वनस्पति तंत्र भाग 6
विजया
विजया का प्रचलित नाम भांग(भंग) है।इसका एक व्यंगोक्ति नाम शिवप्रिया भी है- क्यों कि शिव को विशेष प्रिय है।शिवाराधन में अन्य पूजनोपचारों के साथ विल्वपत्र और विजया अनिवार्य है। विल्वपत्र का प्रयोग तो अन्य देवों के पूजन में भी होता है,किन्तु विजया एकमात्र शिवप्रिया ही है।प्रायः सर्व सुलभ क्षुप जातीय इस वनस्पति के रोपण हेतु सरकारी आज्ञापत्र की आवश्यकता होती है,क्यों कि इसके सर्वांग में मादकता गुण है।वैसे जंगली वूटियों की तरह प्रायः जहां-तहां अवांछित रुप से उग भी जाता है।भांग की पत्तियों को पीस कर गोली बनाकर या शर्बत के रुप में लोग पीते हैं।नशे के विभिन्न पदार्थों में विजया का नशा अपने आप में अनूठा ही है।वैसे यह शाही घरानों से जुड़ा रहा है।विजया का प्रयोग आयुर्वेद के विभिन्न औषधियों में होता है।इसके कुछ तान्त्रिक प्रयोग भी हैं,जो खासकर स्वास्थ्य से ही सम्बन्धित हैं। भांग को एक खास विधि से खास समय में प्रयोग करने से गुण में काफि वृद्धि हो जाती है।प्रयोग पूर्व की विधि अन्याय वनस्पतियों जैसी ही है।बाजार से यथेष्ठ मात्रा में भांग की सूखी पत्तियाँ खरीद लायें।उतित होगा कि यह कार्य श्रावण महीने में किसी सोमवार को किया जाय।झाड़-पोंछ कर स्वच्छ करने के बाद नवीन लाल वस्त्र का आसन देकर स्थापित करें और कम से कम ग्यारह हजार शिव पंचाक्षर मंत्र का जप करें।जप के पूर्व शिव की पंचोपचार पूजन अवश्य कर लें।साथ ही भांग की पोटली की भी पूजा करें- उसमें शिव को आवाहित करके।इस प्रकार प्रयोग के लिए बूटी तैयार हो गयी।
भांग के प्रयोग के लिए कुछ सहयोगी घटक भी अनिवार्य हैं, यथा- सौंफ,कागजी बादाम,काली मिर्च, छोटी इलाइची,गुलाब की पंखुड़ियां,केसर,दूध और शक्कर(मिश्री)। भांग की मात्रा (सामान्य जन के लिए) नित्य एक ग्राम से अधिक नहीं हो।वैसे नशे के आदि लोग तो पांच से दश ग्राम तक सेवन कर लेते हैं।पर यह उचित नहीं है।समुचित मात्रा में साधित विजया का नियमित प्रयोग मेधा शक्ति को बढ़ाने में काफी कारगर है। साल के बारह महीनों में विजया प्रयोग के लिए अलग-अलग अनुपान का महत्व तन्त्रात्मक आयुर्वेद में बतलाया गया है,जो निम्नलिखित हैं-
* चैत्र- ऊपर निर्दिष्ट घटकों के साथ प्रयोग करें। चिन्तन,धारणा,स्मरण-शक्ति को विजया से काफी बल मिलता है।
* वैशाख- ऊपर निर्दिष्ट घटकों के साथ प्रयोग करें। चिन्तन,धारणा,स्मरण-शक्ति के लिए गुणकारी है।स्नायु संस्थान के लिए अति उत्तम है।
* ज्येष्ठ- इस महीने में उक्त घटकों के साथ विजया-पेय तैयार कर, सूर्योदय के जितने समीप ग्रहण कर सके, उतना लाभदायी है- शारीरिक बल-कान्ति-सौन्दर्य के लिए।
* आषाढ़- इस महीने में विजया का नियमित सेवन केश-कल्प का कार्य करता है।प्रयोग की विधि बदल जाती है।उक्त महीनों की तरह पेय के रुप में न लेकर,चूर्ण के रुप में लेना चाहिए साथ में चित्रक का चूर्ण भी समान मात्रा में मिलाकर धारोष्ण दूध या सामान्य गरम दूध के साथ लेना चाहिए।
* श्रावण- इस महीने में विजया-चूर्ण के साथ शिवलिंगी-बीज के चूर्ण को मिलाकर दूध या उक्त घटक के साथ पेय के रुप में सेवन करने से बल-वीर्य-कान्ति की बृद्धि होती है।(शिवलिंगी के सम्बन्ध में विशेष जानकारी शिवलिंगी अध्याय में देखें)।
* भादो- इस महीने में विजया-चूर्ण को रुदन्ती-फल-चूर्ण के साथ समान मात्रा में मिलाकर दूध के साथ सेवन करने से मानसिक अशान्ति दूर होकर चित्त की एकाग्रता में बृद्धि होती है।सुविधा के लिए इसे गोली बनाकर भी उपयोग किया जा सकता है।
* आश्विन- इस महीने में विजया के पत्तों को समान मात्रा में ज्योतिष्मति(मालकांगनी) के साथ चूर्ण बनाकर दुग्ध के साथ सेवन करने से तेजबल की बृद्धि होती है।
* कार्तिक- इस महीने में विजया के पत्तों को समान मात्रा में ज्योतिष्मति(मालकांगनी) के साथ चूर्ण बनाकर बकरी के दूध के साथ सेवन करने से तेजबल की बृद्धि होती है।यानी अन्य बातें वही रही जो आश्वन की थी,किन्तु अनुपान बदल गया।ध्यातव्य है कि आयुर्वेद में अनुपान-भेद से एक ही औषधि अनेक रोगों में प्रयुक्त होती है।तन्त्र में भी क्रिया भेद से प्रयोग और प्रभाव में अन्तर हो जाता है।
* अगहन- इस महीने में विजया-चूर्ण को घी और मिश्री के साथ सेवन करने से समस्त नेत्र रोगों में लाभ होता है।स्वस्थ व्यक्ति भी नेत्र-ज्योति की रक्षा के लिए इस प्रयोग को कर सकते हैं।
* पौष- इस महीने में विजया-चूर्ण को काले तिल के चूर्ण के साथ सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ़ती है।अनुपान गरम जल का होना चाहिए।कुछ लोग दूध का अनुपान सही बताते हैं,किन्तु मेरे विचार से काले तिल के साथ दूध सर्वथा वर्जित होना चाहिए।इससे एक लाभ तो हो जायेगा,पर अनेक हानि के द्वार भी खुलेंगे।अतः इस निषेध का ध्यान रखना जरुरी है।
* माघ- इस महीने में विजया-चूर्ण को नागरमोथा-चूर्ण के साथ मिलाकर दूध या गरम जल से सेवन करना चाहिए।इससे शरीर का भार बढ़ता है(मोटे लोग इसका प्रयोग न करें)।
* फाल्गुन- इस महीने में विजया को चार गुने आंवले के साथ मिलाकर चूर्ण बनाकर,गरम जल के साथ सेवन करने से अद्भुत स्फूर्ति आती है।वात,रक्त,नाड़ी सभी संस्थानों का शोधन होकर शरीर कान्ति-शक्तिवान होता है।
इस प्रकार साल के बारह महीनों में अलग-अलग घटकों और अनुपान भेद से विजया कल्प का प्रयोग किया जा सकता है।
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