Thursday, February 28, 2019

SEX SAMBHOG SE KUNDALINI JAGRAN PART 1 सम्भोग से कुण्डलिनी जागरण भाग 1

SEX SAMBHOG SE KUNDALINI JAGRAN PART 1 सम्भोग से कुण्डलिनी जागरण  भाग 1


मल मूत्र छिद्रों के मध्य स्थान पर मूलाधार बताया गया है। उसे चमड़ी की ऊपरी सतह नहीं मानलेना चाहिए वरन् उस स्थान की सीध में ठीक ऊपर प्रायः तीन तीन अंगुल ऊँचाई पर अवस्थित समझना चाहिए। मस्तिष्क में आज्ञाचक्र भी भ्रूमध्य भाग में कहा जाता है पर यह भी ऊपरी सतहपर नहीं तीन अंगुल गहराई पर हैं ब्रह्मरंध्र भी खोपड़ी की ऊपरी सतह पर कहाँ है? वह भी मस्तिष्क के मध्य केन्द्र में है। ठीक इसी प्रकार मूलाधार को भी मल-मूत्र छिद्रों के मध्य वाली सीध पर अन्तः गह्वर में अवस्थित मानना चाहिए। (यहाँ एक बात हजार बार समझ लेनी चाहिए किआध्यात्म शास्त्र में शरीर विज्ञान विशुद्ध रूप से सूक्ष्म शरीर का वर्णन है। स्थूल शरीर में तो उसकीप्रतीक छाया ही देखी जा सकती है। ) कभी किसी शारीरिक अंग को सूक्ष्म शरीर से नहीं जोड़ना चाहिए। मात्र उसे प्रतीक प्रतिनिधि भर मानना चाहिए। शरीर के किसी भी अवयव विशेष में वह दिव्य शक्तियाँ नहीं है जो आध्यात्मिक शरीर विज्ञान में वर्णन की गई है। स्थूल अंगों से उन सूक्ष्म शक्तियों का आभास मात्र पाया जा सकता है।

मूलाधार शब्द के दो खण्ड है। मूल+आधार। मूल अर्थात् जड़-बेस। आधार अर्थात् सहायक-सपोर्ट। जीवन सत्ता का मूल-भूत आधार होने के कारण उस शक्ति संस्थान को मूलाधार कहा जाता है। वहसूक्ष्म जगत में होने के कारण अदृश्य है। अदृश्य का प्रतीक चिह्न प्रत्यक्ष शरीर में भी रहता है। जैसे दिव्या दृष्टि के आज्ञा चक्र को पिट्यूटरी और पिनीयल रूपी दो आँखों में काम करते हुए देख सकतेहैं। ब्रह्मचक्र के स्थान पर हृदय को गतिशील देखा जा सकता है | नाभिचक्र के स्थान पर योनि आकृति का एक गड्ढा तो मौजूद ही है। मूलाधार सत्ता को मेरुदण्ड के रूप में देखा जा सकता है। अपनी चेतनात्मक विशेषताओं के कारण उसे वह पद, एवं गौरव प्राप्त होना हर दृष्टि से उपयुक्तहै। प्राण का उद्गम मूलाधार पर उसका विस्तार, व्यवहार और वितरण तो मेरुदण्ड माध्यम से हीसम्भव होता है।
मूलाधार के कुछ ऊपर और स्वाधिष्ठान से कुछ नीचे वाले भाग में शरीर शास्त्र के अनुसार ‘प्रास्टेटग्लेण्ड’ है। शुक्र संस्थान यही होता है। इसमें उत्पन्न होने वाली तरंगें काम प्रवृत्ति बन कर उभरती हैं इससे जो हारमोन उत्पन्न होते हैं, वे वीर्योत्पादन के लिए उत्तरदायी होते हैं स्त्रियों का गर्भाशय भी यही होता है। सुषुम्ना के निचले भाग में लम्बर और सेक्रल प्लैक्सस नाड़ी गुच्छक है।जननेन्द्रियों की मूत्र त्याग तथा कामोत्तेजन दोनों क्रियाओं पर इन्हीं गुच्छकों का नियन्त्रण रहता है। यहाँ तनिक भी गड़बड़ी उत्पन्न होने पर इनमें से कोई एक अथवा दोनों ही क्रियाएँ अस्त-व्यस्त हो जाती हैं बहुमूत्र, नपुंसकता, अतिकामुकता आदि के कारण प्रायः यही से उत्पन्न होते हैं। गर्भाशय की दीवारों से जुड़े हुए नाड़ी गुच्छक ही गर्भस्थ शिशु को उसके नाभि मार्ग से सभी उपयोगी पदार्थ पहुँचाते रहते हैं इन गुच्छकों को यह पहचान रहती है कि कितनी आयु के भ्रूण को क्या-क्या पोषक तत्त्व चाहिए। गर्भाशय के संवेदनशील नाड़ी गुच्छक उस अनुपात का-मात्रा का-पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं |

अतः शीघ्र और सरल रूप में इन साधानाओ से लाभ उठाने के लिए चक्र में की गयी भैरवी और घट का पूजन पर्याप्त है। यहाँ भी विधि प्रक्रिया का महत्त्व नहीं है।

साधना का काल काल रात्रि (नौ से डेढ़ बजे) तक माना जाता है। समस्त क्रियाएं केवल इसी काल में होती है।

स्त्री-पुरुष के भैरवी साधना में शरीर के अंगों में अमृत बिंदु और अमृत न्यास

न्यास मंत्र – 
ॐ क्लीं क्लीं क्लीं ह्रीं श्रीं (अंग) न्यस्यते नमः

विशेष – यह भैरवी साधना के एक गुप्त मार्ग का न्यास मंत्र है। विभिन्न मार्गों में यह बदलते रहते हैं।

पुरुष अंगों में अमृत – संचरण

शुक्ल पक्ष – 1. अंगुष्ठ   2. पादपृष्ठ     3. टखना   4. घुटना   5. लिंग   6.नाभि   7. हृदय   8.स्तन   9. गला   10. नाक   11. आँख   12. कान  13. भौंव   14. कनपट्टी     15. मस्तष्क (चाँद)

कृष्ण पक्ष – 1. मस्तष्क (चाँद)   2. कनपट्टी   3. भँव   4.कान   5. आँख   6. नाक     7.गला   8.स्तन     9.ह्रदय   10. नाभि   11. लिंग 12. घुटना   13. टखना   14. पादपृष्ठ   15. अंगुष्ठ

 न्यास विधि – 
स्नानादि से शुद्ध होकर पाँचों उंगली के स्पर्श से दाहिने पैर के अंगूठे से मस्तष्क तक शुक्ल पक्ष में तिनं-तीन मंत्र से न्यास करें। फिर जिस तिथि में (ऊपर तालिका के अनुसार) जिस स्थान में अमृत हो; तिथि के अनुसार उस स्थान पर स्पर्श करते हुए 108 बार मंत्र जप करें। यह पुरुष की प्रकिया है। स्त्री में इसे बायें पैर के अंगूठे से प्रारंभ किया जाता है।

कृष्णपक्ष में यह न्यास इसी प्रकार मस्तक से अंगूठे तक किया जाता है। पुरुष में शुक्ल प्रति पदा से दायें अंगूठे से मस्तक तक समस्त दाया अंग फिर कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से मस्तक से बायाँ अंग अंगूठे तक। स्त्री में यह क्रम उल्टा होता है। ऊपर की ओर बायें भाग से चढ़ा और दायें भाग में उतरा जाता है।

 न्यास के समय स्त्री दक्षिण मुखी , पुरुष उत्तर मुखी या स्त्री नैऋत्य मुखी , पुरुष ईशान मुखी होना चाहिए। सम्पूर्ण नग्न होकर करें  हो सके तो खुले आसमान के निचे

साधना कार्यों में अभिषेक, न्यास, दीक्षा , पूजन विधि गुरु के द्वारा सम्पन्न किया जाता है।

लाभ – 
मानसिक शक्ति, शारीरिक ऊर्जा चक्रों की शक्ति , दृष्टि ज्योति, सुनने की शक्ति , प्रेम भाव , सुख शांति की वृद्धि होती है। सम्मोहन की शक्ति जाग्रत होती है।

गुह्य न्यास – 
यह गुप्त न्यास प्रकिया है। केवल अभिषेकित दीक्षित साधक/साधिका के लिए ही अनुमेय है।

भैरवी साधना के लिए इच्छुक भैरवियों का स्वागत है, व्हाट्सप्प पर केवल वीडयो कॉल करें से सम्पर्क करें | 9953255600

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )