Tuesday, November 7, 2017

तुलसीस्तोत्रम्

तुलसीस्तोत्रम्

जगद्धात्रि   नमस्तुभ्यं   विष्णोश्च  प्रियवल्लभे।
यतो  ब्रह्मादयो  देवा:  सृष्टिस्थित्यन्तकारिण:।।1।।

नमस्तुलसि  कल्याणि   नमो  विष्णुप्रिये  शुभे।
नमो    मोक्षप्रदे    देवि   नम:   सम्पत्प्रदायिके।।2।।

तुलसी पातु  मां नित्यं सर्वापद्भ्योSपि  सर्वदा।
कीर्तितापि  स्मृता  वापि  पवित्रयति  मानवम्।।3।।

नमामि   शिरसा   देवीं   तुलसीं  विलसत्तनुम्।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात्।।4।।

तुलस्या     रक्षितं    सर्वं    जगदेतच्चराचरम्।
या  विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरै:।।5।।

नमस्तुलस्यतितरां  यस्यै  बद्ध्वांजलिं  कलौ।
कलयन्ति  सुखं  सर्वं स्त्रियो  वैश्यास्तथाSपरे।।6।।

तुलस्या    नापरं   किंचिद्   दैवतं  जगतीतले।
यथा   पवित्रितो  लोको  विष्णुसंगेन   वैष्णव:।।7।।

तुलस्या: पल्लवं विष्णो: शिरस्यारोपितं कलौ।
आरोपयति    सर्वाणि    श्रेयांसि    वरमस्तके।।8।।

तुलस्यां  सकला  देवा  वसन्ति  सततं  यत:।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन्।।9।।

नमस्तुलसि    सर्वज्ञे       पुरुषोत्तमवल्लभे।
पाहि   मां   सर्वपापेभ्      सर्वसम्पत्प्रदायिके।।10।।

इति   स्तोत्रं   पुर   गीतं  पुण्डरीकेण धीमता।
विष्णुमर्चयता    नित्यं   शोभनैस्तुलसीदलै:।।11।।

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या    धर्मानना    देवी    देवीदेवमन:प्रिया।।12।।

लक्ष्मीप्रियसखी  देवी  द्यौर्भूमिरचला  चला।
षोडशैतानि  नामानि  तुलस्या: कीर्तयन्नर:।।13।।

लभते सुतरां  भक्तिमन्ते  विष्णुपदं  लभेत्।
तुलसी  भूर्महालक्ष्मी:  पद्मिनी  श्रीर्हरिप्रिया।।14।।

तुलसि   श्रीसखि  शुभे  पापहारिणि पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते         नारायणमन:प्रिये।।15।।

।।इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।

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