श्रीहनुमत्-मन्त्र-चमत्कार-अनुष्ठान
(प्रस्तुत विधान के प्रत्येक मन्त्र के ११००० ‘जप‘ एवं दशांश ‘हवन’ से सिद्धि होती है। हनुमान जी के मन्दिर में, ‘रुद्राक्ष’ की माला से, ब्रह्मचर्य-पूर्वक ‘जप करें। नमक न खाए तो उत्तम है। कठिन-से-कठिन कार्य इन मन्त्रों की सिद्धि से सुचारु रुप से होते हैं।)१॰ ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय, वायु-सुताय,
अञ्जनी-गर्भ-सम्भूताय, अखण्ड-ब्रह्मचर्य-
व्रत-पालन-तत्पराय, धवली-कृत-जगत्-त्रितयाय,
ज्वलदग्नि-सूर्य-कोटि-समप्रभाय, प्रकट-पराक्रमाय,
आक्रान्त-दिग्-मण्डलाय, यशोवितानाय, यशोऽलंकृताय, शोभिताननाय,
महा-सामर्थ्याय, महा-तेज-पुञ्जः-विराजमानाय,
श्रीराम-भक्ति-तत्पराय, श्रीराम-लक्ष्मणानन्द-कारणाय,
कवि-सैन्य-प्राकाराय, सुग्रीव-सख्य-कारणाय,
सुग्रीव-साहाय्य-कारणाय, ब्रह्मास्त्र-ब्रह्म-शक्ति-ग्रसनाय,
लक्ष्मण-शक्ति-भेद-निवारणाय, शल्य-विशल्यौषधि-समानयनाय,
बालोदित-भानु-मण्डल-ग्रसनाय,अक्षकुमार-छेदनाय,
वन-रक्षाकर-समूह-विभञ्जनाय, द्रोण-पर्वतोत्पाटनाय,
स्वामि-वचन-सम्पादितार्जुन, संयुग-संग्रामाय,
गम्भीर-शब्दोदयाय, दक्षिणाशा-मार्तण्डाय, मेरु-पर्वत-पीठिकार्चनाय,
दावानल-कालाग्नि-रुद्राय,समुद्र-लंघनाय, सीताऽऽश्वासनाय,
सीता-रक्षकाय, राक्षसी-संघ-विदारणाय,
अशोक-वन-विदारणाय, लंका-पुरी-दहनाय,
दश-ग्रीव-शिरः-कृन्त्तकाय, कुम्भकर्णादि-वध-कारणाय,
बालि-निर्वहण-कारणाय, मेघनाद-होम-विध्वंसनाय,
इन्द्रजित-वध-कारणाय, सर्व-शास्त्र-पारंगताय, सर्व-ग्रह-विनाशकाय,
सर्व-ज्वर-हराय, सर्व-भय-निवारणाय, सर्व-कष्ट-निवारणाय,
सर्वापत्ति-निवारणाय, सर्व-दुष्टादि-निबर्हणाय, सर्व-शत्रुच्छेद
नाय, भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी-शाकिनी-ध्वंसकाय, सर्व-कार्य-साधकाय,
प्राणि-मात्र-रक्षकाय, राम-दूताय-स्वाहा।।
२॰ ॐ नमो हनुमते, रुद्रावताराय, विश्व-रुपाय, अमित-विक्रमाय, प्रकट-पराक्रमाय, महा-बलाय, सूर्य-कोटि-समप्रभाय,राम-दूताय-स्वाहा।।
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