Thursday, February 28, 2019

भैरव भैरवी कुण्डलनी जागरण लिंग योनी तंत्र विद्या भाग 8

भैरव भैरवी कुण्डलनी जागरण लिंग योनी तंत्र विद्या भाग 8

भैरवी विद्या :: भैरवी चक्र रहस्य [भाग -3]

शिव और सदाशिव ,परमात्मा और विष्णु --इन दोनों में गुणात्मक अंतर है |सदाशिव अर्थात परमात्मा निर्गुण ,निराकार ,तत्व रूप है और शिव या राज राजेश्वर शिव या विष्णु एक सगुण रूप अर्ध नारीश्वर हैं |सदाशिव का स्थान हमारे शीर्ष के चन्द्रमा के मध्य है और शरीर के ऊर्जा चक्र के मध्य यह उसी प्रकार व्याप्त है ,जैसे हमारे केंद्र में हड्डी |अंतर केवल इतना है की यह धागे की भाँती सभी धाराओं के मध्य प्रवाहित होते हैं ,हड्डी स्थिर होता है |जितने प्रकार के जीव -जंतु ,फल ,पेड़ ,पौधे पाए जाते हैं ,उनमे तीन स्तर होते हैं |एक छिलके या चर्म का ,दूसरा मांस या गूदे का ,तीसरा हड्डी या कठोर काष्ठ का या बीज का |इन तीनो में तीन स्तर होते हैं ,बीज के ऊपर कठोर ,फिर गूदा ,फिर आतंरिक अंकुर होता है |इस अंकुर के मध्य शून्य होता है |यही शून्य सदाशिव है |यह हमारे हड्डियों के मध्य भी एक सूक्ष्म नलिका छिद्र की भाँती प्रवाहित होते रहते हैं |इडा-पिंगला के मध्य सुसुमना में प्रवाहित होते रहते हैं |
राज राजेश्वर शिव --आत्मा के केंद्र में ,जीव -जंतु आदि सभी भौतिक ईकाई के केंद्र में विद्यमान होते हैं |इनकी उत्पत्ति काली एवं तारा की शक्ति से होती है |जब दो प्रकार की ऊर्जा धाराएं एक में विपरीत आवेश के आकर्षण में आपस में समाती हैं तो बीच में एक नाभिक या केंद्र की उत्पत्ति होती है ,यही केंद्र राज राजेश्वर शिव या विष्णु [वैदिक भाषा में ]कहलाता है |इसे भुवनेश्वरी भी कहते हैं |यही केंद्र अर्थात तीसरा बिंदु ही किसी भी इकाई का शासक ,पालक और सृष्टि को धारण करने वाला कहा जाता है |दो शंक्वाकार त्रिभुजीय ऊर्जा धाराओं के आपस में समाने पर दोनों के सिरों पर अर्थात उनके अपने मूल बिन्दुओं पर तो उनके अपने अपने आवेश होते हैं पर बीच में उदासीन की स्थिति बनती है और तीसरा बिंदु बनता है यही राज राजेश्वर शिव अथवा विष्णु का स्थान होता है और जो समस्त इकाई अर्थात उस जीव का नियंता या संचालक होता है |सदाशिव से ही दोनों ऊर्जा धाराएं उत्पन्न होती हैं ,जिनके आपसी क्रिया से तीसरे बिंदु याकेंद्र या नाभिक राज राजेश्वर शिव की उत्पत्ति होती है |यह दो ऊर्जा धाराओं धनात्मक और ऋणात्मक के बीच की कड़ी है और यह सदाशिव का सगुण रूप हो जाता है |
इन तीन बिन्दुओं को ही त्रिमुखी ब्रह्मा ,त्रिगुणी महामाया ,पृथ्वी -आकास और सूर्य कहा जाता है |इन तीन बिदुओं से पांच ,पांच से नौ ऊर्जा बिंदु बन जाते हैं |इन्हें ही शक्ति के नौ रूप ,नव निधि ,नव शक्ति ,नव दुर्गा ,नव चक्र आदि कहा जाता है |हमारे सभी मूल देवी देवता का वास इन्ही नौ केन्द्रों में होता है |यहाँ जो शक्ति या ऊर्जा उत्पन्न होती है ,उसी से हमारा या किसी भी इकाई का शरीर बनता है ,क्रिया करता है और पोषित होता है |इसमें जिस चक्र की क्रियाशीलता अधिक होती है उससे अधिक तरंगे निकलती हैं और उसी केंद्र के गुणों के अनुसार उस जीव की प्रकृति बनती है |मूल या आदि रूप से उत्पन्न होने वाले दोनों बिंदु ऊपर और नीचे होते हैं ,मध्य में केंद्र होता है ,दोनों बिन्दुओं और केंद्र के मध्य तीन तीन केंद्र या बिंदु या चक्र बाद में विक्सित होते हैं |धनात्मक केंद्र को हम सहस्त्रार ,ऋणात्मक केंद्र को मूलाधार और मध्य केंद्र को अनाहत के नाम से जानते हैं |अर्थात राज राजेश्वर शिव या विष्णु या भुवनेश्वरी [तीनो एक ही हैं ,पथ के अनुसार नाम हैं ]अनाहत में आत्मा के केंद्र में स्थित हो सम्पूर्ण इकाई का संचालन करते हैं |सदाशिव पूरे इकाई के उतपत्ति कर्ता है ,पूरे इकाई में व्याप्त हैं ,सभी केन्द्रों में व्याप्त होते हैं |इस प्रकार सदाशिव सर्वत्र व्याप्त परम तत्व हैं जबकि उन्ही से उत्पन्न होते हैं उनके सगुण रूप राज राजेश्वर शिव जो इकाई पर नियंत्रण रखते हैं और संचालन करते हैं |

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