वनस्पति तंत्र भाग 2
कमल
कमल एक बहु प्रचलित जलज पुष्प है,जो तड़ागों में अपनी शोभा विखेरता है।लाल,गुलाबी, सफेद, पीला,नीला,आदि इसके कई रंगभेद हैं।अम्बुज,अब्ज,जलज,बारिज,उत्पल,पद्म,कोकनद,सरसिज,तामरस,शतदल, सहस्रदल,राजीव, आदि कई नाम हैं इसके। लक्ष्मीनारायण का यह अतिशय प्रिय पुष्प है।कमल एक विशुद्ध सात्विक पुष्प है- सात्विकता का सहज प्रतीक।फलतः तन्त्रशास्त्रों में इसके सात्विक प्रयोगों पर ही बल दिया गया है।कतिपय तामसिक प्रयोग भी हैं,किन्तु उनकी चर्चा यहाँ करना अनुचित-अप्रासंगिक सा लग रहा है।जैसा कि ऊपर कह चुके हैं- लक्ष्मीनारायण का प्रिय पुष्प है।अतः लक्ष्मीनारायण को वशीभूत करने की अद्भुत क्षमता है इसमें।एक पौराणिक प्रसंग है कि राजीव लोचन श्रीराम एकबार शिवाराधन में संलग्न थे। एक लाख कमल पुष्पों से साम्बसदाशिव को प्रसन्न करने का संकल्प था।निन्यानबे हजार नौ सौ निन्यानबे की संख्या पूरी हो चुकी थी,पर अभीष्ट पूर्ति हेतु अन्तिम पुष्प उपलब्ध नहीं था,जबकि सेवकों ने पूरी संख्या जुटायी थी।क्षणभर के लिए तो श्रीराम थोड़ा चिन्तित हुए,किन्तु तभी उन्हें ध्यान आया कि लोग तो उन्हें राजीव नयन कहते हैं,और यह ध्यान आते ही, चट उठाया कृपाण,और अपनी दांयी आँख निकालकर शिव-चरणों में सपर्पित करने को उद्यत हुए; और तभी साम्बसदाशिव उपस्थित हो गये।यह है श्रीराम की भक्ति की शक्ति।
किसी अभीष्ट की सिद्धि में कमल का अद्भुत प्रयोग है।१०८,१०००८,१००००८-कमल पुष्पों का तदिष्ट मंत्र से समर्पण अद्भुत चमत्कारी होता है।लक्ष्मी-प्राप्ति हेतु- विशेषकर कार्तिक के महीने में वेदोक्त श्रीसूक्त का पाठ करते हुए प्रत्येक मंत्र से कमल-पुष्प श्रीचरणों में अर्पित करना चाहिए।नित्य क्रिया के पश्चात् गोघृत और काले तिल से उक्त संख्या पर्यन्त आहुति भी प्रदान करें।
श्रीबिष्णु की प्रसन्नता हेतु वेदोक्त पुरुषसूक्त का पाठ करें,और प्रत्येक मंत्र पर एक कमलपुष्प समर्पित करें- विशेषकर वैशाख-अगहन-माघ के महीनों में।सोलह दिनों के अनुष्ठान के पश्चात् श्रीबिष्णु के द्वादशाक्षर मंत्र से अष्टोत्तर शत वा अष्टोत्तरसहस्र आहुति घृततिलादि साकल्य से करनी चाहिए।
पद्माख-प्रयोग-
कमल के बीजों को पद्मांख या कमलगटा कहते हैं।ताजी अवस्था में इन बीजों को छेदकर माला बनाया जा सकता है।सूख जाने पर बनाना बहुत कठिन हो जाता है।वैसे बाजार में कमलगटे की बनी-बनायी माला भी उपलब्ध है।सही ग्रन्थियुक्त माला खरीद कर पूर्व(रुद्राक्ष अध्याय में) वर्णित विधि से माला-संस्कार करके उपयोग किया जा सकता है।स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु यह अद्भुत प्रयोग है।लक्ष्मी के अनुष्ठान के लिए रुद्राक्ष की अपेक्षा पद्माख का प्रयोग उत्तम माना गया है।अपने नामराशि से गणना विचार करके किसी अनुकूल लक्ष्मी-मंत्र का चुनाव करना चाहिए।मंत्र सुसाघ्य हो इस बात का घ्यान रखना अति आवश्यक है।दुसाध्य,अरि आदि मंत्रों का चयन कदापि नहीं करना चाहिए।मंत्र-ग्रहण का विशद वर्णन मंत्र-शास्त्रों में उपलब्ध है।वैसे मेरी पुस्तक पुण्यार्कमंत्रप्रदीपिका में भी समयानुसार देखा जा सकता है।
कमल-मूल-प्रयोग-
इसे पुष्करमूल भी कहते हैं।जड़ी-बूटियों की दुकान में इसी नाम से उपलब्ध है। इसका उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक औषधियों में किया जाता है।मानस व्याधियों में इसका विशेष प्रयोग है। तड़ाग से ताजा पुष्करमूल प्राप्त करना सम्भव न हो तो पंसारी की दुकान से खरीद कर प्रयोग किया जा सकता है।रविपुष्य या गुरुपुष्य योगों में विधिवत ग्रहण किया गया पुष्करमूल विशेष कारगर होता है।आयुर्वेद में विभिन्न औषधियों में इसका उपयोग होता है- खास कर मानस-व्याधियों में।स्त्रियों की खास व्याधि- योषापस्मार(हिस्टीरिया)में अतिलाभकारी है।समुचित मुहूर्त में ग्रहण किया गया पुष्करमूल पूर्व अध्याय में वर्णित विधि से स्थापित-पूजित करके,सुखाकर चूर्ण वनाकर, जौ के क्वाथ अथवा चावल से निकले मांड़ के साथ कम से कम तीन माह तक प्रातः-सायं एक-एक चम्मच प्रयोग करने से जटिल योषापस्मार भी साध्य होजाता है।आयुर्वेद ग्रन्थों में अपतन्त्रक चूर्ण का वर्णन है।इसमें पुष्करमूल का प्रयोग होता है।बाजार से तैयार
अपतन्त्रक चूर्ण को भी नवार्ण मंत्र से अभिमंत्रित कर प्रयोग किया जा सकता है।पुष्करमूल फीट-दो फीट लम्बा एक-दो ईंच मोटाई लिए होता है।काटने पर भीतरी स्थिति ठीक बैसी ही होती है जैसा कि भिंडी को काटने पर दीखता है।मूल के छोटे टुकड़ों को धागे में गूंथकर माला बनाकर,सहस्र नवार्ण मंत्राभिष्क्ति करके रोगी के गले में धारण कराने से अपस्मार(मृगी,मिरगी)रोग का शमन होता है।वौद्धिक और मानसिक विकास के लिए पुष्करमूल का औषधीय प्रयोग भी लाभदायक है।
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