SHANI RAHU YUTI AND BHUT PRET BADHA IN KUNDLI कुंडली में प्रेत श्राप का योग और शनि राहु की युति
अगर आपकी कुंडली में भी राहु और शनि एक साथ बैठे है तो यह प्रेत श्राप का योग है।
प्राचीन ग्रामीण कहावतें भी ज्योतिष से अपना सम्बन्ध रखने वाली मानी जाती
थी, जिनके गूढ अर्थ को अगर समझा जाये तो वे अपने अनुसार बहुत ही सुन्दर कथन और
जीवन के प्रति सावधानी को उजागर करती थी। इसी प्रकार से एक कहावत इस प्रकार से कही
जाती है-
"मंगल मगरी, बुद्ध खाट, शुक्र झाडू
बारहबाट, शनि कल्छुली रवि कपाट, सोम
की लाठी फ़ोरे टांट ",
यह कहावत भदावर से लेकर चौहानी तक कही जाती है।
इसे अगर समझा जाये तो मंगलवार को राहु का कार्य घर में छावन के रूप में चाहे वह छप्पर के लिये हो या
छत बनाने के लिये हो, किसी प्रकार से टेंट आदि लगाकर किये जाने वाले कार्यों से हो या छाया बनाने वाले साधनों से हो वह हमेशा
दुखदायी होती है।
शुक्रवार को राहु के रूप में झाडू अगर लाई जाये, तो वह घर में जो भी है उसे
साफ़
करती चली जाती है।
शनिवार के दिन लोहे का सामान जो रसोई में काम आता है लाने से वह कोई न कोई
बीमारी लाता ही रहता है,
रविवार को मकान दुकान या किसी प्रकार के रक्षात्मक उपकरण जो किवाड गेट आदि
के रूप में लगाये जाते है वे किसी न किसी कारण से धोखा देने वाले होते
है,
सोमवार को लाया गया हथियार अपने लिये ही शामत लाने वाला होता है।
शनि राहु की युति के लिये भी कई बाते मानी जाती है,
शनि राहु अगर अपनी युति बनाकर लगन में विराजमान है और लगनेश से सम्बन्ध रखता है तो
व्यक्ति एक शरीर से कई कार्य एक बार में ही निपटाने की क्षमता रखता है। वह अच्छे
कार्यों को भी करना जानता है और बुरे कामों को भी करने वाला होता है, वह जाति के
प्रति भी कार्य करता है और कुजाति के प्रति भी कार्य करता है। वह
कभी तो आदर्शवादी की श्रेणी में अपनी योग्यता को रखता है तो कभी बेहद गंदे व्यक्ति
के रूप में समाज में अपने को प्रस्तुत करता है। यह प्रभाव उम्र के दो तिहाई समय तक
ही प्रभावी रहता है।
शनि को समझने के लिये ’कार्य’ का रूप देखा जाता है और राहु से लगन मे सफ़ाई कर्मचारी के रूप मे भी देखा जाता है तो लगन
से दाढी वाले व्यक्ति से भी देखा जाता है। राहु का प्रभाव शनि के साथ लगन में होता है तो वह पन्चम भाव और नवम भाव को भी प्रभावित करता है, इसी प्रकार
से अगर दूसरे भाव मे होता है तो छठे भाव और दसवे भाव को भी प्रभावित करता है,
तीसरे भाव में होता है तो सातवें और ग्यारहवे भाव में भी प्रभावकारी होता है, चौथे
भाव में होता है तो वह आठवें और बारहवें भाव को भी प्रभावित करता है। लगन में राहु
का प्रभाव शनि के साथ होने से जातक की दाढी भी लम्बी और काली होगी तो उसके पेट में
भी बाल लम्बे और घने होंगे तथा उसके पेडू और पैरों में भी बालों का घना होना माना जाता है।
शनि से चालाकी को अगर माना जाये तो उसके पिता भी झूठ आदि का सहारा लेने
वाले होंगे आगे आने वाले उसके बच्चे भी झूठ आदि का सहारा ले सकते है। लेकिन यह
शर्त पौत्र आदि पर लागू नही होती है।
मंगल के साथ शनि राहु का असर होने से जातक के खून के सम्बन्ध पर भी असरकारक
होता है। शनि राहु से मंगल अगर चौथे भाव में है तो वह जातक को कसाई जैसे कार्य
करने के लिये बाध्य करता है, शनि से कर्म और राहु से तेज हथियार तथा चौथे मंगल से खून का बहाना आदि।
अगर मंगल शनि राहु से दूसरे भाव में है तो जातक को धन और भोजन आदि के लिये किसी न
किसी प्रकार से झूठ का सहारा लेना पडता है जातक के अन्दर तकनीकी रूप से तंत्र आदि
के प्रति जानकारी होती है और अपने कार्यों में वह तर्क वितर्क द्वारा लोगों को ठगने का काम भी कर सकता है। तीसरे भाव में मंगल के
होने से जातक के अन्दर लडाई झगडे के प्रति लालसा अधिक होगी वह आंधी तूफ़ान की तरह लडाई झगडे में अपने को सामने करेगा और जो भी करना है वह पलक
झपकते ही कर जायेगा। पंचम भाव में मंगल के होने से जातक के अन्दर दया का असर नही
होगा वह किसी भी प्रकार से तामसी कारणो को दिमाग में रखकर चलेगा और जल्दी से धन
प्राप्त करने के लिये खेल आदि का सहारा ले सकता है किसी भी अफ़ेयर आदि के द्वारा वह
केवल अपने लिये धन प्राप्त करने की इच्छा करेगा। छठे भाव मे मंगल के होने से जातक
के अन्दर डाक्टरी कारण बनते रहेंगे या तो वह शरीर वाली बीमारियों के प्रति जानकारी रखता होगा या अपने को अस्पताल में हमेशा जाने के लिये किसी न किसी
रोग को पाले रहेगा। इसी प्रकार से अन्य भावों के लिये जाना जा सकता है। शनि, राहु,
हनुमान दे इन पांच सुखों का आनंद शनि हर व्यक्ति जीवन में अनेक रुपों में सुख
भोगता है।
कभी अपने तो कभी परिवार के सुख की लालसा जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ चलती है। धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति इन सुखों को पाने या कमी न होने के लिए देवकृपा की हमेशा आस रखता है। हर गृहस्थ या अविवाहित जीवन में बुद्धि, ज्ञान, संतान, भवन, वाहन इन पांच सुखों की कामना जरूर करता है। यहां इन सुखों का खासतौर पर जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति बन जाती है, तब इन पांच सुखों को जरूर प्रभावित करती है। जन्म कुण्डली में यह पांच सुख चौथे और पांचवे भाव नियत करते हैं। खासतौर पर जब जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति चौथे भाव में बन रही हो। तब वह पांचवे भाव पर भी असर करती है। हालांकि दूसरे ग्रहों के योग और दृष्टि अच्छे और बुरे फल दे सकती है। लेकिन यहां मात्र शनि-राहु की युति के असर और उसकी शांति के उपाय पर गौर किया जा रहा है। हिन्दू पंचांग में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि की उपासना कर पीड़ा और कष्टों से मुक्ति का माना जाता है। यह दिन शनि की पीड़ा, साढ़े साती या ढैय्या से होने वाले बुरे प्रभावों की शांति के लिए भी जरुरी है। किंतु शनिवार का दिन एक ओर क्रूर ग्रह राहु दोष की शांति के लिए भी अहम माना जाता है। राहु के बुरे प्रभाव से भयंकर मानसिक पीड़ा और अशांति हो सकती है।
इसी तरह यह दिन रामभक्त हनुमान की उपासना से संकट, बाधाओं से मुक्त होकर ताकत,
अक्ल और हुनर पाने का माना जाता है।
यही नहीं श्री हनुमान की उपासना करने वाले व्यक्ति को शनि पीड़ा कभी नहीं
सताती है।
ऐसा शास्त्रों में स्वयं शनिदेव की वाणी है।
इसी तरह राहु का कोप भी हनुमान उपासना करने वालों को हानि नहीं पहुंचाता।
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