Tuesday, November 7, 2017

गणपतिस्तोत्रम

गणपतिस्तोत्रम

निर्विघ्नार्थं हरीशाद्या देवा अपि भजन्ति यम ।
मर्त्यै: स वक्रतुण्डोsर्च्य इति गाणेशसम्मतम ।।1।।

जगत्सृष्ट्यादिहेतु: सा वरा श्रुत्युक्तदेवता ।
गणानां त्वेति मन्त्रेण स्तुतो गृत्समदर्षिणा ।।2।।

इत्युक्तं तत्पुराणेsतो गणेशो ब्रह्मणस्पति: ।
महाकविर्ज्येष्ठराज: श्रूयते मन्त्रकृच्च स: ।।3।।

मन्त्रं वदत्युक्थमेष प्रनूनं ब्रह्मणस्पति: ।
यस्मिन्निन्द्रादय: सर्वे देवा ओकांसि चक्रिरे ।।4।।

स प्रभु: सर्वत: पाता यो रेवान्यो अमीवहा ।
अतोsर्च्योsसौ यश्चतुरो वसुवित्पुष्टिवर्धन: ।।5।।

वक्रतुण्डोsपि सुमुख: साधो गन्तापि चोर्ध्वग: ।
येsमुं नार्चन्ति ते विघ्नै: पराभूता भवन्ति हि ।।6।।

ये दूर्वांकुरलाजाद्यै: पूजयन्ति शिवात्मजम ।
ऎहिकामुष्मिकान भोगान भुक्त्वा मुक्तिं व्रजन्ति ते ।।7।।

।।इति श्रीवासुदेवानन्दसरस्वतीविरचितं गणपतिस्तोत्रम सम्पूर्णम।।

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विशेष सुचना

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