30 मुहूर्तों के नाम, कौन से मुहूर्त में क्या करें
मुहूर्त को लेकर मुहूर्त मार्तण्ड, मुहूर्त गणपति, मुहूर्त चिंतामणि, मुहूर्त पारिजात, धर्म सिंधु, निर्णय सिंधु आदि शास्त्र हैं। इसमें मुहूर्त के बारे में विस्तार से बताया गया है। दिन और रात को मिलाकर कुल 30 मुहूर्त होते हैं।कितने होते हैं मुहूर्त?
दिन और रात के 24 घंटे के समय के अनुसार देखा जाए तो प्रात: 6 बजे से लेकर दिन-रात मिलाकर प्रात: 5 बजकर 12 मिनट तक कुल 30 मुहूर्त होते हैं। एक मुहूर्त 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट के बराबर होता है। 24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं:- मुहूर्त सुबह 6 बजे से शुरू होता है।
मुहूर्तों के नाम : 1.रुद्र, 2.आहि, 3.मित्र, 4.पितॄ, 5.वसु, 6.वाराह, 7.विश्वेदेवा, 8.विधि, 9.सतमुखी, 10.पुरुहूत, 11.वाहिनी, 12.नक्तनकरा, 13.वरुण, 14.अर्यमा, 15.भग, 16.गिरीश, 17.अजपाद, 18.अहिर, 19.बुध्न्य, 20.पुष्य, 21.अश्विनी, 22.यम, 23.अग्नि, 24.विधातॄ, 25.कण्ड, 26.अदिति जीव/अमृत, 27.विष्णु, 28.युमिगद्युति, 29.ब्रह्म और 30.समुद्रम।
शुभ मुहूर्त क्या है?
मुहूर्त दो तरह के होते हैं शुभ मुहूर्त और अशुभ मुहूर्त। शुभ को ग्राह्य समय और अशुभ को अग्राह्य समय कहते हैं। शुभ मुहूर्त किसी भी मांगलिक कार्य को शुरू करने का ऐसा शुभ समय होता है जिसमें तमाम ग्रह और नक्षत्र शुभ परिणाम देने वाले होते हैं। इस समय में कार्यारंभ करने से लक्ष्यों को हासिल करने में सफलता मिलती है और काम में लगने वाली अड़चने दूर होती हैं। शुभ मुहूर्त जानते समय वक्त तिथि, वार, नक्षत्र, पक्ष, अयन, चौघड़ियां एवं लग्न आदि का भी ध्यान रखा जाता है।
शुभ मुहूर्त कौन से हैं?
शुभ मुहूर्त कुल 15 है। शुभ मुहूर्त में रुद्र, श्वेत, मित्र, सारभट, सावित्र, वैराज, विश्वावसु, अभिजित, रोहिण, बल, विजय, नैरऋत, वरुण सौम्य और भग ये 15 मुहूर्त हैं। अमृत/जीव मुहूर्त और ब्रह्म मुहूर्त बहुत श्रेष्ठ होते हैं
उक्त मुहूर्त में क्या करें?
*रुद्र में सभी प्रकार के मारणादि प्रयोग, भयंकर एवं क्रूर कार्य।
*श्वेत में नए वस्त्र धारण, बगीचा लगाना, कृषि कार्यो का आरंभ आदि या इसी तरह के अन्य कार्य करना चाहिए।
*मित्र में मित्रता, मेल-मिलाप और संधि आदि के कार्य करें।
*सारभट में शत्रुओं के लिए अभिचार कर्म करना।
*सावित्र में सभी प्रकार के यज्ञ, विवाह, चूडाकर्म, उपनयन, देवकार्य आदि संस्कार किए जाते हैं।
*वैराज में पराक्रम के कार्य, शस्त्रों का निर्माण, वस्त्रों का दान आदि किया जाता है।
*विश्वावसु द्विजाति के स्वाध्याय संबंधी सभी कार्य एवं अर्थ सिद्धि के कार्य किए जाते हैं।
*अभिजित में सभी वर्ण एवं जाति के मेल-मिलाप संबंधी कार्य, धन संग्रह, यात्रा आदि के कार्य किए जाते हैं। यह मुहूर्त सब प्रकार की कामनाओं को पूर्ण करने वाला भी माना गया है।
*रोहिणी में पेड़, पौधे, बेल, लताएं आदि लगाए जाते हैं। इससे वे निरोग रहकर उन पर सर्वदा ही सुन्दर फल एवं फूल लगे रहते हैं।
*बल में सेनाओं का संचालन और आक्रमण करने का कार्य किया जाता है जिसके चलते विजय अवश्य प्राप्त होती है।
*विजय में स्वस्ति वाचन तथा शांति पाठ आदि मंगलाचार कार्यो को संपन्न किया जाता है। किसी देश आदि पर चढ़ाई करने के लिए यह मुहूर्त श्रेष्ठ होता है।
*नैरऋत में शत्रुओं के राष्ट्रों पर आक्रमण करना शुभ होता है। इस मुहूर्त में आक्रमण करके उनकी संपूर्ण सेना को नष्ट किया जा सकता है।
*वरुण में जल में उत्पन्न होने वाले धान्य, गेंहूं, जौ, धान, कमल आदि के बीज बोना शुभ होता है।
सौम्य में सभी तरह के मांगलिक या शुभ कार्य सफल होते हैं।
*भग में कन्याओं के सौभाग्य कार्य अर्थात पाणिग्रहण संस्कार को करना शुभ होता है।
इन दिनों के मुहूर्त वर्जित :
रवि के दिन 14वां, सोमवार के दिन 12वां, मंगलवार के दिन 10वां, बुधवार के दिन 8वां, गुरु के दिन 6टा, शुक्रवार के दिन 4था और शनिवार के दिन दूसरा मुहूर्त कुलिक शुभ कार्यों में वर्जित हैं।
विशेष मुहूर्त योग :
सर्वार्थसिद्धि, अमृतसिद्धि, गुरुपुष्यामृत और रविपुष्यामृत योग। यदि सोमवार के दिन रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा तथा श्रवण नक्षत्र हो तो सर्वार्थसिद्धि योग का निर्माण होता है। शुभ मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है- गुरु-पुष्य योग। यदि गुरुवार को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में हो तो इससे पूर्ण सिद्धिदायक योग बन जाता है। जब चतुर्दशी सोमवार को और पूर्णिमा या अमावस्या मंगलवार को हो तो सिद्धिदायक मुहूर्त होता है।
शुभ मुहूर्त में क्या करें ?
1. गर्भाधान, पुंसवन, जातकर्म-नामकरण, मुंडन, विवाह आदि संस्कार।
2. भवन निर्माण में मकान-दुकान की नींव, द्वार, गृहप्रवेश, चूल्हा भट्टी आदि का शुभारंभ।
3. व्यापार, नौकरी आदि आय प्राप्ति के साधनों का शुभारंभ।
4. पवित्रता हेतु किए जाने वाले स्नान।
5. यात्रा और तीर्थ आदि जाने के लिए भी शुभ मुहूर्त को देखा जाता है।
6. स्वर्ण आभूषण, कीमती वस्त्र आदि खरीदना, पहनना।
7.वाहन खरीदना, यात्रा आरम्भ करना आदि।
8. मुकद्दमा दायर करना, ग्रह शान्त्यर्थ रत्न धारण करना आदि।
9. किसी परीक्षा प्रतियोगिता या नौकरी के लिए आवेदन-पत्र भरना आदि।
इस समय में ना करें मांगलिक कार्य :
1. पंचकों में ये कार्य निषेध माने गए हैं- श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तरा भाद्रप्रद तथा रेवती नक्षत्रों में पड़ने वाले पंचकों में दक्षिण की यात्रा, मकान निर्माण, मकान छत डालना, पलंग खरीदना-बनवाना, लकड़ी और घास का संग्रह करना, रस्सी कसना और अन्य मंगल कार्य नहीं करना चाहिए। किसी का पंचकों में मरण होने से पंचकों की विधिपूर्वक शांति अवश्य करवानी चाहिए।
2. बुधवार और शुक्रवार के दिन पड़ने वाले पुष्य नक्षत्र उत्पातकारी भी माने गए है। ऐसे में शुभ कार्यों से बचना चाहिए। जैसे विवाह करना, मकान खरीदना, गृह प्रवेश आदि। रवि तथा गुरु पुष्य योग सर्वार्थ सिद्धिकारक माना गया है।
3. रविवार, मंगलवार, संक्राति का दिन, वृद्धि योग, द्विपुष्कर योग, त्रिपुष्कर योग, हस्त नक्षत्र में लिया गया ऋण कभी नहीं चुकाया जाता। अंत: उक्त दिन में ऋण का लेना-देना भी निषेध माना गया है।
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