Tuesday, November 7, 2017

SHRADH STOTR श्राद्ध के समय किए जाने वाले पाठ स्तोत्र

SHRADH STOTR श्राद्ध के समय किए जाने वाले पाठ  स्तोत्र

अमावस्या
पितृ पक्ष श्राद्ध 15 दिन तक मनाए जाते हैं जहाँ व्यक्ति अपने पूर्वजों अथवा पितरों का तर्पण करता है. जिस दिन भी श्राद्ध मनाया जाए उस दिन ब्राह्मण भोजन के समय पितृ स्तोत्र का पाठ किया जाना चाहिए जिसे सुनकर पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. इस पाठ को भोजन करने वाले ब्राह्मण के सामने खड़े होकर किया जाता है जिससे इस स्तोत्र को सुनने के लिए पितर स्वयं उस समय उपस्थित रहते हैं और उनके लिए किया गया श्राद्ध अक्षय होता है.
जो व्यक्ति सदैव निरोग रहना चाहता है, धन तथा पुत्र-पौत्र की कामना रखता है, उसे इस पितृ स्तोत्र से सदा पितरों की स्तुति करते रहनी चाहिए.

*पितृणाम प्रार्थना मन्त्र*
ओम देवताभ्यः पितृभ्यस्च महा योगी भयेव च। नमः स्वहाये स्वधायै नित्य मेव नमो नमः ।।

पितृ स्तोत्र – Pitrustotra

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम् ।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा ।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ।।
मन्वादीनां मुनीन्द्राणां सूर्याचन्द्रमसोस्तथा ।
तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि ।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येsहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्यपाय सोमाय वरुणाय च ।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा ।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम् ।
अग्नीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योsखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानस:।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुज:।।
पितृ स्तोत्र के अलावा श्राद्ध के समय “पितृसूक्त” तथा “रक्षोघ्न सूक्त” का पाठ भी किया जा सकता है. इन पाठों की स्तुति से भी पितरों का आशीर्वाद सदैव व्यक्ति पर बना रहता है.


पितृ सूक्त – Pitru sukta

उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमा: पितर: सोम्यास:।
असुं य ईयुरवृका ऋतज्ञास्ते नोsवन्तु पितरो हवेषु ।।
अंगिरसो न: पितरो नवग्वा अथर्वाणो भृगव: सोम्यास:।
तेषां वयँ सुमतौ यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे स्याम ।।
ये न: पूर्वे पितर: सोम्यासोsनूहिरे सोमपीथं वसिष्ठा:।
तोभिर्यम: सँ रराणो हवीँ ष्युशन्नुशद्भि: प्रतिकाममत्तु ।।
त्वँ सोम प्र चिकितो मनीषा त्वँ रजिष्ठमनु नेषि पन्थाम् ।
तव प्रणीती पितरो न इन्दो देवेषु रत्नमभजन्त धीरा: ।।
त्वया हि न: पितर: सोम पूर्वे कर्माणि चकु: पवमान धीरा:।
वन्वन्नवात: परिधी१ँ रपोर्णु वीरेभिरश्वैर्मघवा भवा न: ।।
त्वँ सोम पितृभि: संविदानोsनु द्यावापृथिवी आ ततन्थ।
तस्मै त इन्दो हविषा विधेम वयँ स्याम पतयो रयीणाम।।
बर्हिषद: पितर ऊत्यर्वागिमा वो हव्या चकृमा जुषध्वम्।
त आ गतावसा शन्तमेनाथा न: शं योररपो दधात।।
आsहं पितृन्सुविदत्रा२ँ अवित्सि नपातं च विक्रमणं च विष्णो:।
बर्हिषदो ये स्वधया सुतस्य भजन्त पितृवस्त इहागमिष्ठा:।।
उपहूता: पितर: सोम्यासो बर्हिष्येषु निधिषु प्रियेषु।
त आ गमन्तु त इह श्रुवन्त्वधि ब्रुवन्तु तेsवन्त्वस्मान् ।।
आ यन्तु न: पितर: सोम्यासोsग्निष्वात्ता: पथिभिर्देवयानै:।
अस्मिनन् यज्ञे स्वधया मदन्तोsधि ब्रुवन्तु तेsवन्त्वस्मान्।।
अग्निष्वात्ता: पितर एह गच्छत सद: सद: सदत सुप्रणीतय:।
अत्ता हवीँ षि प्रयतानि बर्हिष्यथा रयिँ सर्ववीरं दधातन ।।
ये अग्निष्वात्ता ये अनग्निष्वात्ता मध्ये दिव: स्वधया मादयन्ते ।
तेभ्य: स्वराडसुनीतिमेतां यथावशं तन्वं कल्पयाति ।।
अग्निष्वात्तानृतुमतो हवामहे नाराशँ से सोमपीथं य आशु:।
ते नो विप्रास: सुहवा भवन्तु वयँ स्याम पतयो रयीणाम् ।।


रक्षोघ्न सूक्त – Rakshoghna Sukta

कृणुष्व पाज: प्रसितिं न पृथ्वीं याहि राजेवामवाँ२ इभेन ।
तृष्वीमनु प्रसितिं द्रूणानोsस्ताsसि विध्य रक्षसस्तपिष्ठै:।।
तव भ्रमास आशुया पतन्त्यनुस्पृश धृषता शोशुचान:।
तपुँ ष्यग्ने जुह्वा पतंगानसन्दितो वि सृज विष्वगुल्का:।।
प्रति स्पशो वि सृज तूर्णितमो भवा पायुर्विशो अस्या अदब्ध:।
यो नो दूरे अघशँ सो यो अर्न्तयग्ने मा किष्टे व्यथिरा दधर्षीत्।।
उदग्ने तिष्ठ प्रत्या तनुष्व न्यमित्राँ२ ओषतात्तिग्महेते।
यो नो अरार्तिँ समिधान चक्रे नीचा तं धक्ष्यतसं न शुष्कम्।।
ऊर्ध्वो भव प्रति विध्याध्यस्मदाविष्कृणुष्व दैव्यान्यग्ने ।
अव स्थिरा तनुहि यातुजूनां जामिमजामिं प्र मृणीहि शत्रुन्।।
अग्नेष्ट्वा तेजसा सादयामि ।।
(शु. यजुर्वेद 13।9-13)

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