बताएँ हैं वे पुरुषराशियों में मिलेंगे। नवम भाव में बुध होने से जातक सदाचारी, घर्मात्मा, बुद्धिमान्, सज्जनों का संग करनेवाला, सत्यवादी, जितेंद्रिय, सहर्ष परोपकार करनेवाला होता है। घार्मिक, घर्मभीरू, दानी तथा उत्सुक मन वाला होता है। जातक शास्त्रज्ञ, ज्ञानी, आनंदी, घर्मनिष्ठ, सदा पुण्यकर्मकर्ता होता है। जातक चपल, विनयी, शोघक बुद्धि का, नई चीजों की रुचि रखनेवाला होता है। तपस्वी, ध्यानी, योगाभ्यासी, वेद-स्मृतिप्रतिपादित कर्मकर्ता होता है। वेदशास्त्रों का पंडित होता है।

नौवें स्थान में स्थित बुध जातक को भाग्यवान् बनाता है, विविघ सुखेपभोग कराता है। तीर्थाटन और घार्मिक कार्यों जैसे यज्ञ आदि में रुचि रहती है। वैदिक अथवा तांत्रिक दीक्षा को पानेवाला, और गंगास्नान करनेवाला होता है। जातक घार्मिक-कुंए-वगीचे आदि बनवानेवाला होता है। पराक्रमी होता है जिससे सदा शत्रुओं को पराजित करता है। प्रतापी और विजयी करता है। समाज में अथवा अपने परिवार में राजा के समान सम्माननीय बनाता है। नवमस्थ बुधप्रभावोत्पन्न जातक अपने कृल को अपने ज्ञान से, अपने घन से, अपने यश से उज्जवल तथा प्रसिद्ध कर देता है। नवम में बुध होने से जातक उपकार और विद्या से आदर पाता है। नवम बुध शुभराशि में होने से जातक घन-स्त्री-पुत्र से युक्त होता है। संतति, संपत्ति तथा सुख मिलता है। जातक विद्वान, कवि, वक्ता, संगीतज्ञ, सम्पादक, लेखक, ज्योतिषी हो सकता है।

नवम स्थान में बुध मिथुन, तुला या कुम्भराशि में होने से विवाह के अनन्तर भाग्योदय होता है। नौकरी या व्यवसाय में प्रगति होती है। नवमस्थान में बुध मिथुन, तुला या कुम्भराशि में होने से संपादक, प्रकाशक या लेखक, स्कूल में शिक्षक का काम करना होता है।

अशुभ फल : जातक रोग से पीडि़त होता है। कभी मन विकृत भी हो जाता है। 29 वें वर्ष माता को कष्ट हो सकता है। बुध अशुभ होने से भाग्य मंद होता हैं। और अपनी बुद्धि का घमंड होता है। अशुभ राशि में या पापग्रह के साथ होने से कुमार्गगामी, वेदनिंदक होता है। बुध पर अशुभ दृष्टि होने से पागल के समान भटकना पड़ता है। बुध पापग्रहों के साथ, पापग्रहों की राशि में, या दृष्टि में होने से पिता को कष्ट होता है या मृत्यु होती है। गुरु से द्वेष करता है। बौद्धमतावलंबी हो जाता है।

दसवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : दसवें स्थान में बुध की स्थिति उत्तम मानी जाती है। प्राय: सभी शास्त्रकारों ने दशमभावगत बुध के फल विशेष अच्छे कहे हैं। दसवें स्थान में बुध के होने से जातक न्यायप्रिय और नीतिनिपुण होता है। विवेकी, गुणवान्, गुणनुरागी, सत्यवादी, घैर्यवान्, विनम्र होता है। जातक बुद्धि में श्रेष्ठ- घार्मिक, सात्विक बुद्धिवाला, मनस्वी होता है। जातक ज्ञानी, मघुरभाषी, प्रसंग के अनुकूल बोलने का कौशल्य होता है। शुद्ध तथा सदाचारी, सत्कर्म करनेवाला, श्रेष्ठ कार्य करनेवाला, सत्यपर दृढ़ रहनेवाला होता है।प्रतिष्ठायुक्त, आदरणीय और व्यवहारकुशल, सामाजिक व्यक्ति तथा कीर्तिमान् होता है।

दसवें स्थान में बुध के होने से जातक लोकमान्य और परम प्रतापी होता है। रूपवान्, बलवान्, शूर और पराक्रमी होता है। दसवें भाव में हो तो मातृ-पितृ-भक्त एवं गुरुजनों का भक्त होता है। बुध प्रबल होने से मातृसौख्य प्रचुरमात्रा में होता है। स्मरण शक्ति अच्छी होती है। गणित और भाषाशास्त्र में प्रवीण होता है। जातक विद्वान, काव्य में कुशल होता है।

अपने भुजबल से घनोपार्जन करनेवाला होता है। नानाविघ संपत्तियुक्त, नाना भूषण भूषित, घनाढ़्य, होता है। विलासी होता है। आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है। विविघ भूषणों से युक्त और सुखी होता है। पैतृक सम्पत्ति भी मिलती है। विविघ वैभव से सम्पन्न, राजमान्य होता है। राज्य के सहयोग से अर्थ लाभ करता है अथवा राज्य में उत्तम पद प्राप्त करता है।

राजकीय अघिकार के प्राप्त हो जाने के कारण, और इस राजकीय अघिकार से निग्रह-अनुग्रह सामर्थ्ययुक्त हो जाने के कारण जातक का संसार में विशेष आदर मान होता है, सर्वसाघारण लोगों की दृष्टि में जातक एक मान्य और पूजनीय व्यक्ति होता है।कविता करने से, शिल्पकला से, लेखन से, व्यापार से, क्लीवों के साहाय्य से और साहस से घन मिलता है। जातक को वाहन का सुख प्राप्त करता है।

दशमभाव का बुध जातक को सर्वथा सभी पदार्थों से परिपूर्ण कर देता है। जिस कार्य को प्रारम्भ करता है उसमें प्रारम्भ में ही सफलता प्राप्त होती है। व्यापार में यशस्वी होता है। व्यापार से लाभ कमाता है। दलाली, लेखन और साहूकारी में अच्छा यश किलता है। उपजीविका शिल्प कला से होती है। मिथुन-तुला-कुम्भ में बुध होने से सर्वे डिपार्टमैन्ट, पीडब्लूडी, पोस्टल डिपार्टमैंट क्लर्कशिप का व्यवसाय रहेगा। लग्न से दशम स्थान में बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं।
अशुभ फल : 28 वें वर्ष में नेत्र में रोग होता है। बुध शत्रु के घर में या पापप्रह के साथ होने से मूढ़, कर्म करने में विघ्न करने वाला होता है। नीचकर्म करता है और आचारभ्रष्ट होता है।

ग्यारहवें भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : ग्यारहवें भाव में पड़ा बुध शुभ फल देता है। जातक नीरोग, श्यामवर्ण तथा सुन्दर नेत्रोंवाला होता है। स्वभाव में कवि की-सी सरलता और चरित्र में दृढ़ता गुण होती है। जातक सदाचारी,ईमानदार, विनम्र, सुशील, नित्य आनन्द में रहनेवाला, और सत्यसंघ अर्थात् प्रतिज्ञापालक होता है। जातक स्त्रियों को प्रिय, अतिगुणी, बुद्धिमान्, अपने लोगों को प्रिय होता है। लोगों से प्रेम से बर्ताव करनेवाला होता है। कई प्रकार की विद्याओं को जाननेवाला होता है। कई एक विद्याओं और विषयों का जिज्ञासु होता है। जातक वेदशास्त्र में श्रद्धालु होता है। जातक ज्ञानी, विद्वान्, विचारवान्, कीर्तिमान्, भाग्यवान् तथा सुखी होता है।
एकादश बुध होने से दीर्घायु होता है। जातक को नौकरों का सुख भी प्राप्त होता है। आज्ञाकारी नौकर होते हैं। वाहनों का सुख मिलता है। घन घान्य सम्पन्न, नित्य लाभ वाला होता है। शिल्पकला, लेखन या व्यापार में अनेक प्रकारों से घन मिलता है। "ज्ञ: पन्चवेदे घनम्" - एकादश बुध 45 वें वर्ष में घनप्राप्ति कराता है। कन्या सन्तति अघिक होती है। शत्रुओं का नाश करने वाला, शत्रुओं से घन का लाभ प्राप्त करने वाला होता है। जातक नानाविघ भोगों से आसक्त, सदा ही सुखी होता है। बुध बलवान् होने से बहुत सम्पत्ति प्राप्त होती है। मिथुन-तुला या कुंभ में बुध होने से जातक शिक्षक, डिमानस्टे्रटर आदि होता है।
अशुभ फल : जातक की भूख कम होती है। ग्यारहवें स्थान में बुध की होने से जातक की बुद्धि कुछ कुण्ठित होती है। यह बुध पापग्रह की राशि में या पापग्रह के साथ होने से बुरे मार्गों से घन का नाश होता है।

बारहवे भाव में बुध का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : बारहवें भाव में बुध रहने से जातक बुद्धिमान विचारशील, विवेकी और घर्मप्रिय होता है। जातक तीर्थयात्रा में रुचि रखने वाला होता है। जातक शास्त्रज्ञ, वेदान्ती, एवं घर्मात्मा होता है। नम्र होता है। वस्त्रादि का दान करने वाला होता है। यज्ञ आदि-इष्टापूर्त में सद्व्यय करने की प्रवृत्ति होगी। अपने काम में चतुर, अपने पक्ष को जीतने वाला होता है।

जातक बचन पालनेवाला, वक्ता, पंडित, होता है। स्पष्टवक्ता और विजयी होता है। जातक ज्ञानी और विद्वान् होता है। शुभकार्य में निपुण, व्यसनहीन तथा उपकारी होता है। अपने लाभ को दृष्टिगत रखकर खर्च करने वाला होता है। द्वादशभावस्थ बुध प्रभवान्वित जातक शत्रुविजेता होता है। भाई, बंघुओं से सुखी होता हैं। पिता के भाई (चाचा) सुखी होते हैं। भूमि बहुत प्राप्त होती है। अघिकार योग भी होता है। लग्न से द्वादश स्थान में बुध पुरुषराशियों में होने से शास्त्रकारों के वर्णित शुभफल मिलते हैं।

अशुभ फल : बारहवें भाव में बुध जातक को आलसी बनाता है। जातक स्वकर्म परिभ्रष्ट होता है। जातक निर्दय-आत्मजनों से परित्यक्त, घूर्त तथा मलिन होता है। जातक खर्चीला, रोगी, पापी-पराघीन-विरुद्धपक्ष को समर्थन करनेवाला होता है। जातक अच्छे पुरुषों के संग से और अच्छे कामों से दूर रहने वाला होता है। अपमानित, दीन और कू्रर होता है। जातक बंघुओं का वैरी और बुद्धिरहित होता है। दीन-अपठित, निर्घन होता है। जातक अंगहीन-परस्त्री-परघन का लोभी होता है। जातक वेश्याव्यसनी होता है।आत्मीयों पर उपकार नहीं करता है। जातक राजकोप से संतप्त लोकनिंदा से दु:खी होता है। पापग्रहों के साथ होने से चंचल चित्त का होता है। राजा और प्रजा से द्वेष करता है। विद्वान् नहीं होता है।

GURU BRAHASPATI KO SHUBH BALI KARNE KE UPAY गुरू को बली और शुभ करने के उपाय

GURU BRAHASPATI KO SHUBH BALI KARNE KE UPAY गुरू को बली और शुभ करने के उपाय


Pahle bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal/ पहले भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल


पहले भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल शुभ फल : बृहस्पति-लग्न में रहने पर उत्तम फल मिलता है। जातक का शरीर नीरोग, दृढ़-कोमल, वर्ण गोरा और मनोहर होता है। जातक देवताओं के समान सुंदर शरीर वाला, बली, दीर्घायु होता है। जातक तेजस्वी, स्पष्टवक्ता, स्वाभिमानी, विनीत, विनय-सम्पन्न, सुशील, कृतज्ञ एवं अत्यंत उदारचित होता है। जातक निर्मलचित, द्विज-देवता के प्रति श्रद्धा रखने वाला, दान, धर्म में रूचि रखने वाला, एवं धर्मात्मा होता है। जातक विद्याभ्यासी, विचार पूर्वक काम करनेवाला, सत्कर्म करने वाला, बुद्धिमान्, विद्वान्, पंडित, ज्ञानी तथा सज्जन होता है।

आध्यात्मिक रुचि, रहस्य विद्याओं का प्रेमी होता है। जातक मधुर प्रिय होता है तथा सर्वलोकहितकर, सत्य और मधुर वचन बोलता है। स्वभाव स्थिर होता है। स्वभाव से प्रौढ़ प्रतीत होता है तथा सर्वज्जन मान्य होता है। घूमने-फिरने का शौकीन होता है। जातक अपने भाव अपने मन में ही रखता है। जातक प्रतापी, प्रसिद्ध कुल में उत्पन्न होता है। लग्न में बृहस्पति होने से जातक शोभावान्, और रूपवान्, निर्भय, धैर्यवान्, और श्रेष्ठ होता है।

सामान्यत: लग्न में किसी भी राशि में गुरु होने से जातक उदार, स्वतंत्र, प्रामाणिक, सच बोलनेवाला, न्यायी, धार्मिक तथा कीर्तिप्राप्त करनेवाला और शुभ काम करनेवाला होता है। मस्तक बड़ा और तेजस्वी दिखता है। जातक का वेश (पोशाक) सुन्दर होता है। जातक सदा वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त-सुवर्ण-रत्नआदि धन से पूर्ण होता है। राजमान्य-तथा राजकुल का प्रिय होता है। राजा से मान तथा धन मिलता है। अपने गुणसमूह से ही सर्वदा लोगों में गुरुता (श्रेष्ठता-बड़कप्पन) प्राप्त होती है। गुणों से समाज में मान्य होता है। स्त्री-पुत्र आदि के सुख से युक्त होता है। पुत्र दीर्घायु होता है। बचपन में सुख मिलता है। सभी प्रकार के सुख प्राप्त करता है। विविध प्रकार के भोगों में धन का खर्च करता है। जातक शत्रुओं के लिए विषवत् कष्टकर होता है। विघ्नों को गुरु तत्काल नाश करता है। जीवनयात्रा के अन्त में विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। शरीर छोड़ने पर जातक की उत्तमगति होती है अर्थात् स्वर्गगामी होता है।

गुरु अग्निराशि में होने से उदार, धैर्यशाली, स्नेहल-विजयी, मित्रों से युक्त अभिमानी होता है। शास्त्रकारों के शुभफल मेष, सिंह, धनु, मिथुन और मीन राशियों के हैं। अशुभ फल इन राशियों से भिन्न दूसरी राशियों के हैं। जन्म लग्न में गुरु अपने स्थान (धनु-मीन) में होने से व्याकरणशास्त्रज्ञ होता है। तीनों वेदों का ज्ञाता होता है। धनु और मीन में गुरु होने से संकट नष्ट होते हैं। मेष, सिंह तथा धनु लग्न में गुरु होने से शुभफलों का अनुभव आता है। जातक स्वभाव से उदार होता है। लोककल्याण बहुत प्रिय होता है। गुरु के प्रभाव में आए हुए जातक अपठित भी पठित ही प्रतीत होते हैं। जातक यदि प्राध्यापक वकील-वैरिस्टर-जज-गायक कवि आदि होते हैं तो इन्हें यशप्राप्ति होती है। गुरु लग्न में, त्रिकोण में या केन्द्र में धनु, मीन या कर्क राशि में होने से अरिष्ट नहीं होता है।

अशुभफल : अल्पवीर्य-अर्थात् अल्पबली-कमजोर होता है। शरीर में वात और श्लेष्मा के रोग होते हैं। झूठी अफवाहों से कष्ट होता है। धनाभाव बना ही रहता है। लग्नस्थ गुरु के फलस्वरूप माता-पिता दोनों में से एक की मृत्यु बचपन में सम्भव है।लग्न स्थान का गुरु द्विभार्या योग कर करता है। विवाहाभाव योग भी बन सकता है।

लग्नस्थ गुरु पुलिस, सेना-आबकारी विभागों में काम करने वालों के लिए नेष्ट है। अर्थात ये विभाग लाभकारी नहीं होंगे। गुरु शत्रुग्रह की राशि में, नीच राशि में, पापग्रह की राशि में या पापग्रह के साथ होने से जातक नीचकर्मकर्ता तथा चंचल मन का होता है। मध्यायु होता है। पुत्रहीन होता है। अपने लोगों से पृथक हो जाता है। कृतघ्न, गर्वीला, बहुतों का बैरी, व्यभिचारी, भटकनेवाला अपने किए हुए पापों का फल भोगनेवाला होता है।

मेष, मिथुन, कर्क, कन्या-मकर को छोड़ अन्य लग्नों में गुरु होने से जातक भव्य भाल का, विनोदी स्वभाव का, किसी विशेष हावभाव से बातें करने वाला होता है। धनु लग्न में सन्तति नहीं होती। मिथुन, कन्या, धनु, मीन लग्न में गुरु होने से जातक वय में श्रेष्ठ कुलीन परस्त्री से सम्बन्ध जोड़ता है। लग्नस्थ गुरु अशुभ सम्बन्ध का अच्छा फल नहीं देता है।


Dusre bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal/ दूसरे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल शुभ फल :

द्वितीयभाव में जो-जो बातें देखी जाती हैं उन सबका सुख प्राप्त होता है। दूसरे स्थान में बृहस्पति होने से जातक सुन्दर मुखाकृति वाला, रूपवान्, सुमुख, सुंदर शरीर और आयुष्मान् होता है। जातक गुणी, श्रेष्ठ-दानी, सुशील, दीनदयालु, निर्लोभी, निरूपद्रवी, विनम्र, सत्संगी, साहसी और सदाचारी होता है। जातक मधुरभाषी, सर्वजनप्रिय, सम्माननीय होता है तथा सबलोग आदर-मान करते हैं। बुद्धिमान्, विद्या-विनययुक्त, विद्याभ्यासी विवेकसंपन्न, विद्वान, ज्ञानी, गुणज्ञ, होता है। सुकार्यरत, पुण्यात्मा, कृतज्ञ, राजमान्य, लोकमान्य, भाग्यवान् होता है। कवि की सी कोमल भावनाओ से युक्त होता है। मान-प्रतिष्ठा को ही धन मानता है। दूसरे भाव का बृहस्पति जातक को नेतृत्व के गुणों से युक्त करता है। कीर्ति से युक्त होता है। सदैव उत्साही होता है।

वाग्मी (बोलने में कुशल) होता है। बुद्धिमान् और कुशलवक्ता होता है। जातक भाषण में कुशल, बोलने में चतुर, तथा प्रसन्नमुख होता है। द्वितीयभावगत बृहस्पति के प्रभाव में उत्पन्न व्यक्ति वाचाल होता है-बोलने में प्रगल्भ होता है। जातक की वाणी अच्छी होती है-अर्थात् मितभाषी यथार्थ और मधुरभाषी होता है। जातक लोगों के बीच सभा में अधिक बोलने वाला होता है। जातक को उत्तम भोजन प्राप्त होते हैं। जातक धनी और सर्वाधिकार प्राप्तकर्ता होता है। जातक सम्पत्ति और सन्ततिवान्, धनाढ़्यय होता है। जातक को प्रयत्न से धन का लाभ होता है। मोतियों के व्यापार से धनवान् होता है। जातक पशुधन से भी धनाढ़्य होता है। अनेक प्रकार के वाहन-हाथी, घोड़े, मोटर आदि से युक्त होता है।

गुरु धनस्थान में हाने से या इस स्थान पर गुरु की दृष्टि होने से धनधान्य का सुख मिलता है। धनस्थ गुरु अनेक प्रकारों से धन का संग्रह और संचय करवाता है। धन का संग्रह होता है। सोना चांदी प्राप्त करने वाला, सरकारी नौकरी, कानूनी काम, बैंक, शिक्षा संस्थान, देवालय, धर्मसंस्था में यश मिलता है। रसायनशास्त्र, और भाषाओं के ज्ञान में निपुणता प्राप्त होती है।

द्वितीयभाव में बृहस्पति होने से जातक की स्वाभाविक रुचि काव्यशास्त्र की ओर होती है। द्वितीयभाव का बृहस्पति दंडनेतृत्व शक्ति अर्थात् राज्याधिकार देता है। जातक अपराधीजनों को दंड देने का अधिकारी होता है-अर्थात् मैजिस्ट्रेट-कलक्टर आदि न्यायाधीश होता है। कुटुंब के व्यक्तियों से और पत्नी से अच्छा सुख मिलता है। जातक की पत्नी सुन्दर होती है। पत्नी से संतुष्ट होता है। बंधुओं से आनन्द प्राप्त होता है। 27 वें वर्ष राजा से आदर पाता है। निर्वैर-अर्थात् शत्रुहीन होता है। शत्रुओं को पर विजय करने वाला होता है। गुरु कर्क और धनुराशि में होने से धनवान् होता है। यह गुरु बलवान् होतो श्रेष्ठ फल मिलता है।


अशुभफल : गुरु धनस्थान में पापग्रह से युक्त होने से शिक्षा में रुकावटें आती हैं। चोर, ठग, मिथ्याभाषी, अयोग्यभाषणकर्ता होता है। नीचराशि में, या पापग्रह की राशि में होने से मद्यपी, भ्रष्टाचार, कुलनाशक, परस्त्रीगामी और पुत्रहीन होता है। प्रथम आय के साधन कम होते हैं, दूसरे आय से अधिक खर्च होता रहता है, इसलिए धनाभाव बना ही रहता है।

द्वितीयभावगत बृहस्पति से प्रभावान्वित व्यक्ति को धनार्जन करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। बड़ी कठिनता से अर्जित धन यत्न करने पर भी स्थायी नहीं होता है-अर्थात् आर्थिक कष्ट बना ही रहता है। जातक वक्त्ररोगी होता है। बहुत बोलना, वा मूक होना-दोनों ही जिह्वा के दोष हैं। द्वितीयभावगत गुरुप्रभावान्वित व्यक्ति शरीर में कोमल होने से, रतिप्रिया कामिनी के साथ रतिप्रसंग में विजयी नहीं होता-क्योंकि अल्पवीर्य होता है।

धनस्थानस्थ गुरु के व्यक्ति प्राय: भिक्षुक ब्राह्मण, पाठशालाओं में शिक्षक, प्राध्यापक अथवा ज्योतिषी होते हैं, और ये धनी नहीं होते हैं-जीवननिर्वाह के लिए इन्हें जो कुछ मिलता है-किसी से छिपा हुआ नहीं है। वैरिस्टर, वकील और जज लोग धनपात्र होते हैं। यह ठीक है, किन्तु ये लोग साधारण स्थिति के अपवाद में है। अत: यह धारणा कि धनभाव का गुरु धन देता है-सुसंगत नहीं है। उच्चवर्ग में विवाह का बिलंब से होना-गुरु क #2366; फल हो सकता है। बाल-विवाह की प्रथा निम्नवर्ग के लोगों में अभी तक चली आ रही है। "पिता का सुख कम मिलता है-जातक के धन का उपयोग पिता नहीं कर सकता है। पैतृकसंपति नहीं होती-हुई तो नष्ट हो जाती है, जातक द्वारा दत्तक पुत्र लिया जा सकता है। यदि पैतृकसंपत्ति अच्छी हो तो पिता-पुत्र में वैमनस्य रहता है। अच्छे सम्बन्ध हों तो दोनों में से एक ही धनार्जन कर पाता है।

इस भाव का गुरु शिक्षा के लिए अच्छा नहीं है, शिक्षा अधूरी रह जाती है। अपने ही लोग निंदक हो जाते हैं। उपकर्ता का विरोध करते हैं। 27 वें वर्ष राजमान्यता मिलेगी-यवनजातक का यह फल ठीक प्रतीत होता है। धनभावगत बृहस्पति धनार्जन करवाता है। जातक को महान् प्रयास और कष्ट उठाना पड़ता है-धनार्जन उच्च्कोटि का भी हो सकता है-मध्यमकोटि का भी तथा अधमकोटि का भी हो सकता है-इसका कारण एकमात्र व्यक्ति का परिश्रम, प्रयास तथा कष्ट होता है-जैसा परिश्रम, वैसा ही फल।

मेष, सिंह तथा धनु राशि में गुरु होने से, गुरुजनों से, घर में बड़ों से विरोध करता है-इस फल का अनुभव होता है। भृगुसूत्र के अनुसार दूषित गुरु का फल -मद्यपायी होना, चोर वा ठग होना, वाचाट और भ्रष्टाचारी होना आदि-संभव हैं, अनुभव में आ जावें। धनु में गुरु होने से दान-धर्म के कारण अल्पघनता होती है। पैतृकसंपत्ति नहीं मिलती है। धनस्थान में मेष, सिंह, धनु, मिथुन, तुला, कुंभ में गुरु के फल साधारणत: अच्छे होते हैं।

Tisre bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal/ तीसरे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल शुभ फल :

तीसरे स्थान में स्थित बृहस्पति के कारण जातक साहस संपन्न, बलवान् होता है। गुरु धार्मिक और आध्यात्मिक वृत्ति का पोषक है, जातक विचारशील और बुद्धिमान् होता है। जितेन्द्रिय, आस्तिक, शास्त्रज्ञ, अनेक प्रकार के धार्मिक कृत्य सम्पादित करने वाला होता है। जातक तेजस्वी-काम करने में चतुर होता है, जिस काम का संकल्प करता है उसमें सफलता मिलती है। प्रवासी, पर्यटनशील एवं तीर्थयात्राएँ करने वाला होता है। जातक को सगे इसे भाई-बहनों और कुटुंब का सुख मिलता है।

तीन या पांच भाई बहन होते हैं। सर्वदा अपने भाइयों को उत्तमसुख और कल्याण करनेवाला होता है। जातक का भाई प्रतिष्ठित व्यक्ति होता है। मित्र तथा आप्तजनों के सुख से संपन्न होता है। स्त्री के साथ प्रेम होता है। राजा द्वारा सम्मानित होता है। सैकड़ों लोगों का स्वामी होता है। जातक की बुद्धि अच्छी होती है। लेखन से लाभ होता है। आप्तों से इसे धन लाभ होता है।

गुरु अग्नितत्व की राशियों में होने से संसार में विजय मिलती है। धनु या मीन में गुरु होने से भ्रातृसुख विशेष मिलता है। तृतीय स्थान का गुरु पुरुषराशि में होने से तीन भाई तक संभव हैं। 'सैंकड़ों लोगों का स्वामी होता है" ऐसा यवनमत है, ऐसे फल का अनुभव पुरुषराशियों में संभव है।


अशुभफल : तीसरेस्थान में बृहस्पति हो होने से बहुत क्षुद्र होता है। नीच प्रकृति का होता है। जातक कृतघ्न होता है, किसी के उपकार को माननेवाला नहीं होता है। जातक सज्जन नहीं होता है- उदासीन, और आलसी होता है। तृतीयभावस्थ गुरु का जातक कृपण अर्थात् अदाता और कंजूस होता है। लोक में अपमानित, पापी और दुष्टबुद्धि होता है।

तीसरे स्थान पर बैठा बृहस्पति जातक को धनहीन, विलासी, परदाराप्रिय बनाता है। मित्रों के साथ मित्रों जैसा व्यवहार नहीं करता है, अर्थात् यह विश्वसनीय मित्र नहीं होता है। भाग्योदय होने पर भी संतोषजनक द्रव्योपलब्धि नहीं होती है। परन्तु राजा के घर में प्रसिद्धि पाकर भी स्वयं सुख भोगनेवाला नहीं होता है। स्त्री से पराजित होता है। स्त्री तथा पुत्रों और मित्रों से प्रेम नहीं होता है। भूख नहीं लगती है और यह दुर्बल होता है। अग्निमन्दता या मन्दाग्नि रहती है। जातक के शत्रु बढ़ते हैं, धन का क्षय होता है।

तृतीयभावगत गुरु भाइयों की एकसाथ प्रगति में रुकावट डालता है-सभी एकसाथ प्रगतिशील नहीं होंगे। कोई एक निठल्ला अवश्य ही बैठेगा और कुछ उपयोगी न होगा। इस परिस्थिति में पृथकत्व अच्छा रहेगा। युक्तिवाद करता है और मत बदलता रहता है। तृतीयेश के साथ पापीग्रह होने से धैर्यहीन, जडबुद्धि तथा दरिद्रता युक्त होता है। कू्ररग्रह की दृष्टि होने से भाइयों पर विपत्ति आती है। क्रूर और शत्रुग्रहों की दृष्टि होने से भाइयों का सुख कम मिलता है। तृतीयेश के साथ पापीग्रह होने से भाइयों का नाश होता है, इनसे संबंध अच्छे नहीं रहते हैं।

तृतीयस्थान का गुरु पुरुषराशि में होने से बड़े भाई होते हैं परन्तु बड़ी बहिनें नहीं होतीं। पुरुषराशि में तृतीयस्थान का गुरु शिक्षा के लिये अशुभ है, शिक्षा पूरी नहीं होती है। तृतीयस्थान का गुरु पुरुषराशि में होने से उपजीविका नौकरी द्वारा होती है पहिला चला हुआ स्वतंत्र व्यवसाय भी बंद करना होता है और नौकरी करनी होती है।

chothe bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / चौथे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल

अशुभफल : सन्तानाभाव के कारण दुखी रहता है। जातक का अन्तष्करण चिन्तायुक्त रहता है। वैद्यनाथ ने "जातक कपटी होता है" ऐसा अशुभफल कहा है। पूर्वजों की संपत्ति का नाश-अथवा अभाव, परिश्रम और कष्ट से स्वयं धन का उपार्जन, उत्तर आयुष्यकुछ अच्छा, आयु के पूर्वार्ध में कष्ट, पूर्वाजित संपत्ति का नाश अपने ही हाथों से होना, अथवा किसी ट्रस्टी द्वारा इसका हड़प हो जाना। पितृसुख शीघ्रनष्ट होता है।

मातृजीवन में भाग्योदय नहीं होता है। माता-पिता जीवित रहें तो इन्हें पुत्रोपार्जित धन का सुख नहीं मिलता- जातक स्वयं भी प्रगतिशील नहीं होता-नौकरी हो तो इसमें शीघ्र उन्नति नहीं होती। व्यापार हो तो प्रगति बहुत धीमी होती है। जातक उतार-चढ़ाव के चक्र में पड़ा रहता है-कभी 12 वर्ष अच्छे, तो कभी 12 वर्ष बुरे बीतते हैं।

मेष, सिंह या धनु में चतुर्थभाव का गुरु होने से घर-बाग-बगीचा हो ऐसी प्रबल इच्छाएँ होती हैं, किन्तु इस विषय में व्यक्ति चिंताग्रस्त ही रहता है। आयु के अंत में घर तो हो जाता है किन्तु अन्य इच्छाएँ बनी रहती हैं, पूर्ण नहीं होती है। चतुर्थेश के साथ पापग्रह होने से, या पापग्रहों की दृष्टि होने से घर और वाहन नहीं होते। दूसरे के घर रहना पड़ता है-जमीन नहीं होती माता की मृत्यु होती है। भाई-बंधुओं से द्वेष होता है।
शुभ फल : चौथे स्थान में बृहस्पति होने से जातक रूपवान्, बली, बुद्धिमान्, अच्छे हृदयवाला तथा मेधावी होता है। वाक्पटु, महत्वाकांक्षी और शुभकर्म करनेवाला होता है। जातक उद्यमी, कार्यरत, उद्योगी, यशस्वी और कुल में मुख्य होता है। लोक में आदर पानेवाला होता है। सब लोग जातक की प्रशंसा करते हैं। ब्राह्मणों का आदर-सम्मान करने वाला होता है। गुरुजनों का भक्त होता है। नौकरों-चाकरों और सवारी का सुख मिलता है। नानाप्रकार के वाहन आदि की प्राप्ति से सदैव आनंद मिलता है। कई प्रकार के वाहन चलाने की योग्यता रखता है। घर के दरवाजे पर बँधे हुए घोड़ों की हिनहिनाहट सुनाई देती है।

जातक के पास सवारी के लिए घोड़ा होता है। जातक का घर बड़ा विस्तृत और सुख-सुविधा युक्त होता है। राजा द्वारा दिए गए घर (राजकीय आवास) के सुख से युक्त होता है। जातक के घर पर पाण्डित्य पूर्ण शास्त्रार्थ-वाद-विवाद होते हैं। माता का सुख एवं स्नेह का पात्र बनता है। माता-पिता की सेवा करने वाला होता है। माता-पिता पर भक्ति होती है। और उनसे अच्छा लाभ होता है।

बृहस्पति अपरिमित सुख देता है। माता, मित्र, वस्त्र, स्त्री, धान्य आदि का सुख प्राप्त होता है।जातक को भूमि का सुख मिलता है। राजा की कृपा से (सरकार से) जातक को धन मिलता है। जातक के पास अच्छा दूध देने वाले दुधारू पशु होते हैं। अर्थात् यह पशु-धन संपन्न होता है। मित्रों से सुख मिलता है। वचपन के मित्र प्राप्त होते हैं। उत्तम वस्त्र और पुष्पमालाएँ प्राप्त होती हैं। आयु के अंतिमभाग में विजय प्राप्त होती है। पुरुषराशियों में शुभफल मिलते हैं। गुरु बलवान् होने से पिता की स्थिति बहुत अच्छी होती है। पिता सुखी होते हैं।


panchve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / पांचवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फलशुभ फल : 

पंचमस्थ बृहस्पति होने से जातक दर्शनीय रूपवाला होता है, आखें बड़ी होती हैं। पाँचवें भाव में बृहस्पति होने से जातक आस्तिक, धार्मिक, शुद्धचित्त, दयालु तथा विनम्र होता है। जातक बुद्धिमान्, पवित्र और श्रेष्ठ होता है। वृत्ति न्यायशील होती है। महापुरुषों से पूजित योगाभ्यासी होता है। जातक उत्तम कल्पना करनेवाला, कुशल तार्किक, ऊहापोह-तर्क-वितर्क करनेवाला नैयायिक होता है। जातक की वाणी कोमल और मधुर होती है। वह उत्तम वक्ता, धाराप्रवाह बोलने वाला, तर्कानुकूल उचित बोलनेवाला, कुशल व्याख्यानदाता होता है।

जातक धीर होता है, संघर्षो से मुख न मोड़ कर विपत्तियों से जूझना इसकी विशेषता मानी जाती है। वह चतुर और समझदार होता है। महान् कार्य करने वाला होता है। इसका हस्ताक्षर (हस्त लेख) बहुत दिव्य और सुंदर होता है। उत्तम लेखक होता है अर्थात् स्वप्रज्ञोद्भावित-भावपूर्णगंभीरलेख लिखने वाला होता है, अथवा एक उच्चकोटि का ग्रंथकार होता है। जातक ज्योतिष मे रुचि, कल्पनाशील, प्रतिभावान एवं नीतिविशारद होता है। अनेक विध, विद्या और विद्वानों का समागम होता है। अनेक शास्त्रों का ज्ञाता होता है। जातक उत्तम मंत्रशास्त्र का ज्ञाता होता है। जातक की बुद्धि विलास में अर्थात् आनन्द प्रमोद में रहती है। अर्थात् जातक बृहस्पति के प्रभाव से आरामतलब होता है। बहुत पुत्र होते हैं। सुखी और सुन्दर होते हैं।

पांचवे स्थान में बृहस्पति स्थित होने से जातक को गुणी और सदाचारी पुत्रों की प्राप्ति होती है। जातक के पुत्र आज्ञाकारी, सहायक होते हैं। जातक बुद्धिमान् और राजा का मंत्री होता है। विविध प्रकारों से धन और वाहन मिलते हैं। जातक की संपति सामान्य ही रहती है। अर्थात् अपने का्यर्यानुसार ही प्राप्ति होती है, अधिक प्राप्ति नहीं होती है। अर्थात् जातक की जीवनयात्रा तो अच्छी चलती हैं, किन्तु धन समृद्धि नहीं होती है, और यथा लाभ संतुष्ट रहना होता है। स्थिरधन से युक्त और सदा सुखी होता है। मनोरंजक खेल, सट्टा, जुआ, साहसी (रिस्की)काम, रेस, प्रेम प्रकरणों आदि में विजयी होता है। जातक के मित्र अच्छे होते हैं। बुद्धि शुभ होती है। अपने कुल का प्रेमी, अपने वर्ग का मुख्य अर्थात कुलश्रेष्ठ होता है। अच्छे वस्त्राभूषण पहनता है। जातक पुत्र के कमाये धन पर आराम करने वाला रहता है। धनु में होने से कष्ट से संतति होती है। ग्रंथकारों ने पंचम भावगत गुरु के शुभ फल वर्णित किये हैं। इनका अनुभव पुरुषराशियोें में प्राप्त होता है।
अशुभफल : पुत्र और कन्या का सुख नहीं होता है। अर्थात् संतानसुख नहीं होता है। पंचम भाव का गुरू कर्क, मीन, धनु तथा कुंभ में होने से पुत्र न होना अथवा थोड़े पुत्रों का होना और उनका रोगी होना" ऐसे फल का अनुभव आता है। पुत्रों के कारण क्लेशयुक्त होता है। 1. पुत्र उत्पन्न न होना भी क्लेश है, पुत्र का अभाव भी पुत्रक्लेश है। 2. पुत्र उत्पन्न होने पर नष्ट हो जावें यह भी पुत्रों से क्लेश है। 3. पुत्रों के आचरण से, व्यवहार से क्लेश उठाना पड़े, वा मन को क्लेश हो यह भी पुत्रों से क्लेश है।

बुढ़ापे में पुत्रों से कदाचित् ही सुख मिलता है। धन लाभ के समय विरोध खड़ा हो जाता है। राज्यसम्बन्धी कारण से कचहरी में धन का खर्च होता है। कार्य की फलप्राप्ति के समय इसे कुछ विघ्न प्राप्त हो जाते हैं। अर्थात् अपने किए हुए काम का पूरा फल नहीं मिलता है। पंचमस्थ गुरु निष्फल होता है' यह मत वैद्यनाथ (जातक पारिजात) का है। वृष, कर्क, कन्या, मकर, मीन तथा धनु राशियों में पंचमस्थ गुरु होने से निष्फलता का अनुभव संभव है। पंचमेश बलवान् ग्रहों से युक्त न होने से, या पापग्रह के घर में होने से, या शत्रु तथा नीचराशि में होने से पुत्र नाश होता है। अथवा एक ही पुत्रवाला होता है। पंचमेश के साथ या गुरु के साथ राहु-केतु होने से सर्प के शाप से पुत्रनाश होता है।

 

Chathe bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / छठे भाव में गुरु का शुभ अशुभ फल शुभ फल :

छठे भाव में गुरु बलवान् होने से शारीरिक प्रकृति अच्छी अर्थात नीरोगी होती है। शरीर में चिन्ह होता है। जातक मधुरभाषी, सदाचारी, पराक्रमी, विवेकी, उदार होता है। सुकर्मरत, लोकमान्य, प्रतापी, विख्यात और यशस्वी होता है। जातक विद्वान, ज्योतिषी, तथा संसारी विषयों से विमुख और विरक्त होता है। जारण-मारण आदि मन्त्रों में कुशल होता है। जातक संगीत विद्या का प्रेमी होता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के विषय में जातक प्रवीण होता है।
छठे स्थान पर बैठा बृहस्पति जातक को स्त्री पक्ष का पूरा सुख देता है।सुन्दरी स्त्री से रति सुख मिलता है। गुरु भाई बहनों के लिए तथा मामा के लिए सुखकारी होता है। पुत्र और पुत्र के पुत्र (पौत्र) देखने का सुख मिलता है। राज-काज में, विवाद में विजय कराता है। जातक शत्रुहंता तथा अजातशत्रु होता है। अर्थात शत्रु नहीं होते। नौकर अच्छे मिलते हैं। वैद्य, डाक्टरों के लिए यह गुरु अच्छा होता है। स्वास्थविभाग की नौकरी में जातक यशस्वी होता है। स्वतंत्र व्यवसाय की अपेक्षा नौकरी के लिए यह गुरु अनुकूल होता है। भैंस-गाय-घोड़ा कुत्ते आदि चतुष्पदों (चारपाए जानवरों) का सुख मिलता है। गुरु स्वगृह में या शुभग्रह की राशि में होने से शत्रुनाशक होता है।
अशुभफल : जातक कृश शरीर अर्थात दुर्बल होता है। सामान्यत: षष्ठ भाव के गुरु होने से जातक के के बारे में लोग संदिग्ध और संशयात्मा रहते हैं। निष्ठुर, हिंसक, आलसी, घबड़ाने वाला, मूर्ख तथा कामी होता है। जातक के काम में विघ्न आते हैं। जिस काम को हाथ में लेता है उसे समाप्त करने में शीघ्रता नहीं करता है अर्थात् आलस करता है। 
जन्मलग्न से छठे स्थान में बृहस्पति होने से जातक रोगार्त रहता है। नानाविध रोगों से रुग्ण रहता है। जातक को नाक के रोग होते हैं। जातक की माता भी रोग पीडि़त रहती हैं। माता के बन्धु वर्गों में भी (मामा आदि में भी) कुशल नहीं रहता है। जातक के मामा को सुख नहीं होता है। शत्रु बहुत होते हैं। शत्रुओं से कष्ट होता है। 40 वें वर्ष शत्रुओं का भय होता है। छठागुरु भाइयों और मामा के लिए मारक होता है। छठागुरु अपमान, पराभव और व्याधि देता है। छठवें और बारहवें वर्ष ज्वर होता है। कामी, और शोक करने वाला होता है। जातक स्त्री के वश में रहता है। जातक की भूख कम होती है-पौरुष कम होता है। गुरु धनेश होकर छठे होने से पैतृकसंपत्ति नहीं मिलती।
गुरु पुरुषराशियों में होने से जातक सदाचारी नहीं होते-इन्हें जुआ, शराब और वेश्या में प्रेम होता है। मधुमेह, बहुमूत्र, हार्निया, मेदवृद्धि आदि रोग होते हैं। गुरु कन्या, धनु या कुंभ मे होने से जातक के लिए भाग्योदय में रुकावट डालनेवाला है। गुरु अशुभ योग में होने से यकृत के विकार, मेदवृद्धि-तथा खाने-पीने की अनियमितता से अन्यरोग होते हैं। पापग्रह का योग होने से या पापग्रह के घर में गुरु होने से वात के तथा शीत के रोग होते हैं। शास्त्रकारों के बताये अशुभफल पुरुषराशियों में अनुभव मे आते हैं।


Satve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / सातवे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल शुभ फल : 

सातवें स्थान के बृहस्पति के प्रभाव से जातक सुन्दर देह और आकर्षक व्यक्तित्व का धनी, बलाढ़्य होता है। जातक से मिलकर लोग प्रसन्न होते हैं अर्थात् यह मिलने में आकर्षक और वश में करनेवाला होता है। जातक की वाणी अमृत के समान मधुर होती है। वक्ता, बोलने में-सभा में भाषण देने में कुशल होता है। सप्तम भावगत गुरु प्रभावान्वित जातक कुशाग्रबुद्धि होता है। श्रेष्ठ-बुद्धिमान् और विद्या-सम्पन्न होता है। जातक की सद्-असद् विवेकाकारिणी बुद्धि बहुत फलदायिनी होती है।

जातक ज्योतिष, काव्य साहित्य, कला-पे्रमी, शास्त्र परिशीलन में बहुत आसक्त रहता है। अच्छी रुचिवाला, उदार, कृतज्ञ, धैर्यसंपन्न, विनम्र, विनययुक्त होता है। जातक भाग्यवान और गुणी होता है। जातक गुणों में अपने पिता की अपेक्षा श्रेष्ठ होता है। अपने पिता से अधिक उदार होता है। अपने भाई-बहनों से सशक्त होता है अथवा अपने कुलके लोगों में श्रेष्ठ होता है। स्वयं सुन्दर होता है। प्रधान, प्रवासी, सुन्दर, प्रसिद्ध होता है। सप्तमस्थ बृहस्पति के अनुसार व्यक्ति प्रतापी, यशस्वी, प्रसिद्ध होता है। जातक स्त्रियों के प्रति आसक्त नहीं होता। स्त्रियों को केवल उपभोग का साधन मानता है, बंधना नहीं जानता। जातक की पत्नी सुन्दर, सुलोचना, गौर वर्ण की, धर्मनिष्ठ, पतिव्रता-पतिपरायणा होती है। पति या पत्नी उदार, न्यायी, सुस्वभावी, प्रामाणिक और स्नेहल होती है। पत्नी या पति उच्चकुल का धनवान् और सुखी होता है।

विवाह के कारण भाग्योदय होकर धन, सुख, श्रेष्ठपद और मान्यता मिलती है। जातक की पत्नी गुणवती और पुत्रवती होती है। साझीदार अच्छे होने से साझे के व्यवहार में और कचहरी के मामलों में यश मिलता है। जातक का वैभव तथा ऐश्वर्य गगनचुम्बी होता है। जातक को राजकुल से पूर्ण धन का लाभ होता है। राजा के समान सुख प्राप्त होता है। बृहस्पति सप्तमभाव में होने से जातक शीघ्र परम उच्चस्थान को प्राप्त करता है। अच्छी और शुभ मंत्रणा देनेवाला, अच्छा सलाहकार होता है। पुत्र उत्तम बुद्धिमान् और सुंदर होते हैं। चित्रकर्मा-विचित्र काम करनेवाला अथवा चित्रकार-फोटोग्राफर होता है। न्याय के कार्य में यश मिलता है। शत्रुता दूर होती है, अच्छे मित्र मिलते हैं। वकीलों के लिए सप्तम में गुरु बलवान् होने से अच्छा योग होता है। क्योंकि ये समझौता करने में कुशल होते हैं। पिता से सुख मिलता है। जातक को 34 वें वर्ष में प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।

मेष, सिंह, मिथुन वा धनु में सप्तमभावस्थ गुरु शिक्षा के लिए अच्छा है। पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर लेने के अनन्तर जातक विद्वान् बुद्धिमान् शिक्षक, प्राध्यापक वकील, बैरिस्टर और न्यायाधीश भी हो सकता है। शिक्षा-विभाग में नौकरी के लिए यह अच्छा योग है। सप्तम स्थान के स्वामी के साथ शुभग्रह होने से, या बृहस्पति उच्च में (कर्कराशि में) अथवा अपने गृह (धनु-मीन) में होने सेे एक ही पत्नी वाला होता है और स्त्री के द्वारा बहुत धनवाला तथा सुखी होता है। ग्रन्थकरों के बतलाए शुभफलों का अनुभव पुरुषराशियों में प्राप्त हो सकता है ।
अशुभफल : जातक अत्यंत अभिमानी भी होता है। सातवें भाव में गुरु होने से जातक अतिकामुक होता है और रतिक्रीड़ा विचक्षणा स्त्री में अत्यंत आसक्त होता है। सप्तमस्थान का स्वामी निर्बल होने से, अथवा राहु, केतु, शनि और मंगल ग्रह बैठे होने से या पापग्रह की दृष्टि होने से परदारोपभोक्ता एवं परस्त्रीरत होता है। जातक का ब्राह्मणी से अवैध संबंध होता है। पुत्रों की चिंता होती है। जातक पिता और गुरुजनों से द्वेष करनेवाला होता है। वैद्यनाथ ने सप्तम स्थान के गुरु का फल अशुभ भी बतलाया है, "पितृगुरुद्वेषी" ऐसा अशुभफल कहा है। इसी प्रकार जातकालंकार कर्ता ने भी "पुत्रचिन्ता" यह अशुभफल बतलाया है। इनका अनुभव स्त्रीराशियों में आएगा। गुरु अशुभयोग में या कन्याराशि में होने से विशेष लाभ नहीं होता। सप्तमस्थान में गुरु पुरुषराशि में होने से स्त्री पर प्रेम होता है।

athve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / आठवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल शुभ फल :

बृहस्पति अष्टम भाव में होने से विनयशीलता, मधुर भाषण एवं सज्जनता जातक के स्वभाव के अंग होते हैं। जातक शीलसम्पन्न, शान्त, बुद्धिमान्, विवेकी, ज्योतिषप्रेमी, स्थिरमति और सुन्दर शरीरवाला होता है। योगमार्ग में निरत रहता है अर्थात् योगाभयासी होता है। कुलाचार-कुलपरंपरागत परिपाटी को माननेवाला होता है।

आठवें स्थान पर विराजमान गुरू के प्रभाव से जातक दीर्घायु, चिरंजीवी होता है।शरीर छूटने पर वैकुण्ठ में जाता है। मृत्यु शान्त अवस्था में होती है। अपने जन्म का साध्य पूरा हुआ, यह जानकर ही मानों मृत्यु का स्वागत करता है। जातक उत्तम-उत्तम तीर्थों की यात्रा करता है। धनी मित्रों की संगति प्राप्त होती है।अपने पिता के घर में बहुत समय तक नहीं रहता है। नौकर या गुलाम होता है-स्वजनों में नौकरी करनेवाला होता है। नौकरी से जीवन निर्वाह करता है। किसी के वसीयत द्वारा अथवा मृत्यु के कारण धन मिलता है। जब कभी रोगों से ग्रस्त भी हो जाता है पर इससे जातक की प्रकृति में अन्तर नहीं आता।

अष्टमभाव में मेंष, सिंह, धनु, मिथुन या तुला में गुरु होने से वसीयत द्वारा सम्पत्ति प्राप्त होती है। उत्तराधिकारी के रूप में भी सम्पत्ति मिल सकती है। धनु या मिथुन राशि में गुरु होने से विधवा स्त्रियों की सम्पत्ति-जो अमानत के रूप में रखी हुई होती है-प्राप्त होती है। ऐसा तब होता है जब विधवाएँ मर जाती है। गुरु बलवान् होने से विवाह से आर्थिक लाभ होता है, और प्रगति होने लगती है। शुभफलों का अनुभव विशेषत: पुरुषराशियों में आता है। गुरु शुभराशि में या स्वगृह में होने से ज्ञानपूर्वक किसी उत्तम तीर्थस्थान में मृत्यु होती है। गुरु धनु में होने से घोड़े से गिर पड़ने से मृत्यु होती है।

अशुभफल : आठवें स्थान में बृहस्पति होने से जातक मलिन, दीन, विवेकहीन, विनयहीन, सदैव आलसी और दुर्बल देह होता है। जातक कृपण (कंजूस), लोभी, शोकाकुल, शत्रुओं से घिरा हुआ, बुरे काम करने वाला तथा कुरूप होता है। जातक का शरीर कभी निरोग नहीं रहता है। अर्थात् सदैव रोगी रहता है। कई विकार होते हैं। 31 वें वर्ष रोग होते हैं। पीलिया, ज्वर, अतिसार, जैसे रोग, दरिद्रता, अनेक प्रकार की दुश्चिन्तायें और व्याधियां प्राप्त करता है। कुल के अयोग्य काम करने वाला होता है। जातक का मन चंचल रहता है। पैतृक धन-धान्य प्राप्त नहीं होता है। दीन और नीच वर्ग की स्त्री का उपभोग करनेवाला होता है। इसका अपमान होता है। पराशरमत से अष्टमस्थगुरु बन्धनयोग करता है।

अष्टमभावस्थ गुरु दीर्घायुष्य देता है। गुरु चाहे किसी राशि में हो व्यक्ति की मृत्यु के लिए नेष्ट है-मृत्यु बुरी हालत में होती है। गुरु पीडि़त होने से वसीयत आदि से असफलता द्वारा हानि होती है। गुरु के साथ पापग्रह होने से पतित होता है । गुरु पापग्रह की राशि में पीडि़त होने से कष्टपूर्वक मृत्यु होती है। पापग्रह बैठे हों तो 17 वर्ष के बाद विधवा से भोग करता है। गुरु पुरुषराशि में होने से 7-14-21-28-35-9-18-27,-36 वर्ष आपत्तियों के होते है। गुरु पुरुषराशि में होने से घर के भेद बाहर प्रकट नहीं होते-पत्नी और नौकर विश्वासपात्र होते हैं।

 

nave bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / नवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल शुभ फल :

 नवम भाव मे गुरु होने से जातक धार्मिक, सच बोलनेवाला, नीतिमान्, विचारी और माननीय होता है। जातक स्वभाव से शान्त और सदाचारी होता है-ऊँचे बिचारों का होता है। तीर्थाटन और देवता-गुरू व ब्राह्मणों में श्रद्धा देता है तथा जातक को पुण्यकर्मा बनाता है। जातक साधुओं के संगति में रहनेवाला, भक्त, योगी, वेदान्ती, शास्त्रज्ञ, इच्छारहित और ब्रह्यवेत्ता होता है। जातक तपस्वी अर्थात् तपश्चर्या करनेवाला होता है। यह ज्ञानी, सर्वशास्त्रज्ञ, विद्वान, स्वकुलाचारपरायण और कुल को बढ़ाने वाला होता है। सभी शास्त्रों और कलाओं में पूर्णतया अभ्यस्त, व्रती और देवपितृभक्त होता है। जातक तीर्थयात्रा और धर्मिक कार्यों में प्रेम रखने वाला होता है। पराक्रमी, यशस्वी, विख्यात, मनुष्यों में श्रेष्ठ, भाग्यवान, साधुस्वभाव का होता है। जातक बहुत यज्ञ करता है। 35 वें वर्ष में देवयज्ञ करता है।

नवम बृहस्पति अध्यात्मज्ञान, और योगाभ्यास का द्योतक है। अन्तर्ज्ञान या भविष्य का ज्ञान प्राप्त होता है। न्यायकार्य, लेखन आदि के लिए गुरु शुभ है। जातक को मकान का सुख पूर्ण रूप से मिलता है । जन्मलग्न से नवेंस्थान में बृहस्पति होने से जातक का घर चारखण्ड (चारमंजिल) या चार चौक का होता है। बृहस्पति नवमभाव में होने से जातक का मकान पीला-लाल-हरे रंग से चित्रित चौकोर चारमन्जिल का होता है। जातक राजा का प्रेमपात्र होता है। जातक पर राजा की बहुत कृपा रहती है। जातक राजमंत्री, राजमान्य, नेता, या प्रधान होता है और बहुतों का स्वामी अर्थात् पालक होता है। राज्य और समाज में सम्मानित होता है और प्रसिद्ध होता है। धनवान्, धनाढ़्य होता है। सभी प्रकार की संपत्ति बढ़ती है। राजा जैसा ऐश्वर्य मिलता है। जीवनभर सुख मिलता है। और स्त्रियों को प्रिय होता है। जातक का पिता दीर्घायु होता है, अच्छे काम करता है, अत एव बहुत आदर और सम्मान पाता है।

नवम स्थान में स्थित बृहस्पति से हाथी-घोड़ों (वाहन) का सुख होता है। जातक भाई वंद और सेवकों से युक्त होता है। जातक के भाई-बन्धु जातक के प्रति विनीत और विनम्र व्यवहार करते हैं। जातक को कानून के काम, क्लर्क का काम, धार्मिक विषय, वेदांत, दूर के प्रवास से लाभ होता है। विवाह सम्बन्ध से जो नए रिश्तेदार होते हैं उनसे अच्छा सुखप्राप्त होता है। नवमभाव का गुरु भाइयों की कुटुम्ब में एकत्र स्थिति के अनुकूल नहीं है-एकत्र स्थिति में दोनों भाई प्रगतिशील नहीं होंगे। गुरु मेष, सिंह, धनु या मीन में होने से जातक एम.ए., एल.एल.बी., पी.एच.डी. आदि ऊची पदवियां प्राप्त करता है इस व्यक्ति को प्रोफेसर उपकुल गुरु आदि पद प्राप्त होते हैं।
अशुभफल : जातक किसी भी कार्य को प्रारम्भ से अन्त तक ले जाने के पहले ही छोड़ देता है। किसी भी विषय को थोड़ा ज्ञान होने पर आलस्य एवं प्रमादवश छोड़ बैठना जातक का स्वभाव होता है। जातक आलस्य से धर्म में उदासीन होता है, अर्थात् नित्यकर्म संध्यावंदनादि मे भी आलस्य करता है। गुरु पीडि़त होने से ऊपरी दिखावा, वृथा अभिमान बहुत होता है। वाहियात वर्ताव से जातक की बेइज्जती होती है।

नवमस्थान का गुरु पुत्र-चिन्ता बनाए रखता है। पुत्र होता नहीं-लड़की होती है-पुत्र चिन्ता बनी रहती है। पुत्र होता है, जीवित नहीं रहता है पुत्र चिन्ता बनी रहती है। जीवित तो रहता है किन्तु उच्छृख्ंल तथा विरुद्धाचारी होता है, पुत्र चिन्ता बनी रहती है। सुशिक्षित तो होता है किन्तु बरताव अच्छा नहीं करता, पुत्रचिन्ता बनी रहती है। नवमस्थान पितृस्थान है। किन्तु 'माता की मृत्यु होती है' बृहद्यवनजातक का यह फल भी सम्भव है। माता-पिता दोनों की मृत्यु भी सम्भव है। गुरु पुरुष राशि में होने से भाई-बहिनों के लिए नेष्ट है-भाई-बहनें थोड़ी होती हैं। पुरुषराशि का गुरु अल्प संतति(पुत्र) दाता है-एक या दो पुत्र, कन्याओं के बाद होते हैं।

dasve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / दसवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ फल


शुभ फल : दसवें स्थान में बृहस्पति स्थित होने से जातक सच्चरित्र, स्वतन्त्र विचारक, विचार विवेक-सम्पन्न, न्यायी, सत्यवादी होता है। दसवें भाव में गुरु होने से जातक सत्कर्मी, पुण्यात्मा, साधु, प्रसन्न, शास्त्रों का ज्ञाता, ज्योतिष-प्रेमी होता है। जातक अपने गुणों के कारण समाज में पूजित, अपने प्रभाव से सर्वत्र सम्मान प्राप्त करने वाला होता है। जातक की कीर्ति अतुल होती है अर्थात् इसके समान दूसरे लोग यशस्वी नहीं होते हैं।

जातक का प्रताप अपने बाप-दादा आदि से भी अधिक होता है। जातक को कामों के आरंभ में ही सफलता मिलती है। जातक गीता पाठ करता है, योग्य, उज्वल यशवाला और बहुत मनुष्यों का पूजनीय होता है। जातक मातृ-पितृ-भक्त, और पिता का प्रिय होता है। भूमि का सुख और भूमि से लाभ पूरी तरह मिलता है। घर रत्नों से शोभायमान होता है। जातक के पास उत्तम वाहन होते हैं।

दशम में गुरु होने से बहुत धन प्राप्त होता है। ऐश्वर्यवान्, समृद्ध, सुखी, धनी होता है। सुंदर वस्त्र तथा आभूषणों से युक्त होता है। दशम में गुरु होने से भाई से धन मिलता है। स्त्री-पुत्र का सुख सामान्य प्राप्त होता है। स्वास्थ्य सुख सामान्य होता है। घर पर बहुत मनुष्य भोजन करते हैं। परलोक की गति के बारे में चिन्ता करने वाला होता है। दशमस्थ गुरु किन व्यवसायों के लिए लाभकारी है यह निश्चयात्मक कहना कठिन है। इसमें सभी प्रकार के व्यवसायी पाए जाते हैं-भिक्षुक भी हैं, व्यापारी और जज भी हैं-आयात-निर्यात के व्यापारी भी पाए जाते हैं। 1, 2, 5, 6, 8, 9, 10, 12 राशियों में शुभ फल मिलते हैं। यह गुरु सम्मान, कीर्ति, भाग्य, यश आदि के लिए शुभ है। दशमेश बलवान् ग्रहों से युक्त होने से यज्ञ करने वाला होता है।
अशुभफल : संतानसुख बहुत थोड़ा होता है। अपने कुपुत्रों अर्थात् दुष्टपुत्रों के सुख से सुखी नहीं होता है। अर्थात् दुष्टपुत्र होते हैं। दशमेश पापग्रह युक्त होने से, या पापग्रह के घर में होने से काम में विघ्न पड़ते हैं, दुष्टकाम किये जाते हैं, यात्रा में लाभ नहीं होता है। दशमस्थान में गुरु पुरुषराशि में होने से संतान थोड़ी होती है।
 

gyarve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / ग्यारहवे भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल


शुभ फल : ग्यारहवें भाव में बृहस्पति होने से जातक सुन्दर, नीरोगी, स्वस्थ देह वाला, दीर्घायु होता है। जातक प्रमाणिक, सच बोलनेवाला, कुशाग्र बुद्धि, विचारवान् होता है। सन्तोषी, उदार, परोपकारी और साधु स्वभाव का होता है। सज्जनों की संगति में रहता है। "लाभस्थाने ग्रहा: सर्वे बहुलाभप्रदा:" इसके अनुसार सभी ग्रंथकारों ने प्राय: शुभफल बतलाए हैं। जातक को राज्य द्वारा सम्मान और लाभ के विलक्षण योग प्राप्त होते हैं। श्रीमान् और खानदानी लोगों से मित्रता होती है। अच्छे मित्रों से युक्त होता है। मित्रों की मदद से आशाएं और महत्वाकांक्षाएं पूरी होती हैं। उनकी सलाह उत्तम और फायदेमंद होती हैं। अपने कामों से समाज में नाम होता है और श्रेष्ठता प्राप्त होती है।

ग्यारहवें स्थान में स्थित बृहस्पति से पुष्कल अर्थ-लाभ, धनप्राप्ति अच्छी होती है। धनधान्य से परिपूर्ण भाग्यवान् होता है। जातक के धनप्राप्ति के मार्ग अपरिमित और असंख्य होते हैं। उत्तम रत्न, विविध वस्त्रों से युक्त, और व्यापार से लाभ प्राप्त होते हैं। सोना-चांदी आदि उत्तम और अमूल्य वस्तु प्राप्त होती है। जातक हाथी घोड़े आदि धनसंपत्ति से युक्त होता है। पृथ्वी पर जातक के लिए कुछ भी अलभ्य नहीं होता है। राजा, यज्ञ, हाथी, जमीन, और ज्ञान की क्रिया से लाभ होता है। 32 वें वर्ष बहुत लाभ होता है। कई प्रकार से प्रतिष्ठा प्राप्ति होती है।

जातक के पास सवारियाँ भी बहुत होती हैं, उत्तमवाहन प्राप्त होते हैं। जातक सेवकों का सुख प्राप्त करता है। नौकर चाकर बहुत होते हैं। जातक अनेक स्त्रियों का उपभोग करता है और पांच पुत्र उत्पन्न करता है। संतति सुख अच्छा मिलता है। पुत्र के जन्म से भाग्योदय शुरु होता है। जातक अपने पिता के भार को संभालनेवाला अर्थात् अपने पिता का पोषक या सहायक होता है। पराक्रमी होता है, शत्रुगण संग्राम में शीघ्र ही विमुख होकर भाग जाते हैं। मंत्रज्ञ तथा दूसरों के शास्त्र जानने वाला होता है। धनवान् लोग तथा ब्राह्मणगण(विद्वान्) स्तुति करते हैं। राजपूज्य, राजकृपायुक्त होता है। अपने कुल की बढ़ौत्री करनेवाला होता है। संतति-संपत्ति और विद्या, इन तीनों में से एक का अच्छा लाभ, एकादशस्थ गुरु का सामान्य फल है। कथन का तात्पर्य यह है कि यदि संपत्ति अच्छी होगी तो दूसरी दोनों संतान और विद्या कम होगी। पूर्वार्जित संपत्ति प्राप्त नहीं होती या अपने हाथों नष्ट हो जाएगी या दूसरे हड़प कर लेगें। शुभफलों का अनुभव कर्क, कन्या और मीन को छोड़कर अन्यराशियों में आता है। गुरु द्विस्वभाव राशि में होने से धार्मिक और संसारदक्ष होता है।
अशुभफल : कल्याण वर्मा और गर्ग ने कुछ अशुभफल भी कहे हैं-'शिक्षा न होना।' 'अल्प संतान होना।' ये अशुभफल हैं। जातक का द्रव्य (धन) दूसरों के लिए होता है। जातक के उपभोग के लिए नहीं होता है। अर्थात् जातक कृपण होता है अत: दान-भोग आदि में अपने धन का उपयोग स्वयं नहीं करता है-और जातक के धन का आनन्द दूसरे लेते हैं। अल्पसन्ततिवान् अर्थात् पुत्र भी बहुत नहीं होते। विद्या बहुत नहीं होती अर्थात् बहुत विद्वान् नहीं होता है। एकादश में गुरु होने से पुत्र बहुत दुराचारी होते है। मां-बाप से झगड़ते हैं, मारपीट करने से भी पीछे नहीं रहते । निरुपयोगी होते हैं। अपना पेट भी भर नहीं सकते।

गुरु कर्क, कन्या, धनु या मीन में होने से संतति या तो होती नहीं, होती है तो मृत होती है। अथवा स्त्री पुत्रोत्पत्ति में अयोग्य होती है। गुरु के प्रभाव स्वरूप विपत्तियों की भरमार रहती है। स्वयं रोगी होना, पत्नी का रुग्णा होना, पत्नी से वैमनस्य, द्वितीय विवाह, कन्याएं ही होना, बड़े भाई की मृत्यु, निर्धनी, ऋण लेना, चुकाने में असमर्थ होने से जेल जाना-व्यवसाय में नुकासान, परिणामत: वेइज्जत होकर गांव छोड़ अन्यत्र वास करना आदि-आदि अशुभ फल मिलते हैं।
 

barve bhav me guru ka shubh ashubh samanya fal / बारहवें भाव में गुरु का शुभ अशुभ सामान्य फल

शुभ फल : बारहवें स्थान में बृहस्पति के स्थित होने से जातक संसार में पूज्य, धार्मिक आचरण करने वाला होता है। जातक मितभाषी, योगाभ्यासी, परोपकारी, उदार, शास्त्रज्ञ, सदाचारी, विरक्त स्वभाव का होता है। आध्यात्म और गूढ़शास्त्रों में रुचि होती है। पुरानी रीतियों के बारे में आदर होता है। निर्भीक प्रकृति का और सुखी होता है।

द्वादशस्थान का सम्बन्ध परोपकार तथा विश्वप्रेम से हैं। अत: बड़े-बड़े दान देने की प्रवृत्ति भी होती है। मरणान्तर सद्गति प्राप्त करने वाला होता है। स्वर्गलोक प्राप्त होता है। मितव्ययी, द्रव्य व्यय अच्छे कामों में,धर्म में खर्च करता है। वैद्य, धर्मगुरु, वेदज्ञानी, लोकसेवक, सम्पादक आदि के लिए यह गुरु शुभ है। देशत्याग, अज्ञातवास तथा दूरप्रदेशों में प्रवास से कीर्ति तथा लाभ प्राप्त होते हैं। शत्रु द्वारा लाभ होता है।

आयु का मध्य तथा उत्तरार्ध अच्छा जाता है। अन्न की कमी नहीं होती। वस्त्र, गौएँ, धन, सोना और सम्पत्ति प्राप्त होते हैं। सेवा करने में चतुर होता है। भ्रमणशील (प्रवासी) होता है। विदेश-यात्रा तथा प्रवास संभव है। पिता के धन से धनी होता है। पिता के भाई सुखी रहते हैं। गणित जाननेवाला होता है। पुत्र संतति थोड़ी होती है। गुरु से विपुल धन प्राप्त होता है। गुरु विजय प्राप्त कराता है। गुरु उच्च या स्वगृह में होने से लोकहितकारी और देशसेवक होता है। गुरु के बलवान् होने से दानाध्यक्ष, सार्वजनिक संस्थाओं में कार्यकर्ता, अस्पताल, धार्मिक संस्थाएँ आदि के व्यवस्थापक के रूप में लाभ होता है।
अशुभफल : बारहवें भाव का बृहस्पति शुभ नहीं होता। जातक दुबला पतला और पीड़ा युक्त होता है। जातक उद्वेग, चिंता, पाप और कोप से युक्त होता है। निर्लज्ज, मानहीन और अपमानित होता है। चित्त उद्विग्न रहने से क्रोध बहुत आता है। दुर्बुद्धि, दुष्ट तथा दुष्टों की सहायता करनेवाला होता है। अधिक अहंकारी होता है। गुरु तथा बंधुजनों का उपकार करने में शिथिलता होती है। व्यर्थ ही खर्च की अधिकता और सदा दूसरे के धन का अपहरण करने में बुद्धि व्यग्र रहती है। भाई-बंधुओं का वैरी, और गुरुजनों से द्वेष करने वाला होता है। किसी सार्वजनिक संस्था के आश्रय से जीवन बितानेवाला होता है। जातक से दूसरे लोग द्वेष करते हैं। लोगों के साथ द्वेष करने वाला होता है। बुरे शब्द बोलनेवाला, संतानहीन, पापी, आलसी और सेवक (नौकर) होता है। अपने कुल का परित्याग करके अन्य कुल में जाने वाला होता है।

जातक नेत्ररोगी होता है। हृदयरोग, गुप्त रोग, क्षयरोग होता है। ग्रंथिव्रण होता है। जातक का धन चोर ले जाते हैं। जातक नीचों की सेवा करने वाला, लोगों से झगड़ने वाला होता है। जातक को वाहन, भूषण, वस्त्र, घोड़े, चामर आदि की चिन्ता होती है। जातक बढ़-चढ़कर खर्च करता है। ब्राह्मणी और गर्भिणी स्त्री से सहवास और संगम करता है। अपने लोगों से झगड़े होते हैं, दु:ख होता है। चार्वाकमतानुयायी होता है। चार्वाकमत संक्षेप में 'खाओ पीओ मौज उड़ाओ' है। परलोक को नहीं मानता है। राजा से (सरकार से) भय होता है। बोलने में अल्हड़, सेवक और भाग्यहीन होता है। उचित दान नहीं करनेवाला होता है। जातक के शत्रु बहुत होते हैं। कल्याण और पृथ्वी पर यश नहीं होता है। गुरु पीडि़त या अशुभ सम्बन्ध में होने से विवाह में कुछ गड़बड़ होती है। पापग्रह से युक्त होने से नरक में जाता है। गुरु पीडि़त होने से जातक व्यसनी, लोभी, मूर्ख, आलसी, विवेकहीन, शास्त्रों और देवताओं की निन्दा करने वाला होता है।
  

गुरू ग्रह शुभग्रहों में प्रमुख ग्रह है। अशुभ अवस्था वाला गुरू व्यक्ति को विद्याहीन, कठोर स्वभाव वाला, दुष्ट प्रकृति वाला, तथा लीवर के रोग देता है। इसके अलावा संतान की तरफ से चिंता, दुर्भाग्य, सामाजिक अपमान, देता हैैं। यह चर्बी, जिगर, पैर, तथा नितंब, का कारक है। सौम्य स्वभाव वाला है। सोना व पीतल इसकी धातु है। तर्जनी अंगुली पर इसका प्रभाव है।इसके अशुभ फल के निवारण के लिये निम्न उपाय करने चाहिये- प्रत्येक गुरूवार को भीगी हुई चने की दाल व गुड तथा केला, गाय को खिलाना चाहिये।

केले की पेड की पूजा करनी चाहिये तथा गुरू गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिये।
पुष्य नक्षत्र वाले गुरूवार को कांसी के कटोरी में घी भरकर स्वर्ण का टुकडा डालकर दक्षिणा के साथ किसी बाह्रमण को दान करना चाहिये।

हर गुरूवार को बेसन के चार लडडू किसी मंदिर में चढाये।
गुरूवार को पीले कपडे में चने की दाल, गुड, पीला पुष्प, मीठा फल, तथा दक्षिणा रखकर किसी मंदिर के पुजारी को दान करना चाहिये।
विद्यार्थियों को फीस और पुस्तकों के पैसे देने चाहिये।
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है।
इस ग्रह की शांति के लिए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है।
दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो।
दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है।
बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए।

कमजोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए।
ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए। रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए।
गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अतः इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
केला का सेवन और शयन कक्ष में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अतः इनसे बचना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
ऐसे व्यक्ति को परस्त्री व परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।
गुरू- ओम ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः
किसी विद्वान ब्राहमण द्वारा इस गुरू मंत्र के 19.000 जाप करवाये। तथा आप स्वयं भी प्रतिदिन कम से कम एक माला जाप कर सकते है।
गुरू गायत्री मंत्रः- ओम अंगिरो जाताय विद्महे वाचस्पतये धीमहि तन्नो गुरू प्रचोदयात।
गुरू गायत्री मंत्र की प्रतिदिन एक माला जपने से भी गुरू ग्रह के शुभ फल प्राप्त होते है।
गुरू ग्रह के हवन में पीपल की समिधा का प्रयोग होता है। इसके अलावा पीपल की जड को गुरूवार को पीले कपडे में सिलकर पुरूष दायें हाथ में और स्त्री बायें हाथ में बांधे। इससे भी गुरू के शुभ फल प्राप्त होते है।

अथ गुरू नाम स्तोत्र


बृहस्पतिः सुराचार्यों दयावान् शुभलक्षणः। लोकत्रय गुरू श्रीमान् सर्वदः सर्वतोविभुः।।
सर्वेशः सर्वदा तुष्टः सर्वगः सर्वपूजितः। अक्रोधनो मुनि श्रेष्ठो नीति कर्ता जगत्पिता।।
विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्व योनि रयोनिजः। भू र्भुवो धन दाता च भर्ता जीवो महाबलः।।
पंचविंशति नामानि पुण्यानि शुभदानि च। प्रातरूत्थाय यो नित्यं पठेद्वासु समाहितः।।
विपरीतोपि भगवान्सुप्रीतास्याद् बृहस्पतिः। नंद गोपाल पुत्रेण विष्णुना कीर्ति तानि च।।
बृहस्पतिः काश्य पेयो दयावान् शुभ लक्षणः। अभीष्ट फलदः श्रीमान्् शुभ ग्रह नमोस्तुते।।

प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में मंगल यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से यह ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है।

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )