WHY NO MARRIAGE विवाह प्रतिबन्धक योग
ज्योतिषशास्त्र के विभिन्न ग्रन्थों में ऐसे ग्रहयोगों के भी वर्णन मिल जाते हैं, जिनके कारण जातक अथवा जातिका का विवाह आजीवन नहीं हो पाता है। कुछ ऐसे ही ग्रहयोग द्रष्टव्य हैं-
* शनि तथा सूर्य, लग्न या सप्तम भाव में स्थित हों तथा इन दोनों ग्रहों के अंश भी समान हों।
* शनि तथा सूर्य का शुक्र के साथ युति संबंध हो अथवा शुक्र पर शनि तथा सूर्य दृष्टिपात कर रहे हों।
* द्वितीय, सप्तम तथा द्वादश भाव पाप पीडि़त हों।
* शनि लाभेश तथा वक्री होकर सप्तम अथवा नवम भाव में स्थित हों।
* चन्द्र व शुक्र एक ही राशि में हो तथा इन ग्रहों पर शनि तथा मंगल की दृष्टि हो।
* शनि सूर्य की राशि में हों तथा सूर्य शनि की राशियों में हो।
* शुक्र सिंह या तुला राशि में हों तथा इसके द्वितीय तथा द्वादश भाव में शनि हो।
* सूर्य और शुक्र के मध्य 43 अंश तथा 20 कला से अधिक का अन्तर हो।
* द्वितीयेश, नवमेश, चतुर्थेश और सप्तमे में से जितने अधिक ग्रह बन्ध्या राशियों (मिथुन, सिंह, कन्या) में हों, विवाह की संभावना उतनी ही क्षीण होती जाती है।
* चन्द्रमा और शुक्र यदि एक दूसरे की राशि में स्थित हों, साथ ही पाप प्रभाव से युक्त हो, विशेष रूप से राहु तथा केतु।
* चन्द्रमा अथवा शुक्र यदि सप्तम अथवा लग्न भाव के अधिपति होकर बन्ध्या राशियों में स्थित हों।
* मंगल और शनि समान अंशों में हों और ये लग्नेश तथा सप्तमेश में भी हो।
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