Tuesday, November 7, 2017

श्रीसरस्वती स्तोत्रम्

श्रीसरस्वती स्तोत्रम्

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।1।।

आशासु राशीभवदंगवल्ली –
भासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् ।
मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं
वन्देSरविन्दासनसुन्दरि त्वाम्।।2।।

शारदा शारदाम्भोजवदना    वदनाम्बुजे।
सर्वदा       सर्वदास्माकं       सन्निधिं       क्रियात्।।3।।

सरस्वतीं     च   तां   नौमि   वागधिष्ठातृदेवताम्।
देवत्वं        प्रतिपद्यन्ते      यदनुग्रहतो      जना:।।4।।

पातु    नो    निकषग्रावा    मतिहेम्न:   सरस्वती ।
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव   करोति   या।।5।।

शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमामाद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते स्फाटिकमालिकां च दधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे  तां  परमेश्वरीं  भगवतीं  बुद्धिप्रदां  शारदाम्।।6।।

वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरण्चिहरीशवन्द्ये।
कीर्तिप्रदेSखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्।।7।।

श्वेताब्जपूर्णविमलासनसंस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे      ।
उद्यन्मनोज्ञसितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम्।।8।।

मातस्त्वदीयपदपंकजभक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय।
ते    निर्जरत्वमिह   यान्ति   कलेवरेण्
भूवह्निवायुगगनाम्बुविनिर्मितेन     ।।9।।

मोहान्धकारभरिते      हृदये       मदीये
मात:    सदैव   कुरु   वासमुदारभावे।
स्वीयाखिलावयवनिर्मलसुप्रलाभि:
शीघ्रं  विनाशय  मनोगतमन्धकारम्।।10।।

ब्रह्मा  जगत् सृजति  पालयतीन्दिरेश:
शम्भुर्विनाशयति  देवि  तव  प्रभावै:।
न  स्यात्कृपा  यदि  तव  प्रकटप्रभावे
न स्यु: कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षा:।।11।।

लक्ष्मीर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तुष्टि: प्रभा धृति:।
एताभि: पाहि  तनुभिरष्टाभिर्मां सरस्वति।।12।।

सरस्वत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै  नमो  नम:।
वेदवेदान्तवेदांगविद्यास्थानेभ्य    एव   च।।13।।

सरस्वति    महाभागे   विद्ये   कमललोचने।
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोSस्तु ते।।14।।

यदक्षरं   पदं   भ्रष्टं  मात्राहीनं   च   यद्भवेत्।
तत्सर्वं   क्षम्यतां  देवि   प्रसीद  परमेश्वरि।।15।।
||इति श्रीसरस्वतीस्तोत्रं सम्पूर्णम्||

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