क्या होता है जब लग्नेश दशम भाव में हो
लग्नेश यानि लग्न का स्वामी अगर दशम भाव में स्थित हो तो क्या फल होते है, आज उसकी चर्चा करते है ।
लग्नेश अगर दशम भाव में स्थित हो तो जातक माता- पिता तथा गुरु का भक्त, राज्य द्वारा धन एवं सम्मान प्राप्त करने वाला, विद्वान्, सुशील, यशस्वी, प्रसिद्ध तथा भाग्यवान होता है।
जातक अधिकार, सम्मान तथा सार्वजनिक कार्यो में रूचि लेने वाला होता है।
जातक अपने भुजबल से धनोपार्जन करने वाला तथा प्रथम संतान पुत्र होती है।
ऋषि पाराशर के अनुसार अगर लग्नेश दशम में स्थित हो तो यह एक प्रकार का राजयोग होता है जिसका शुभ फल जातक को मिलता है।
ऋषि पाराशर ने एक अशुभ फल भी बताया है और वह यह है कि जातक प्रायः पिता के सुख (सहायता) से वंचित रहता है।
मेष लग्न में लग्नेश मंगल दशम भाव में हो तो यह उसकी उच्च राशि होती है जिसका अत्यन्त शुभ फल होता है। यह कुलदीपक योग भी है और रूचक नामक पंच महापुरुष योग भी है।
वृष लग्न में लग्नेश शुक्र दशम भाव में हो तो यह उसकी मित्र राशि है जिसका शुभ फल जातक को मिलता है।
मिथुन लग्न में लग्नेश बुध दशम भाव में हो तो यह उसकी नीच राशि है पर दशम भाव अत्यन्त शुभ भाव है जिससे जातक को ज्यादा अशुभ फल नहीं मिलेंगे।
कर्क लग्न में लग्नेश चन्द्रमा दशम में हो तो यह उसकी मित्र राशि है जिसका शुभ फल ही जातक को मिलता है।
सिंह लग्न में लग्नेश सूर्य दशम भाव में हो तो यह उसकी शत्रु राशि है, पर दशम भाव में सूर्य दिग्बली होता है । इसलिए जातक को शुभ फल ही मिलेंगे।
कन्या लग्न में लग्नेश बुध दशम भाव में हो तो यह उसकी स्वराशि होती है , जिसका अत्यन्त शुभ फल जातक को मिलता है क्योंकि यह भद्र नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण कर रहा है।
तुला लग्न में लग्नेश शुक्र दशम भाव में हो तो यह उसकी शत्रु राशि होती है । शुभ फलों में कुछ कमी आ जाती है पर दशम भाव में होने से जातक को शुभ फल भी मिलेंगे ।
वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल यदी दशम भाव में हो तो यहॉ उसकी मित्र राशि (५-सिंह) होगी जिस है । शुभ फल जातक को मिलता है । क्योंकि दशम भाव, दक्षिण दिशा में *मंगल*दिग्बली होता है। यानी विशेष दिशा-बल प्राप्त करता है ।
धनु लग्न में, लग्नेश गुरु दशम भाव में ..(६-कन्या राशि RP-बुद्ध) हो तो, यहॉ पर गुरु की शत्रु राशि होती है। ईस राशिमें बलहीन, भावस्थ गुरु comfortable नहीं होगा । शुभत्व में काफी कमि होगी ।
मकर लग्न में लग्नेश *शनि* दशम भाव में (७-तुला राशिमें)हो तो यह उसकी उच्च राशि होगी जिसका अत्यन्त शुभ फल जातक को मिलता है क्योंकि यहाँ पर शनि *शश-योग* नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण करता है ।
कुम्भ लग्न में लग्नेश शनि दशम भाव में हो तो यहॉ वृश्चिक(RP-मंगल) उसकी शत्रु राशि होगी, यहाँ पर, लग्नेश शनिका शुभ फलों बाबत बलमें जरुर कुछ़ कमी जातक को मिलती है।
मीन लग्न में लग्नेश गुरु दशम भाव में हो तो यह उसकी स्वराशि होगी जिसका अत्यन्त शुभ फल जातक को मिलता है क्योंकि यहाँ पर गुरु *हंस-योग* नामक पंच महापुरुष योग का निर्माण करता है।
केंद्र ◽स्थानों (लग्न, चतुर्थ,सप्तम तथा दशम) में दशम स्थान.. उत्तरोत्तर, सबसे बलवान होता है । अतः यहाँ पर अच्छी स्थिति में लग्नेश/अन्य कोई ग्रह हो तो बहुत शुभ फल-दाता होता है। ख़ास तो राशि मेष, सिंह या वृश्चिक का लग्नेश, क्यूँ की १०-दशम् भाव.. दक्षिण दिशा है । ईस भावमें .. सूर्य ओर मंगल ग्रह दि्कबल
यानि दिशा-बल भी प्राप्त करते है ।
साथ में यह भी देखना चाहिए कि लग्नेश की स्थिति कैसी है यानि लग्नेश कही पाप ग्रह के साथ तो नहीं है..?? या लग्नेश, पाप ग्रह तो नहीं देख रहा है..?? या अस्त तो नहीं है..?? या *अष्टक वर्ग* में 4 से कम बिंदु तो नहीं है..?? इसके आधार पर भी फलों के शुभत्वमें फर्क आ सकता है।
लग्नेश की जितनी अच्छी स्थिति होगी, शुभ फल उसी मात्रा में जातक को मिलेंगे।
No comments:
Post a Comment