Tuesday, November 7, 2017

भवान्यष्टकम्

भवान्यष्टकम्

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता, न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।1।।

भवाब्धावपारे महादु:खभीरु:, पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्त:।
कुसंसार-पाश-प्रबद्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।।

न जानामि दानं न च ध्यान-योगं, न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्र-मन्त्रम्।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।।

न जानामि पुण्य़ं न जानामि तीर्थं, न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।
न जानामि भक्तिं व्रतं वाSपि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।4।।

कुकुर्मी    कुसंगी    कुबुद्धि    कुदास:,    कुलाचारहीन:   कदाचारलीन:।
कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।।

प्रजेशं   रमेशं   महेशं   सुरेशं,   दिनेशं    निशीथेश्वरं   वा    कदाचित्।
न जानामि चाSन्यत् सदाSहं शरण्ये, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।।

विवादे   विषादे   प्रमादे   प्रवासे,  जले   चाSनले   पर्वते   शत्रुमध्ये।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।।

अनाथो  दरिद्रो  जरा-रोगयुक्तो, महाक्षीणदीन:  सदा  जाड्यवक्त्र:।
विपत्तौ प्रविष्ट: प्रणष्ट: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।।

इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं भवान्यष्टकं सम्पूर्णम्।।

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विशेष सुचना

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