Wednesday, November 15, 2017

बुध से दमा और अन्य रोग उपाय

बुध से दमा और अन्य रोग उपाय

बुध व्यक्ति को चालाक और धूर्त बनाता है | आज यदि आप चालाक नहीं हैं तो दुसरे लोग आपका हर दिन फायदा उठाएंगे | भोले भाले लोगों का बुध अवश्य कमजोर होता है | अधिक खराब बुध से व्यक्ति को चमड़ी के रोग अधिक होते हैं | साँस की बीमारियाँ बुध के दूषित होने से होती हैं | बेहद खराब बुध से व्यक्ति के फेफड़े खराब होने का भय रहता है | व्यक्ति हकलाता है तो भी बुध के कारण और गूंगा बहरापन भी बुध के कारण ही होता है |
उपाय

बुध ग्रह की अनुकूलता हेतु आराध्य देव-श्री दुर्गाजी, श्री गणेश जी वैदिक उपाय वैदिक मंत्र ऊँ उद्बुधस्याग्ने प्रति जागृहित्वमिंष्टापूर्ते सग्वं सृजेथामयंन्च। अस्मिन्सद्यस्ते अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवायजमानश्य सींदत्॥ बुध ग्रह के वैदिक मंत्र का नौ हजार जप करना चाहिए। तांत्रिक मंत्र (क) ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः। (ख) बुं बुधाय नमः। बुध ग्रह के तांत्रिक मंत्र का छत्तीस हजार जाप करना चाहिए। बुध गायत्री मंत्र ऊँ सौम्यरूपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि, तन्नो सौम्यः प्रचोदयात्॥
व्रत: बुधवार का व्रत ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से प्रारंभ करना चाहिए। कम से कम इक्कीस बार या पैंतालीस बार व्रत रखें। व्रत के दिन हरा वस्त्र धारण कर बुध के बीज मंत्र ''ऊँ बुं बुधाय नमः'' का एक सौ आठ दाने की स्फटिक माला पर तीन या सत्रह माला जप करें। उसके बाद गुड़ के साथ मूंग दाल का हलुवा या लड्डू भोग लगा कर स्वयं खाएं। अंतिम बुधवार को पूर्णाहुति हवन कर समापन करें तथा ब्राह्मण भोजन कराएं। हवन : अपामार्ग की समिधा।
दान : हरा वस्त्र, मूंगी, कांस्य, घृत, मिस्री, हाथी दांत, सुवर्ण, पन्ना, पुष्प, कपूर, दक्षिणा। औषधि स्नान : गोबर, अक्षत, फूल, गोरोचन, मधु, मोती, सोना। ग्रहपीड़ा निवृत्ति हेतु बुध यंत्र : बुध के यंत्र को बुधवार के दिन भोजनपत्र पर अष्टगंध से अनार की कलम से, लिखकर पंचोपचार पूजन कर स्वर्ण यंत्र या तांबे के यंत्र में मढ़वा कर अथवा ताम्र पत्र पर उत्कीर्ण करा कर पंचोपचार पूजन कर के हरे धागे में गूंथ कर सीधे हाथ में या गले में धारण करना चाहिए।
औषधि धारण : विधारामूल हरे कपड़े में सिल कर व हरे धागे में गूंथ कर बुधवार को धारण करना चाहिए या सोने के ताबीज में डाल कर धारण करना चाहिए। रत्न धारण : पन्ना 6( रत्ती का स्वर्ण में मढ़वा कर बुधवार के दिन प्रातः काल अंगूठी को दूध से, पुनः गंगा जल से धो कर, सीधे हाथ की अंगुली में धारण करना चाहिए। संभव हो तो अंगूठी में प्राण-प्रतिष्ठा कर के धारण करना चाहिए।

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विशेष सुचना

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