Monday, April 20, 2020

चौसठ योगिनी 64 CHOUSAT YOGINI

चौसठ योगिनी 64 CHOUSAT YOGINI



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चौसठ योगिनी और उनका जीवन में योगदान


स्त्री पुरुष की सहभागिनी है,पुरुष का जन्म सकारात्मकता के लिये और स्त्री का जन्म नकारात्मकता को प्रकट करने के लिये किया जाता है। स्त्री का रूप धरती के समान है और पुरुष का रूप उस धरती पर फ़सल पैदा करने वाले किसान के समान है। स्त्रियों की शक्ति को विश्लेषण करने के लिये चौसठ योगिनी की प्रकृति को समझना जरूरी है। पुरुष के बिना स्त्री अधूरी है और स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है। योगिनी की पूजा का कारण शक्ति की समस्त भावनाओं को मानसिक धारणा में समाहित करना और उनका विभिन्न अवसरों पर प्रकट करना और प्रयोग करना माना जाता है, बिना शक्ति को समझे और बिना शक्ति की उपासना किये यानी उसके प्रयोग को करने के बाद मिलने वाले फ़लों को बिना समझे शक्ति को केवल एक ही शक्ति समझना निराट दुर्बुद्धि ही मानी जायेगी,और यह काम उसी प्रकार से समझा जायेगा,जैसे एक ही विद्या का सभी कारणों में प्रयोग करना।

1. दिव्ययोग की दिव्ययोगिनी 
योग शब्द से बनी योगिनी का मूल्य शक्ति के रूप में समय के लिये प्रतिपादित है,एक दिन और एक रात में 1440 मिनट होते है,और एक योग की योगिनी का समय 22.5 मिनट का होता है, सूर्योदय से 22.5 मिनट तक इस योग की योगिनी का रूप प्रकट होता है,यह जीवन में जन्म के समय, साल के शुरु के दिन में महिने शुरु के दिन में और दिन के शुरु में माना जाता है, इस योग की योगिनी का रूप दिव्य योग की दिव्य योगिनी के रूप में जाना जाता है, इस योगिनी के समय में जो भी समय उत्पन्न होता है वह समय सम्पूर्ण जीवन, वर्ष महिना और दिन के लिये प्रकट रूप से अपनी योग्यता को प्रकट करता है। उदयति मिहिरो विदलित तिमिरो नामक कथन के अनुसार इस योग में उत्पन्न व्यक्ति समय वस्तु नकारात्मकता को समाप्त करने के लिये योगकारक माने जाते है,इस योग में अगर किसी का जन्म होता है तो वह चाहे कितने ही गरीब परिवार में जन्म ले लेकिन अपनी योग्यता और इस योगिनी की शक्ति से अपने बाहुबल से गरीबी को अमीरी में पैदा कर देता है,इस योगिनी के समय काल के लिये कोई भी समय अकाट्य होता है।

2. महायोग की महायोगिनी
यह योगिनी रूपी शक्ति का रूप अपनी शक्ति से महानता के लिये माना जाता है,अगर कोई व्यक्ति इस महायोगिनी के सानिध्य में जन्म लेता है,और इस योग में जन्मी शक्ति का साथ लेकर चलता है तो वह अपने को महान बनाने के लिये उत्तम माना जाता है।

3. सिद्ध योग की सिद्धयोगिनी
इस योग में उत्पन्न वस्तु और व्यक्ति का साथ लेने से सिद्ध योगिनी नामक शक्ति का साथ हो जाता है,और कार्य शिक्षा और वस्तु या व्यक्ति के विश्लेषण करने के लिये उत्तम माना जाता है।

4. महेश्वर की माहेश्वरी महाईश्वर के रूप में जन्म होता है विद्या और साधनाओं में स्थान मिलता है.

5. पिशाच की पिशाचिनी बहता हुआ खून देखकर खुश होना और खून बहाने में रत रहना.

6. डंक की डांकिनी बात में कार्य में व्यवहार में चुभने वाली स्थिति पैदा करना.

7. कालधूम की कालरात्रि भ्रम की स्थिति में और अधिक भ्रम पैदा करना.

8. निशाचर की निशाचरी रात के समय विचरण करने और कार्य करने की शक्ति देना छुपकर कार्य करना.

9. कंकाल की कंकाली शरीर से उग्र रहना और हमेशा गुस्से से रहना,न खुद सही रहना और न रहने देना.

10. रौद्र की रौद्री मारपीट और उत्पात करने की शक्ति समाहित करना अपने अहम को जिन्दा रखना.

11. हुँकार की हुँकारिनी बात को अभिमान से पूर्ण रखना,अपनी उपस्थिति का आवाज से बोध करवाना.

12. ऊर्ध्वकेश की ऊर्ध्वकेशिनी खडे बाल और चालाकी के काम करना.

13. विरूपक्ष की विरूपक्षिनी आसपास के व्यवहार को बिगाडने में दक्ष होना.

14. शुष्कांग की शुष्कांगिनी सूखे अंगों से युक्त मरियल जैसा रूप लेकर दया का पात्र बनना.

15. नरभोजी की नरभोजिनी मनसा वाचा कर्मणा जिससे जुडना उसे सभी तरह चूसते रहना.

16. फ़टकार की फ़टकारिणी बात बात में उत्तेजना में आना और आदेश देने में दुरुस्त होना.

17. वीरभद्र की वीरभद्रिनी सहायता के कामों में आगे रहना और दूसरे की सहायता के लिये तत्पर रहना.

18. धूम्राक्ष की धूम्राक्षिणी हमेशा अपनी औकात को छुपाना और जान पहिचान वालों के लिये मुशीबत बनना.

19. कलह की कलहप्रिय सुबह से शाम तक किसी न किसी बात पर क्लेश करते रहना.

20. रक्ताक्ष की रक्ताक्षिणी केवल खून खराबे पर विश्वास रखना.

21. राक्षस की राक्षसी अमानवीय कार्यों को करते रहना और दया धर्म रीति नीति का भाव नही रखना.

22. घोर की घोरणी गन्दे माहौल में रहना और दैनिक क्रियाओं से दूर रहना.

23. विश्वरूप की विश्वरूपिणी अपनी पहिचान को अपनी कला कौशल से संसार में फ़ैलाते रहना.

24. भयंकर की भयंकरी अपनी उपस्थिति को भयावह रूप में प्रस्तुत करना और डराने में कुशल होना.

25. कामक्ष की कामाक्षी हमेशा संभोग की इच्छा रखना और मर्यादा का ख्याल नही रखना.

26. उग्रचामुण्ड की उग्रचामुण्डी शांति में अशांति को फ़ैलाना और एक दूसरे को लडाकर दूर से मजे लेना.

27. भीषण की भीषणी. किसी भी भयानक कार्य को करने लग जाना और बहादुरी का परिचय देना.

28. त्रिपुरान्तक की त्रिपुरान्तकी भूत प्रेत वाली विद्याओं में निपुण होना और इन्ही कारको में व्यस्त रहना.

29. वीरकुमार की वीरकुमारी निडर होकर अपने कार्यों को करना मान मर्यादा के लिये जीवन जीना.

30. चण्ड की चण्डी चालाकी से अपने कार्य करना और स्वार्थ की पूर्ति के लिये कोई भी बुरा कर जाना.

31. वाराह की वाराही पूरे परिवार के सभी कार्यों को करना संसार हित में जीवन बिताना.

32. मुण्ड की मुण्डधारिणी जनशक्ति पर विश्वास रखना और संतान पैदा करने में अग्रणी रहना.

33. भैरव की भैरवी तामसी भोजन में अपने मन को लगाना और सहायता करने के लिये तत्पर रहना.

34. हस्त की हस्तिनी हमेशा भारी कार्य करना और शरीर को पनपाते रहना.

35. क्रोध की क्रोधदुर्मुख्ययी क्रोध करने में आगे रहना लेकिन किसी का बुरा नही करना.

36. प्रेतवाहन की प्रेतवाहिनी जन्म से लेकर बुराइयों को लेकर चलना और पीछे से कुछ नही कहना.

37. खटवांग खटवांगदीर्घलम्बोष्ठयी जन्म से ही विकृत रूप में जन्म लेना और संतान को इसी प्रकार से जन्म देना.

38. मलित की मालती

39. मन्त्रयोगी की मन्त्रयोगिनी

40. अस्थि की अस्थिरूपिणी

41. चक्र की चक्रिणी

42. ग्राह की ग्राहिणी

43. भुवनेश्वर की भुवनेश्वरी

44. कण्टक की कण्टिकिनी

45. कारक की कारकी

46. शुभ्र की शुभ्रणी

47. कर्म की क्रिया

48. दूत की दूती

49. कराल की कराली

50. शंख की शंखिनी

51. पद्म की पद्मिनी

52. क्षीर की क्षीरिणी

53. असन्ध असिन्धनी

54. प्रहर की प्रहारिणी

55. लक्ष की लक्ष्मी

56. काम की कामिनी

57. लोल की लोलिनी

58. काक की काकद्रिष्टि

59. अधोमुख की अधोमुखी

60. धूर्जट की धूर्जटी

61. मलिन की मालिनी

62. घोर की घोरिणी

63. कपाल की कपाली

64. विष की विषभोजिनी..

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )