Tuesday, August 31, 2021

BRIHASPATI GURU KA BAV MEIN PHAL बृहस्पति का प्रत्येक भाव में फल

 BRIHASPATI GURU KA BAV MEIN PHAL बृहस्पति का प्रत्येक भाव में फल

 यदि लग्न में बृहस्पति हो तो शोभावान्, सत्कर्म करने वाला दीर्घायु और निर्भय हो; उसे पुत्र सुख भी प्राप्त हो।

यदि द्वितीय में बृहस्पति हो तो बुद्धिमान्, सुन्दर मुख वाला और वाग्मी ( बोलने में कुशल) होता है। ऐसे मनुष्य को उत्तम भोजन प्राप्त होते हैं। अर्थात् द्वितीय भाव से जो-जो बातें देखी जाती है उन सबका सुख प्राप्त होता है।

यदि तृतीय में बृहस्पति हो तो पापकर्मा, दुष्ट बुद्धि वाला, कृपण और अवज्ञा (अनादर) सहित हो। किन्तु उसका भाई किसी प्रतिष्ठित पद पर पहुंचे या विख्यात हो।

 यदि चतुर्थ में बृहस्पति हो तो माता मित्र, पुत्र स्त्री, धान्य आदि का सुख प्राप्त हो।

यदि पंचम में बृहस्पति हो तो मिश्रित फल है। जातक बुद्धिमान् और राजा का मन्त्री होता है; किन्तु पुत्रों के कारण दुखी भी होता है। पुत्र उत्पन्न होना भी क्लेश है, पुत्र का अभाव भी पुत्र- क्लेश है। पुत्र उत्पन्न होने पर नष्ट हो जावे यह भी पुत्रों से क्लेश है, तथा पुत्रों के आचरण से कलेश उठाना पड़े या मन को क्लेश हो यह भी पुत्रों से क्लेश हुआ

छडे में बुहुस्पति हो तो शत्रुओं का नाश करने वाला आलसी, स्वयं अपमान को प्राप्त होने वाला, किन्तु मन्त्राभिचार (मन्त्रों का अनुष्ठान) करने वाला तथा चतुर होता है।

यदि सप्तम मेंबृहस्पति हो तो उत्तम स्त्रीमामी वाला, पुत्रवान्, सुन्दर, अपने पिता से अधिक उदार होता है कुछ अन्य पुस्तकों में यह भी लिखा है कि जिसके सप्तम में बृहस्पति हो वह अपने पिता से श्रेष्ठ पदवी को प्राप्त हो।

अष्टम में बृहस्पति का निकृष्ट फल है। ऐसा व्यक्ति दीन होता है और नौकरी से धनोपार्जन करता है। अष्टम में बृहस्पति वाला जपन्यकर्म (निकृष्ट कर्म करने वाला) किन्तु दीर्घायु होता है।

यदि नवम में बृहस्पति हो तो जातक धनवान्, पुत्रवान्, विख्यात, धर्म कार्य के लिए उत्सुक और राजा का मन्त्री होता है। ऐसे व्यक्ति की धार्मिक कार्यों में प्रवृत्ति रहती है।

यदि वृहस्पति दशम भाव में हो तो जातक अत्यन्त घनी और राजा का प्यारा होता है। ऐसा व्यक्ति उत्तम आचरण करने वाला और यशस्वी भी होता है।

यदि ग्यारहवें घर में बृहस्पति हो तो मनुष्य धनिक, निर्भय और दीर्घायु होता है। ऐसे व्यक्ति के पास सवारियां भी होती हैं किन्तु सन्तान थोड़ी होती है। यदि वृहस्पति बारहवें घर में हो तो ऐसे व्यक्ति से अन्य लोग द्वेष करते हैं और जातक स्वयं बुरे शब्द बोलने वाला, सन्तान हीन, आलसी, और सेवक (सेवा करने वाला) होता है।

Monday, August 30, 2021

KRISHNA JANAMASHTMI SHODSHOPCHAR PUJA VIDHI कृष्ण जन्माष्टमी षोडशोपचार पूजा विधि

KRISHNA JANAMASHTMI SHODSHOPCHAR PUJA VIDHI कृष्ण जन्माष्टमी षोडशोपचार पूजा विधि

कृष्ण जन्माष्टमी के दौरान षोडशोपचार कृष्ण पूजा

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि में षोडशोपचार पूजा के सभी १६ चरणों का समावेश किया गया है और सभी चरणों का वर्णन वैदिक मन्त्रों के साथ दिया गया है। जन्माष्टमी के दौरान की जाने वाली श्री कृष्ण पूजा में यदि षोडशोपचार पूजा के सोलह (१६) चरणों का समावेश हो तो उसे षोडशोपचार जन्माष्टमी पूजा विधि के रूप में जाना जाता है।

 

1. ध्यानम्

भगवान श्री कृष्ण का ध्यान पहले से अपने सम्मुख प्रतिष्ठित श्रीकृष्ण की नवीन प्रतिमा में करें।


 

2. आवाहनं

भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन-मुद्रा दिखाकर, उनका आवाहन करें।


 











3. आसनं

भगवान श्री कृष्ण का आवाहन करने के बाद, निम्न मन्त्र पढ़ कर उन्हें आसन के लिये पाँच पुष्प अञ्जलि में लेकर अपने सामने छोड़े।


 






4. पाद्य

भगवान श्री कृष्ण को आसन प्रदान करने के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पाद्य (चरण धोने हेतु जल) समर्पित करें।


 






5. अर्घ्य

पाद्य समर्पण के बाद, भगवान श्री कृष्ण को अर्घ्य (शिर के अभिषेक हेतु जल) समर्पित करें।


 






6. आचमनीयं

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए आचमन के लिए श्रीकृष्ण को जल समर्पित करें।


 






7. स्नानं

आचमन समर्पण के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को जल से स्नान कराएँ।

 






8. वस्त्र

स्नान कराने के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को मोली के रूप में वस्त्र समर्पित करें।


 








9. यज्ञोपवीत

वस्त्र समर्पण के बाद, निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को यज्ञोपवीत समर्पित करें।

 








10. गन्ध

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को सुगन्धित द्रव्य समर्पित करें।


 








11. आभरणं हस्तभूषण

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण के श्रृंगार के लिये आभूषण समर्पित करें।


 





12. नाना परिमल द्रव्य

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को विविध प्रकार के सुगन्धित द्रव्य समर्पित करें।

 




13. पुष्प

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को पुष्प समर्पित करें।


 




14. अथ अङ्गपूजा

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए भगवन कृष्ण के अङ्ग-देवताओं का पूजन करना

 चाहिये। बाएँ हाथ में चावल, पुष्प व चन्दन लेकर प्रत्येक मन्त्र का उच्चारण करते 

हुए दाहिने हाथ से श्री कृष्ण की मूर्ति के पास छोड़ें।

























15. धूपं

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को धूप समर्पित करें।


 






16. दीपं

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को दीप समर्पित करें।


 








17. नैवेद्य

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को नैवेद्य समर्पित करें।

 


18. तांबूलं

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को ताम्बूल (पान, सुपारी के साथ) समर्पित करें।


 





19. दक्षिणा

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को दक्षिणा समर्पित करें।

 




20. महा नीराजन

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को निराजन (आरती) समर्पित करें।


 






21. प्रदक्षिणा

अब श्रीकृष्ण की प्रदक्षिणा (बाएँ से दाएँ ओर की परिक्रमा) के साथ निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को फूल समर्पित करें।


 

 

 








23. नमस्कार

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए श्रीकृष्ण को नमस्कार करें।


 


















25. क्षमापन

निम्न-लिखित मन्त्र पढ़ते हुए पूजा के दौरान हुई किसी ज्ञात-अज्ञात भूल के लिए श्रीकृष्ण से क्षमा-प्रार्थना करें।


विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )