TROUBLED MARRIED LIFE कलहपूर्ण वैवाहिक जीवन
कुछ घटनाओं में देखा गया है कि विवाह के कुछ समय बाद ही पति पत्नी के मध्य लड़ाई-झगड़े, वैमनस्य आदि की अधिकता हो जाती है। वैसे कुछ सीमा तक यह सामान्य घटना ही है, परन्तु जब इस प्रकार के घटनाओं की पुनरावृत्ति होने लगती है तो दोनों का जीवन नरक के समान हो जाता है। कुछ ऐसे ही ग्रहयोग सूचीबद्ध किए जा रहे हैं-
* सप्तम में मंगल की राशि हो तथा मंगल का संबंध केतु से बन रहा हो तो दम्पत्ति कलहपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं।
* मंगल यदि पृथिवी तत्व राशियों (वृष, कन्या, मकर) में हो।
* सप्तमस्थ मंगल पर शनि या राहु का प्रभाव हो।
* जन्मांग में गुरू वक्री हों साथ ही वक्री शनि के साथ कोई संबंध भी हो।
* लग्न में एक शुभ तथा एक अशुभ ग्रह हों।
* मंगल के साथ शनि लग्न, सप्तम, अष्टम या दशम स्थान में हों।
* लग्न में सिंह राशि हो तथा शनि सप्तमेश होकर द्वितीय भाव में स्थित हों।
* पंचमेश सप्तम भाव में तथा सप्तमेश पाप प्रभाव में हों तो पति-पत्नी एक दूसरे पर शक करते हैं।
* सप्तम भाव में सूर्य तथा राहु स्थित हों।
* सप्तम भाव में सूर्य तथा मंगल एक साथ हों।
* सप्तम भाव का आधिपति पंचम भाव में हों तथा सप्तमेश व पंचमेश पाप प्रभाव में हो तो जातक की स्त्री बहुधा अपने पिता के पास ही रहती है।
* सप्तमेश निर्बल हो तथा एकादश भाव का स्वामी सप्तम भाव में पाप ग्रहों के प्रभाव में हो।
* क्रूर ग्रह षष्ठेश होकर सप्तम भाव में हों तो ऐसे जातक की पत्नी झगड़ालू स्वभाव की होती है।
* शुक्र आर्द्रा, मूल, ज्येष्ठा अथवा कृत्तिका नक्षत्र में हों।
* राहु का बुध के साथ सम्बन्ध हो।
* यदि स्त्री के जन्मांग में नवमेश अथवा दशमेश नीच राशि में हो अथवा शत्रु राशियों में हो तो सास, ननद आदि से कष्ट।
* बृहस्पति राहु के साथ हो तो स्त्री से अलगाव।
* सप्तम भाव में शनि हो तो स्त्री झगड़ालू होती है।
* सप्तमेश पाप ग्रहों के नवांश में हो।
* सप्तमेश क्रूर षष्ठ्यंश में हो।
* चन्द्रमा सप्तमेश हो और पाप ग्रह के नवांश या पाप प्रभाव में हो।
* शनि, मंगल और राहु यदि सप्तम भाव में स्थित हो तो प्रेतजन्य पीड़ा के कारण वैवाहिक जीवन का विनाश हो जाता है।
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