Thursday, April 30, 2020

ये उपाय बना देंगे आपके सभी बिगड़े काम

ये उपाय बना देंगे आपके सभी बिगड़े काम

आज के समय में प्रत्येक व्यक्ति सुबह से शाम तक बहुत मेहनत करता है। आदमी सुबह जब घर से निकलता है तो उसके दिमाग में अनेक प्रकार के प्लान होते है। वह अपने व अपने परिवार के भविष्य के लिए जी तोड़ मेहनत है। उसके जीवन में अनेक प्रकार की परेशानियां आती है। कभी कभी इतनी बड़ी - बड़ी मुसीबत आती है कि व्यक्ति परेशान जाता है। वह हर मुसीबत का डट कर मुकाबला करता है। परन्तु सबसे ज्यादा हताश तब होता है जब उसे छोटी छोटी मुसीबतों का रोज सामना करना पड़ता है। एक परेशानी से छुटकारा मिलता है और दूसरी मुसीबत खड़ी हो जाती है। कोई भी आदमी बड़ी परेशानी से परेशानी से परेशान नहीं होता लेकिन छोटी छोटी परेशानी से दुखी हो जाता है।
मैं आज आपको इन छोटी छोटी परेशानियों के निवारण के आसान उपाय बता रहा हूँ। ये उपाय इतने आसान है जैसे हम खाना खाते है या पानी पीते है। इसलिए इनको करने में आपको कोई परेशानी नहीं होगी।
यदि आप अपने जीवन में आने वाली छोटी छोटी मुसीबतों से परेशान है तो


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प्रत्येक अमावस्या को पूरे घर की साफ़ - सफाई करनी चाहिए। सफाई के बाद घर के मंदिर में धूप दीप दिखाने से घर में लक्ष्मी का आगमन होता है। 

शाम के समय घर में आने वाले किसी भी मेहमान या परिचित का भूलकर भी अपमान नहीं करना चाहिए। उनके सम्मान में जलपान करवाना चाहिये। यदि आने वाला मेहमान कोई स्त्री हो तो और भी अच्छा है। 

नियमित रूप से सादा जल व शनिवार को दूध , गुड़ , व शक्कर मिश्रित जल पीपल में धूप दीप के साथ अर्पित करना चाहिए। इससे आपकी हर छोटी बड़ी समस्या का समाधान अपने आप ही हो जायेगा। आपको हर मुसीबत का सामना करने के लिए रास्ता नजर आने लग जायेगा। 

इसके साथ ही हर अमावस्या को बबूल के पेड़ के नीचे अँधेरा होने पर भोजन की थाली रखे। उससे आपके पितृ प्रसन्न होंगे।

कर्ज मुक्ति के सबसे आसान और अचूक उपाय

कर्ज मुक्ति के सबसे आसान और अचूक उपाय


कर्जा कब लेना चाहिए और कब नहीं

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आज लगभग सभी व्यक्ति कम अथवा अधिक कर्ज से दबे हुए है। यहाँ तक कि बड़े बड़े करोड़पति भी इससे अछूते नहीं है। कुछ लोग कर्जे से मुक्त हो जाते है ,परन्तु कुछ लोग जिंदगी भर कर्ज के नीचे दबे रहते है। कई देखा जाता है कि किसी ने कर्ज तो लिया दस हजार का। परन्तु वह बढ़ता बढ़ता एक लाख रुपए हो गया। कुछ लोगों की कुंडली में भी ऐसा योग होता है कि वे लाख चाहने पर भी कर्ज से मुक्त नहीं हो पाते। कई बार ऐसा होता है कि हम किसी गलत समय में कर्ज ले लेते है। वह कर्ज स्थाई हो जाता है और कभी खत्म नहीं होता।
यहाँ मैं आपको सरल रूप से ये बताऊंगा कि कर्जा कब लेना चाहिये और कब नहीं। इसके अलावा यह भी बताऊंगा कि किस दिन कर्ज की पहली किश्त चुकाने से कर्ज जल्दी समाप्त होता है। जिस दिन अथवा जिस समय कर्ज लेने को मना किया गया है। उस दिन या उस समय तो कर्ज के लिए आवेदन भी नहीं करना चाहिए।
  • मंगलवार को कभी भी कर्जा नहीं लेना चाहिए। यह जरूर करें कि कर्जा चुकाने की पहली क़िस्त मंगलवार से देना शुरू करें। 
  • कभी भी वृद्धि नामक योग में कर्जा नहीं लेना चाहिए। क्योकि इस योग में कर्जा लेने से वह बढ़ता है और कभी समाप्त नहीं होता। 
  • कभी भी संक्रांति परिवर्तन अर्थात जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जा रहा हो , उस समय कर्जा न लें। 
  • कभी भी अमृतसिद्धि , द्विपुष्कर , त्रिपुष्कर योग में कर्जा नहीं लेना चाहिए। 
  • हस्त नामक नक्षत्र में कभी भी कर्जा नहीं लेना चाहिए। 
  • यदि लग्न की बात करें तो कभी भी स्थिर लग्न में कर्जा नहीं लेना चाहिए। चर लग्न (मेष , कर्क , तुला , मकर ) में लिया कर्जा चुक जाता है। इसलिए चर लग्न में ही कर्ज लेना चाहिए। 
  • कभी भी बुधवार के दिन किसी को पैसे उधार नहीं देने चाहिए। बुधवार को दिया पैसा कभी वापस नहीं आता। 
  • इसके अतिरिक्त आप स्वाति, पुनर्वसु , श्रवण , धनिष्ठा , शतभिषा , मृगशिरा , रेवती , चित्रा , अनुराधा , अश्विनी ,पुष्य , या विशाखा नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र में कर्ज ले सकते है। इनमे कर्ज लेने से जल्दी चुक जाता है।

भैरु जी के 108 नाम bheru ji ke 108 naam

भैरु जी के 108 नाम BHAIRAV JI KE 108 NAAM

कोर्ट केस हो या टोना टोटका, शत्रु नाश हो या और कोई संकट , भैरु जी के 108 नाम है सबका निवारण

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इस प्रचंड कलियुग में भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव बाबा की उपासना बहुत फलदायी है। इसके नियमित पाठ से आपके सभी दुखों-कष्टों को दूर हो जायेंगे। चाहे कोर्ट केस हो, शत्रु की पीडा हो, कोई पैसे लेकर दे नहीं रहा हो, जमीन पर कब्जा कर लिया हो, किसी ने टोना टोटका, तंत्र मंत्र किया हो, शनि, राहु, केतु की दशा चल रही हो, आदि सभी प्रकार की मुसीबतों से आपका छुटकारा भैरव देव के इन 108 नाम के प्रतिदिन जाप करने से हो जायेगा।
भगवान भैरवनाथ में सच्ची श्रद्धा रखकर प्रतिदिन पाठ कीजिये और अपने कष्टों से मुक्ति पाये।
पाठ करने की विधि 108 नाम के आखिरी में देखिये


भैरव जी के 108 नाम
श्रीबटुक-भैरव अष्टोत्तर-शत-नामावली
1. ऊँ ह्रीं भैरवाय नम:
2. ऊँ ह्रीं भूतनाथाय नम:
3. ऊँ ह्रीं भूतात्मने नम:
4. ऊँ ह्रीं भूतभावनाय नम:
5. ऊँ ह्रीं क्षेत्रज्ञाय नम:
6. ऊँ ह्रीं क्षेत्रपालाय नम:
7. ऊँ ह्रीं क्षेत्रदाय नम:
8. ऊँ ह्रीं क्षत्रियाय नम:
9. ऊँ ह्रीं विराजे नम:
10. ऊँ ह्रीं श्मशान-वासिने नम:
11. ऊँ ह्रीं मांसाशिने नम:
12. ऊँ ह्रीं खर्पराशिने नम:
13. ऊँ ह्रीं स्मारान्त-कृते नम:
14. ऊँ ह्रीं रक्तपाय नम:
15. ऊँ ह्रीं पानपाय नम:
16. ऊँ ह्रीं सिद्धाय नम:
17. ऊँ ह्रीं सिद्धिदाय नम:
18. ऊँ ह्रीं सिद्धि-सेविताय नम:
19. ऊँ ह्रीं कंकालाय नम:
20. ऊँ ह्रीं काल-शमनाय नम:
21. ऊँ ह्रीं कलाकाष्ठाय नम:
22. ऊँ ह्रीं ये नम:
23. ऊँ ह्रीं कवये नम:
24. ऊँ ह्रीं त्रि-नेत्राय नम:
25. ऊँ ह्रीं बहु-नेत्राय नम:
26. ऊँ ह्रीं पिंगल-लोचनाय नम:
27. ऊँ ह्रीं शूल-पाणाये नम:
28. ऊँ ह्रीं खड्ग-पाणाये नम:
29. ऊँ ह्रीं कपालिने नम:
30. ऊँ ह्रीं धूम्र-लोचनाय नम:
31. ऊँ ह्रीं अभीरवे नम:
32. ऊँ ह्रीं भैरवी-नाथाय नम:
33. ऊँ ह्रीं भूतपाय नम:
34. ऊँ ह्रीं योगिनी-पतये नम:
35. ऊँ ह्रीं धनदाय नम:
36. ऊँ ह्रीं धन-हारिणे नम:
37. ऊँ ह्रीं धनवते नम:
38. ऊँ ह्रीं प्रतिभानवते नम:
39. ऊँ ह्रीं नाग-हाराय नम:
40. ऊँ ह्रीं नाग-पाशाय नम:
41. ऊँ ह्रीं व्योम-केशाय नम:
42. ऊँ ह्रीं कपाल-भृते नम:
43. ऊँ ह्रीं कालाय नम:
44. ऊँ ह्रीं कपाल-मालिने नम:
45. ऊँ ह्रीं कमनीयाय नम:
46. ऊँ ह्रीं कला-निधये नम:
47. ऊँ ह्रीं त्रिलोचनाय नम:
48. ऊँ ह्रीं ज्वलन्नेत्राय नम:
49. ऊँ ह्रीं त्रि-शिखिने नम:
50. ऊँ ह्रीं त्रिलोकेशाय नम:
51. ऊँ ह्रीं त्रिनेत्र तनयाय नम:
52. ऊँ ह्रीं डिम्भाय नम:
53. ऊँ ह्रीं शान्ताय नम:
54. ऊँ ह्रीं शान्त-जन-प्रियाय नम:
55. ऊँ ह्रीं बटुकाय नम:
56. ऊँ ह्रीं बटु-वेषाय नम:
57. ऊँ ह्रीं खट्वांग-वर-धारकाय नम:
58. ऊँ ह्रीं भूताध्यक्ष नम:
59. ऊँ ह्रीं पशु-पतये नम:
60. ऊँ ह्रीं भिक्षुकाय नम:
61. ऊँ ह्रीं परिचारकाय नम:
62. ऊँ ह्रीं धूर्ताय नम:
63. ऊँ ह्रीं दिगम्बराय नम:
64. ऊँ ह्रीं शौरये नम:
65. ऊँ ह्रीं हरिणाय नम:
66. ऊँ ह्रीं पाण्डु-लोचनाय नम:
67. ऊँ ह्रीं प्रशान्ताय नम:
68. ऊँ ह्रीं शान्तिदाय नम:
69. ऊँ ह्रीं सिद्धाय नम:
70. ऊँ ह्रीं शंकर-प्रिय-बान्धवाय नम:
71. ऊँ ह्रीं अष्ट-मूर्तये नम:
72. ऊँ ह्रीं निधिशाय नम:
73. ऊँ ह्रीं ज्ञान-चक्षुषे नम:
74. ऊँ ह्रीं तपो-मयाय नम:
75. ऊँ ह्रीं अष्टाधाराय नम:
76. ऊँ ह्रीं षडाधाराय नम:
77. ऊँ ह्रीं सर्प-युक्ताय नम:
78. ऊँ ह्रीं शिखि-सखाय नम:
79. ऊँ ह्रीं भूधराय नम:
80. ऊँ ह्रीं भूधराधीशाय नम:
81. ऊँ ह्रीं भू-पतये नम:
82. ऊँ ह्रीं भू-धरात्मजाय नम:
83. ऊँ ह्रीं कंकाल-धारिणे नम:
84. ऊँ ह्रीं मुण्डिने नम:
85. ऊँ ह्रीं नाग-यज्ञोपवीत-वते नम:
86. ऊँ ह्रीं जृम्भणाय नम:
87. ऊँ ह्रीं मोहनाय नम:
88. ऊँ ह्रीं स्तम्भिने नम:
89. ऊँ ह्रीं मारणाय नम:
90. ऊँ ह्रीं क्षोभणाय नम:
91. ऊँ ह्रीं शुद्ध-नीलांज्जन-प्रख्याय नम:
92. ऊँ ह्रीं दैत्यघ्ने नम:
93. ऊँ ह्रीं मुण्ड- विभूषणाय नम:
94. ऊँ ह्रीं बलि-भुजे नम:
95. ऊँ ह्रीं बलि-भुंग-नाथाय नम:
96. ऊँ ह्रीं बालाय नम:
97. ऊँ ह्रीं बाल-पराक्रमाय नम:
98. ऊँ ह्रीं सर्वापत्-तारणाय नम:
99. ऊँ ह्रीं दुर्गाय नम:
100. ऊँ ह्रीं दुष्ट-भूत-निषेविताय नम:
101. ऊँ ह्रीं कामिने नम:
102. ऊँ ह्रीं कला-निधये नम:
103. ऊँ ह्रीं कान्ताय नम:
104. ऊँ ह्रीं कामिनी-वश-कृद्-वशिने नम:
105. ऊँ ह्रीं सर्वसिद्धिप्रदाय नम:
106. ऊँ ह्रीं वैद्याय नम:
107. ऊँ ह्रीं प्रभवे नम:
108. ऊँ ह्रीं विष्णवे नम:

पाठ करने की विधिः-

सुबह या शाम को जब भी आपको सुविधा हो, कोई एक समय निश्चित कर लीजिये। अपने घर के मंदिर में बैठकर या शिवजी या भैरूजी के मंदिर में जाकर लाल अथवा किसी भी आसन पर बैठकर पूर्व की तरफ या भगवान की मूर्ति की तरफ मुख करके सरसों या तिल्ली के तेल का दीपक जलाकर जिस कार्य के निमित्त पाठ कर रहे है। उसके लिये संकल्प लें।

 जैसे - ...............आपका गोत्र, गोत्र में उत्पन्न मैं .................आपका नाम, अपने अमुख कार्य को अतिशीघ्र पूर्ण करने के लिये अथवा जो भी आपका सोचा हुआ कार्य हो, वो बोले, बटुक भैरव जी के 108 नाम का पाठ कर रहा हॅूूं या रही हूं। भगवान भैरव मुझे इसमें अतिशीघ्र सफलता प्रदान करें। फिर आप पाठ शुरू कर दें।

विशेषः- 

पाठ के लिये कोई भी एक समय निश्चित कर लें यदि सुबह करते है तो कार्य पूर्ण होने तक सुबह ही करें । यदि शाम को करते है तो कार्य पूर्ण होने तक शाम को ही पाठ करें। शराब, मांस व दूसरे की स्त्री से दूर रहे।
इन 108 नाम का प्रिंट निकाल कर लेमिनेशन करवा लें। और प्रतिदिन पाठ करके अपनी जेब में रख कर ही घर से निकले। फिर देखिये चमत्कार।

Wednesday, April 29, 2020

क्या आप अपना काम मुफ्त में करवाना चाहते हो WANT YOUR WORK TO BE DONE FOR FREE

क्या आप अपना काम मुफ्त में करवाना चाहते हो WANT YOUR WORK TO BE DONE FOR FREE

इस लेख के माध्यम से किसी की भी भावना विशवास को ठेस पहुंचना मेरा उद्देश्य नहीं है , बल्कि उन्हें जागृत करने का है जिन्हे इन बातों का ज्ञान नहीं है |

यह विशेष लेख है उन सभी बंधुओं के लिए जो हम जैसे ज्योतिष तांत्रिकों से सम्पर्क साधते है | सर्व प्रथम में यह कहना चाहता हूँ की सारी उँगलियाँ एक बराबर नहीं है, तो  ठीक उसी प्रकार ज्योतिष, तांत्रिक, और हमारे जजमान, पाठक गण भी सब एक जैसे नहीं है |

यह लेख उन सभी व्यक्तियों के लिए है जो ज्योतिष, पंडित, तांत्रिकों द्वारा ठगे गए या उनका शिकार हुए, पर जरूरी नहीं की सभी ज्योतिष आचर्य पंडित विद्वान तांत्रिक भी ऐसे ही हों |
काफी हद तक ऐसी परिस्थिति के लिए जजमान स्वयं जिम्मेदार है, इसके कई कारण है |

मुफ्तखोर फ्री में करवाना चाहते है कार्य अपना
यह वो वर्ग है जो फ़ोन पर या कार्यालय में आकर अपनी गरीबी मजबूरी तंगी मुसीबत में हैं कहकर, यह चाहते है की उनका कार्य फ्री में हो जाये, या कार्य होने के बाद दे देंगे दक्षिणा., या फिर यह कहेंगे पहले भी हमने कई जगह दिखाया पूछा बताया और उन व्यक्तियों ने मोटी रकम ऐंठ ली या काम नहीं हुआ या बना, तो अब हम काम होने पर ही देंगे |
वैसे तो मेरा अनुभव में यह लोग 99 प्रतिशत झूठ बोलते हैं और मुफ्त खोरी इनकी आदत है की फ्री में कोई काम कर दे.

मेरा प्रश्न इन जैसे जजमान व्यक्तियों से है
तुम सभी भी कोई न कोई कार्य व्यवसाय इत्यादि अपने जीवनयापन के लिए करते होंगे और तुमसे भी कोई कहे की यह कार्य मेरा फ्री में कर दो या कार्य होने के बाद ले लेना, तो तुम्हारा मुंह केसा बनेगा |
दूसरा तुम या तुम्हारे परिजन कभी न कभी प्राइवेट हस्पताल या दवाई की दुकान पर अवश्य गए होंगे, कभी हस्पताल वालों से या दवाई विक्रेता से भी यह बोलना था की पूर्ण स्वस्थ होने पर ही आपको पैसा देंगे |

मेरा प्रश्न इन जैसी सोच वाले व्यक्तियों से ही है

तुम्हे क्या लगता है की जो पंडित, विद्वान आचार्य तांत्रिक बस केवल अपने नाम के आगे  लिख दिया की वो पंडित एस्ट्रोलॉजर तांत्रिक है और काम हो गया,
जी हाँ आज ऐसे बहुत से हैं, ठीक उसी तरह जो नकली डिग्री  लेकर हर व्यवसाय कार्य में है, इसके लिए आपको यह लेख पूरा पढ़ना चाहिए
पर ऐसे भी व्यक्ति है जो तुम्हारी ही तरह ईमानदार भी है, जिन्होंने अपना जीवन ऐसी विद्याओं, ज्ञान सिद्धि को पाने के लिए खपा दिया,
मेरा उन सभी लोगों को चैलेंज है की एक बार आप भी इस तरह की सिद्धि ज्ञान  प्राप्त  करे, तब आपको पता चलेगा की तलवार की धार पर चलना क्या होता है |
अब मुझे एक और बात बताइये की आपके घर में चाय बंनाने के लिए चायपत्ती दूध चीनी इत्यादि सामग्री नहीं है, तो क्या बिना इन  चीजों के चाय बन जाएगी और क्या यह सामान मुफ्त में कहीं से आपके घर आ जायेगा, ठीक इसी प्रकार से बिना सामग्री के फिर पंडित ज्योतिष आचार्य तांत्रिक कहाँ से आपका कार्य करेगा और क्यों करेगा. वो तुम्हारे कार्य के लिए अपने  जेब से क्यों पैसा लगाए,

पाठक गण एक और विशेष बात यह है की आपकी बनियागिरी नहीं जाती है
तुम लोगों को मोल भाव की इतनी आदत पड़ गयी है की हर प्रकार से मगरमच्छ के आंसूं बहाकर मोल भाव करते हो, पाना चाहते हो अपने पति पत्नी प्रेमी प्रेमिका बॉय फ्रैंड गर्ल फ्रेंड को पर आपकी औकात सामने आ जाती जब आपकी जेब खाली होती है, मैं तो  कहता हूँ अगर आपकी प्रियतमा प्रेसी छोड़ कर चली गयी है तो उसने सही निर्णय लिया है, क्यूंकि तुम इसी लायक थे |



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मेरे अनुभव आपके साथ साझा कर रहा हूँ कुछ सावधानियां बरते

सर्व प्रथम जितनी भी जानकारी गूगल या इंटरनेट यू ट्यूब  से लिए हैं देखे है तो यह गारंटी है की यह 99 प्रतिशत काम नहीं करेंगे
अगर आप बेरोजगार है तो आप भी यह चूतिया बनाने के लिए विडयो बनाकर यूट्यूब पर डालें और एडवर्टीजमेंट से कमाएं |
कोई भी सही पंडित विद्वान तांत्रिक अगर कुछ नेट पर देगा तो वह अधूरा ही डालेगा, क्यूंकि यह उसकी रोजी रोटी है, अगर वो ऐसा करता है तो उसका परिवार का भरण पोषण कैसे होगा, या उसको वो यश और सम्मान भी कैसे मिलेगा. क्यूंकि नेट से देखकर पढ़कर तो सभी स्वयं ही जगन्नाथ बन जायेंगे |
आजकल प्रचलन है हर कोई धन व प्रभाव के बल पर अपने आप का हर तरह के माध्यम से प्रचार करके यह स्थापित कर लेता है की वो एक ज्योतिष आचार्य वास्तु पंडित तांत्रिक इत्यादि है, जब की उनका धर्म जाती वर्ण से वो लोग कुछ और ही होते है |
मेरा यह मानना है की कुछ विशेष विद्याएं उसी वर्ण तक सिमित रहती हैं, जैसे क्षत्रिय वर्ण के लोगों में जो जेनेटिक DNA है वो अन्य वर्ण में नहीं है, ठीक उसी प्रकार जो बनिया धुल मिटटी को सोने के भाव बेच देता है, क्या कोई और वर्ण का व्यक्ति कर सकता है, 
आजकल तो बड़े बड़े IAS बाबुओं की बीवियों को कोई कार्य नहीं होता है तो धन और प्रभाव के बल पर स्वयं को हस्त रेखा विशेषज्ञ एस्ट्रोलॉजर टेरोट कार्ड रीडर की तरह स्थापित कर रही है,
कुछ विद्वानों ने ने तो TV पर दुकान खोली है की कोई फोन कॉल प्रोग्राम के समय आता है और वो सेकंड में ही उसका निदान बताते है, और साथ ही यह कहते है की इतने घंटो में या इतने दिनों में वो यह विद्या का कोर्स  उनसे सिख लें,
ऐसे ही लोग बाजार में है जो कुछ भी तुम्हे बेचते है और तुम जब इनकी चिकनी चुपड़ी बातों में आ जाते हो ठगे जाते हो |
यह विद्यां वर्षों की कड़ी मेहनत साधनाओं के परिणाम से ही आती है अन्यथा नहीं |

एक और विशेष वर्ग है जो यह दावा करता है की चंद मिंटो में  या १ घंटे में या 24 घंटे में वो असंभव  से असम्भव कार्य करने की शमता रखते है, और यह लोग 100 परसेंट गारंटी से कहते है की काम हो जायेगा और इनके किये हुए को कोई काट नहीं सकता इनके पास केवल एक इल्म होता है गुंडा गर्दी का, मेरा उन सभी बंगाली साई बाबा वाले चमत्कारी सूफी बाबाओं को चैलेंज है की वो भारत का प्रधानमंत्री बन जाये और भारत से दुःख दरिद्रता दूर कर दें |
यह व्यक्ति 100 प्रतिशत क्रिमिनल होते है और इनका एक गैंग है जो पुरे भारत में सक्रिय है, इसीलिए इनका कुछ बिगड़ता नहीं है |
अतः ऐसे सूफी बंगाली साई बाबा वालों से सावधान रहें |

अब में आपको बताता हूँ की आपका कार्य क्यों नहीं होता है |

आप अगर हिन्दू हैं तो सबसे पहले समस्या यह आती है की आप हर जगह अपना माथा पटकते है या नाक रगड़ते है, सबसे बड़ी यही समस्या है की आप हर तरह से किसी भी तरह से अपना कार्य करवाना चाहते हो,
मजार पीर मस्जिद मौलाना सैयद कब्रिस्तान इत्यादि पर माथा पटकना बंद कीजिये, साई बाबा, संतोषी माता इत्यादि को भो दूर रखिये, संतोषी माता  तो फिल्म की देन है ऐसी कोई देवी किसी ग्रंथ में नहीं है |

साई बाबा तो कटवों का और कुछ बिजनस वालों का अरबों खरबों का धंदा है |

साई की असलियत के लिए इस लिंक पर क्लिक कर पढ़ें |

अब बताता हुं समस्या कहाँ शुरू होती है

सभी हिन्दू किसी न किसी ऋषि मुनि के वंशी है जिन्हे गोत्र भी कहा जाता है
अगर तुम्हे तुम्हारा गोत्र नहीं मालूम है, तो तुमसे ज्यादा दुर्भाग्यशाली व्यक्ति पृथ्वी पर नहीं है 
हिन्दू मूर्ति पूजा से लेकर सात्विकता में विश्वास रखते है
जबकि असुर तामसिक परवर्ती के होते हैं और हर वो कार्य करते हैं जो हिन्दुओं से उल्टा होता है
जैसे की उल्टा लिखना पढ़ना, मूंछे न रखना, एक ही थाली में पुरे परिवार का खाना खाना, कब्रों की पूजा करना, और यह मानना की एक दिन इस कब्र में दफन व्यक्ति जिन्दा हो जायेगा, गाय का मांस खाना इत्यादि |
अब यह बातें उन सभी बातों के विपरीत हैं जो आप हिन्दुओं के पितृ ऋषि मुनि  दादा पड़ दादा आदि मानते थे और करते थे |
यह एक कारन है जो आपके जीवन आपके घर में सब उल्टा उथल पुथल हो जाता है, और इन्ही कारण से घर के देवता पितृ गण रुष्ट होकर आपको दंडित करते हैं
दूसरा तुम्हे अपने कुलदेवता या कुल देवी का ज्ञान नहीं होना
हर हिन्दू  परिवार की अपनी कुल देवी या देवता होते है, उपरोक्त आचरण से वह भी रुष्ट हो जाते है और दंडित करते हैं |
एक और समस्या यह है की आप की कन्याएं असुरों से प्रेम या विवाह या योन संबंध बना लेती हैं, उससे उस कन्या व परिवार पर पितृ प्रकोप अवश्य ही होता है, इसलिए बेहतर यह है की आप की कन्या  महिला को यह बातें समझएं व अच्छे संस्कार दें, जिससे वो आगे अच्छी संतान उत्पन्न करे |

अब जो पहले गलती हो गयी है तो उसे भूल जाएँ और नई शुरुआत करें |

सर्वपर्थम सवेरे सूर्य को प्रणाम कर अर्घ्य अवश्य दें |
माथे पर तिलक अवश्य लगाएं यह तुम्हारी शक्ति व सौभ्ग्य्ता को बढ़ता है व दूसरों की क्षीण करता है |
गायत्री मंत्र का 11 बार उच्चारण करें नित्य प्रातः 
प्रातः उठते के साथ अपने दोनों हथेलियों हाथों  में लक्ष्मी  सरस्वती ब्रह्मा विष्णु का वास समझ कर प्रणाम करें |
पितृ पूजा को छोड़ कर समस्त पूजा में उत्तर पूर्व या पूर्व की तरह मुख करें |
हिन्दुओं की किसी भी पूजा पद्धति में सर नहीं ढकते हैं, इसलिए यह कभी भी न ढकें, यह असुरों की निशानी है, क्यूंकि वो पातालवासी हैं | हम हिन्दुओं को अपने सर इसलिए नंगा रखते है की ब्रम्हांड की सूक्षम तरंगें हमारे सर से होते हुए पैरों की तरफ जाएँ , जबकि असुर सर ढकते हैं क्यूंकि वो देवी शक्तियों को नहीं मानते हैं | अगर मंदिर में पंडित जी कहें की सर ढक लो तो उनसे यह अवश्य पूछिए की कौन से ग्रंथ में यह खा गया है की सर ढकना चाहिए |
कब्रों मजार मस्जिद या कोई भी मृत व्यक्ति के स्थल पर माथा टेकना पटकना ठीक वैसे  ही है जैसे आप शमसान में पटक रहे हो माथा | यह वोट बैंक की तरह है, इससे आसुरी शक्तियों को बल मिलता है आपका, और वो आपको अपनी और खींचती हैं, और आप की परेशानी बढ़ना निश्चित है जिसका आभास हो ही जाता है |
कबूतरों को दाना बिलकुल न डालें, यह असुरों में "जिन" का प्रतिनिधित्व करते हैं और हुम् का स्वर में उच्चारण करते हैं, यहाँ तक की इन्हे असुर भी दाना नहीं डालते हैं | कौआ कुत्ता व गाय को अवश्य रोटी डालें व पानी पिलायें |
केवल शुक्रवार ही सबसे बेहतर दिन है दाढ़ी मुंछ व बाल कटवाने के लिए इससे आयु की वृद्धि होती है | ब्राह्मण अगर शिखा रखते है तो आयु बुद्धि व सम्मान बढ़ता है |
एकादशी को चावल भूले से भी न खाएं |
अमावस्या को पितरो को प्रणाम कर तर्पण अवश्य करें, इससे दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की होती है और पितृ रुष्ट नहीं होते हैं, बल्कि तृप्त रहते हैं |
पूर्णिमा पे सभी चंद्र देव को नमस्कार करें व महिलाएं चंद्र को जल अवश्य दें इससे सुख शांति व सौभाग्य बना रहता है |
हर घर में शंख ध्वनि होनी चाहिए व प्रातः या संध्या में पूजा आरती कीर्तन धुप बत्ती ज्योत लगनी चाहिये इससे घर में सुख शांति व लक्ष्मी का वास बना रहता है | 

अगर हिन्दू हैं तो हिन्दू पंडित, ज्योतिष आचार्य, हिन्दू तांत्रिक के पास ही जाये क्यूंकि वह ही सही पद्धति से आपका कार्य करेगा, जो की मुल्ला मौलवी सय्यद नहीं कर सकता क्यूंकि वह असुर है |  वह गाय का मिट मांस खाने वाला आपका कार्य नहीं कर सकता और फिर भी आप कोई भी कार्य करवाते हैं तो आपको अपने पितृ व कुल देवता के प्रकोप का दंड भोगना ही पड़ेगा |

इस संसार में पितरों से बढ़कर और कोई नहीं है अधिक जानकारी के लिए पितृ स्तोत्र पितृ सूक्त का अर्थ समझें लिंक दिया हुआ है |
अगर पितृ व कुल देवता आपके पक्ष में हैं तो संसार की कोई भी शक्ति तांत्रिक अभिचार आपका कुछ नहीं बिगड़ सकता है यह मेरा दावा है |
उचित गुरु धारण करें | गुरुओं का सम्मान करे व उनकी सेवा में तत्पर रहें, तन मन धन से गुरु की सेवा करें |

आखिर में नम्र निवेदन उन सभी पंडित विद्वान ज्योतिष  आचार्य तांत्रिक लोगों से है की पहले फ़ीस लें मुफ्तखोरी की आदत  केजरीवाल की तरह न डालें |     

साई का इतिहास HISTORY OF SAI

साई का इतिहास HISTORY OF SAI


रानी को नहीं पकड़ पा रहे थे अंग्रेज, साई के अब्बू बहरुद्दीन ने की थी रानी से गद्दारी
*साई का इतिहास-* अवश्य पढ़ें

बीरगति को प्राप्त हुई रानी लक्ष्मी बाई को मरवाने वाले गद्दारो के बारे मे इतिहास लोगों मेंअब तक यही धारणा हे कि झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अँगरेजों से लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुई थी और यह बात सत्य भी हे परंतु कितने लोगों को पता है कि इस विरांगन को पकड़ना अँगरेजों के लिए दुष्कर ही नहीं बल्कि असंभव था ।

सालों से अँगरेजों के नाकमें दम करने वाली रानी को पकड़ने के लिए जब अंग्रेजों को कुछ उपाय नहीं सुझा तब उन्होंने पुराने तरीके आजमाए । यानी कि किसी गद्दार सैनिक की खोज जो रानी की सेना में हो और रानी के बारे में काफी कुछ जानता हो गद्दारों का इतिहास देखें तो सिर्फ दो नाम ऐसे हें जिन्होंने भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया था पहला गद्दार जयचंद था जो हिन्दू साम्राज्य के विनाश का कारण बना । पृथ्वी राज चौहान अंतिम हिन्दू राजा थे जिनके बादआठ सौ वर्षों तक मुस्लिमों ने शासन किया दूसरा गद्दार मीर जाफर हुआ जो बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था। वह महत्वाकांक्षी एवं लालची था भारत में अंग्रेजी राज्य की नींव बंगाल से ही पड़ी थी जब प्लासी की लड़ाई में अँगरेजों(रॉबर्टक्लाइव) ने नवाब को हराया था और उसी लड़ाई में गद्दार मीर जाफर अँगरेजों से मिल गया था।
बाद में यानी 1757 में अँगरेजों ने उसे बंगाल का नवाब बनाया

अब आते हे तीसरे गद्दार पर जो रानी लक्ष्मीबाई की मौत का कारण बना वह था बहरूद्दीन यानी कि चाँद मियाँ ( साँईंबाबा) का बाप बहरूद्दीन एक अफगानी पिंडारी मुसलमान था रानी लक्ष्मीबाई की सेना में लगभग 500 पिंडारी सैनिक थे जिसमें साँईं के पिता का स्थान रानी के निकटतम एवं विश्वस्त सैनिको में था अब अँगरेजों ने बहरूद्दीन को लालच देकर रानी से गद्दारी करने को तैयार कर लिया इसी के निशान देही पर अँगरेजों ने रानी को घेरा रानी अपने इकलौते बेटे को पीठ पर बाँधे भागती रही अंग्रेज पीछा करते रहे रानी हाथ नहीं लगी अब रानी का पीछा करने का जिम्मा पाँच पिंडारियों को दिया गया जिसमें एक शिर्डी वाले चाँद मिया उर्फ़ साईँ का पिता भी था उसे रानी के छिपने के स्थानों का पता था अन्ततः रानी को घेर लिया गया।

रानी रणचण्डी की तरह माँ भारती की शान को ना झुकने का प्रण लिए अपनी तलवार से कत्लेआम मचाती रही अंग्रेज सेनापति हैरान था कि कैसे एक अकेली महिला उसके सैनिकों को काट रही है ।रानी गिरती फिर उठती फिर गिरती फिर उठकर लड़ती कईयों की गर्दनें उड़ा देने के पश्चात अंत में वो गिरी तलवार उसके हाथों से दूर जा गिरा हार फिर भी ना मानी वो अपनी तलवार लेने के लिए अंतिम बार उठी , निहत्था पाकर पिंडारी सैनिकों ने रानी पर जोरदार वार किया , रानी फिर कभी नहीं उठी। रानी वीर गति को प्राप्त कर चुकी थी भारत की इस बेटी ने अपनी अंतिम साँस तक अपनी मातृभूमि की , अपने देश की रक्षा की इस महान विरांगना के चरणों में मैं शीष नवाता हूँ


यह रहा साईं बाबा का कच्चा चिट्ठा
साईं का जन्म 1838 में हुआ था, पर कैसे हुआ और उसके बाद की पूरी कथा बहुत ही रोचक है, साईं के पिता का असली नाम था बहरुद्दीन, जो कि अफगानिस्तान का एक पिंडारी था, वैसे इस पर एक फिल्म भी आई थी जिसमे पिंडारियो को देशभक्त बताया गया है, ठीक वैसे ही जैसे गाँधी ने मोपला और नो आखली में हिन्दुओ के हत्यारों को स्वतंत्रता सेनानी कहा था.औरंगजेब की मौत के बाद मुग़ल साम्राज्य ख़तम सा हो गया था केवल दिल्ली उनके अधीन थी, मराठा के वीर सपूतो ने एक तरह से हिन्दू साम्राज्य की नीव रख ही दी थी, ऐसे समय में मराठाओ को बदनाम करके उनके इलाको में लूटपाट करने का काम ये पिंडारी करते थे, इनका एक ही काम था लूटपाट करके जो औरत मिलती उसका बलात्कार करना, आज एक का बलात्कार कल दूसरी का, इस तरह से ये मराठाओ को तंग किया करते थे, पर समय के साथ साथ देश में अंग्रेज आये और उन्होंने इन पिंडारियो को मार मार कर ख़तम करना शुरू किया.
साईं का बाप जो एक पिंडारी ही था, उसका मुख्यकाम था अफगानिस्तान से भारत के राज्यों में लूटपाट करना, एक बार लूटपाट करते करते वह महाराष्ट्र के अहमदनगर पहुचा, जहा वह एक वेश्या के घर रुक गया, उम्र भी जवाब दे रही थी, सो वो उसी के पास रहने लग गया, कुछ समय बाद उस वेश्या से उसे एक लड़का और एक लड़की पैदा हुआ, लड़के का नाम उसने चाँद मियां रखा और उसे लेकर लूटपाट करना सिखाने के लिए उसे अफगानिस्तान ले गया.उस समय अंग्रेज पिंडारियो की ज़बरदस्त धर पकड़ कर रहे थे, इसलिए बहरुद्दीन भेष बदल कर लूटपाट करता था. उसने अपने सन्देश वाहक के लिए चाँद मिया को रख लिया, चाँद मिया आज कल के उन मुसलमान भिखारियों की तरह था जो चादर फैला कर भीख मांगते थे, जिन्हें अँगरेज़ Blanket Begger कहते थे, चाँद मिया का काम था लूट के लिए सही वक़्त देखना और सन्देश अपने बाप को देना, वह उस सन्देश को लिख कर उसे चादर के नीचे सिल कर हैदराबाद से अफगानिस्तान तक ले जाता था, पर एक दिन ये चाँद मियां अग्रेजो के हत्थे लग गया और उसे पकडवाने में झाँसी के लोगो ने अंग्रेजो की मदद की जो अपने इलाके में हो रही लूटपाट से तंग थे.

उसी समय देश में पहली आजादी की क्रांति हुई और पूरा देश क्रांति से गूंज उठा, अंग्रेजो के लिए विकट समय था और इसके लिए उन्हें खूंखार लोगो की जरुरत थी, बहर्दुद्दीन तो था ही धन का लालची, सो उसने अंग्रेजो से हाथ मिला लिया और झाँसी चला गया. उसने लोगो से घुलमिल कर झाँसी के किले में प्रवेश किया और समय आने पर पीछे से दरवाजा खोल कर रानी लक्ष्मी बाई को हराने में अहम् भूमिका अदा की, यही चाँद मिया आठ साल बाद जेल से छुटकर कुछ दिन बाद शिर्डी पंहुचा और वहके सुलेमानी लोगो से मिला जिनका असली काम था गैर-मुसलमानों के बीच रह कर चुपचाप इस्लाम को बढ़ाना.

चाँद मियां ने वही से अलतकिया का ज्ञान लिया और हिन्दुओ को फ़साने के लिए साईं नाम रख कर शिर्डी में आसन जमा कर बैठ गया, मस्जिद को जानबूझ कर एक हिन्दू नाम दिया और उसके वहा ठहराने का पूरा प्रबंध सुलेमानी मुसलमानों ने किया, एक षड्यंत्र के तहत साईं को भगवान का रूप दिखाया गया और पीछे से ही हिन्दू मुस्लिम एकता की बाते करके स्वाभिमानी मराठाओ को मुर्दा बनाने के लिए उन्हें उनके ही असली दुश्मनों से एकता निभाने का पाठ पढाया गया. पर पीछे ही पीछे साईं काअसली मकसद था लोगो में इस्लाम को बढ़ाना, इसका एक उदाहरण साईं सत्चरित्र में है कि साईं के पास एक पुलिस वाला आता है जिसे साईं मार मार भगाने की बात कहता है, अब असल में हुआ ये की एक पंडित जी ने अपने पुत्र को शिक्षा दिलवाने के लिए साईं को सोंप दिया, पर साईं ने उसका खतना कर दिया.

जब पंडितजी को पता चला तो उन्होंने कोतवाली में रिपोर्ट कर दी, साईं को पकड़ने के लिए एक पुलिस वाला भी आया जिसे साईं ने मार कर भगाने की बात कही थी, ये तभी की फोटो है जब पुलिस वाला साईं को पकड़ने गया था और साईं बुरका पहन कर भागा था.मेरी साई बाबा से कोई निजी दुस्मनी नही है, परतुं हिन्दू धर्म को नाश होरहा है, इसलिए मै कुछ सवाल करना चाहता हूँ. हिन्दू धर्म एक सनातन धर्म है, लेकिन आज कल लोग इस बात से परिचित नही है क्या? जब भारत मे अंग्रेजी सरकार अत्याचार और सबको मौत के घाट उतार रहे थे तब साई बाबा ने कौन से ब्रिटिश अंग्रेजो के साथ आंदोलन किया ? जिदंगी भीख मांगने मे कट गई? मस्जिदमे रह कर कुरान पढना जरूरी था. बकरे हलाल करना क्या जरूरी था ? सब पाखंड है, लोगो को मुर्ख बना कर पैसा कमाने का जरिया है।

ऐसा कौन सा दुख है कि उसे भगवान दूर नही कर सकते है.श्रीमद भगवत गीता मे लिखा है कि श्मशान और समाधि की पुजा करने वाले मनुष्य राक्षस योनी को प्राप्त होते हैं.साई जैसे पाखंडी की आज इतनी ज्यादा सेल्स मार्केटिंग हो गयी है कि हमारे हिन्दू भाई बहिन आज अपने मूल धर्म से अलग होकर साई मुल्ले कि पूजा करने लगे है। आज लगभग हर मंदिर में इस जिहादी ने कब्जा कर लिया है।हनुमान जी ने हमेशा सीता राम कहा और आज के मूर्ख हिन्दू हुनमान जी का अपमान करते हुए सीता राम कि जगह साई राम कहने लग गए । बड़ी शर्म कि बात है। आज जिसकी मार्केटिंग ज्यादा उसी कि पूजा हो रही है। इसी लिए कृष्ण भगवान ने कहा था कि कलयुग में इंसान पथ और धर्म दोनों से भ्रष्ट हो जाएगा।100 मे से 99 को नहीं पता साई कौन था, इसने कौन सी किताब लिखी, क्या उपदेश दिये पर फिर भी भगवान बनाकर बैठे है !

साई के माँ बाप का सही सही पता नहीं ,पर मूर्खो को ये पता है कि ये किस किस के अवतार है ! अंग्रेज़ो के जमाने मे मूर्खो के साई भगवान पैदा होकर मर गए पर किसी भी एक महामारी भुखमरी मे मदद नहीं की। इनके रहते भारत गुलाम बना रहा पर इन महाशय को कोई खबर नहीं रही। शिर्डी से कभी बाहर नहीं निकले पर पूरे देश मे अचानक इनकी मौत के 90-100 साल बाद इनके मंदिर कुकुरमुत्ते की तरह बनने लगे।चालीसा हनुमान जी की हुआ करती थी, आज साई की हो गयी ! राम सीता के हुआ करते थे,आज साई ही राम हो गए ! श्याम राधा के थे, आज वो भी साई बना दिये गए ! बृहस्पति दिन विष्णु भगवान का होता था, आज साई का मनाया जाने लगा!भगवान की मूर्ति मंदिरो में छोटी हो गयी और साई विशाल मूर्ति मे हो गए ! प्राचीन हनुमान मंदिर दान को तरस गए और साई मंदिरो के तहखाने तक भर गए!मूर्ख हिन्दुओ अगर दुनिया मे सच मे कलयुग के बाद भगवान ने इंसाफ किया तो याद रखना मुह छुपाने के लिए और अपनी मूर्ख बुद्धि पर तरस खाने के लिए कही शरण भी न मिलेगी ! इसलिए भागवानो की तुलना मुल्ले साई से करके पाप मत करो। इस लेख को पढ़ने के बाद भी न समझ मे आए तो अपना खतना करवा के मुसलमान बन जाओ !क्या करोगे शेयर करके...⁉

साईं की मृत्यु के बाद --**दशकों तक सांई का कहीं कोई नाम लेवा नहीं था। हो सकता है कि मात्र थोड़ी दूर तक के लोग जानते होंगे। पर अब कुछ तीस या चालीस वर्षों में उनकी उपस्थिति आम हो गई है और लोगों की आस्था का पारा अचानक से उबाल करने लगा है।अच्छा मैं एक बात पूछता हूँ... आप किसी भी साठ या सत्तर साल के व्यक्ति से पूछ लें कि वे साईं बाबा का नाम पहली बार अपने जीवन में कब सुना था?.. निश्चित ही वो कहेगा कि वो पहले नहीं सुना था... कोई नब्बे या कोई अस्सीे के दशक में हीं सुना हुआ कहेगा।इत्ती जल्दी ये इत्ता बड़ा भगवान कैसे बन गया ?एक बात और... हिन्दुओं के भगवान बनाने के पहले इनके चेले चपाटों ने इन्हें कुछ इस प्रकार से पेश किया था जैसे कि सभी धर्मों के यही एक मात्र नियंता हों। हिन्दू , मुस्लिम, सिक्ख ईसाई...सभी के इष्ट यही थे।और इन्हें पेश किया कौन?..
जराये भी समझिए...सत्तर - अस्सी के दशक में जो फिल्में बनती थी या गाने होते थे उसमें या तो हिन्दूओं के भगवान या फिर मुस्लिमों के अल्लाह का जिक्र होता था। भगवान वाला सीन मुस्लिमों को स्वीकार नहीं थाऔर अल्लाह वाला हिन्दूओं को। पर नायक को अलौकिक शक्ति देने के लिए इनका सीन डालना भी जरूरी ही था।..किया क्या जाय?... तो....यह किसी निर्देशक की सोच रही होगी कि.. किसी ऐसे व्यक्ति को अलौकिक शक्ति से लैस करके दिखाया जाय ताकि किसी भी धर्म के लोगो का विरोध ना झेलनी पड़े और वे अपनी फिल्म को सफल बना लें। ऐसा ही कुछ उनके दिमाग में आया होगा... और अचानक से उनके दिमाग की बत्ती जल गई होगी जब किसी ने साईं का नाम सुझाया होगा। Eurekkka....Eurekkka कहते हुए वे उछल पड़े होंगे। इस नये भगवान का सफल परीक्षण उस ऐतिहासिक दिन को किया गया जो साईं भक्तों के लिए एक पवित्र दिन से कम नहीं है। 7 जनवरी 1977 को रूपहले पर्दे पर एक फिल्म आई ""अमर अकबर एंथोनी""इस फिल्म में एक गाना बजा "शिर्डी वाले साई बाबा आया हूँ तेरे दर पे सवाली"?? बस क्या था.. संयोगवश फिल्म भी हिट... बाबा भी हिट....।

साई बाबा के चेले चपाटों के पैर अब तो जमीन पर पड़ ही नहीं रहे थे साई की स्वीकार्यता को देखकर। उससे पहले तक ना कहीं तस्वीर, ना कहीं मुर्ति और नाही कोई चर्चा।और उसके बाद तो हर जगह साई ही साई। फोटोशॉप करके आग से भी निकाले गए साई, जो कई भक्तों के घरों की शोभा बढ़ा रहे हैं। धीरे धीरे, चुपके चुपके हिन्दुओं के मंदिरों में मुर्तियां बैठने लगी... इनके अपने मंदिर भी बनने लगे। एक और मजे की बात कि किसी अन्य धर्मों के लोगों ने इन्हें स्वीकार किया ही नहीं सिवाय हिन्दुओं के। अब देखिए, हमारा सनातनी हिन्दू समाज अब धीरे धीरे उस मोड़ पर जा रहा है जहाँ से दो धड़े साफ साफ दिखेंगे... एक विधर्मी साईं को मानने वाले हिन्दू और दूसरे अपने सनातनी मार्ग पर चलने वाले हिन्दू। इनमें अब दूरियां बढ़ती जाएंगी और आने वाले समय में इस समाज में दो फाड़ होगा।
एक "सनातनी हिन्दू" और दूसरा "साईं पूजक हिन्दू"। सनातनी वाले साईं को मान्यता नहीं देंगे और साईं वाले साईं भक्ति नहीं छोड़ेंगे। बात और आगे जाएगी... ये दोनो एक दूसरे के मंदिरों में जाना बंद कर देंगे.... यदि नहीं तो फिर सनातनी उन्हें अपने मंदिरों में आने से रोकेंगे। कोई हार मानने को तैयार नहीं होगा। और यही वो समय होगा जब हिन्दू समाज दो खेमे में बँट जायेगा। बिल्कुल उसी तरह जैसे...मुस्लिम बंटकर शिया - सुन्नी हुए....ईसाई बंटकर कैथोलिक प्रोटेस्टेन्ट हुए.....जैन बंटे तो श्वेतांबर - दिगम्बर हुए.....बौद्ध बंटे तो हीनयान - महायान हुए।
हो सकता है ये सुनकर आपको अचम्भा लगे पर हिन्दू धर्म में पड़ रही यही दरार ही विभाजन का कारण बनेगी। "मेरा यह मानना है कि साईं बाबा को एक षडयंत्र की तरह हमारे बीच रोपा गया है और मैं प्राण प्रण से इसका विरोध करता रहूँगा।"शिरडी में सांई की कब्र यानि मजार पर मन्दिर बना दिया।"ना मैं पूर्वाग्रही हूँ.. ना ही दुराग्रही हूँ....और ना ही किसी से चिढ़ है। एक सनातनी हिन्दू होने के नाते अपने धर्म को दूषित और विभाजित होते नहीं देख सकता हूँ।""इसके गुनाहगार वे लोग भी होंगे जो सिर्फ़ तमाशा देख रहे हैं और आवाज नहीं उठा रहे हैं।
सनातन धर्म की जय.......!
जय श्री राम जय श्री कृष्ण....!
जय #आर्यवर्त.....!

Tuesday, April 28, 2020

JYOTISH UPAY ADHURE REH JAYEN TO KYA KREN ज्योतिष के उपाय अधूरे रह जाये तो क्या करें

JYOTISH UPAY ADHURE REH JAYEN TO KYA KREN ज्योतिष के उपाय अधूरे रह जाये तो क्या करें




लम्बे समय तक चलने वाले उपायों में सभी को यह परेशानी आती है कि घर से कभी बाहर जाना पड़े या शहर से बाहर जाना पड़े तो ऐसी स्थिति में उपाय कैसे किया जायेगा। जो व्यक्ति अपना व्यापार करता है , उसे व्यापार के कारण शहर से बाहर जाना पड़ता है। तब वो यदि उपाय या पूजा नहीं करेगा तो क्या उसे खंडित माना जायेगा ? उपाय के खंडित होने का डर किसी को भी परेशान कर सकता है।

इस बारे में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखें -

  • अगर किसी विशेष दिन तथा उस दिन के देवता के लिए उपाय किये जा रहे है तो घर से बाहर जाने की स्थिति में वहां पर उस देवता के किसी भी मंदिर में जाकर श्रद्धा पूर्वक नमन करना चाहिए तथा माफ़ी मांगनी चाहिए।

  •  यदि सम्भव हो तो नहा धोकर मंदिर में मंत्र जाप तो कर ही लेने चाहिए। यदि सुबह -शाम को पूजा के समय यात्रा पर होतो मानसिक रुप से अपने इष्ट देव का ध्यान कर लेना चाहिए। 

  • यदि किसी वार को कोई सामग्री दान करने का उपाय हो तो उस सामग्री को अपने हाथ लगा कर घर पर छोड़ देनी चाहिए। उसे घर का कोई भी व्यक्ति निश्चित देवता के मंदिर में उस वार को अर्पित कर देगा ,तब भी उपाय खंडित नहीं माना जायेगा। 

  • परन्तु यदि व्यक्ति भूलवश या लापरवाही से उपाय में चूक करता है तो वह उपाय खंडित माना जाता है। 

  •  कोई परेशानी का उपाय भी कर रहे है और उस परेशानी को बढ़ाने के काम भी कर रहे है तो वह उपाय शुभ की जगह अशुभ परिणाम भी दे सकता है. जैसे माना कि कोई व्यक्ति राहु को शांत करने के लिए अनेक वस्तुओं का दान कर रहा है, पूजा कर रहा है। और वह साथ में किसी भी प्रकार का नशा जैसे शराब , गुटखा , जर्दा , भांग , सिगरेट ,आदि कोई भी नशा कर रहा है तो उसके द्वारा किया गया राहु की शांति का दान और पूजा आदि बेकार हो जाएगी। क्योकि नशा करने से राहु का प्रभाव बढ़ता है। और दान करने से कम होता है। तो उसे कोई फल नहीं मिलेगा। क्योकि वह एक तरफ तो जहर खा रहा है और दूसरी तरफ जहर काटने की दवा ले रहा है, तो ये तरीका उसे अशुभ प्रभाव की और ले जाता है। 

  • कभी कभी ऐसा होता है कि उपाय करते रहते है परन्तु लाभ नहीं होता। तो व्यक्ति उपाय बंद कर देता है। उपाय बंद करने के बाद उसे लगता है कि बंद नहीं करना चाहिए था और वह फिर चालू कर देता है। तो इस तरह भी उपाय खंडित माना जाता है। एक बार उपाय खंडित हो जाता है तो फिर उसे दुबारा नए तरीके से चालू करना चाहिए।

Thursday, April 23, 2020

महाभारत के 20 प्रमुख पात्र और उनसे जुडी रोचक बातें

महाभारत के 20 प्रमुख पात्र और उनसे जुडी रोचक बातें

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

Contact 9953255600


JYOTISH TANTRA MANTRA YANTRA TOTKA VASTU GHOST BHUT PRET JINNAT BAD DREAMS BURE GANDE SAPNE COURT CASE LOVE AFFAIRS, LOVE MARRIAGE, DIVORCEE PROBLEM, VASHIKARAN, PITR DOSH, MANGLIK DOSH, KAL SARP DOSH, CHANDAL DOSH, GRIH KALESH, BUSINESS, VIDESH YATRA, JNMPATRI, KUNDLI, PALMISTRY, HAST REKHA, SOLUTIONS


महाभारत को शास्त्रों में पांचवां वेद कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं की गई है, उसकी चर्चा अन्यत्र कहीं भी उपलब्ध नहीं है। आज हम आपको बता रहे हैं महाभारत के उन प्रमुख पात्रों के बारे में जिनके बिना ये कथा अधूरी है। साथ ही जानिए इन पात्रों से जुड़ी रोचक बातें भी-

1. भीष्म पितामह (Bhishma pitamah)

भीष्म पितामह को महाभारत का सबसे प्रमुख पात्र कहा जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि भीष्म ही महाभारत के एकमात्र ऐसे पात्र थे, जो प्रारंभ से अंत तक इसमें बने रहे। भीष्म के पिता राजा शांतनु व माता देवनदी गंगा थीं। भीष्म का मूल नाम देवव्रत था। राजा शांतनु जब सत्यवती पर मोहित हुए तब अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए देवव्रत ने सारी उम्र ब्रह्मचारी रह कर हस्तिनापुर की रक्षा करने की प्रतिज्ञा ली और सत्यवती को ले जाकर अपने पिता को सौंप दिया। पिता शांतनु ने देवव्रत को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया। देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म प्रसिद्ध हुआ।

पांडवों को बताया था अपनी मृत्यु का रहस्य
युद्ध में जब पांडव भीष्म को पराजित नहीं कर पाए तो उन्होंने जाकर भीष्म से ही इसका उपाय पूछा। तब भीष्म पितामह ने बताया कि तुम्हारी सेना में जो शिखंडी है, वह पहले एक स्त्री था, बाद में पुरुष बना। अर्जुन शिखंडी को आगे करके मुझ पर बाणों का प्रहार करे। वह जब मेरे सामने होगा तो मैं बाण नहीं चलाऊंगा। इस मौके का फायदा उठाकर अर्जुन मुझे बाणों से घायल कर दे। पांडवों ने यही युक्ति अपनाई और भीष्म पितामह पर विजय प्राप्त की। युद्ध समाप्त होने के 58 दिन बाद जब सूर्यदेव उत्तरायण हो गए तब भीष्म ने अपनी इच्छा से प्राण त्यागे।

2. गुरु द्रोणाचार्य (Guru Dronacharya)

कौरवों व पांडवों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा गुरु द्रोणाचार्य ने ही दी थी। द्रोणाचार्य महर्षि भरद्वाज के पुत्र थे। महाभारत के अनुसार एक बार महर्षि भरद्वाज जब सुबह गंगा स्नान करने गए, वहां उन्होंने घृताची नामक अप्सरा को जल से निकलते देखा। यह देखकर उनके मन में विकार आ गया और उनका वीर्य स्खलित होने लगा। यह देखकर उन्होंने अपने वीर्य को द्रोण नामक एक बर्तन में संग्रहित कर लिया। उसी में से द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था।

जब द्रोणाचार्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे, तब उन्हें पता चला कि भगवान परशुराम ब्राह्मणों को अपना सर्वस्व दान कर रहे हैं। द्रोणाचार्य भी उनके पास गए और अपना परिचय दिया। द्रोणाचार्य ने भगवान परशुराम से उनके सभी दिव्य अस्त्र-शस्त्र मांग लिए और उनके प्रयोग की विधि भी सीख ली। द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था।

छल से हुआ था वध
कौरव-पांडवों के युद्ध में द्रोणाचार्य कौरवों की ओर थे। जब पांडव किसी भी तरह उन्हें हरा नहीं पाए तो उन्होंने गुरु द्रोणाचार्य के वध की योजना बनाई। उस योजना के अनुसार भीम ने अपनी ही सेना के अश्वत्थामा नामक हाथी को मार डाला और द्रोणाचार्य के सामने जाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगे कि अश्वत्थामा मारा गया। अपने पुत्र की मृत्यु को सच मानकर गुरु द्रोण ने अपने अस्त्र नीचे रख दिए और अपने रथ के पिछले भाग में बैठकर ध्यान करने लगे। अवसर देखकर धृष्टद्युम्न ने तलवार से गुरु द्रोण का वध कर दिया।

3. कृपाचार्य (Kripacharya)

कृपाचार्य कौरव व पांडवों के कुलगुरु थे। इनके पिता का नाम शरद्वान था, वे महर्षि गौतम के पुत्र थे। महर्षि शरद्वान ने घोर तपस्या कर दिव्य अस्त्र प्राप्त किए और धनुर्विद्या में निपुणता प्राप्त की। यह देखकर देवराज इंद्र भी घबरा गए और उन्होंने शरद्वान की तपस्या तोडऩे के लिए जानपदी नाम की अप्सरा भेजी।

इस अप्सरा को देखकर महर्षि शरद्वान का वीर्यपात हो गया। उनका वीर्य सरकंड़ों पर गिरा, जिससे वह दो भागों में बंट गया। उससे एक कन्या और एक बालक उत्पन्न हुआ। वही बालक कृपाचार्य बना और कन्या कृपी के नाम से प्रसिद्ध हुई। महाभारत के अनुसार युद्ध के बाद कृपाचार्य जीवित बच गए थे।

आज भी जीवित हैं कृपाचार्य
धर्म ग्रंथों में जिन 8 अमर महापुरुषों का वर्णन है, कृपाचार्य भी उनमें से एक हैं। इससे संबंधित एक श्लोक भी प्रचलित है-

अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

अर्थात अश्वत्थामा, राजा बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम व ऋषि मार्कण्डेय- ये आठों अमर हैं।

4. महर्षि वेदव्यास (Mahrishi Vedvyas)

महर्षि वेदव्यास ने ही महाभारत की रचना की और वे स्वयं भी इसके एक पात्र हैं। इनका मूल नाम कृष्णद्वैपायन वेदव्यास था। इनके पिता महर्षि पाराशर तथा माता सत्यवती है। धर्म ग्रंथों में इन्हें भगवान विष्णु का अवतार भी माना गया है। इनके शिष्य वैशम्पायन ने ही राजा जनमेजय की सभा में महाभारत कथा सुनाई थी। इन्हीं के वरदान से गांधारी को 100 पुत्र हुए थे।

जीवित कर दिया था युद्ध में मरे वीरों को
जब धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती वानप्रस्थ आश्रम में रहते हुए वन में तपस्या कर रहे थे। तब एक दिन युधिष्ठिर सहित सभी पांडव व द्रौपदी उनसे मिलने वन में गए। संयोग से वहां महर्षि वेदव्यास भी आ गए। धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती से प्रसन्न होकर महर्षि वेदव्यास ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब धृतराष्ट्र व गांधारी ने युद्ध में मृत अपने पुत्रों तथा कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की। द्रौपदी ने भी कहा कि वह भी युद्ध में मृत हुए अपने भाई व पिता आदि को चाहती है।

महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ऐसा ही होगा। ऐसा कहकर महर्षि वेदव्यास सभी को गंगा तट ले आए। रात होने पर महर्षि वेदव्यास ने गंगा नदी में प्रवेश किया और पांडव व कौरव पक्ष के सभी मृत योद्धाओं को बुलाने लगे। थोड़ी ही देर में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, अभिमन्यु, धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र, राजा द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शकुनि, शिखंडी आदि वीर जल से बाहर निकल आए।
महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र व गांधारी को दिव्य नेत्र प्रदान किए। अपने मृत परिजनों को देख सभी को बहुत खुशी हुई। सारी रात अपने मृत परिजनों के साथ बिता कर सभी के मन में संतोष हुआ। सुबह होते ही सभी मृत योद्धा पुन: गंगा जल में लीन हो गए।

5. श्रीकृष्ण (Shri Krishna)

श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार थे। इनकी माता का नाम देवकी व पिता का नाम वसुदेव था। समय-समय पर श्रीकृष्ण ने पांडवों की सहायता की। युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने ही सबसे बड़े रणनीतिकार की भूमिका निभाते हुए पांडवों को विजय दिलवाई। श्रीकृष्ण की योजना के अनुसार ही पांडवों ने राजसूय यज्ञ किया था। उस यज्ञ में श्रीकृष्ण ने शिशुपाल का वध किया था।

श्रीकृष्ण ही शांति दूत बनकर कौरवों की सभा में गए थे और पांडवों की ओर से पांच गांव मांगे थे। युद्ध के प्रारंभ में जब अर्जुन कौरवों की सेना में अपने प्रियजनों को देखकर विचलित हुए, तब श्रीकृष्ण ने ही उन्हें गीता का उपदेश दिया था। अश्वत्थामा द्वारा छोड़ गए ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से जब उत्तरा (अभिमन्यु की पत्नी) का पुत्र मृत पैदा हुआ, तब श्रीकृष्ण न उसे अपने तप के बल से जीवित कर दिया था।

गांधारी ने दिया था श्रीकृष्ण को श्राप
युद्ध समाप्त होने के बाद जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती आदि कुरुकुल की स्त्रियां कुरुक्षेत्र आईं तो यहां अपने पुत्रों, पति व भाई आदि के शव देखकर उन्होंने बहुत विलाप किया। अपने पुत्रों के शव देखकर गांधारी थोड़ी देर के लिए अचेत (बेहोश) हो गई। होश आने पर गांधारी को बहुत क्रोध आया और वे श्रीकृष्ण से बोलीं कि पांडव व कौरव आपस की फूट के कारण ही नष्ट हुए हैं किंतु तुम चाहते तो इन्हें रोक सकते थे, लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया।

ऐसा कहकर गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि आज से 36 वर्ष बाद तुम भी अपने परिवार वालों का वध करोगे और अपने मंत्री, पुत्रों आदि के नाश हो जाने पर एक अनाथ की तरह मारे जाओगे। उस दिन तुम्हारे परिवार की स्त्रियां भी इसी प्रकार विलाप करेंगी। गांधारी के श्राप देने के बाद श्रीकृष्ण ने कहा कि वृष्णिवंशियों का नाश इसी प्रकार होगा, ये मैं पहले से जानता था क्योंकि मेरे अलावा कोई भी उनका संहार नहीं कर सकता। अत: आपके श्राप के अनुसार ही यदुवंशी आपसी कलह से नष्ट होंगे।

6-7. धृतराष्ट्र तथा पांडु (Dhritarashtra and Pandu)

राजा शांतनु व सत्यवती के दो पुत्र थे- चित्रांगद व विचित्रवीर्य। राजा शांतनु की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजगद्दी पर बैठे, लेकिन कम उम्र में ही उनकी मृत्यु हो गई। तब भीष्म ने विचित्रवीर्य को राजा बनाया। भीष्म काशी से राजकुमारियों का हरण कर लाए और उनका विवाह विचित्रवीर्य से करवा दिया। किंतु क्षय रोग के कारण विचित्रवीर्य की भी मृत्यु हो गई।

तब महर्षि वेदव्यास के आशीर्वाद से अंबिका तथा अंबालिका को पुत्र उत्पन्न हुए। महर्षि वेदव्यास को देखकर अंबिका ने आंखें बंद कर ली थी, इसलिए धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे हुए तथा अंबालिका के गर्भ से पांडु हुए। अंधे होने के कारण धृतराष्ट्र को राजा बनने के योग्य नहीं माना गया और पांडु को राजा बनाया गया।

8. गांधारी (Gandhari)

गांधारी गांधारराज सुबल की पुत्री थी। जब भीष्म ने सुना कि गांधार देश की राजकुमारी सब लक्षणों से संपन्न है और उसने भगवान शंकर की आराधना कर सौ पुत्रों का वरदान प्राप्त किया है। तब भीष्म ने गांधारराज के पास अपना दूत भेजा। पहले तो सुबल ने अंधे के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने में बहुत सोच-विचार किया, लेकिन बाद में हां कह दिया। गांधारी को जब पता चला कि उसका होने वाला पति जन्म से अंधा है तो उसने भी आजीवन आंखों पर पट्टी बांधने का निर्णय लिया।

9-10. कुंती व माद्री (Kunti and Madri)

यदुवंशी राजा शूरसेन की पृथा नामक पुत्री थी। इस कन्या को राजा शूरसेन ने अपनी बुआ के संतानहीन लड़के कुंतीभोज को गोद दे दिया था। कुंतीभोज ने इस कन्या का नाम कुंती रखा। विवाह योग्य होने पर राजा कुंतीभोज ने अपनी पुत्री के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। स्वयंवर में कुंती ने राजा पांडु को वरमाला डालकर अपना पति चुना। कुंती के अलावा पांडु की एक और पत्नी थी, जिसका नाम माद्री था। यह मद्रदेश की राजकुमारी थी।

11. कर्ण (Karna)

जब पांडवों की माता कुंती बाल्यावस्था में थी, उस समय उन्होंने ऋषि दुर्वासा की सेवा की थी। सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि दुर्वासा ने कुंती को एक मंत्र दिया जिससे वह किसी भी देवता का आह्वान कर उससे पुत्र प्राप्त कर सकती थीं। विवाह से पूर्व इस मंत्र की शक्ति देखने के लिए एक दिन कुंती ने सूर्यदेव का आह्वान किया, जिसके फलस्वरूप कर्ण का जन्म हुआ। किंतु लोक-लाज के भय से कुंती ने कर्ण को नदी में बहा दिया। कर्ण दिव्य कवच-कुंडल के साथ ही पैदा हुआ था। कर्ण का पालन-पोषण धृतराष्ट्र के सारथी अधिरथ व उसकी पत्नी राधा ने किया। राधा का पुत्र समझे जाने के कारण ही कर्ण राधेय नाम से भी जाना जाने लगा। युद्ध के दौरान कर्ण ने कौरवों का साथ दिया। श्राप के कारण कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया और उसे अपने दिव्यास्त्रों का ज्ञान भी नहीं रहा। इसी समय अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया।

इंद्र को दान कर दिए थे कवच-कुंडल
देवराज इंद्र का अर्जुन पर विशेष स्नेह था। इंद्र जानते थे कि जब तक कर्ण के पास कवच-कुंडल है, उससे कोई नहीं जीत सकता। तब एक दिन इंद्र ब्राह्मण का रूप धारण कर कर्ण के पास आए और भिक्षा में कवच-कुंडल मांग लिए। तब कर्ण ने ब्राह्मण से कहा कि आप स्वयं देवराज इंद्र हैं, ये बात मैं जानता हूं। आप स्वयं मुझसे याचना कर रहे हैं।
इसलिए मैं आपको अपने कवच-कुंडल अवश्य दूंगा, लेकिन इसके बदले आप को भी मुझे वह अमोघ शक्ति देनी होगी। देवराज इंद्र ने कर्ण को वो अमोघ शक्ति दे दी और कहा कि इस शक्ति का प्रयोग तुम सिर्फ एक ही बार कर सकोगे। कर्ण ने देवराज इंद्र की बात मानकर वह अमोघ शक्ति ले ली और कवच-कुंडल इंद्र को दे दिए।

12. पांडव (Pandava)

महाराज पांडु के पांचों पुत्र पांडव कहलाए। एक बार राजा पांडु शिकार खेल रहे थे। उस समय किंदम नामक ऋषि अपनी पत्नी के साथ हिरन के रूप में सहवास कर रहे थे। उसी अवस्था में राजा पाण्डु ने उन पर बाण चला दिए। मरने से पहले ऋषि किंदम ने राजा पांडु को श्राप दिया कि जब भी वे अपनी पत्नी के साथ सहवास करेंगे तो उसी अवस्था में उनकी मृत्यु हो जाएगी। ऋषि किंदम के श्राप से दु:खी होकर राजा पांडु ने राज-पाट का त्याग कर दिया और वनवासी हो गए।

कुंती और माद्री भी अपने पति के साथ ही वन में रहने लगीं। जब पांडु को ऋषि दुर्वासा द्वारा कुंती को दिए गए मंत्र के बारे में पता चला तो उन्होंने कुंती से धर्मराज का आवाहन करने के लिए कहा जिसके फलस्वरूप धर्मराज युधिष्ठिर का जन्म हुआ। इसी प्रकार वायुदेव के अंश से भीम और देवराज इंद्र के अंश से अर्जुन का जन्म हुआ। कुंती ने यह मंत्र माद्री को बताया। तब माद्री ने अश्विनकुमारों का आवाहन किया, जिसके फलस्वरूप नकुल व सहदेव का जन्म हुआ।

– युधिष्ठिर पांडवों में सबसे बड़े थे। ये धर्म और नीति के ज्ञाता थे। धर्म का ज्ञान होने के कारण ही इन्हें धर्मराज भी कहा जाता था। पांडवों में सिर्फ युधिष्ठिर ही ऐसे थे जो सशरीर स्वर्ग गए थे।
– भीम युधिष्ठिर से छोटे थे। ये महाबलशाली थे। महाभारत के अनुसार युद्ध के दौरान भीम ने सबसे ज्यादा कौरवों का वध किया था। दु:शासन व दुर्योधन का वध भी भीम ने ही किया था।
– अर्जुन पांडवों में तीसरे भाई थे। ये देवराज इंद्र के अंश थे। महाभारत के अनुसार ये पुरातन ऋषि नर के अवतार थे। भगवान श्रीकृष्ण का इन पर विशेष स्नेह था। अर्जुन ने ही घोर तपस्या कर देवताओं से दिव्यास्त्र प्राप्त किए थे। भीष्म, कर्ण, जयद्रथ आदि का वध अर्जुन के हाथों ही हुआ था।
– नकुल व सहदेव पांडवों में सबसे छोटे थे। ये अश्विनकुमार के अंश थे। सहदेव ने ही शकुनि व उसके पुत्र उलूक का वध किया था।

13. कौरव (Kaurava)

एक बार गांधारी ने महर्षि वेदव्यास की खूब सेवा की। प्रसन्न होकर उन्होंने गांधारी को सौ पुत्रों की माता होने का वरदान दिया। समय आने पर गांधारी को गर्भ ठहरा, लेकिन वह दो वर्ष तक पेट में रुका रहा। घबराकर गांधारी ने गर्भ गिरा दिया। गांधारी केपेट से लोहे के समान मांस का गोला निकला। तब महर्षि वेदव्यास वहां पहुंचे और उन्होंने कहा कि तुम सौ कुण्ड बनवाकर उन्हें घी से भर दो और उनकी रक्षा के लिए प्रबंध करो।

इसके बाद महर्षि वेदव्यास ने गांधारी को उस मांस के गोले पर ठंडा जल छिड़कने के लिए कहा। जल छिड़कते ही उस मांस के गोले के 101 टुकड़े हो गए। महर्षि की बात मानकर गांधारी ने उन सभी मांस के टुकड़ों को घी से भरे कुंडों में रख दिया। फिर महर्षि ने कहा कि इन कुंडों को दो साल के बाद खोलना। समय आने पर उन कुंडों से पहले दुर्योधन का जन्म हुआ और उसके बाद अन्य गांधारी पुत्रों का। गांधारी के अन्य 99 पुत्रों के नाम इस प्रकार हैं-

2- दु:शासन, 3- दुस्सह, 4- दुश्शल, 5- जलसंध, 6- सम, 7- सह, 8- विंद, 9- अनुविंद, 10- दुद्र्धर्ष, 11- सुबाहु, 12- दुष्प्रधर्षण, 13- दुर्मुर्षण, 14- दुर्मुख, 15- दुष्कर्ण, 16- कर्ण, 17- विविंशति, 18- विकर्ण, 19- शल, 20- सत्व, 21- सुलोचन, 22- चित्र, 23- उपचित्र, 24- चित्राक्ष, 25- चारुचित्र, 26- शरासन, 27- दुर्मुद, 28- दुर्विगाह, 29- विवित्सु, 30- विकटानन, 31- ऊर्णनाभ, 32- सुनाभ, 33- नंद, 34- उपनंद, 35- चित्रबाण
36- चित्रवर्मा, 37- सुवर्मा, 38- दुर्विमोचन, 39- आयोबाहु, 40- महाबाहु 41- चित्रांग, 42- चित्रकुंडल, 43- भीमवेग, 44- भीमबल, 45- बलाकी, 46- बलवद्र्धन, 47- उग्रायुध, 48- सुषेण, 49- कुण्डधार, 50- महोदर, 51- चित्रायुध, 52- निषंगी, 53- पाशी, 54- वृंदारक, 55- दृढ़वर्मा, 56- दृढ़क्षत्र, 57- सोमकीर्ति, 58- अनूदर, 59- दृढ़संध, 60- जरासंध,61- सत्यसंध, 62- सद:सुवाक, 63- उग्रश्रवा, 64- उग्रसेन, 65- सेनानी, 66- दुष्पराजय, 67- अपराजित, 68- कुण्डशायी, 69- विशालाक्ष, 70- दुराधर 71- दृढ़हस्त, 72- सुहस्त, 73- बातवेग, 74- सुवर्चा, 75- आदित्यकेतु, 76- बह्वाशी, 77- नागदत्त, 78- अग्रयायी, 79- कवची, 80- क्रथन, 81- कुण्डी, 82- उग्र, 83- भीमरथ, 84- वीरबाहु, 85- अलोलुप, 86- अभय, 87- रौद्रकर्मा, 88- दृढऱथाश्रय, 89- अनाधृष्य, 90- कुण्डभेदी, 91- विरावी, 92- प्रमथ, 93- प्रमाथी, 94- दीर्घरोमा, 95- दीर्घबाहु, 96- महाबाहु, 97- व्यूढोरस्क, 98- कनकध्वज, 99- कुण्डाशी, और 100-विरजा।
– 100 पुत्रों के अलावा गांधारी की एक पुत्री भी थी जिसका नाम दुश्शला था, इसका विवाह राजा जयद्रथ के साथ हुआ था।

14-15. द्रौपदी व धृष्टद्युम्न (Draupadi and Dhrishtadyumna)

पांचाल देश के राजा द्रुपद ने याज नामक तपस्वी से यज्ञ करवाया, जिससे एक दिव्य कुमार उत्पन्न हुआ। उसके सिर पर मुकुट और शरीर पर कवच था। तभी आकाशवाणी हुई कि यह कुमार द्रोणाचार्य को मारने के लिए ही उत्पन्न हुआ है। इसके बाद उस यज्ञवेदी से एक सुंदर कन्या उत्पन्न हुई। तभी आकाशवाणी हुई कि इस कन्या का जन्म क्षत्रियों के संहार के लिए हुआ है। इसके कारण कौरवों को बहुत भय होगा।

द्रुपद ने इस कुमार का नाम धृष्टद्युम्न रखा और कन्या का नाम द्रौपदी। द्रौपदी के विवाह के लिए द्रुपद ने स्वयंवर का आयोजन किया। अर्जुन ने स्वयंवर की शर्त पूरी कर द्रौपदी से विवाह कर लिया। जब पांडव द्रौपदी को लेकर अपनी माता कुंती के पास पहुंचे तो उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि पांचों भाई आपस में बांट लो। तब द्रौपदी ने पांचों भाइयों से विधिपूर्वक विवाह किया।

इसलिए मिले पांच पति
महाभारत के अनुसार द्रौपदी पूर्व जन्म में ऋषि कन्या थी। विवाह न होने से दु:खी होकर वह तपस्या करने लगी। उसकी तपस्या से भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और उसे दर्शन दिए तथा वर मांगने को भी कहा। भगवान के दर्शन पाकर द्रौपदी बहुत प्रसन्न हो गई और उसने अधीरतावश भगवान शंकर से प्रार्थना की कि मैं सर्वगुणयुक्त पति चाहती हूं। ऐसा उसने पांच बार कहा। तब भगवान ने उसे वरदान दिया कि तूने मुझसे पांच बार प्रार्थना की है इसलिए तुझे पांच भरतवंशी पति प्राप्त होंगे।

धृष्टद्युम्न ने किया था द्रोणाचार्य का वध
श्रीकृष्ण ने धृष्टद्युम्न को पांडवों की सेना का सेनापति बनाया था। युद्ध के दौरान जब अपने पुत्र की मृत्यु को सच मानकर गुरु द्रोण ने अपने अस्त्र नीचे रख दिए तब धृष्टद्युम्न ने तलवार से गुरु द्रोण का वध कर दिया था।

16. अश्वत्थामा (Ashwathama)

महाभारत के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपी से हुआ था। कृपी के गर्भ से अश्वत्थामा का जन्म हुआ। उसने जन्म लेते ही अच्चै:श्रवा अश्व के समान शब्द किया, इसी कारण उसका नाम अश्वत्थामा हुआ। वह महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न हुआ था। अश्वत्थामा महापराक्रमी था।
युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया था। मृत्यु से पहले दुर्योधन ने उसे अंतिम सेनापति बनाया था। रात के समय अश्वत्थामा ने छल पूर्वक द्रौपदी के पांचों पुत्रों, धृष्टद्युम्न, शिखंडी आदि योद्धाओं का वध कर दिया था। मान्यता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है। इनका नाम अष्ट चिरंजीवियों में लिया जाता है।

श्रीकृष्ण ने दिया था श्राप
जब अश्वत्थामा ने सोते हुए द्रौपदी के पुत्रों का वध कर दिया, तब पांडव क्रोधित होकर उसे ढूंढने निकले। अश्वत्थामा को ढूंढते हुए वे महर्षि वेदव्यास के आश्रम पहुंचे। अश्वत्थामा ने देखा कि पांडव मेरा वध करने के लिए यहां आ गए हैं तो उसने पांडवों का नाश करने के लिए ब्रह्मास्त्र का वार किया। श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र चलाया। दोनों ब्रह्मास्त्रों की अग्नि से सृष्टि जलने लगी। सृष्टि का संहार होते देख महर्षि वेदव्यास ने अर्जुन व अश्वत्थामा से अपने-अपने ब्रह्मास्त्र लौटाने के लिए कहा।

अर्जुन ने तुरंत अपना अस्त्र लौटा लिया, लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र लौटाने का ज्ञान नहीं था। इसलिए उसने अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा बदल कर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी और कहा कि मेरे इस अस्त्र के प्रभाव से पांडवों का वंश समाप्त हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा से कहा कि तुम्हारा अस्त्र अवश्य ही अचूक है, किंतु उत्तरा के गर्भ से उत्पन्न मृत शिशु भी जीवित हो जाएगा।

ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हजार वर्ष तक पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी से बात नहीं कर पाओगे। तुम्हारे शरीर से पीब व रक्त बहता रहेगा। इसके बाद अश्वत्थामा ने महर्षि वेदव्यास के कहने पर अपनी मणि निकाल कर पांडवों को दे दी और स्वयं वन में चला गया। अश्वत्थामा से मणि लाकर पांडवों ने द्रौपदी को दे दी और बताया कि गुरु पुत्र होने के कारण उन्होंने अश्वत्थामा को जीवित छोड़ दिया है।

17. विदुर (Vidur)

महात्मा विदुर का जन्म महर्षि वेदव्यास के आशीर्वाद से दासी के गर्भ से हुआ था। महाभारत के अनुसार विदुर धर्मराज (यमराज) के अवतार थे। एक ऋषि के श्राप के कारण धर्मराज को मनुष्य रूप से जन्म लेना पड़ा। विदुर नीतिकुशल थे। उन्होंने सदैव धर्म का साथ दिया।

युधिष्ठिर में समा गए थे विदुर के प्राण
जब धृतराष्ट्र, गांधारी, कुंती व विदुर वानप्रस्थ आश्रम में रहते हुए कठोर तप कर रहे थे, तब एक दिन युधिष्ठिर सभी पांडवों के साथ उनसे मिलने पहुंचे। धृतराष्ट्र, गांधारी व कुंती के साथ जब युधिष्ठिर ने विदुर को नहीं देखा तो धृतराष्ट्र से उनके बारे में पूछा। धृतराष्ट्र ने बताया कि वे कठोर तप कर रहे हैं।

तभी युधिष्ठिर को विदुर उसी ओर आते हुए दिखाई दिए, लेकिन आश्रम में इतने सारे लोगों को देखकर विदुरजी पुन: लौट गए। युधिष्ठिर उनसे मिलने के लिए पीछे-पीछे दौड़े। तब वन में एक पेड़ के नीचे उन्हें विदुरजी खड़े हुए दिखाई दिए। उसी समय विदुरजी के शरीर से प्राण निकले और युधिष्ठिर में समा गए।

जब युधिष्ठिर ने देखा कि विदुरजी के शरीर में प्राण नहीं है तो उन्होंने उनका दाह संस्कार करने का निर्णय लिया। तभी आकाशवाणी हुई कि विदुरजी संन्यास धर्म का पालन करते थे। इसलिए उनका दाह संस्कार करना उचित नहीं है। यह बात युधिष्ठिर ने आकर महाराज धृतराष्ट्र को बताई। युधिष्ठिर के मुख से यह बात सुनकर सभी को आश्चर्य हुआ।

18. शकुनि (Shakuni)

शकुनि गांधारी का भाई था। धृतराष्ट्र व गांधारी के विवाह के बाद शकुनि हस्तिनापुर में ही आकर बस गए। यहां वे कौरवों को सदैव पांडवों के विरुद्ध भड़काते रहते थे। पांडवों का अंत करने के लिए शकुनि ने कई योजनाएं बनाई, लेकिन उनकी कोई चाल सफल नहीं हो पाई।

ऐसे हुई मृत्यु
युद्ध में सहदेव ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए शकुनि और उलूक (शकुनि का पुत्र) को घायल कर दिया और देखते ही देखते उलूक का वध दिया। अपने पुत्र का शव देखकर शकुनि को बहुत दु:ख हुआ और वह युद्ध छोड़कर भागने लगा। सहदेव ने शकुनि का पीछा किया और उसे पकड़ लिया। घायल होने पर भी शकुनि ने बहुत समय तक सहदेव से युद्ध किया और अंत में सहदेव के हाथों मारा गया।

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विशेष कामख्या देवी का मन चाहा वशीकरण

Tuesday, April 21, 2020

पीपल के पत्तों से वशीकरण PIPAL KE PATTE SE VASHIKARAN

पीपल के पत्तों से वशीकरण PIPAL KE PATTE SE VASHIKARAN

दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है      

Contact 9953255600

JYOTISH TANTRA MANTRA YANTRA TOTKA VASTU GHOST BHUT PRET JINNAT BAD DREAMS BURE GANDE SAPNE COURT CASE LOVE AFFAIRS, LOVE MARRIAGE, DIVORCEE PROBLEM, VASHIKARAN, PITR DOSH, MANGLIK DOSH, KAL SARP DOSH, CHANDAL DOSH, GRIH KALESH, BUSINESS, VIDESH YATRA, JNMPATRI, KUNDLI, PALMISTRY, HAST REKHA, SOLUTIONS

पीपल के पत्तों से वशीकरण

करने के लिए आप अमावस्या के दिन का इंतज़ार करे. उस दिन आप को पीपल के पेड़ से दो पत्ते तोड़ ले जो सूखे हुए हो. आपको पत्ते पेड़ से तोड़ने होंगे नीचे पड़े हुए पत्तो को ना उठाये. पूरी तरह सूखे पत्ते ना मिले तो जो पत्ते थोड़े पीले से हो जाते है उनको भी काम में लाया जा सकता है. अब जो व्यक्ति आप से दूर हुआ होता है या फिर आपको किसी से कोई समस्या है तो पीपल के सूखे हुए पत्तो पर उनका नाम लिख दे.
आपको नाम दोनों पत्तों पर लिखना है.
एक पत्ते पर नाम लिखने के लिए काजल का इस्तेमाल करे.
जिस पत्ते कर काजल से नाम लिखा गया है उसको पीपल के पेड़ के पास रख दे.
इस पत्ते को आपको उल्टा करके रखना है
और उसके बाद आपको एक भारी पत्थर लेना है. भारी पत्थर को पत्ते के ऊपर रख दे.
अब आपको दुसरे पत्ते पर जो नाम लिखना है उसे आपको सिन्दूर से लिखना है.
दुसरे पत्ते को आपको अपने घर पे ही रखना है और उसे घर की छत पर उल्टा करके रखना है उसे भी एक भारी पत्थर से दबा दे.
ऐसा करने के बाद जब पूर्णिमा का दिन आता है लगभग 15-16 दिन तक पीपल के पेड़ में पानी दे और साथ ही अपने चाहने वाले के आने की या फिर अपनी मनोकामना पूरी होने की प्रार्थना करे. ऐसा करने से आपको निश्चित ही फायदा मिलेगा और आपकी मनोकामना जरुर पूरी होगी.

आपका चाहने वाला आपको अवश्य ही मिल जायेगा. जब आपका काम पूरा हो जाये तो आप दोनों पत्तो को एक साथ मिला कर किसी शुद्ध स्थान पर प्रवाह कर दे. ।



अन्य किसी जानकारी , समस्या समाधान या कुंडली विश्लेषण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं।

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खोया प्यार पाने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to get back Lost Love Again

बॉय फ्रेंड गर्ल फ्रैंड को अपने वश में रखने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to Control Boy friend/Girl Friend

पति को अपने वश में रखने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to Control Husband

समलैंगिक को अपने वश में रखने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to Control Same Sex/ Gay

पत्नी को वापस पाने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to get back your Wife

पति को वापस मिलने  या पाने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to get back your Husband

बॉय फ्रेंड को वापस मिलने या पाने के लिए वाशिकरण 
Vashikaran to get back your Boy Friend

गर्ल फ्रेंड को वापस मिलने या पाने के लिए वाशिकरण
Vashikaran to get back your Girl Friend

खोया प्यार वापस पाने के लिए वाशिकरण
Vashikaran to get back your lost Love Back

डाइवोर्स केस जितने के लिए अनुष्ठान 
Anushthan for Divorce Cases

सम्पति विवाद जितने के लिए अनुष्ठान
Anushthan for Property Cases

केस जितने के लिए अनुष्ठान
Anushthan for Court Cases

नेतागिरी में सफलता के लिए अनुष्ठान 
Special Anushthan for Political Carrier



विशेष कामख्या देवी का मन चाहा वशीकरण

विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )