Monday, April 13, 2020

SHRI AADITYA HRIDYA STOTR WITH HINDI TRANSLATION श्री आदित्य ह्रदय स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

SHRI AADITYA HRIDYA STOTR WITH HINDI TRANSLATION श्री आदित्य ह्रदय स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित


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आदित्य हृदय स्तोत्र संपूर्ण पाठ ADITY HRIDAY STOTRAM SAMPURN PATH



आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ नियमित करने सेअप्रत्याशित लाभ मिलता है। आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। 

संकल्प


ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद् भगवतोमहापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्य अद्य ब्रह्मणोन्हि द्वितिय परार्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशति तमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे विक्रमनाम संवतरे अत्राद्य महामंगल्य फलप्रद मासोत्तमे मासे पुण्यपवित्र ( PLS .CHANGE IT श्रावणमासे शुभे कृष्ण पक्षे अमावस्या तिथौ सौम्यावासरे अद्य श्री सूर्यग्रहण पुण्यकाले अस्माकं सदगुरुदेवं पादानां परम पूज्य ) परिवार सहितानां च आयुआरोग्य ऐश्वर्य यशः कीर्ति पुष्टि वृद्धिअर्थे तथा समस्त जगति राजहारे सर्वत्र सुखशांति यशोविजय लाभादि प्राप्तयर्थे, सर्वोपद्रव शमनार्थे,  स्तोत्र पाठ अहं करिष्ये।

विनियोग: ( हाथ में जल लेकर विनियोग पढ़े )

विनियोग

ॐ अस्य आदित्य हृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः, आदित्येहृदयभूतो
भगवान ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः। ( जल को किसी पात्र में छोड़ दे ) 

ऋष्यादिन्यास

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। 
अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे। 
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। 
रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। 
ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।

करन्यास

ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। 
ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। 
ॐ विवरवते अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। 
ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

हृदयादि अंगन्यास

ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। 
ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा। 
ॐ देवासुरनमस्कृताय शिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। 
ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट्। 
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।


इस प्रकार न्यास करके निम्नांकित मंत्र से भगवान सूर्य का ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिए-

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

ॐ ततोयुद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम | 
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम || १ || 
दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम | 
उपगम्याब्रवीद राममगस्त्यो भगवांस्तदा || २ || 
राम राम महाबाहो श्रुणु गुह्यं सनातनम | 
येन सर्वानरीन वत्स समरे विजयिष्यसे || ३ || 
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनं | 
जयावहं जपं नित्यंमक्षयं परमं शिवम् || ४ ||
सर्वमङ्गलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम | 
चिंताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम || ५ || 

श्री रामचंद्र भगवान् युद्ध से थककर चिंता करते हुए रणभूमि में खड़े थे | इतने में रावण भी युद्ध के लिये उनके सामने आकर युद्ध के लिये खड़ा हो गया | यह देख भगवान् अगस्त्यमुनि, जो युद्ध देखने के लिये देवताओ के साथ आये थे | वो मुनि भगवान् राम के पास जाकर बोले | मुनि ने कहा हे सबके ह्रदय में रमण करने वाले महाबाहो राम, यह सनातन रमणीय गोपनीय स्तोत्र सुनो | 
वत्स इसके जाप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओ पर विजय पाओगे इसमें संदेह नहीं है | 
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है "श्री आदित्यहृदयस्तोत्र" है | यह परम पवित्र और शत्रुओ का विनाश करनेवाला स्तोत्र है | 
इसके जाप से या पाठ से सदा विजय प्राप्त होगी | यह नित्यअक्षय और परमकल्याणमयी है | सम्पूर्ण मंगलो का भी मंगल है | 
इस स्तोत्र के पाठ से सभी पापो का विनाश हो जाता है | यह चिंता और शोक को मिटाने वाला है और आयु को बढ़ानेवाला है |

( श्लोक १ - ५ ) 

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतं | 
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरं || ६ ||
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः | 
एष देवासुरगणांल्लोकां पाति गभस्तिभिः || ७ || 
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः | 
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपांपतिः || ८ || 
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः | 
वायुर्वन्हि: प्रजाः प्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः || ९ || 

भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से सुशोभित है | ये नित्य उदय होनेवाले देवता और असुरो से पूजनीय,विवस्वान नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करनेवाला भास्कर और संसार के स्वामी भुवनेश्वर है | तुम इनका 
( रश्मिमते,समुद्यते,देवासुरनमस्कृताय,विवस्वते,भास्कराय,भुवनेश्वराय नमः) इन मंत्रो से पूजन करो | 
सम्पूर्ण देवता इन्ही के स्वरुप है | ये तेजो राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले है | यही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरो सहित सम्पूर्ण लोको का पालन करते है | 
यहीब्रह्मा,विष्णु,स्कन्द,प्रजापति,इंद्र,कुबेर,काल,यम,चन्द्रमा,वरुण,पितर,वसु,साध्य,अश्विनीकुमार,मरुद्गण,मनु,वायु,अग्नि,प्रजा,प्राण,ऋतुओ को प्रकट करनेवाले तथा प्रभा के तेजोमय पुंज है | 

(श्लोक ६ - ९ ) 
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान | 
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः || १० || 
हरिदश्वः सहस्त्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान | 
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तंण्डकोन्शुमान || ११ || 
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोहस्करो रविः | 
अग्निगर्भोदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः || १२ || 
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः | 
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः || १३ || 
आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः | 
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः || १४ || 
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः | 
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन नमोस्तुते || १५ || ( श्लोक - १० - १५ ) 


इन्ही के नाम आदित्य-अदितीपुत्र, सविता-जगत की उत्पत्ति करनेवाले, खग-आकाश विचरण करने वाले 
पूषा-पुष्टिदायक, गभस्तिमान-प्रकाशमान, भानु-प्रकाशक, हिरण्यरेता-ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति करनेवाले, 
दिवाकर-अन्धकार को दूर कर उजाला देने वाले, हरिदश्व-हरे रंग के घोड़ेवाले, सहस्त्रार्चि-हजारो किरणों से सुशोभित 
सप्तसप्ति-सातघोड़ोवाले, मरीचिमान-किरणों से सुशोभित, तिमिरोन्मथन-अंधकार का नाश करनेवाले, 
शम्भु-कल्याणकारक, त्वष्टा-जगत का संहार करनेवाले, मार्तण्डक-जीवनप्रदान करने वाले, अंशुमान-किरण ग्राह्य 
हिरण्यगर्भ-ब्रह्माजी, शिशिर-सुखदेनेवाले, तपन-उष्णता पैदा करनेवाले, अहस्कर-दिनकर, रवि-प्रार्थना योग्य 
अग्निगर्भ-अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले, अदितीपुत्र, शंख-व्यापक, शिशिरनाशन - शीत का नाश करनेवाले 
व्योमनाथ-आकाश के देवता, तमोभेदी-अंधकार को नष्ट करनेवाले, घनवृष्टि-घनी वृष्टि के कारण, अपांमित्र-जल को उत्पन्न करने वाले, विन्ध्यवीथीप्लवङ्गम-आकाश में तीव्रवेग से चलनेवाले, आतपी-घाम उत्पन्न करनेवाले
मण्डली-समूह को धारण करने वाले, मृत्यु-मौत के कारक, पिङ्गल-भूरे रंग वाले, सर्वतापन-सबको ताप देने वाले
कवि-दूरद्रष्टा, विश्व-सर्वस्वरूप, महातेजस्वी-महानतेजवाले, रक्त-लाल, सर्वभवोद्भव-सब की उत्पत्ति के कारक 
विश्वभावन-जगत की रक्षा करनेवाले, द्वादशात्मा-बारहस्वरूपो-बारह स्वरूपों से युक्त,
( इन महान नामो से सूर्यदेव प्रसिद्व है ) आपको नमस्कार है | 

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः | 
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः || १६ || 
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः | 
नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः || १७ || 
नमः उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः | 
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोस्तुते || १८ || 
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे | 
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः || १९ || 
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामिमात्मने | 
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः || २० || ( श्लोक - १६ - २० )

पूर्वगिरि यानी उदयाचल और पश्चिमगिरि यानी अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार | ग्रहो और तारो के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको नमस्कार है | आप जय-विजय स्वरुप कल्याण के दाता है | आपके रथ में हरे रंग के घोड़े रहते है, आपको बारम्बार मेरा नमस्कार है | सहस्त्रो किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य आपको नमस्कार है | आप अदितिपुत्र आदित्य हो | आपको नमस्कार है | उग्र,वीर,और सारंग सूर्यदेव आपको नमस्कार है | कमलो को अपना तेज देकर विकसित करनेवाले मार्तण्ड आपको नमस्कार है | आप ब्रह्मा,विष्णु और शिव के स्वामी हो,सुर आपकी संज्ञा है,ये पूरा सूर्यमण्डल आपका स्वरुप है | सबको स्वाहा 
कर देनेवाले अग्नि भी आपका ही स्वरुप है | आप रौद्ररूप धारण करंव वाले हो आपको नमस्कार है | अज्ञान और अंधकार के आप नाशक हो,जड़ता,और शीतलता के कारक हो,शत्रु का विनाश करनेवाले हो आप आपका स्वरुप अप्रमेय है | आप कृतघ्नों का नाशकरने वाले हो, आप देव स्वरुप आपको नमस्कार है | 

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे | 
नमस्तमोभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे || २१ || 
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः | 
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः || २२ || 
एषु सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः | 
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम || २३ || 
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च | 
यानी कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः || २४ || 
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च | 
किर्तयन पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव || २५ || ( श्लोक - २० - २५ ) 

आप तपाये हुये सोने की तरह हो, आप हरी और विश्वकर्मा हो, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप, जगत के साक्षी हो | आपको नमस्कार है | भगवान् सूर्य ही सम्पूर्ण भूतो का संहार करनेवाले है पालन करने वाले है | सूर्य ही अपनी गर्मी से अपनी किरणों द्वारा वर्षा करते है | यह भगवान् सबके सो जाने के उपरांत भी जागते रहते है यही अग्निहोत्री को मिलने वाले देवता है | देवता,यज्ञ और यज्ञो के फल फलप्रदान करने वाले भी यही है | सम्पूर्ण जगत में होने वाली क्रियाओ के फल देने वाली यही है | राघव विपत्ति में कष्ट में दुर्गम में तथा किसी भी प्रकार के भय के अवसर पर जो कोई भी मनुष्य इस सूर्यदेव के स्तोत्र का कीर्तन करता है | उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता | 

पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिं | 
एतत त्रिगुणीतं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यति || २६ || 
अस्मिन क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि | 
एवमुक्त्वा ततोअगस्त्यो जगाम स यथागतं || २७ || 
एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोभवत सदा | 
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान || २८ || 
आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान | 
त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान || २९ || 
रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत | 
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेभवत || ३० || 

इसलिये तुम एकाग्रचित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो | इस आदित्य ह्रदय का तीनबार पाठ करने से तुम युद्ध में विजय प्राप्त करोगे | महाबाहो राम तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे | यह कहकर अगस्त्यमुनि चले गये | अगस्त्यमुनि का यह उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्री रामचंद्र जी का शोक दूर हो गया | उन्होंने प्रसन्नचित से आदित्यहृदय का पाठ किया स्तोत्र धारण किया और तीन बार आचमन करके जाप किया | उसके बाद भगवान् श्री रामचंद्र ने धनुष उठाकर रावण की और देखा और उत्साह पूर्वक विजय पाने के लिये वे आगे बढ़ने लगे | उन्होंने पूरा निश्चय कर रावण का वध करने को उद्यत हुये | 

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं 
मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः |
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा 
सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति || ३१ || 

उस समय देवताओ के मध्य में खड़े हुये भगवान् सूर्य ने प्रसन्न होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा रघुनन्दन अब जल्दी करो || 

|| इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकिये आदिकाव्ये युद्धकांडे पंचाधिकशततमः सर्गः ||  



सूर्य द्वादशनाम स्तोत्र

आदित्यं प्रथमं नाम द्वितीयं तु दिवाकर:।
तृतीयं भास्कर: प्रोक्तं चतुर्थं तु प्रभाकर:।।1।।
पंचमं तु सहस्त्रांशु षष्ठं त्रैलोक्यलोचन:।
सप्तमं हरिदश्वश्य अष्टमं च विभावसु:।।2।।
नवमं दिनकर: प्रोक्तों दशमं द्वादशात्मक:।
एकादशं त्रयोमूर्ति द्वादशं सूर्य एव च।।3।।

यदि किसी जातक(Native) की जन्म कुण्डली में सूर्य की महादशा चली हुई है अथवा सूर्य की अन्तर्दशा चली हुई है तब उसे “सूर्य द्वादश नाम स्तोत्र” का प्रतिदिन जाप करना चाहिए और स्तोत्र के जाप के बाद प्रतिदिन सूर्य भगवान की पूजा भी करनी चाहिए. ऎसा करने पर सूर्य की महादशा/अन्तर्दशा में हर प्रकार की समस्या का निवारण हो जाएगा.



सूर्य अष्टकं सूर्य अष्टक स्तोत्र सूर्याष्टक स्तोत्र

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर | 
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ||

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् | 
श्वेतपद्मधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम् | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्मविष्णुमहेश्वरं | 
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बृंहितं तेजःपुंजं च वायुमाकाशमेव च | 
प्रभुं च सर्वलोकानां तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

बन्धूकपुष्पसंकाशं हारकुण्डलभूषितम् |
एकचक्रधरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं ||

तँ सूर्य जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

तँ सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम् |
महापापहरं देवं तँ सूर्यं प्रणमाम्यहं || 

|| श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णं || 


सूर्य साधना SUN SURYA SADHNA


||  मन्त्र  || 

सत नमो आदेश ! 
गुरूजी को आदेश !
ॐ गुरूजी ! ओमकार निरंजन निराकार सूर्य मन्त्र  तत सार !
गगन मंडल का कौन राजा कौन धर्म कौन जाति ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल का सूरज राजा , 
सात अश्व रथ सवार सत धर्म जाति का क्षत्रिय , 
ब्रहम आत्मा रूद्र का अवतार तीन काल का काल निर्माण ,
प्रथमे मित्र नाम द्वितीय विष्णु , तृतीय वरुण नाम , 
चतुर्थे सूर्य नाम , पंचमे भानु नाम , षष्ठमें तपन नाम ,
सप्तमे इन्द्र नाम , अष्टमे खगे नाम , नवमे गभस्ति नाम ,
दशमे यमाय नाम, एकादश हरिन्यरेता नाम , द्वादशे दिवाकर नाम , 
एता द्वादश नाम नमो नमः ! 

ॐ गुरूजी गगन मंडल में जय जय ओमकार  , 
कोटि देवता अपने ग्रह सवार सात वार सताईस नक्षत्र नौ ग्रह बारह राशि पंद्रह तिथि ! 
आओ सिद्धो राखो मन खोजो  पवन खोजो सुर आवागमन ! 
त्रिकुटी भई कोटि प्रकाश ! 
निर्मल ज्योत दशवे द्वार सिद्ध साधक भरलो साखी श्री शम्भु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने भाखी ! 

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमही तन्नो सूर्य प्रचोदयात मन्त्र पढ़ अग्नि को जलाये सो नर सूर्य लोक में जाये 
बिना मन्त्र अग्नि को जलाये सो नर नरक में जाये ! 
इतना सूर्य मन्त्र  गायत्री सम्पूर्ण भया ! 
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश ! 
अनन्त कोट सिद्धो में , त्र्यम्बक  क्षेत्र  अनुपान शिला पर बैठ श्री शंभु यति गुरु गोरक्षनाथ जी ने पढ़ कथ कर सुनाया !
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश आदेश ! 

||  विशेष विधि  ||

यदि सूर्य देव पर त्राटक करते हुए दोपहर में रोज इस मन्त्र का जाप किया जाये तो भगवान् सूर्य साक्षात दर्शन देते है ! पहले एक मिनट त्राटक करे फिर धीरे धीरे यह अभ्यास एक घंटे तक ले जाये ! ऐसी साधना सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी , पर इस साधना को सिद्ध गुरु की देख रेख में ही करे और जब भी सूर्य त्राटक करे तो साथ में साबर सोम गायत्री का जाप रात्रि में करते हुए चन्द्र पर त्राटक जरूर करे जितने दिन चन्द्र दर्शन न हो उतने दिन केवल सोम गायत्री मन्त्र  का जप करे ! सोम गायत्री अपने गुरुदेव से प्राप्त करे !


भगवान् सूर्य आप सबका कल्याण करे और गलत प्रचार करने वाले विद्वानों को भी सद्बुद्धि दे !

भगवान सूर्य की उपासना कौन नहीं करना चाहेगा ? भगवान् सूर्य सबका मंगल करने वाले है , वह ग्रहों के राजा माने जाते है ! सूर्य देवता को साक्षात देव माना जाता है जो प्रतिदिन सारी सृष्टि को दर्शन देते है ! शास्त्रों के अनुसार सूर्य उदय के समय ब्रह्मा रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे , जब सूर्य सिर के ऊपर आ जाये तो विष्णु रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे और शाम के समय शिव रुपी गायत्री का ध्यान कर गायत्री मन्त्र का जप करे ! सूर्य उदय के समय कुमारी का ध्यान करे और मध्यान्ह में नवयुवती का ध्यान करे और शाम के समय वृद्ध रुपी गायत्री का ध्यान करे ! सूर्यास्त के बाद गायत्री जप निषेध माना जाता है !

ज्योतिष  के अनुसार सूर्य के अस्त हो जाने के बाद जन्म कुंडली पर विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि जब ग्रहों के राजा सूर्य अस्त हो जाये तो वेद का तीसरा नेत्र कहे जाने वाले ज्योतिष को भी विश्राम देना चाहिए ! भगवान् सूर्य के बारह नाम है , वह प्रत्येक राशि में अपना अलग प्रभाव और अलग रूप दिखाते है ! प्रातःकाल भगवान् सूर्य को उनके बारह नामो से जल देने का पुण्य एक हज़ार गौ दान के बराबर है !

ज्योतिष ने सूर्य को सरकार का कारक माना है यदि राजा का 'कर' मतलब सरकार का टैक्स चोरी किया जाये तो सूर्य बुरा फल देते है इसलिए हमें हमारा टैक्स जरूर भरना चाहिए ! भगवान् सूर्य की कृपा से तेज़ , बल और बुद्धि की वृद्धि होती है और चर्म रोग आदि अनेक व्याधिया शांत होती है !

सूर्य पूजन केवल सूर्य के रहते ही किया जाता है सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन करने से शनि का कोप सहना पड़ता है क्योंकि सूर्यास्त के बाद सूर्य के शत्रु शनि का समय शुरू हो जाता है और शनि इस काल में बलवान हो जाते है क्योंकि उन्हें काल का बल मिल जाता है ! वैदिक ज्योतिष में भी सूर्यास्त के बाद सूर्य पूजन की मनाही है यदि सूर्य सप्तम भाव में हो और व्यक्ति सूर्यास्त के बाद दान करे तो उस व्यक्ति को अपने जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है , पर कुछ विद्वानों का मत है कि सूर्य का पूजन सूर्यास्त के बाद करना चाहिए और ऐसे विद्वानों का यह भी कहना है कि सूर्य को जल देने के लिए जल में चीनी मिलानी चाहिए !

यदि डूबे हुए सूर्य को प्रणाम किया जाये और पूजन किया जाये तो सूर्य का विपरीत फल मिलता है और व्यक्ति भी डूबे हुए सूर्य की तरह ही डूब जाता है ! यहाँ ध्यान देने योग्य यह बात है कि सूर्य पूजन में सदैव जल में गुड़ मिलाया जाता है क्योंकि सूर्य एक गर्म ग्रह है और गुड़ को भी गर्म माना जाता है पर पता नहीं किस आधार पर यह विद्वान सूर्य पूजन में चीनी इस्तेमाल करने की राय देते है !  ऐसे विद्वानों को यदि महामूर्ख की उपाधि दी जाये तो महामूर्ख शब्द का अपमान होगा ! केवल प्रसिद्धि के लिए यह विद्वान् लोगो को गलत राह दिखा रहे है ! सूर्य पूजन में लाल वस्तुओं का इस्तेमाल किया जाता है !

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )