GURU BREHASPATI STOTR गुरू नाम स्तोत्र
अथ गुरू नाम स्तोत्र
बृहस्पतिः सुराचार्यों दयावान् शुभलक्षणः। लोकत्रय गुरू श्रीमान् सर्वदः सर्वतोविभुः।।
सर्वेशः सर्वदा तुष्टः सर्वगः सर्वपूजितः। अक्रोधनो मुनि श्रेष्ठो नीति कर्ता जगत्पिता।।
विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्व योनि रयोनिजः। भू र्भुवो धन दाता च भर्ता जीवो महाबलः।।
पंचविंशति नामानि पुण्यानि शुभदानि च। प्रातरूत्थाय यो नित्यं पठेद्वासु समाहितः।।
विपरीतोपि भगवान्सुप्रीतास्याद् बृहस्पतिः। नंद गोपाल पुत्रेण विष्णुना कीर्ति तानि च।।
बृहस्पतिः काश्य पेयो दयावान् शुभ लक्षणः। अभीष्ट फलदः श्रीमान्् शुभ ग्रह नमोस्तुते।।
प्रतिवर्ष चार महारात्रियाँ आती है। ये है - होली , दीवाली, कृष्ण जन्माष्टमी , और शिव रात्रि। इनके आलावा सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण ,नवरात्र , आदि में मंगल यंत्र को सिद्ध करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस समय में भोजपत्र पर अष्टगंध तथा अनार की टहनी से बनी कलम से यह ग्रह यंत्र लिखकर पौराणिक या बीज मंत्र के जाप करके इन्हें सिद्ध किया जा सकता है। सिद्ध होने पर उसे ताबीज में डाल कर गले में या दाई भुजा पर पहना जा सकता है। इससे ग्रह जनित अशुभ फल नष्ट होते है. तथा शुभ फलों में वृद्धि होती है।
No comments:
Post a Comment