BHAVON MEIN GRAHON KA PHALभाव में ग्रहों का फल
१,प्रथम भाव
(तनु भाव )फल -:
यदि जन्म कुंडली
में लग्नेश पाप ग्रह से युक्त होकर षष्टम, अष्टम व द्वादश भाव में विद्यमान हो तो जातक
के शरीर के सुख को क्षति करता है। इसी प्रकार यदि लग्नेशक्षीण चंद्रमा पाप ग्रह से
युक्त होकर लग्न में विद्यमान हो तो जातक का शरीर रोगों से ग्रहस्त रहता है। और यदि
वह त्रिकोण व लाभ भाव में विद्यमान हो तो जातक को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने वाला होता
है। यदि लग्नेश केंद्र में विद्यमान हो तो जातक दीर्घायु धनी व स्वस्थ होता है। यदि
किसी जातक की जन्मकुंडली में त्रिकोण में पाप ग्रह ना हो और लग्नेश केंद्र में विद्यमान
हो तो जातक को ऐश्वर्य संपन्न व भौतिक सुख प्रदान करने वाला होता है साथ ही राज कारक
बनता है। इसी क्रम में यदि लग्नेश गुरु शुक्र बुध चंद्रमा से युक्त होकर केंद्र में
विद्यमान होता है तो जातक को राजसुख प्रदान करने वाला व राज योग का कारक होता है।
२, द्वितीय
भाव (धन भाव) फल -:
यदि जातक की जन्म कुंडली में दूसरे भाव का स्वामी
शुक्र से युक्त हो और शुक्र के नवमांश घर में हो और लग्नेश से संबंध बना रहा हो तो
ऐसे जातक के नेत्र नशीले होते है और नेत्र दोष भी कई बार देखा जाता है। यदि सूर्य चंद्रमा
धनेश अर्थात दूसरे भाव के स्वामी तथा लग्नेश से दूरस्थ हो तो ऐसा जातक जन्मांध होता
है अथवा पिता कारक ग्रह से युक्त हो तब भी जातक नेत्र रोग से पीड़ित होता है। यदि जन्म
कुंडली में गुरु व दूसरे भाव का स्वामी छठे आठवें और बारहवें भाव में हो तो जातक गूंगा
अथवा वाणी दोष से पीड़ित होता है। और यदि गुरु बुध व दूसरे भाव का स्वामी छठे आठवें
और बारहवें भाव में विद्यमान होते हैं तो जातक मूर्ख होता है। और अगर ये मूलत्रिकोण
या अपनी उच्च राशि में अथवा केंद्र में विद्यमान हो तो जातक बहुत जल्दी ही विद्वान
बनता है। और यदि दूसरे भाव का स्वामी और ग्यारवे भाव का स्वामी छठे भाव में अथवा पाप
ग्रह के साथ या पाप ग्रह से दृष्ट हो तो जातक निर्धन होता है। जन्म कुंडली में यदि
दूसरे भाव का स्वामी अपनी उच्च राशि में हो और केंद्र में विद्यमान होने के साथ-साथ
गुरु से दृष्ट हो तो जातक बहुत अधिक अमीर होता है। यदि दूसरे भाव का स्वामी पाप ग्रह
से युक्त हो और धन भाव में पाप ग्रह विद्यमान हो तो ऐसा जातक झूठ बोलने वाला व निर्धन
होता है।
३,सहज भाव
(तृतीय भाव)फल -:
यदि तीसरे भाव
का स्वामी 6, 8,12 भाव को छोड़कर किसी अन्य भाव में मंगल के साथ विद्यमान हो तो जातक
को भ्रातत्व सुख प्राप्त होता है और ऐसा जातक पराक्रमी बनता है। और यदि तीसरे भाव का
स्वामी मंगल के साथ युति बनाकर के 6, 8 12 भाव में विद्यमान हो और पाप ग्रह से दृष्ट
भी हो तो ऐसे जातक को भाई का सुख प्राप्त नहीं होता है और यदि भाइयों का जन्म भी होता
है तो वे जीते नहीं है। यदि तीसरे भाव का स्वामी स्वग्रही हो और यदि वह तीसरे भाव में स्वग्रही होकर विद्यमान
होता है तो ऐसे जातक के बहीने अधिक होती है और यदि पुरुष ग्रह विद्यमान हो तो भाई अधिक
होते हैं। तथा तीसरे भाव का स्वामी केंद्र त्रिकोण मेंअपनी उच्च मित्र राशि में विद्यमान
हो तो जातक को भाई का प्रबल सुख प्राप्त होता है।
४, चतुर्थ भाव
(सुख भाव)-:
यदि जन्म कुंडली
के चतुर्थ भाव का स्वामी और लग्नेश चतुर्थ भाव में विद्यमान हो तो ऐसे जातक को भवन
वाहन सुख प्राप्त होता है और यदि चतुर्थ भाव का स्वामी और लग्नेश 6 8 12 भाव में विद्यमान
हो तो भवन सुख से वंचित रहता है। यदि गुरु और चतुर्थ भाव का स्वामी त्रिकोण अथवा केंद्र
में विद्यमान हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो भवन वाहन व सुख संसाधनों की वृद्धि करते
हैं। इसी प्रकार यदि चतुर्थ भाव का स्वामी स्वराशि में अथवा अपने उच्चांश में हो तो
विशिष्टभवन सुख प्राप्त करता है। इसी प्रकार यदि चतुर्थेश कर्मेश के साथ हो कर केंद्र
त्रिकोण में स्थित हो तो जातक को विशेषसुख प्राप्त करने वाला होता है।
५,पंचम भाव
(सुत भाव )-:
यदि जातक की
जन्म कुंडली में पंचम भाव का स्वामी 6, 8, 12 भाव में विद्यमान हो तो संतान सुख प्राप्त
नहीं होता है और यदि पंचम भाव का स्वामी त्रिकोण व केंद्र में हो तो संतान सुख प्राप्त होता है। यदि पंचम भाव का स्वामी
छठे भाव में विद्यमान हो और लग्नेश मंगल की राशि में हो तो जातक की प्रथम संतान नष्ट
होती है। यदि पंचमेश नीच राशी में विद्यमान
हो और पंचम भाव को नहीं देख रहा हो तथा शनी बुध पंचम भाव में स्थित हो तो ऐसे
जातक की स्त्री वंध्या होती है। इसी प्रकार यदि पंचम भाव का स्वामी नीच राशि में विद्यमान
हो और बुध केतु पंचम भाव में विद्यमान हो तथा पंचमेश अपने पंचम भाव को नहीं देख रहा हो तो ऐसे जातक की
पत्नी वंध्या होती है।
६, षष्टम भाव
(शत्रु भाव )-:
यदि जन्म कुंडली
के छठे, आठवे,भाव मेंसूर्य विद्यमान हो और सूर्य से बारहवें भाव में चंद्रमा विद्यमान
हो तो जातक को पांचवें और नवे वर्ष में जल का भय होता है। कुंडली में यदि 6,8 भाव में
राहु विमान हो और उससे आठवें भाव में शनि विद्यमान होता है तो जातक को प्रथम व दूसरे
वर्ष में अग्नि का भय होता है। लग्नेश लग्न में और शनि षष्टम भाव में विद्यमान हो तो
जातक को 51 वे वर्ष में भयंकर वात रोग होता है। इस प्रकार षष्टम भाव में शुक्र स्त्री
जनित रोग, शनी वायु जनित रोग, राहु नाभि से संबंधित रोग, चंद्रमा जल से संबंधित रोग,
सूर्य से ज्वररोग,मंगल से रक्त संबंधी रोग गठिया रोग, बुध से कफ रोग, केतु से मस्तिष्क
संबंधी रोग, का विचार किया जाता है। सप्तमेश अपनी नीच राशि में और शुक्र 6,8 ,12 भाव
में विद्यमान हो तो जातक की स्त्री की अल्प समय में मृत्यु होती है।
७,सप्तम भाव
(जाया भाव)फल -:
यदि जन्म कुंडली
में सप्तम भाव का अधिपति 6, 8, 12 भाव में हो तो स्त्री रोगीणी होती है।शुक्र यदि जातक
की जन्मकुंडली के सप्तम भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक कामी होता है और यदि शुक्र
जन्मकुंडली के किसी भी भाव में पाप ग्रह से पीड़ित हो तो जातक की स्त्री बहुत अधिक
रोगिनी होती है। यदि लग्नेश सप्तम भाव में विद्यमान हो और सप्तमेश अपनी उच्च राशि में
विद्यमान हो तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसे जातक की पत्नी बहुत ही सुंदर व पतिव्रता
होती है। इसी प्रकार सप्तमेश यदि अपनी नीच राशि अस्त और पाप भाव में विद्यमान हो तथा
पाप ग्रहों से दृष्ट हो तथा सप्तम भाव में पाप ग्रह विद्यमान हो तो ऐसे जातक को स्त्री
का सुख नहीं प्राप्त होता है।जन्म कुंडली के दूसरे भाव में राहु और सप्तम भाव में मंगल
हो तो ऐसे जातक की पत्नी की मृत्यु शादी के कुछ वर्षों बाद ही कीट के काटने से हो जाती है।
८,अष्टम भाव
(आयुभाव)फल-:
जन्म कुंडली
के अष्टम भाव में यदि लग्नेश व अष्टमेश पाप ग्रह होकर विद्यमान हो तो ऐसा जातक अल्पायु
होता है। लग्नेश पंचमेशऔर अष्टमेश अपने भाव में और उच्च के हो तो जातक दीर्घायु होता
है। यदि कुंडली में अष्टमेश निर्बल होकर केंद्र में विद्यमान हो और लग्नेश नीच हो तो
जातक अल्पायु होता है। लग्नेश अपनी उच्च राशि में तथा चंद्रमा लाभ भाव में हो व गुरु
आठवें भाव में हो तो जातक दीर्घायु होता है।
९,नवम भाव
(भाग्य भाव) फल -:
नवम भाव में
गुरु और नवमेश केंद्र में विद्यमान हो तो ऐसा जातक प्रबल भाग्यशाली होता है। कर्मेश
भाग्य भाव में और भाग्येश कर्म भाव में हो तो ऐसा जातक भी परम भाग्यशाली होता है। भाग्य
भाव से यदि नवम भाव में राहु हो और भाग्येश नीच के होकर अष्टम भाव में विद्यमान हो
तो ऐसा जातक भाग्यहीन होता है। इसी प्रकार यदि शनि चंद्रमा की युति हो और भाग्येश नीच
राशि के होकर पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो जातक अत्यंत गरीब होता है।
१०, दशमभाव
(कर्म भाव) फल -:
दशम भाव का
स्वामी यदि निर्बल हो तो जातक कर्म हीन होता है। कर्मेश राहु से युक्त होकर अष्टम भाव
में विद्यमान हो तो ऐसा जातक झगड़ालू व मूर्ख होता है। कुंडली के दशम भाव व एकादश भाव
में पाप ग्रहों के विद्यमान हो जाने पर जातक अपयश प्राप्त करने वाला होता है। दशम भाव
का अधिपति गुरु से युक्त होकर अपनी उच्च राशि में विद्यमान हो और भाग्येश कर्म भाव
में विद्यमान हो तो ऐसा जातक बहुत ऐश्र्वर्य शाल व राज से धन प्राप्त करने वाला होता
है। कर्मेश लाभ भाव में लग्नेश लग्न में तथा शुक्र दशम भाव में विद्यमान हो तो ऐसा
जातक पूर्ण सुखो से संपन्न होता है। दशम भाव मेंपाप ग्रह विद्यमान हो और दशमेश अष्टम
भाव में विद्यमान हो तो ऐसा जातक कर्म हीन होता है।
११,एकादश भाव
(लाभ भाव) फल -:
लाभ भाव का
स्वामी लाभ भाव में अथवा केंद्र त्रिकोण में विद्यमान हो तो जातक को सर्वत्र लाभ प्राप्त
होता है।धन भाव का स्वामी लाभ भाव में और लाभ भाव का स्वामी धन भाव में विद्यमान हो
तो विवाह के बाद बहुत प्रकार से लाभ प्राप्त होता है। तीसरी भाव का स्वामी लाभ भाव
में और लाभ भाव का स्वामी तीसरे भाव में हो तो जातक को भाइयों से धन प्राप्त होता है।
१२,द्वादशभाव
(व्ययभाव) फल -;
यदि जन्म कुंडली
के द्वादश भाव में षष्टम अष्टम भाव का स्वामी अथवा कोई पाप ग्रह विद्यमान हो तो बुरे
कर्मों में धन खर्च होता है और यदि द्वादश भाव में पंचम व नवम भाव का अधिपति विद्यमान
हो तो जातक अच्छे कार्य में धन खर्च करता है। लग्नेश द्वादश भाव में और द्वादश भाव
का अधिपति लग्न भाव में विद्यमान हो तो जातक का धन शुभ कार्यों में होता है। व्यय भाव
का स्वामी शुभ राशि में हो और द्वादश भाव में शुभ ग्रह हो तो जातक विदेश में भ्रमण
करने वाला होता है।
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