लम्बे रोग और शनि उपाय
शनि दर्द या दुःख का प्रतिनिधित्व करता है | जितने प्रकार की शारीरिक व्याधियां हैं उनके परिणामस्वरूप व्यक्ति को जो दुःख और कष्ट प्राप्त होता है उसका कारण शनि होता है | शनि का प्रभाव दुसरे ग्रहों पर हो तो शनि उसी ग्रह से सम्बन्धित रोग देता है | शनि की दृष्टि सूर्य पर हो तो जातक कुछ भी कर ले सर दर्द कभी पीछा नहीं छोड़ता | चन्द्र पर हो तो जातक को नजला होता है | मंगल पर हो तो रक्त में न्यूनता या ब्लड प्रेशर, बुध पर हो तो नपुंसकता, गुरु पर हो तो मोटापा, शुक्र पर हो तो वीर्य के रोग या प्रजनन क्षमता को कमजोर करता है और राहू पर शनि के प्रभाव से जातक को उच्च और निम्न रक्तचाप दोनों से पीड़ित रखता है | केतु पर शनि के प्रभाव से जातक को गम्भीर रोग होते हैं परन्तु कभी रोग का पता नहीं चलता और एक उम्र निकल जाती है पर बीमारियों से जातक जूझता रहता है | दवाई असर नहीं करती और अधिक विकट स्थिति में लाइलाज रोग शनि ही देता है |
उपाय
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शनि की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- हनुमान जी तथा शनि देव वैदिक उपाय : शनि वैदिक मंत्र का तेईस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ शन्नोदेवीरभीष्टये आपो भवन्तु पीतये संयोरभिश्रवण्तु नः तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ प्रां प्रौं सः शनये नमः (ख) ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः। (ग) ऊँ शं शनैश्चराय नमः। शनि के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बयानवे हजार जप करना चाहिए। गायत्री मंत्र : ऊँ भग भवाय विद्यहे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः शनि प्रचोदयात्।
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शनि की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- हनुमान जी तथा शनि देव वैदिक उपाय : शनि वैदिक मंत्र का तेईस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र : ऊँ शन्नोदेवीरभीष्टये आपो भवन्तु पीतये संयोरभिश्रवण्तु नः तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ प्रां प्रौं सः शनये नमः (ख) ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं शनैश्चराय नमः। (ग) ऊँ शं शनैश्चराय नमः। शनि के किसी भी तांत्रिक मंत्र का बयानवे हजार जप करना चाहिए। गायत्री मंत्र : ऊँ भग भवाय विद्यहे मृत्युरूपाय धीमहि तन्नः शनि प्रचोदयात्।
शनिवार व्रत : शनिवार व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ करना चाहिए। व्रत के दिन उपासक स्नान करके, काला वस्त्र धारण कर शनि के बीज मंत्र का एक सौ आठ दाने की स्फटिक या जीवापुत की माला से तीन या उन्नीस माला जप करें। उसके बाद एक थाल में जल, काला तिल, काला या नीला फूल, लवंग, गंगा जल, चीनी, दूध पूर्वाभिमुख हो कर पीपल की जड़ में डालें और तिल के तेल का दीपक जलावें। रात में काली उड़द की दाल की खिचड़ी स्वयं खाएं और दूसरों को भी खिलावें। पूजा-पाठ : पंचमुखी हनुमान कवच का पाठ एवंम शनि देव की स्तुति करें।
दान : तेल, नीलम, तिल, काला कपड़ा, कुलथी, लोहा, भैंस, काली गाय, काला फूल, काले जूते, कस्तूरी, सोना आदि। हवन : संध्या समय शमी समिधा (लकड़ी) से हवन करना चाहिए। औषधि स्नान : काला तिल, सुरमा, लोबान, धमनी, सौंफ, मुत्थरा, खिल्लां आदि।
शनि ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु शनि यंत्र : भोजपत्र पर काली स्याही अनार की कलम से शनिवार को प्रातः काल लिख कर, पंचोपचार पूजन कर लौह पत्र पर शनिवार को उत्कीर्ण करा कर काले धागे में गूंथ कर गले या बांह में धारण करना चाहिए।
रत्न धारण : नीलम रत्न को चांदी या सोने में मढ़वा कर, पंचोपचार पूजन कर तथा ब्राह्मण से प्राण प्रतिष्ठा करा कर शनि की उंगली में (मध्यमा) शनिवार को शयन के पूर्व भोजन के बाद धारण करना चाहिए। काले घोड़े की नाल का शनिवार को छल्ला बनवा कर मध्यमा उंगली में शनिवार की रात्रि में धारण करें व छल्ले को तेल लगाएं। औषधि धारण : शमी मूल (जड़) को काले कपड़े या नीले कपड़े में बांध कर सीधे हाथ में धारण करना चाहिए।
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