वनस्पति तंत्र भाग 8
अपामार्ग
अपामार्ग का प्रचलित नाम चिड़चिड़ी है।लटजीरा,चिरचिटा,और ओंगा आदि नामों से भी इसे जाना जाता है।क्षुप जातिय यह एक सर्वसुलभ वनस्पति है,जिसका अंकुरण बरसात के प्रारम्भ में होता है,और कई वर्षों तक पुष्पित-पल्लवित होते रहता है।अंकुरण के दो-ढाई महीने बाद पुष्पित होता है,और जाड़ा आते-आते सभी फूल परिपक्व फल में परिणत हो जाते हैं।फलों के तुष भाग को रगड़ कर अलग करने पर सावां की कन्नी की तरह छोटे-छोटे चावल निकलते हैं,जिनका आयुर्वेद और तन्त्र में विशेष प्रयोग होता है।साधु-संतो के बीच इसका बड़ा ही महत्त्व है,क्यों कि क्षुधा-तृषा पर नियंत्रण रखने में बहुत ही कारगर है। गहरे हरे रंग की एक ईंच गोलाई वाली चिकनी पत्तियां वड़ी मनोहर लगती हैं।ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह की यह संमिधा माना गया है।रंग-भेद से अपामार्ग प्रायः दो प्रकार का होता है- श्वेत और रक्त।सामान्य तौर पर यह भेद स्पष्ट नहीं होता,किन्तु गौर से देखने पर पत्तियों और डंठल में किंचित रंगभेद दीख पड़ता है।इसके पौधे प्रायः एक वर्ष में ही सूख जाते हैं,किन्तु कुछ पौधे कई वर्षों तक पुष्पित-पल्लवित होते हुए भी देखे गये हैं। ये पौधे बड़े और पुराने होने पर झाड़ीनुमा हो जाते हैं ।आयुर्वेद और तन्त्र में इसके पंचागों का अलग-अलग प्रयोग है।
अपामार्ग को किसी रविपुष्य योग में(भद्रादि रहित) ग्रहण किया जा सकता है,किन्तु सूर्य जब पुष्य नक्षत्र में हों,उस वक्त मिलने वाले रवि या सोमवार को ग्रहण करना विशेष लाभदायक माना गया है।कुछ लोग सौर्यपुष्य के बुधवार को भी ग्रहण करना उचित समझते हैं।अन्य वनस्पतियों की तरह (जो पुस्तक के प्रारम्भिक अध्यायों में स्पष्ट है) ही इसे भी पूर्व संध्या को आमंत्रण देकर, अगले दिन विधिवत पंचोपचार पूजन कर घर लाना चाहिए। पूरे पौधे को जड़ सहित उखाड़ कर ,घर लाकर हरे रंग के नवीन कपड़े पर आसन देकर पंचोपचार पूजन करना चाहिए।तदुपरान्त श्री शिवपंचाक्षर,सोम पंचाक्षर,एवं बुध पंचाक्षर मंत्रों का कम से कम एक-एक हजार जप- दशांश होमादि सहित सम्पन्न करें।इस प्रकार अब अपामार्ग प्रयोग के योग्य तैयार हो गया।
अपामार्ग के कतिपय प्रयोगः-
रक्त अपामार्ग के डंठल से नियमित दातुन करने से वाणी में अद्भुत चमत्कार उत्पन्न हो जाता है। प्रयोग-कर्ता की वाचा-सिद्धि हो जाती है।
लाल ओंगा की जड़ को भस्म करके, नियमित गो दुग्घ के साथ एक-एक ग्राम सेवन करने वाले दम्पति को सन्तान सुख की प्राप्ति होती है।
अपामार्ग के बीजों को साफ करके चावल निकाल लें।उन चावलों के दश ग्राम की मात्रा लेकर आठ गुने गोदुग्ध में पूर्णिमा की रात को मिट्टी के नवीन पात्र में पकावें।पूरी पाक-प्रक्रिया में सोमपंचाक्षर मंत्र का जप मानसिक रुप से चलता रहे।तैयार पाक को चन्द्रमा को नैवेद्य अर्पण करके श्रद्धा-प्रेम सहित ग्रहण करें।इस पाक में अद्भुत क्षमता है।क्षय,दमा जैसी फेफड़े की विभिन्न वीमारियां दो-चार बार के प्रयोग से समूल नष्ट हो जाती हैं।
उक्त विधि से तैयार पाक को ग्रहण करने से बल-वीर्य की बृद्धि के साथ क्षुधा-तृषा पर चमत्कारिक रुप से नियंत्रण होता है।किसी लम्बे अनुष्ठान में इस पाक का प्रयोग किया जा सकता है।एक सुपुष्ट विस्तृत पौधे से दो-सौ ग्राम तक चावल प्राप्त किया जा सकता है,जो कई बार प्रयोग करने हेतु पर्याप्त है।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को पास में(पर्स आदि में) रखने से अप्रत्याशित धनागम के स्रोत बनते हैं।अन्य कल्याणकारी लाभ भी होते हैं।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को ताबीज में भर कर लाल,पीले या हरे धागे में गूंथकर गले वा वांह में धारण करने से शत्रु,शस्त्र,अन्तरिक्ष आदि से रक्षा होती है।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को जल में घिस कर तिलक लगाने से प्रयोग कर्ता में सम्मोहन और आकर्षण गुण आ जाता है।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को चूर्ण करके हरे रंग के नवीन कपड़े में लपेट कर वर्तिका बना,तिल तेल का दीपक प्रज्ज्वलित करें।उस दीपक को एकान्त में रखकर उसकी लौ पर ध्यान केन्द्रित करने से वांछित दृश्य देखे जा सकते हैं।मान लिया किसी चोरी गई वस्तु की,अथवा गुमशुदा व्यक्ति के बारे में हम जानना चाहते हैं,तो इस प्रयोग को किया जा सकता है।आपका ध्यान जितना केन्द्रित होगा, दृश्य और आभास उतना ही स्पष्ट होगा।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को उक्त विधि से दीपक तैयार कर, दीपक के लौ पर कज्जली(काजल) तैयार करें। हांथ के अंगूठे के नाखून पर लेप करके किसी वालक को आहूत करें,और वांछित प्रश्न का उत्तर जानने का प्रयास करें।अंगूठे पर लगे काजल में झांककर वालक दूरदर्शन के पर्दे की तरह दृश्य देख कर बता सकता है, जो काफी सटीक होता है।इस क्रिया को करने के लिए साबर तन्त्र के कज्जली मंत्र को साध लेना भी आवश्यक है,तभी सही लाभ मिलेगा।वैसे सामान्य आभास इतने मात्र से ही हो जायेगा।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को जल में पीस कर शरीर पर लेप करने से शस्त्राघात का प्रभाव न के बराबर होता है।
साधित श्वेत अपामार्ग की पत्तियों को जल के साथ पीस कर दंशित स्थान पर लेप करने से विच्छु- दंश का कष्ट निवारण होता है।इस प्रयोग में साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को भी ग्रहण करना चाहिए- इसे आतुर को सुंघाते रहना चाहिए।दोनों प्रयोग एक साथ करने से शीघ्र लाभ होता है।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल और पत्तियों को जल के साथ पीस कर,अथवा चूर्ण बनाकर एक-एक चम्मच की मात्रा में ग्रहण करने से विभिन्न पित्तज व्याधियां नष्ट होती हैं।
साधित श्वेत अपामार्ग पंचाग को आठ गुने जल में डाल कर अष्टमांश क्वाथ बनावे।फिर उस क्वाथ को तैल-पाक विधि से तिल-तेल में पका कर,सिद्ध तेल को छान कर सुरक्षित रख लें।इसके लेपन का प्रयोग शरीर के अंगों के जल जाने पर ,या अन्य व्रणों के रोपण में करने से आशातीत लाभ होता है।मैंने इस प्रयोग को सैंकड़ों बार किया है- जलने का दाग तक मिट जाता है।त्वचा के अन्याय रोगों में भी इस अपामार्ग तेल का प्रयोग किया जा सकता है।
साधित श्वेत अपामार्ग पंचाग के भस्म को दंत-मंजन की तरह प्रयोग करने से दन्त,जिह्वा,तालु,कंठ-स्वर मंडल आदि के विभिन्न रोगों का नाश होता है।
साधित श्वेत अपामार्ग-मूल को लाल धागे में बांध कर प्रसव-वेदना पीड़िता के कमर में बांध देने से सुख प्रसव हो जाता है।कुछ लोग इस मूल को सीधे योनी में रखने का सुझाव देते हैं,किन्तु व्यवहारिक रुप से यह उचित नहीं प्रतीत होता।मूल को कमर में ही बांधे और ध्यान रहे कि प्रसव होते के साथ,(तत्क्षण) ही कमर से खोल दे,अन्यथा अपनी तीव्र शक्ति के प्रभाव से गर्भाशय को भी बाहर खींच सकता है।
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