ब्रहस्पति और मोटापा उपाय
गुरु यानी ब्रहस्पति व्यक्ति को बुद्धिमान बनता है परन्तु पढ़े लिखे लोग यदि मूर्खों जैसा व्यवहार करें तो समझ लीजिये कि व्यक्ति का गुरु कुंडली में खराब है | गुरु सोचने समझने की शक्ति को प्रभावित करता है और व्यक्ति जडमति हो जाता है | इसके अतिरिक्त गुरु कमजोर होने से पीलिया या पेट के अन्य रोग होते हैं | गुरु यदि दुष्ट ग्रहों से प्रभावित होकर लग्न को प्रभावित करता है तो मोटापा देता है | अधिकतर लोग जो शरीर से काफी मोटे होते हैं उनकी कुंडली में गुरु की स्थिति कुछ ऐसी ही होती है।
उपाय
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गुरु ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- ब्रह्म, विष्णु तथा इंद्र वैदिक उपाय : गुरु की अनुकूलता हेतु गुरु के वैदिक मंत्र का उन्नीस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ बृहस्पते अतियदर्योअर्ध्नाद्युमद्धि भातिक्रतुमज्जनेषु। यदीदयच्छवसऽऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं द्येहिचित्रम्। तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः (ख) ऊँ बृं बृहस्पत्यै नमः गुरु के किसी तांत्रिक मंत्र का छिहत्तर हजार जप करना चाहिए।
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गुरु ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव- ब्रह्म, विष्णु तथा इंद्र वैदिक उपाय : गुरु की अनुकूलता हेतु गुरु के वैदिक मंत्र का उन्नीस हजार जप करना चाहिए। वैदिक मंत्र ऊँ बृहस्पते अतियदर्योअर्ध्नाद्युमद्धि भातिक्रतुमज्जनेषु। यदीदयच्छवसऽऋत प्रजात तदस्मासु द्रविणं द्येहिचित्रम्। तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरुवे नमः (ख) ऊँ बृं बृहस्पत्यै नमः गुरु के किसी तांत्रिक मंत्र का छिहत्तर हजार जप करना चाहिए।
हवन : अश्वस्थ (पीपल) की लकड़ी से हवन करना चाहिए।
दान : पीला अन्न, पीला वस्त्र, सोना, घृत, पीला फूल, पीला फल, पुखराज, हल्दी, कपड़ा, पुस्तक, शहद, नमक, चीनी, भूमि, छत्र, दक्षिणा आदि। औषधि स्नान : मालती पुष्प, पीला चंपा फूल, सरसों, पीली मुलहट्टी, शहद।
व्रत : ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार से यह व्रत प्रारंभ करके तीन वर्ष या सोलह गुरुवार को लगातार किया जाता है। इस व्रत को रखने वाले दिन में पीला वस्त्र धारण कर बृहस्पति के बीज मंत्र का एक सौ आठ माला, तीन माला या ग्यारह माला जप कर पीले फूल और बेसन के गुड़ से लड्डू बना कर, या गुड़ में दूध चावल मिला कर खीर को (केसरयुक्त कर) भोग लगा कर भोजन करें। अंतिम गुरुवार को पूर्णाहुति हवन कर गरीब ब्राह्मण को भोजन करा कर समापन करें। (हवन समिधा ऊपर वर्णित है) ग्रह पीड़ा निवृत्ति हेतु गुरु यंत्र गुरुवार को भोजपत्र पर हल्दी से अनार की कलम से लिख कर अथवा गुरु पुष्य, रवि पुष्य, सर्वाथ सिद्धी योग में ताम्र या स्वर्ण पत्र पर यंत्र उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के गले या बांह में धारण करना चाहिए।
रत्न धारण : पीला पुखराज 5( रत्ती स्वर्ण में मढ़वा कर गुरुवार को प्रातः काल कच्चे दूध से धो कर, गंगा जल से शुद्ध करा के किसी पंडित से प्राण प्रतिष्ठा करा कर, या गुरु मंत्र को निन्यान्वे बार जप कर धारण करना चाहिए। औषधि धारण : भृंगराज की पत्ती, या हल्दी की गांठ पीले कपड़े में सी कर व पीले धागे में लगा कर, गले में या सीधे हाथ की बांह में धारण करनी चाहिए।
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