हवन का महत्व व सामग्री HAWAN IMPORTANCE AND SAMAGRI
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क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी)
समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएँ भी विभिन्न कार्यों हेतु प्रयुक्त होती हैं।
सूर्य की समिधा मदार की,
चन्द्रमा की पलाश की,मङ्गल की खैर की,बुध की चिड़चिडा की,बृहस्पति की पीपल की,शुक्र की गूलर की,शनि की शमी की,राहु दूर्वा कीकेतु की कुशा की समिधा कही गई है।मदार की समिधा रोग को नाश करती है,पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली,पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली,गूलर की स्वर्ग देने वाली,शमी की पाप नाश करने वाली,दूर्वा की दीर्घायु देने वालीकुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकारप्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।
सूर्य की समिधा मदार की,
चन्द्रमा की पलाश की,मङ्गल की खैर की,बुध की चिड़चिडा की,बृहस्पति की पीपल की,शुक्र की गूलर की,शनि की शमी की,राहु दूर्वा कीकेतु की कुशा की समिधा कही गई है।मदार की समिधा रोग को नाश करती है,पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली,पीपल की प्रजा (सन्तति) काम कराने वाली,गूलर की स्वर्ग देने वाली,शमी की पाप नाश करने वाली,दूर्वा की दीर्घायु देने वालीकुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।हव्य (आहुति देने योग्य द्रव्यों) के प्रकारप्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वायुमण्डल रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हलकापन, धूल, धुँआ, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है। इसलिए कई बार वायुमण्डल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियाँ प्रयुक्त की जाती हैं, जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।
होम द्रव्य -
होम-द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्नि में मन्त्रों के साथ डाला जाता है।
(१) सुगन्धित : केशर, अगर, तगर, चन्दन, इलायची, जायफल, जावित्री छड़ीला कपूर कचरी बालछड़ पानड़ी आदि
(२) पुष्टिकारक : घृत, गुग्गुल ,सूखे फल, जौ, तिल, चावल शहद नारियल आदि
(३) मिष्ट - शक्कर, छूहारा, दाख आदि
(४) रोग नाशक -गिलोय, जायफल, सोमवल्ली ब्राह्मी तुलसी अगर तगर तिल इंद्रा जव आमला मालकांगनी हरताल तेजपत्र प्रियंगु केसर सफ़ेद चन्दन जटामांसी आदि
उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएँ हवन में प्रयोग होनी चाहिए। अन्नों के हवन से मेघ-मालाएँ अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगन्धित द्रव्यों से विचारों शुद्ध होते हैं, मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व दिया जाना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएँ उपलब्ध न हों, तो जो मिले उसी से अथवा केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।
सामान्य हवन सामग्री -
तिल, जौं, सफेद चन्दन का चूरा , अगर , तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, तालीसपत्र , पानड़ी , लौंग , बड़ी इलायची , गोला , छुहारे नागर मौथा , इन्द्र जौ , कपूर कचरी , आँवला ,गिलोय, जायफल, ब्राह्मी.
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