Thursday, February 28, 2019

सम्भोग से समझिये कुण्डलिनी महाशक्ति साधना को भाग 2

सम्भोग से समझिये कुण्डलिनी महाशक्ति साधना को भाग 2

कुंडलिनी तंत्र और गृहस्थ जीवन


कुंडलिनी साधना विश्व की एकमात्र साधना है जो मोक्ष देती है ,इसलिए यही साधना सभी योगियों तांत्रिकों ,मनीषियों ,ऋषियों की मूल साधना रही है | यह साधना शुरू में योग आधारित रही | बाद में कुछ इस तरह की परिस्थितियां बनी की सामान्य जन के लिए यह साधना कठिन होती गई | तब हमारे मनीषियों योगियों ने इसकी तकनीकियों में परिवर्तन कर इसे गृहस्थों के अनुकूल बनाया | तात्कालिक परिस्थिति के आधार पर कुंडलिनी साधना दो प्रकार की बन गई | एक प्राणायाम और योग मुद्राओं वाली -- जिसमे शक्ति चालिनी मुद्रा ,उद्दयान बांध तथा कुम्भक प्राणायाम का वीर्य के ओज परिवर्तन में विशेष महत्त्व प्रतिपादित किया गया | ऐसी साधना प्रक्रिया अविवाहित ,विधुर अथवा सन्यासियों के लिए विशेष महत्वपूर्ण रही | यह निवृत्त्मार्गी साधना उनके लिए उपयुक्त नहीं रही जो गृहस्थास्रम में रहकर परिवारीजनों के कर्तव्यकर्म पूर्ण करते हुए साधना रत रहना चाहते थे | गृहस्थ बिना स्त्री के नहीं चलता और संन्यास स्त्री के रहते नहीं चलता | परन्तु जहाँ तक साधना के विकास का प्रश्न है अथवा आत्मोत्थान का प्रश्न है ,क्या गृहस्थ और क्या सन्यासी ,क्या स्त्री क्या पुरुष ,सभी सामान अधिकार रखते हैं और आवश्यकता अनुभव करते हैं | ऐसे प्रवृत्तिमार्गी गृहस्थों के लिए स्त्री के साथ ही साधनारत होने का मार्ग भी ऋषियों ने खोज निकाला | निवृत्त मार्ग में जो कार्य शक्तिचालिनी मुद्रा ने किया वह कार्य वह कार्य प्रवृत्ति मार्ग में सम्भोग मुद्रा से किया गया ,शेष बांध और कुम्भक अपने अपने स्थानों और कार्यों में यथावत रहे | रमण मुद्रा को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए ऋषियों ने विभिन्न प्रकार की काम मुद्राएँ ,बाजीकरण विधियाँ तथा तांत्रिक औषधियां खोज डाली | इस प्रकार वीर्य को उर्ध्वागति देने के लिए जहाँ सन्यासी लोग भस्रिका का प्रयोग करते थे वहां प्रवृत्ति मार्गी तांत्रिक दीर्घ सम्भोग का उपयोग करने लगे | इस प्रकार कुंडलिनी साधना का दूसरा प्रकार रमण मुद्राओं वाला बन गया | सम्भोग के कारण इस साधना में पुरुष और स्त्री का बराबर का हाथ रहा | रमण एक तकनिकी क्रिया है ,जिसमे जनन तंत्र का उपयोग होता है ,इस कारण रमण साधना तांत्रिक कहलाई |
जनन तंत्र के विषय में हमारी संस्कृति प्रारम्भ से ही गुप्त बनाई गई ,क्योकि असभ्य संस्कृतियों वाले आदिवासी कुछ भी गुप्त नहीं रखते थे | अतः सभ्य संस्कृति वालों ने जनन तंत्र सम्बन्धी विषय को गुप्त घोषित कर दिया | इस प्रकार रमण साधना हमारे घरों में गुप्त साधना हो गई | उसे यहाँ तक गुप्त बनाने का प्रयत्न किया गया की सामान्य हवन यज्ञ में ॐ प्रजापतये स्वाहा को भी मौन आहुति देने का विधान बना दिया ,व्हूंकी प्रजापति [ प्रजा वर्धन वाला ब्रह्मा की शक्ति ]का कार्य सम्भोग से संपन्न होता है वह सभ्य संस्कृति वाले सबके सम्मुख कैसे बोले | वास्तव में यज्ञ में साड़ी आहुतियाँ सारे मंत्र जोर जोर से बोलते बोलते प्रजापति स्वाहा बोलते समय मौन हो जाना तांत्रिक साधना की पुष्टि करता है | जहाँ हवं यज्ञ सांसारिक सुख -आनंद ,वैभव ,और परिवार के विकास के लिए किया जाता है वहां प्रजापति आहुति पूरे जोर शोर से दि जाती है ,वहां मौन आहुति का विधान नहीं है ,चूंकि परिवार की वृद्धि के लिए तो वीर्य की अधोगति में ही रमण यज्ञ की पूर्णता है | किन्तु जहाँ आध्यात्मिक उन्नति के लिए यज्ञ हो तो प्रजापति आहुति मौन हो जाती है | यज्ञ का एक अर्थ सम्भोग भी है | जब व्यक्ति सम्भोग यज्ञ द्वारा कुंडलिनी साधना में रत होता है तो उस वीर्य को उर्ध्व गति करनी होती है | परन्तु प्रजा वर्धन का कार्य वीर्य की अधोगति करने पर ही संपन्न होता है | अतः सम्पूर्ण यज्ञ क्रिया ,सम्पूर्ण रमण क्रिया पूरे जोर शोर के साथ उस बिंदु तक चलती रहेगी जब तक की स्खलन बिंदु न आ जाए |ज्योही वह बिंदु आये ,सम्भोग यज्ञ में कुम्भक प्राणायाम करके मूल बंध सहित वज्रोली मुद्रा की जाए तो वीर्य की उर्ध्वागति हो जाती है ,अतः एक क्षण के लिए वह सम्भोग यज्ञ प्रजापति के बिंदु पर मौन हो जाएगा | ज्योही वह स्थिति समाप्त हो जाए ,यज्ञ कार्य आगे बढाया जा सकता है |
रमण साधना को गुप्त घोषित किये जाने के कारण कुंडलिनी तंत्र परम गुप्त बन गया क्योकि प्रजावर्धन से कहीं अधिक सूक्ष्म क्रियाये ओज वर्धन की हैं |प्रजावर्धन के लिए स्खलन में ही सम्भोग की पूर्णता है ,जबकि ओज वर्धन के लिए स्खलित हो जाना भ्रष्ट संभोग है |वीर्य से तेज निर्मित होने तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया सम्भोग के अंतर्गत आती है और सम्भोग रत दम्पति के ऊपर प्रकाश वलय चमकाना ही ऐसे रमण की पूर्णता है | इस पूर्णता में भी स्खलन नहीं है |
तंत्र की शुरुआत भारतीय ऋषियों योगियों द्वारा ही की गई और इसके आदि गुरु और प्रवर्तक महा योगी महेश्वर अर्थात शिव शंकर हैं | चूंकि यह खुद गृहस्थ थे अतः इन्होने मोक्ष का मार्ग कुंडलिनी साधना गृहस्थों के लिए अनुकूल बनाया और इसमें तकनिकी आदि का समावेश किया ,इसे तन से ,विस्तारित होने से ,तकनिकी प्रयोग से तंत्र नाम दिया गया क्योकि इसकी क्रियाविधीन में अनेकानेक तकनीकियों का उपयोग हुआ | कुंडलिनी साधना सदैव से मूल साधना और मोक्ष का एकमात्र मार्ग रहा है जो ऋषियों योगियों द्वारा किया जाता था | गृहस्थों के लिए इसका विशिष्ट रूप महेश्वर और अन्य योगियों द्वारा विक्सित किया गया | यह योग साधना से बिलकुल उलटा चलता था ,यद्यपि इसमें भी यौगिक क्रियाएं बंध ,मुद्रा आदि सम्मिलित थी | इसमें सृष्टि की ऊर्जा अर्थात काम का उपयोग किया गया और आधार मूलाधार को बनाया गया | इस कुंडलिनी साधना को जो काम आधारित था बाद में बौद्धों ,कापालिकों ,तत्पश्चात कॉलों आदि द्वारा अपनाया गया और अनेक सुधार भी हुए और अनेक विकृति भी उत्पन्न हुई |
ध्यान देने की बात है की मूल कुंडलिनी तंत्र में वीर्य स्खलन की मनाही है जिससे ओज और तेज निर्मित हो किन्तु बाद के भ्रष्ट भोगियों और तथाकथित तांत्रिकों ने स्खलन को भी धार्मिक आधार दे दिया जिससे उन्हें खुले भोग की अनुमति मिल जाए | इन्होने ऐसे ऐसे शास्त्रों की रचना की जिनमे महेश्वर अथवा शिव का नाम लेकर इन्होने लिख दिया की वीर्य पात करके देवी देवता को चढ़ाया जाए | सोचने वाली बात है की वीर्य के उर्ध्वा होने से ही ओज ,तेज का निर्माण होता है और चक्र जागरण होता है ,जबकि पात से तो शक्ति जाती है ,ऐसे में पात से कैसे कुंडलिनी जागेगी अथवा कैसे चक्र जागेगा और कैसे शक्ति या सिद्धि मिलेगी | यह तो भोग का माध्यम हो गया | आज बहुतायत ऐसे ही भ्रष्ट तांत्रिक मिलते हैं | वास्तविक तंत्र साधना तो कुंडलिनी साधना ही है जो गृहस्थों के अनुकूल बनाई और गयी जिसका अपहरण कर उसे विकृत कर दिया गया |

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विशेष सुचना

( जो भी मंत्र तंत्र टोटका इत्यादि ब्लॉग में दिए गए है वे केवल सूचनार्थ ही है, अगर साधना करनी है तो वो पूर्ण जानकार गुरु के निर्देशन में ही करने से लाभदायक होंगे, किसी भी नुक्सान हानि के लिए प्रकाशक व लेखक जिम्मेदार नहीं होगा। )