ग्रहण काल में क्या करें
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है
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कोई भी नया कार्य प्रारम्भ नहीं करें।
ग्रहण काल में सोना नहीं चाहिए एवं मल – मूत्र का विसर्जन नहीं करना चाहिए। (बच्चे, बुजुर्गों एवं रोगीओं के लिए अनिवार्य नहीं है लेकिन फिर भी जितना नियम संभव हो पालन करना चाहिए )
पति पत्नी को शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाने चाहिए।
किसी भी पाप कर्म से बचना चाहिए क्योंकि ग्रहण में किये गए पाप का भी कई गुना फल प्राप्त होता है।
गर्भवती महिलाओं को घर में ही रहना चाहिए क्योंकि ग्रहण का गर्भ में पल रहे बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
ग्रहण काल में क्या करें :
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सामान्य दिनों से ग्रहण काल में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) कईं लाख गुना फलदायक होता है, इसीलिए ग्रहण काल में अधिक से अधिक पुण्य कर्म करने चाहिए।
ग्रहण काल से पहले ही खाने के सभी पदार्थों जैसे दूध, दही, पकी हुई सब्जी में तुलसी पत्र डाल देना चाहिए। ऐसा न करने पर वो भोजन खाने योग्य नहीं रह जाता है।
ग्रहण काल में अपने गुरु एवं इष्ट देवता का मंत्र जप अवश्य करना चाहिए। इससे साधक को गुरु एवं देवता की विशेष कृपा प्राप्त होती है एवं मानसिक शक्ति बढ़ती है ।
ग्रहण काल में मंत्र जप करने से मंत्र सिद्धि मिलती है एवं मंत्र जाग्रत हो जाते हैं।
किसी साधना में यदि आपको बार बार असफलता मिल रही है तो उस साधना को ग्रहण काल में अवश्य करें।
ग्रहण समाप्त हो जाने के पश्चात स्वयं स्नान करके देवी देवता को ( मूर्ति अथवा यन्त्र ) को गंगा जल से स्नान करना चाहिए एवं भोग लगाना चाहिए।
ग्रहण काल समाप्त होने के पश्चात दान करना चाहिए।
जो लोग घर पर न हो अथवा यात्रा कर रहे हो वो मानसिक रूप से जप करें ।
ग्रहण काल में किस मंत्र का जप करें ( चंद्र ग्रहण में कैसे पूजा करें )
ग्रहण काल में अपने गुरु एवं इष्ट देवता का मंत्र जप अवश्य करना चाहिए। जिसका कोई गुरु नहीं है अथवा कोई इष्ट नहीं है तो वो भगवान् शिव के पंचाक्षरी मंत्र – ” नमः शिवाय ” का अथवा भगवान् विष्णु के मंत्र – ” ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ” का जप कर सकते हैं।
कुछ अन्य विशिष्ट मंत्र हम यहाँ साधकों के हितार्थ यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। अपनी श्रद्धानुसार आप इनका जप भी कर सकते हैं
गणपति मंत्र
ॐ गं गणपतये नमः
लक्ष्मी मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम:
दुर्गा मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
हनुमान मंत्र
ॐ नमो भगवते हनुमते महा रुद्रात्मकाय हुं फट् स्वाहा
महाकाली मंत्र
क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं स्वाहा
बगलामुखी मंत्र
ॐ आं ह्ल्रीं क्रों हुं फट् स्वाहा
बाला सुंदरी मंत्र
ऐं क्लीं सौः
कामाख्या मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कामाख्यै स्वाहा
गायत्री मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्यः धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
ग्रहण के समय आप शाबर मंत्रो का जप भी कर सकते हैं।
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