कलियुग की प्रवृत्ति का वर्णन और भविष्य कथन
दक्षिणा 2100 /- ज्योतिष तंत्र मंत्र यंत्र टोटका वास्तु कुंडली हस्त रेखा राशि रत्न,भूत प्रेत जिन जिन्नात बुरे गंदे सपने का आना, कोर्ट केस, लव मैरिज, डाइवोर्स, वशीकरण पितृ दोष कालसर्प दोष चंडाल दोष गृह क्लेश बिजनस विदेश यात्रा, अप्सरा परी साधना, अघोर साधनायें , समशान तांत्रिक साधनायें, सास बहु, सास ससुर, पति पत्नी, जेठ जेठानी, देवर देवरानी, नन्द नन्दोई, साला साली, सभी झगड़े विवाद का हल व वशीकरण कार्य किया जाता है
कलेर्दोषेनिवेश्चैव शृणु चैकं महागुणं |
यदल्पेन तु कालेन सिद्धि गच्छति मानवाः || (1)
त्रेतायां वार्षिको धर्मो द्वापरे मासिकः स्मृतः |
यथा क्लेशं वरन प्राश्स्तहा प्राप्यते कलौ || (2)
दुगत्रयेण तावन्तः सिद्धि गच्छन्ति पार्थिव |
यावन्तः सिद्धिमाद्यन्ति कलौ हरिहर्व्रताः || (3)
अब कलियुग की प्रवृत्ति सुनो | कलियुग में तमोगुण से व्याकुल इन्द्रियों वाले मनुष्य माया, असूया (दोष दृष्टी) तथा तपस्वी महात्माओं की हत्या भी करते हैं | कलि में मन और इन्द्रियों को मथ डालने वाला राग प्रकट होता है | सदा भुखमरी का भय सताता रहता है, भयंकर अनावृष्टि का भय भी प्राप्त होता है | सब देशों में नाना प्रकार के उलट फेर होते रहते हैं | सदा अधर्म सेवन करने के कारण मनुष्यों के लिए वेद का प्रमाण मान्य नहीं रह जाता | प्रायः लोग अधार्मिक, अनाचारी, अत्यंत क्रोधी और तेजहीन होते हैं | लोभ के वशीभूत हो कर झूठ बोलते हैं, उनमें अधिकांश नारियों का सा स्वभाव आ जाता है, उनकी संतान दुष्ट होती हैं | ब्राह्मणों के दूषित यज्ञ, दोषयुक्त स्वाध्याय, दूषित आचरण तथा असत शास्त्रों के सेवन रूप कर्म दोष से समस्त प्रजा का विनाश होता है | क्षत्रिय और ब्राह्मण नाश को प्राप्त होते हैं और वैश्य तथा शूद्रों की वृद्धि होती है | शूद्र लोग ब्राह्मणों के साथ एक आसन पर सोते, बैठते और भोजन भी करते हैं | शूद्र ब्राह्मणों के आचरण अपनाते हैं और ब्राह्मण शूद्र के सामान आचरण करते हैं | चोर राजाओं की वृत्ति में स्थित होते हैं और राजा लोग चोर के सामान वर्ताव करते हैं |
पतिव्रता स्त्रियाँ कम होने लगती हैं और कुलटाओं की संख्या बढती है | कलियुग में भूमि प्रायः थोडा फल देने वाली होती है, कही कहीं वह अधिक उपजाऊ होती है | राजा लोग निडर होकर पाप करते हैं, वे रक्षक नहीं वरन प्रजा की संपत्ति हड़प लेने वाले होते हैं | कलियुग में प्रायः क्षत्रियेत्तर जाति के लोग राजा होते हैं | ब्राह्मण शूद्र की वृत्ति से जीविका चलने वाले होंगे | शूद्र ब्राह्मणों से अभिवन्दित हो कर स्वयं वाद-विवाद करने वाले होंगे | वे द्विजों को देख कर भी अपने आसन से उठ कर खड़े न होंगे | द्विजों के सामने भी शूद्र ऊँचे आसन पर बैठे रहेंगे; यह बात जानकार भी राजा उन्हें दंड नहीं देगा | देखो, काल का कैसा प्रभाव है | अल्प विद्या और अल्प भाग्य वाले ब्राह्मण सुन्दर सुन्दर फूलों तथा अन्य प्रकार के अलंकारों से शूद्रों की अर्चना किया करेंगे | कलियुग के ब्राह्मण पाखंडियों के न लेने योग्य दूषित दान को भी ग्रहण करते हैं और उसके कारण दुस्तर रौरव नरक में पड़ते हैं | करोड़ों द्विज कलिकाल में तप और यज्ञ का फल बेचने वाले तथा अन्यायी होते हैं | मनुष्यों के संतानों में पुत्र थोड़े और कन्यायें अधिक होती हैं |
कलियुग में मनुष्य वेद वाक्यों तथा वेदार्थों की निंदा करते हैं | शूद्रों ने जिसे स्वयं रच लिया हो, वही शास्त्र एवं प्रमाण माना जायेगा | हिंसक जीव प्रबल होंगे और गौवंश का क्षय होगा | दान आदि कोई भी धर्म अपने शुद्ध रूप में नहीं पालित होगा | साधू पुरुषों का अनेक प्रकार से विनाश होगा | राजा लोग प्रजा के रक्षक न होंगे | कलियुग का अंतिम भाग उपस्थित होने पर प्रत्येक जनपद के लोग अन्न का व्यापार करेंगे, ब्राह्मण वेद बेचने वाले होंगे, स्त्रियाँ व्यभिचार से अर्थोपार्जन करेंगी | घरों में स्त्रियों की प्रधानता होगी | वे अपवित्र कपडे पहनने वाली तथा कर्कशा होंगी | बहुत अधिक भोजन में लिप्त हो कर कृत्या की भाँती प्रतीत होंगी | कलियुग में प्रायः सब लोग वाणिज्य वृत्ति करने वाले होंगे | इंद्र छिट-पुट वर्षा करने वाले होंगे | मनुष्य दुराचार सेवन आदि व्यर्थ के पाखंडों से घिरे होंगे और सब लोग एक दूसरे से याचना करेंगे | उस समय लोगों को पाप करने में तनिक भी शंका नहीं होगी | जब कलियुग के संहार का समय आएगा उस समय मनुष्य पराया धन हडपने वाले, परस्त्रियों का सतीत्व नष्ट करने वाले तथा पंद्रह वर्ष की आयु वाले होंगे | चोर के घर भी चोरी करने वाले तथा लुटेरे के घर में भी लूट मार करने वाले होंगे | ज्ञान और कर्म दोनों का अभाव हो जाने से सब लोग उद्यम करना छोड़ देंगे | उस समय कीड़े, चूहे और सर्प मनुष्य को डसेंगे | वर्ण और आश्रम धर्म के विरोधी जो अन्य पाखण्ड सुने जाते हैं, वे सब उस समय प्रकट होंगे और उनकी वृद्धि होगी | कलियुग में स्त्री और पुत्र से दुःख, शरीर का संहार, सदा रोगी रहना तथा पाप करने में आग्रह रखना आदि दोष क्रमशः बढ़ते ही जायेंगे |
राजन ! यद्यपि कलियुग समस्त दोषों का भण्डार है, तथापि उसमें एक महान गुण भी है, उसे सुनो – कलिकाल में थोड़े ही समय साधन करने से मनुष्य सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं | (1) सतयुग, त्रेता और द्वापर – इन तीनों युगों के लोग ऐसा कहते हैं कि जो मनुष्य कलियुग में श्रद्धा परायण होकर वेदों, स्मृतियों और पुराणों में बताये गए धर्म का अनुष्ठान करते हैं, वे धन्य हैं | त्रेता में एक वर्ष तक तथा द्वापर में एक मास तक क्लेशसहनपूर्वक धर्मानुष्ठान करने वाले बुद्दिमान पुरुष को जो फल प्राप्त होता है वह कलियुग में एक दिन के अनुष्ठान से मिल जाता है | राजन ! कलियुग में भगवान् विष्णु और शिव की नियमपूर्वक उपासना करने से जितने मनुष्य सिद्धि को प्राप्त होते हैं, उतने अन्य युगों में तीन युगों में उपासना करने से प्राप्त होते हैं | (2,3)
कलियुग का भविष्य कथन
राजन ! अट्ठाइसवें कलियुग में जो कुछ होने वाला है, उसे सुनो ! कलियुग के तीन हजार दो सौ नब्बे वर्ष व्यतीत होने पर इस भूमंडल में वीरों का अधिपति शूद्रक नामका राजा होगा, जो चर्चिता नगरी में आराधना करके सिद्धि प्राप्त करेगा | शूद्रक पृथ्वी का भार उतारने वाला राजा होगा | तदनन्तर कलियुग के तीन हजार तीन सौ दसवें वर्ष में नन्द वंश का राज्य होगा | चाणक्य नाम वाला ब्राह्मण उन नन्दवंशियों का संहार करेगा और शुक्ल तीर्थ में वह अपने समस्त पापों से छुटकारा पाने के लिए प्रायश्चित की अभिलाषा करेगा | इसके सिवा कलियुग के तीन हजार बीस बर्ष निकल जाने पर इस पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य होंगे | वे नवदुर्गाओं की सिद्धि एवं कृपा से राज्य पाएंगे और दीनों का उद्धार करेंगे | तदनन्तर तीन हजार से सौ वर्ष और अधिक बीतने पर शक नामक राजा होगा | उसके बाद कलियुग के तीन हजार छह सौ वर्ष बीतने पर मगध देश में हेमसदन से अञ्जनि के गर्भ से भगवान् विष्णु के अंशावतार स्वयं भगवान् बुद्ध प्रकट होंगे, जो धर्मं का पालन करेंगे | महात्मा बुद्ध के अनेक उत्तम चरित्र स्मरणीय होंगे | अपने भक्तों के लिए अपनी यशोगाथा छोड़कर वे स्वर्ग लोक को चले जायेंगे, भक्तजन उन्हें पापहारी बुद्ध कहेंगे | तत्पश्चात कलियुग के चार हजार चार सौ वर्ष बीत जाने पर चन्द्र वंश में महाराजा प्रमिति का प्रादुर्भाव होगा | वे बहुत बड़ी सेना के अधिपति तथा अत्यंत बलवान होंगे | करोडो म्लेछों का वध करके सब ओर से पाखण्ड का निवारण करते हुए केवल विशुद्ध वैदिक धर्म की स्थापना करेंगे | महाराजा प्रमिति का देहावसान गंगा यमुना के मध्यवर्ती क्षेत्र प्रयाग में होगा |तत्पश्चात किसी समय काल के प्रभाव से जब प्रजा अत्यंत पीड़ित होने लगेगी, तब भयंकर अधर्म का आश्रय लेकर शठता पूर्वक बर्ताव करेगी | सभी अकर्मण्य तथा आवश्यक साधनों से भी रहित होंगे | उस समय शाल्य नामक म्लेछ धर्म का विनाश करने के लिए उन सबका संहार करेगा | उत्तम, मध्यम और अधम सब प्रकार की श्रेणियों का विनाश करके वह अत्यंत भयंकर कर्म करने वाला होगा | तब उसका वध करने के लिए सम्पूर्ण जगत के स्वामी साक्षात् भगवान् विष्णु सम्भल ग्राम में श्रीविष्णुयशा के पुत्र हो कर अवतीर्ण होंगे और श्रेष्ठ ब्राह्मणों के साथ जाकर उस ‘शाल्य’ नाम वाले म्लेछ का संहार करेंगे | वे सब ओर घूम घूम कर करोड़ों और अरबों पापियों का वध करके उस धर्म का पालन करेंगे, जो वेद मूलक है | साधु पुरुषों के लिए धर्मरूपी नौका का निर्माण करके अनेक प्रकार की लीलाएं करने के पश्चात वे भगवान् कल्कि परम धाम में पधारेंगे | राजन ! उसके बाद फिर सतयुग का आरम्भ होगा | प्रथम सतयुग, अंतिम सतयुग और अट्ठाइसवें कलियुग ये अन्य युगों से कुछ विशिष्टता रखते हैं | शेष युगों की प्रवृत्ति औरों के सामान होती है | कलियुग बीतने पर सतयुग के प्रारंभ में राजा मरू (पुरु) से सूर्यवंश, देवापि से चन्द्रवंश और श्रुतदेव से ब्राह्मण वंश की परम्परा चालू होगी | राजन ! इस प्रकार चरों युगों के व्यवस्था बदलती रहती हैं | चारों युगों में वही लोग धन्य हैं, जो भगवान् शंकर और विष्णु का भजन करते हैं |
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