BRIHASPATI GURU KA BAV MEIN PHAL बृहस्पति का प्रत्येक भाव में फल
यदि द्वितीय में बृहस्पति हो तो बुद्धिमान्, सुन्दर मुख वाला और वाग्मी ( बोलने में कुशल) होता है। ऐसे मनुष्य को उत्तम भोजन प्राप्त होते हैं। अर्थात् द्वितीय भाव से जो-जो बातें देखी जाती है उन सबका सुख प्राप्त होता है।
यदि तृतीय में बृहस्पति हो तो पापकर्मा, दुष्ट बुद्धि वाला, कृपण और अवज्ञा (अनादर) सहित हो। किन्तु उसका भाई किसी प्रतिष्ठित पद पर पहुंचे या विख्यात हो।
यदि पंचम में बृहस्पति हो तो मिश्रित फल है। जातक बुद्धिमान् और राजा का मन्त्री होता है; किन्तु पुत्रों के कारण दुखी भी होता है। पुत्र उत्पन्न न होना भी क्लेश है, पुत्र का अभाव भी पुत्र- क्लेश है। पुत्र उत्पन्न होने पर नष्ट हो जावे यह भी पुत्रों से क्लेश है, तथा पुत्रों के आचरण से कलेश उठाना पड़े या मन को क्लेश हो यह भी पुत्रों से क्लेश हुआ ।
छडे में बुहुस्पति हो तो शत्रुओं का नाश करने वाला आलसी, स्वयं अपमान को प्राप्त होने वाला, किन्तु मन्त्राभिचार (मन्त्रों का अनुष्ठान) करने वाला तथा चतुर होता है।
यदि सप्तम मेंबृहस्पति हो तो उत्तम स्त्रीमामी वाला, पुत्रवान्, सुन्दर, अपने पिता से अधिक उदार होता है । कुछ अन्य पुस्तकों में यह भी लिखा है कि जिसके सप्तम में बृहस्पति हो वह अपने पिता से श्रेष्ठ पदवी को प्राप्त हो।
अष्टम में बृहस्पति का निकृष्ट फल है। ऐसा व्यक्ति दीन होता है और नौकरी से धनोपार्जन करता है। अष्टम में बृहस्पति वाला जपन्यकर्म (निकृष्ट कर्म करने वाला) किन्तु दीर्घायु होता है।
यदि नवम में बृहस्पति हो तो जातक धनवान्, पुत्रवान्, विख्यात, धर्म कार्य के लिए उत्सुक और राजा का मन्त्री होता है। ऐसे व्यक्ति की धार्मिक कार्यों में प्रवृत्ति रहती है।
यदि वृहस्पति दशम भाव में हो तो जातक अत्यन्त घनी और राजा का प्यारा होता है। ऐसा व्यक्ति उत्तम आचरण करने वाला और यशस्वी भी होता है।
यदि ग्यारहवें घर में बृहस्पति हो तो मनुष्य धनिक, निर्भय और दीर्घायु होता है। ऐसे व्यक्ति के पास सवारियां भी होती हैं किन्तु सन्तान थोड़ी होती है। यदि वृहस्पति बारहवें घर में हो तो ऐसे व्यक्ति से अन्य लोग द्वेष करते हैं और जातक स्वयं बुरे शब्द बोलने वाला, सन्तान हीन, आलसी, और सेवक (सेवा करने वाला) होता है।