Thursday, April 16, 2020

मार्कण्डेय कृत लघु दुर्गा सप्तशती पाठ

 मार्कण्डेय कृत लघु दुर्गा सप्तशती पाठ


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नवरात्री में करे यह पाठ 
माँ दुर्गा सभी दुखो को हर लेगी 
यह पाठ करने से सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती पाठ करने का फल प्राप्त होता है | 
इसका पाठ कसी भी नवरात्री में माँ दुर्गा के सामने गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करके और धूपबत्ती करके 
प्रतिदिन नौ पाठ करने चाहिए | 
इस पाठ से दुर्गा सप्तशती का फल मिलता है | 
इसके पाठ से सभी कामनाये सिद्ध हो जाती है | 
इसके पाठ से शत्रु बाधा शांत होती है | 
इसके पाठ से नवग्रह बाध्ये शांत हो जाती है | 
यह पाठ बीजमंत्रों से भरपूर है | 
इसके पाठ से माँ दुर्गा की सम्पूर्ण कृपा प्राप्त होती है | 


ॐ वीं वीं वीं वेणुहस्ते स्तुतिविधवटुके हां तथा तानमाता स्वानन्देनन्दरूपे अविहतनिरुते भक्तिदे मुक्तिदे त्वम् | 
हंसः सोऽहं विशाले वलयगतिहसे सिद्धिदे वाममार्गे ह्रीं ह्रीं ह्रीं सिद्धलोके कष कष विपुले वीरभद्रे नमस्ते || १ || 
ॐ ह्रींकारं चोच्चरन्ती ममहरतु भयं चर्ममुण्डे प्रचन्डे खां खां खां खड्गपाणे ध्रकध्रकध्रकिते उग्ररूपे स्वरूपे | 
हुंहुंहुंकारनादे गगनभुवि तथा व्यापिनी व्योमरूपे हं हं हंकारनादे सुरगणनमिते राक्षसानां निहंत्री || २ || 

ऐं लोके कीर्तयन्ति मम हरतु भयं चण्डरुपे नमस्ते घ्रांघ्रांघ्रां घोररूपे घघघघघटिते घर्घरे घोररावे | 
निर्मांसे काकजङ्घे घसितनखनखाधूम्रनेत्रे त्रिनेत्रे हस्ताब्जे शुलमुण्डे कलकुलकुकुले श्रीमहेशी नमस्ते || ३ 

क्रीं क्रीं क्रीं ऐं कुमारी कुहकुहमखिले कोकिले मानुरागे मुद्रासंज्ञत्रिरेखां कुरु कुरु सततं श्रीमहामारी गुह्ये | 
तेजोंगे सिद्धिनाथे मनुपवनचले नैव आज्ञा निधाने ऐंकारे रात्रिमध्ये शयितपशुजने तंत्रकांते नमस्ते || ४ || 

ॐ व्रां व्रीं व्रुं व्रूं कवित्ये दहनपुरगते रुक्मरूपेण चक्रे त्रिः शक्त्या युक्तवर्णादिककरनमिते दादिवंपूर्णवर्णे | 
ह्रींस्थाने कामराजे ज्वल ज्वल ज्वलिते कोशितैस्तास्तुपत्रे स्वच्छदं कष्टनाशे सुरवरवपुषे गुह्यमुंडे नमस्ते || ५ || 

ॐ घ्रां घ्रीं घ्रूं घोरतुण्डे घघघघघघघे घर्घरान्यांघ्रिघोषे ह्रीं क्री द्रं द्रौं च चक्र र र र र रमिते सर्वबोधप्रधाने | 
द्रीं तीर्थे द्रीं तज्येष्ठ जुगजुगजजुगे म्लेच्छदे कालमुण्डे सर्वाङ्गे रक्तघोरामथनकरवरे वज्रदण्डे नमस्ते || ६ || 

ॐ क्रां क्रीं क्रूं वामभित्ते गगनगडगड़े गुह्ययोन्याहिमुण्डे वज्राङ्गे वज्रहस्ते सुरपतिवरदे मत्तमातङ्गरूढे | 
सुतेजे शुद्धदेहे ललललललिते छेदिते पाशजाले कुण्डल्याकाररूपे वृषवृषभहरे ऐन्द्रि मातर्नमस्ते || ७ || 

ॐ हुंहुंहुंकारनादे कषकषवसिनी माँसि वैतालहस्ते सुंसिद्धर्षैः सुसिद्धिर्ढढढढढढढ़ः सर्वभक्षी प्रचन्डी | 
जूं सः सौं शांतिकर्मे मृतमृतनिगडे निःसमे सीसमुद्रे देवि त्वं साधकानां भवभयहरणे भद्रकाली नमस्ते || ८ 
ॐ देवि त्वं तुर्यहस्ते करधृतपरिघे त्वं वराहस्वरूपे त्वं चेंद्री त्वं कुबेरी त्वमसि च जननी त्वं पुराणी महेन्द्री | 
ऐं ह्रीं ह्रीं कारभूते अतलतलतले भूतले स्वर्गमार्गे पाताले शैलभृङ्गे हरिहरभुवने सिद्धिचंडी नमस्ते || ९ || 

हँसि त्वं शौंडदुःखं शमितभवभये सर्वविघ्नान्तकार्ये गांगींगूंगैंषडंगे गगनगटितटे सिद्धिदे सिद्धिसाध्ये | 
क्रूं क्रूं मुद्रागजांशो गसपवनगते त्र्यक्षरे वै कराले ॐ हीं हूं गां गणेशी गजमुखजननी त्वं गणेशी नमस्ते || १० 
|| श्री मार्कण्डेयकृत लघुसप्तशती दुर्गा स्तोत्रं सम्पूर्णं || 

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