वनस्पति तंत्र भाग 5
नागदमनीवनस्पति-जगत में अनेकानेक पौधे हैं,जिन सबका विस्तृत गुण-धर्म-संकलन किसी एक भाषा की पुस्तक में एकत्र कर देना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है। आयुर्वेद का निघण्टु संग्रह काफी हद तक इस क्षेत्र में काम किया है।आधुनिक वनस्पति विज्ञान भी नित नूतन शोध में जुटा है;किन्तु मुझे लगता है कि पुराने को ही नये अन्दाज में देखने भर-का जितना प्रयास किया जा रहा है- उतना किसी नये पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।असंख्य वनस्पतियाँ अभी भी उपेक्षित हैं हमारे चारों ओर।नागदमनी भी कुछ वैसा ही वनस्पति है।
अपनी हरीतिमा और दण्डाकार संरचना में शोभायमान नागदमनी महज बाढ़ लगाने के काम तक सिमट कर रह गया है।कहीं-कहीं एकाध गमले में भी दीख पड़ता है।नागदमनी के पत्ते गहरे हरे रंग के,तनिक लंबाई वाले,तदनुसार चौड़ाई भी थोड़ी ही- ऊर्ध्वमुखी शाखाओं पर अल्प संख्या में ही होते हैं।कम जल और किसी भी वातावरण में जीवित रहने वाला नागदमनी के डंठल को तोड़-काट कर भी आसानी से लगाया जा सकता है।एक और विशेषता यह भी है कि पशु इसे खाते नहीं- यही कारण है कि घेरेबन्दी में सुरक्षित-उपयोग होता है।नागदमन,दर्पदमन,नागपुष्पी,वनकुमारी के साथ सर्पदमन नाम से भी जाना जाता है।मान्यता है कि इसके आसपास सर्प नहीं आते।यही कारण है कि जानकार लोग गमलों में सम्मान पूर्वक स्थान देते हैं।तन्त्र-ग्रन्थों में महायोगेश्वरी नाम से ख्यात है।
प्रायोगिकक्रिया-
रविपुष्य योग में नागदमनी की जड़ विधिवत(पूर्व अध्यायों में कथित विधि से) ग्रहण कर जलादि शुद्धि-संस्कार करके नवीन लाल वस्त्र का आसन देकर पीठिका पर स्थापित कर यथोपचार पूजन करना चाहिए।पूजन के पश्चात् कम से कम ग्यारह माला श्री शिवपंचाक्षर मंत्र एवं नौ माला देवी नवार्ण मंत्र का जप कर,पुनः पंचोपचार पूजन करना चाहिए।तथा सामान्य साकल्य(काला तिल,तदर्घ चावल,तदर्ध जौ,तदर्घ गूड़, तदर्ध घृत) से कम से कम अष्टोत्तरशत तततत मंत्रो से होम भी अवश्य करें।इतनी क्रिया से तान्त्रिक प्रयोग के लिए नामदमनी तैयार हो गया।इसके प्रयोग अति सीमित हैं।यथा-
मेधा-शक्ति-वर्धन- मन्दबुद्धि बालकों को साधित नामदमनी मूल को भद्रादि रहित किसी रविवार या मंगलवार को ताबीज में भर कर लाल धागे में पिरोकर गले या बांह में बांध देने से अद्भुत लाभ होता है।सामान्य बालकों के बौद्धिक विकास हेतु भी यह प्रयोग किया जा सकता है।
सम्मान-यश-विजय-प्राप्ति हेतु- आये दिन हम देखते हैं कि अकारण ही प्रायः लोगों को अयश और असम्मान का सामना करना पड़ता है।हालाकि उसके अनेक कारण हैं।कारण चाहे जो भी हों,ऐसी स्थिति में नामदमनी का प्रयोग बड़ा ही लाभकारक होता है।करना सिर्फ यही है जो ऊपर के प्रयोग में बतला आए हैं- यानी ताबीज में भर कर धारण मात्र।
धन-वृद्धि हेतु- रविपुष्य योग में आमन्त्रण विधि से(पूर्व अध्यायों में वर्णित) नागदमनी का पौधा घर में ले आयें और नये गमले में रोपण करके,ऊपर बतलायी गयी विधि से स्थापन पूजन-जप-होमादि सम्पन्न करें।(ध्यातव्य है कि गमले में रोपण करने से पूर्व थोड़ा सा मूलभाग तोड़कर अलग रख लें,और सारी विधियाँ साथ-साथ उसके लिए भी करते जाएं)।इस प्रकार साधित नामदमनी के पौधे को घर के मध्योत्तर भाग में स्थापित कर दें और नित्य जलार्पण कर प्रणाम करके,कम से कम एक माला श्री महालक्ष्मी मंत्र का जप सुविधानुसार खड़े या बैठ कर कर लिया करें।साधित जड़ को ताबीज में भर कर लाल धागे में पिरोकर गले या बांह में बांध लें।आप अनुभव करेंगे कि थोड़े ही दिनों में धनागम के नये स्रोत खुल रहे हैं,साथ ही पहले के होते आरहे धन का प्रतिकूल प्रवाह भी रुक गया है।
ग्रह-दोष-निवारण- उक्त विधान से साधित नागदमनी की जड़ को ताबीज में भरकर धारण करन से विभिन्न ग्रहदोषों का निवारण होता है,साथ ही अन्तरिक्ष वाधाओं का भी शमन होता है।घर में पूर्व विधि से स्थापित करने से मकान पर पड़ने वाला ग्रहों का प्रतिकूल प्रभाव भी नष्ट होता है।ध्यातव्य है कि मकान की रक्षा के लिए नागदमनी का स्थापन-पूजन तो पूर्व विधि से ही होगा,किन्तु गमले का स्थान मुख्य द्वार की सीध में होना आवश्यक है।सुविधा हो तो मुख्य द्वार के दोनों ओर एक-एक गमले रख सकते हैं।दूसरी बात ध्यान में रखने योग्य है कि यदि पहले से आपका मकान भूत-प्रेत-वाधाओं से ग्रसित है,तो वैसी स्थिति में नागदमनी की स्थापना के पूर्व विशेष जानकार वास्तुशास्त्री से परीक्षण कराकर,शान्तिकर्म अवश्य करा लें,अन्यथा उलटा प्रभाव हो सकता है।इस बात को यों समझें कि घर में अवांक्षित का प्रवेश है यदि, तो पहले उसे बाहर करलें,तब दरवाजा बन्द करें।नामदमनी का सुरक्षा कवच अपनी स्थापना के बाद अवांछित को आने नहीं देगा,किन्तु पहले से जो घर में उपस्थित है उसे बाहर नहीं करेगा,और दूसरी ओर मुख्यद्वार नागदमनी-कवच से अवरुद्ध हो जाने के कारण अवांछित पदार्थ चाह कर भी बाहर नहीं निकल पायेगा।परिणाम यह होगा कि वह घर के अन्दर ही उतपात मचाता रहेगा।अतः सावधानी से इसका प्रयोग करना चाहिए।
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